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किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास | किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक

किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास
किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास

किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development in Adolescence)

किशोरावस्था की अवधि में बालकों का चिन्तन और तार्किक क्षमता में वृद्धि होती है तथा वे अमूर्त चिन्तन की ओर अग्रसर होते हैं। औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था की प्रमुख विशेषता अमूर्त संप्रत्ययों के रूप में चिन्तन करने की योग्यता है जो मूर्त वस्तुओं अथवा क्रियाओं को एक साथ जोड़ती है। इस अवधि में किशोर और किशोरियाँ औपचारिक संक्रियाओं के साथ वास्तविक संसार से काल्पनिक संसार की ओर गतिशील होते हैं। इस काल में वे कार्य-कारण सम्बन्धों को समझने लगते हैं और उपकल्पनात्मक परिस्थिति में भी चिन्तन करते हैं और यह भी प्रयास करते हैं कि अमुक परिवर्तन के फलस्वरूप कैसा परिणाम होगा ? उपकल्पनात्मक और अमूर्त चिन्तन द्वारा उनके निगमनात्मक एवं आगनात्मक चिन्तन में परिमार्जन होता है। मूर्त वस्तुओं के अभाव में भी चिन्तन की प्रक्रिया चलती रहती है। इस अवधि में सामाजिक वातावरण एवं शिक्षा का संज्ञानात्मक विकास पर अधिक प्रभाव पड़ता है। इनहेल्डर, जैक्सन, स्टीफेन्स और उसके सहयोगियों का मत है कि यदि कोई बालक बौद्धिक योग्यता परीक्षा में औसत से नीचे रहता है तो उसमें औपचारिक संक्रियात्मक चिन्तन का प्रदर्शन नहीं हो पाता है। लैविक ने यह पाया कि श्रेष्ठ बच्चे सामान्य बच्चों की अपेक्षा यह योग्यता अधिक प्रदर्शित करते हैं। कीट्स का मत है कि इस अवधि में बच्चों में इतनी योग्यता विकसित हो जाती है कि वे वास्तविक और अवास्तविक में अन्तर कर लेते हैं। औपचारिक संक्रियात्मक अवधि में प्रमुख विशेषता यह है कि इस अवधि में बच्चों में तर्क वाक्यों के सम्बन्ध में यह निर्णय करने की योग्यता का विकास हो जाता है कि तर्कवाक्य एक-दूसरे से परस्पर सम्बन्धित है अथवा नहीं चाहे तर्क वाक्य सही हो अथवा गलत। यह अन्तर-साध्यपरक तर्क (Inter prepositional logic) कहलाता है। इसी अवधि में विचारशील चिन्तन विकसित हो जाता है जिसके अन्तर्गत व्यक्ति अपने तर्क का परीक्षण और मूल्यांकन करता । विचारशील चिन्तन में औपचारिक संक्रियात्मक व्यक्ति स्वयं आलोचक होता है। विचारशील चिन्तन से व्यक्ति का दृष्टिकोण प्रभावशाली एवं शक्तिशाली हो जाता है।

किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक (Factors Affecting Cognitive Development in Adolescence)

किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारकों के सन्दर्भ में क्रो एवं क्रो ने लिखा है- “संज्ञानात्मक विकास अनेक तत्त्वों से प्रभावित होता है। यद्यपि वंशानुक्रम, स्नायुतन्त्र की संरचना इसे सर्वाधिक प्रभावित करती हैं परन्तु अन्य भौतिक पर्यावरण सम्बन्धी तत्त्व इस संज्ञानात्मक प्रगति में काफी मात्रा में तीव्रता अथवा मन्दता लाते हैं।”

किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास को प्रभावित करने वाले कारक निम्न हैं-

(1) वंशानुक्रम (Heredity)- समस्त विकासों की आधारशिला वंशानुक्रम है। वंशानुक्रम जिस तरह की स्नायुतन्त्र सम्बन्धी तुल संरचना जुटाती है उसी के अनुरूप संज्ञानात्मक विकास हो पाता है जिसमें उससे अधिक की सम्भावना नहीं होती।

(2) पारिवारिक वातावरण (Family Environment)- किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास पर पारिवारिक वातावरण का भी प्रभाव पड़ता है, अच्छे परिवार, जहाँ माता-पिता और किशोर के मध्य श्रेष्ठ सम्बन्ध होता है उसी परिवार में प्रसन्नता और सौहार्द्र का वातावरण रहता है, जो किशोर के संज्ञानात्मक व्यवहार को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है।

(3) परिवार की सामाजिक स्थिति (Social Stage of Family)- उच्च सामाजिक परिस्थितियों में किशोर को संज्ञानात्मक विकास के अधिक अवसर प्राप्त होते हैं और वह संज्ञानात्मक दृष्टि से अधिक उन्नति करता है।

(4) परिवार की आर्थिक स्थिति (Economic Stage of Family)- उच्च आर्थिक स्थिति वाले परिवार बालकों के लिए उच्च सुविधाएँ, शिक्षण सामग्री आदि प्रदान करते हैं जो किशोर के संज्ञानात्मक विकास पर अनुकूल प्रभाव डालते हैं। इसके विपरीत निर्धन परिवारों के किशोर बालक अवसरों से वंचित रहने के फलस्वरूप संज्ञानात्मक रूप से कुण्ठित हो जाते हैं।

(5) माता-पिता की शिक्षा (Education of Parents)- शिक्षित माता-पिता की किशोर सन्तानें उच्च संज्ञानात्मक क्षमताओं से सम्पन्न होती हैं, परन्तु अशिक्षित माता-पिता के किशोर बालक इस तरह के वातावरण से वंचित रह जाते हैं।

(6) शारीरिक स्वास्थ्य (Physical Health)- किशोर का उचित शारीरिक स्वास्थ्य ही उसके उत्तम संज्ञानात्मक विकास का परिचायक है। जो किशोर गम्भीर बीमारी, चोट, दुर्बलता, अपौष्टिक आहार के शिकार हो जाते हैं वे उत्तम शारीरिक और संज्ञानात्मक क्षमताओं से वंचित हो जाते हैं।

(7) विद्यालय और शिक्षा व्यवस्था (Proper School and Education)- किशोर के संज्ञानात्मक विकास को समुन्नत करने में विद्यालय का भी महत्त्वपूर्ण योगदान होता है। जो किशोर उत्तम विद्यालयों में अध्ययन करते हैं और जहाँ का शैक्षिक वातावरण समृद्ध एवं संवर्धित होता है, उनका संज्ञानात्मक विकास तीव्र गति से होता है। किशोर के संज्ञानात्मक विकास में शिक्षक, खेल-कूद के मैदान, पुस्तकालय और प्रयोगशालाओं का योगदान रहता है। जो विद्यालय सामान्य स्तर के अथवा निम्न सुविधाएँ वाले होते हैं वहाँ के किशोर का संज्ञानात्मक विकास अवरुद्ध हो जाता है।

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