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किशोरावस्था में शारीरिक विकास | किशोरावस्था में शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

किशोरावस्था में शारीरिक विकास
किशोरावस्था में शारीरिक विकास

किशोरावस्था में शारीरिक विकास (Physical Development During Adolescence)

किशोरावस्था में बालक और बालिकाओं का विकास अत्यन्त तीव्र गति से होता है। बालिका का तेजी से बढ़ने का समय 11 से 13 वर्ष की आयु और बालकों का 14 से 15 वर्ष की आयु होती है। इस अवस्था में शारीरिक विकास से सम्बन्धित निम्न परिवर्तन देखे जाते हैं-

(1) भार- किशोरावस्था में बालकों का भार बालिकाओं से अधिक होता है। इस अवस्था के अंत तक बालकों का भार बालिकाओं के भार से लगभग 50 पौण्ड अधिक हो जाता है।

(2) लम्बाई- किशोरावस्था में लम्बाई में भी तेजी से वृद्धि होती है। अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि बालक 14 वर्ष की आयु तक अपनी पूरी ऊँचाई का 57 प्रतिशत प्राप्त कर लेते हैं, परन्तु बालिकाएँ इस समय तक अपनी सम्पूर्ण ऊँचाई का 60 प्रतिशत प्राप्त कर लेती हैं। लड़के किशोर काल के अन्त तक अपनी सम्पूर्णता प्राप्त कर लेते हैं और बालिकाएँ अपनी सम्पूर्ण ऊँचाई 16 वर्ष की आयु तक प्राप्त कर लेती हैं। ऊँचाई की प्राप्ति भी एक विशेष गति से होती है, जो भिन्न-भिन्न आयु में अलग-अलग होती हैं। 12 वर्ष के बाद से ऊँचाई की वृद्धि में तब तक तीव्रता रहती है जब तक किशोर अपनी पूरी ऊँचाई प्राप्त नहीं कर लेते हैं।

(3) अस्थि विकास- किशोरावस्था में अस्थियों में नमनीयता नहीं रह जाती। अस्थियाँ हो जाती हैं और अस्थिकरण की प्रक्रिया पूरी हो जाती है। प्रायः जन्म के समय शिशु की आयु में वह बढ़कर दृढ़ हड्डियों की संख्या लगभग दो सौ सत्तर होती है। इसके बाद 14 वर्ष की लगभग तीन सौ पचास हो जाती है लेकिन प्रौढ़ावस्था में इनकी संख्या घट जाती है। वे केवल दो सौ छह रह जाती हैं। हड्डियों में कमी इसलिये होती है कि कुछ छोटी और कोमल हड्डियाँ आपस में मिलकर दृढ़ हो जाती हैं और पहले की अपेक्षा संख्या में कम हो जाती हैं, परन्तु विभिन्न कालों में हड्डियों की संख्या पर भी शरीर-शास्त्रियों में मतभेद है। हड्डियों का विकास वैयक्तिक भिन्नता और लिंग भेद से भी प्रभावित होता है। बालकों की हड्डियाँ बालिकाओं की हड्डियों की अपेक्षा शीघ्र जुड़ती हैं। हड्डियों के विकास में पौष्टिक भोजन, व्यायाम एवं उचित आराम अपेक्षित है।

(4) सिर और मस्तिष्क- सिर मस्तिष्क की अधिकतम वृद्धि बाल्यकाल में होती है। किशोरावस्था में भी यह जारी रहती है। 15 या 16 वर्ष की अवस्था में सिर का लगभग पूर्ण विकास हो जाता है। मस्तिष्क का भार 1200 से 1400 ग्राम के मध्य होता है।

(5) ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का विकास- किशोरावस्था तक हाथ, नाक, कान, त्वचा और ज्ञानेन्द्रियों का भी पूर्ण विकास हो जाता है।

(6) अन्य अंगों का विकास- किशोरावस्था में मांसपेशियों का विकास तीव्र गति से होता है। मांसपेशियों के गठन में दृढ़ता आ जाती है और शरीर के सभी अंग पुष्ट एवं सुडौल हो जाते हैं। किशोरों के कन्धे चौड़े हो जाते हैं और किशोरियों के वक्षस्थल और कूल्हों में परिवर्तन दिखलाई पड़ता है। किशोरों के मुख पर दाढ़ी और मूँछों के प्रारम्भिक चिन्ह दिखलाई देने लगते हैं। इस समय प्रजनन ग्रन्थि की सक्रियता के बढ़ने के कारण तारुण्य के लक्षण दिखलाई देने लगते हैं। तारुण्य के लक्षणों के प्रकट होने की कोई एक निश्चित समय की सीमा रेखा नहीं होती। यह परिवर्तन अधिकतर शारीरिक स्वास्थ्य पर आधारित होते हैं। वैयक्तिक भिन्नता के कारण इस तरह के परिवर्तनों में एक अथवा दो वर्ष का अन्तर पाया जाता है।

(7) आवाज में परिवर्तन- गले की थायरायड ग्रन्थि के सक्रिय होने के फलस्वरूप बालक की आवाज में भारीपन और बालिकाओं की आवाज में मृदुलता तथा कभी-कभी धीमापन (Feebleness) आ जाता है।

(8) गति-विकास में वृद्धि- स्टैनले हॉल का मत है कि इस अवस्था में न केवल गति में तीव्रता बढती है बल्कि गति-शक्ति भी बहुत बढ़ जाती है। गति एवं क्रियाशीलता का प्रकाशन खेलने-कूदन, दौड़ने, व्यायाम करने, परिश्रम करने में होता है। इस तरह के कार्यों को करते समय किशोरों में विद्युत की भाँति शक्ति प्रवाह होने लगता है।

(9) विभिन्न ग्रन्थियों का प्रभाव- विभिन्न विद्वानों का मत है कि किशोरावस्था में परिवर्तन का आधार ग्रन्थियाँ (Glands) होती हैं। इन ग्रंथियों में गलग्रन्थि (Thyroid), उप-गलग्रन्थि (Parathyroid), उपवृक्क ग्रन्थियाँ प्रमुख हैं। इन ग्रन्थियों में से आन्तरिक स्राव (Internal Secretion) एवं कुछ में बाह्य स्राव (External Secretion) होता कुछ ग्रन्थियों में है। शारीरिक परिवर्तनों के फलस्वरूप इन ग्रन्थियों का आन्तरिक और बाह्य स्राव होता है।

किशोर काल का मुख्य शारीरिक परिवर्तन : यौवन का आरम्भ (The Chief Change in Adolescence: Beginning of Youth)- किशोर काल में शरीर-आकार, आकृति, अनुपात आदि प्रौढ़ व्यक्तियों के समान हो जाता है। मुख्य शारीरिक परिवर्तन यौवनारम्भ का होता है। यौवनारम्भ की कई पहचानें हैं। बालकों के जघनास्थि (Pubis) के ऊपर बालों का निकलना और लिंग-ग्रन्थियों में शुक्र स्राव होना, गर्दन का लम्बा होना और मूत्र में क्रोटीन तथा एण्डोजेन की उपस्थिति आदि । रक्तस्राव, भगास्थि के ऊपर बालों का निकलना, स्तनों का विकास, कान में बाल उगना और लम्बाई तथा भार में तीव्र गति से वृद्धि आदि बालिकाओं में तारुण्य के द्योतक हैं। बालक-बालिकाओं में काम-भावना अच्छी तरह जाग्रत हो जाती है। बालिकाओं में लैंगिक प्रौढ़ता 12-13 वर्ष से आरम्भ होती है। बालकों की अन्य विशेषताएँ लम्बाई तथा भार में वृद्धि, जननेन्द्रियों का बढ़ना, स्वर में भारीपन या रुक्षता तथा दाढ़ी निकलना आदि हैं। इस अवस्था में बालक बालिकायें अपने शारीरिक सौन्दर्य के बारे में पहले से अधिक सजग हो जाते हैं। उन्हें अपने शरीर में शक्ति का आभास होने लगता है और उसके प्रदर्शन के लिए वें आतुर होते हैं। ये परिवर्तन इतनी तीव्र गति से होते हैं कि मनुष्य न तो उसे साधारण रूप से समझ ही पाता है और न उसके लिए तैयार ही रहता है। इस विकास काल में कभी-कभी बालक चिड़चिड़ा, जिद्दी, अशांत अस्थिर और संकोची हो जाता है। किशोरावस्था में काम-प्रवृत्ति के सम्बन्ध में प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक स्लाटर का कथन है, “काम सम्पूर्ण जीवन का नहीं तो किशोरावस्था का अवश्य ही मूल तथ्य है। विशाल नदी के अति प्रवाह के समान वह जीवन की भूमि के बड़े भागों को सींचता एवं उपजाऊ बनाता है।”

बालक का यह विकास अभिभावकों तथा अध्यापकों के लिए कई समस्याएँ उत्पन्न कर देता है। विशेषकर उत्तर बाल्यकाल में एवं किशोर काल में बालक अपने को शीघ्रतापूर्वक व्यवस्थित नहीं कर पाता। आयु की वृद्धि के साथ लोगों को उससे आशाएँ बढ़ जाती हैं। लोग उसकी बातों और व्यवहार में प्रौढ़ता की आशा करने लगते हैं। वह स्वयं चाहता है कि लोग उसकी क्षमता और योग्यता को मानें एवं उसे उत्तरदायित्व का कार्य दिया जाय। इस अवस्था में उसमें सामाजिक दायित्व का भी विकास हो जाता है। फलतः सेवा कार्यों की ओर उसका झुकाव होता है।

किशोरावस्था में शारीरिक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Influencing Physical Development)

किशोरावस्था में शारीरिक विकास को निम्नलिखित कारक (तत्त्व) प्रभावित करते हैं-

(1) वंशानुक्रम- बालक का शारीरिक विकास वंशानुक्रम से अधिक प्रभावित होता है। माता-पिता के स्वास्थ्य और शारीरिक गठन का प्रभाव उनकी किशोर सन्तानों पर अवश्य ही दिखाई देता है। स्वस्थ माता-पिता की सन्तान का शारीरिक विकास प्रायः स्वस्थ ही होता है।

(2) वातावरण- किशोर के शारीरिक विकास को वातावरण भी बहुत अधिक प्रभावित करता है। वातावरण के अन्तर्गत शुद्ध वायु, जल, प्रकाश, स्वच्छ घर आदि तत्त्व सम्मिलित किए जाते हैं। अच्छा वातावरण बालक को अच्छे शारीरिक विकास का अवसर प्रदान करता है।

(3) पौष्टिक भोजन- किशोर के उत्तम शारीरिक विकास के हेतु पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है। पौष्टिक भोजन किशोर की शक्तियों में वृद्धि करता है। उसके अभाव में किशोर कमजोर और बीमार हो जाता है।

(4) निद्रा और परिश्रम- बालक के विकास में अच्छी नींद और परिश्रम भी आवश्यक है। यह कहा जाता है कि शिशु अपना अधिकतर समय निद्रा में गुजारता है। तीन अथवा चार वर्ष के शिशु के हेतु 12 घण्टे की निद्रा आवश्यक है। बाल्यावस्था में 10 घण्टे और किशोरावस्था में 8 घण्टे सोना आवश्यक है। निद्रा से शारीरिक विकास में बाधा उत्पन्न होती है।

(5) नियमित दिनचर्या – किशोर के शारीरिक विकास पर उसकी दिनचर्या का भी पर्याप्त प्रभाव होता है। नियमित दिनचर्या उत्तम शारीरिक विकास की आधारशिला है। माता-पिता को किशोर के सोने, जागने, पढ़ने, खेलने का समय निर्धारित करना चाहिए।

(6) सुरक्षा की भावना- बालक एक असहाय प्राणी होता है, अतएव उसको माता-पिता की सुरक्षा की आवश्यकता होती है। सुरक्षा की भावना बालक में सन्तोष, आनन्द और आत्म विश्वास की भावनाएँ उत्पन्न करती हैं और इसके फलस्वरूप उसका शारीरिक विकास उत्तम होता है।

(7) सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार- बालक के साथ सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार उसके शारीरिक विकास में योगदान देता है। भय और प्रताड़ना में रहने वाले बालक का शारीरिक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

(8) खेल एवं व्यायाम- किशोर के शारीरिक विकास में खेल और व्यायाम का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। खेल और व्यायाम किशोर की मांसपेशियों और अस्थियों को पुष्ट बनाती हैं। वे उसके हृदय और फेफड़ों को स्वस्थ रखते हैं। इस तरह उसका शारीरिक विकास सहज गति से चलता रहता है।

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