पाठ्य-वस्तु या विषय-वस्तु का चयन (Selection of Content)
शैक्षिक आवश्यकताओं के विश्लेषण और उद्देश्य निर्धारण के पश्चात् तीसरा महत्त्वपूर्ण कार्य पाठ्यक्रम के लिए विषयवस्तु (Content) का चुनाव करना होता है। पाठ्यक्रम सार्थकता उपयोगी विषय सामग्री पर ही निर्भर करती है उपयोगी एवं उचित विषय सामग्री से ही बालकों को वांछित लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु प्रेरित किया जा सकता है। पाठ्यक्रम हेतु विषय सामग्री के चयन हेतु यह ध्यान रखना अत्यन्त आवश्यक है कि विषय सामग्री का सम्बन्ध बालकों के दैनिक जीवन और दैनिक क्रियाओं से हो। इस प्रकार की विषय-वस्तु में ज्ञान वृद्धि के साथ-साथ दैनिक जीवन की विभिन्न क्रियाओं से भी परिचय करवाती है दूसरे बालको शब्दों में कहा जा सकता है कि पाठ्यवस्तु विद्यार्थी के लिए जीवनोपयोगी और आत्मनिर्भर बनाने वाली होनी चाहिए ताकि विद्यार्थी अपने भावी जीवन को सुरक्षित बना सके। विषय-वस्तु के चयन में यदि निम्न मानदण्डों को अपना लिया जाए तो और भी सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं।
ये मापदण्ड निम्न हैं- (1) वैधता (Validity), (2) उपयोगिता (Utility), (3) साध्यता (Feasibility), (4) आत्मनिर्भरता (Self-Depend)।
विषय-वस्तु के कुशल चयन के पश्चात् अगला कदम उसे कुशलतापूर्वक व्यवस्थित करना होता है विषयवस्तु के संगठन के द्वारा तात्पर्य यह सुनिश्चित करना है कि कौन-सा प्रकरण (Topic) उसे पहले आएगा और कौन-सा बाद में यह कार्य विषय-वस्तु की निरन्तरता (Continuity) और क्रमबद्धता (Sequencing) बनाने के लिए किया जाता है विषयवस्तु की निरन्तरता और क्रमबद्ध से ही शिक्षा के निर्धारित लक्ष्य एवं उद्देश्य प्राप्ति की सम्भावना बनती है विषयवस्तु के संगठन में इस बात का भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि संगठित विषय-वस्तु विद्यार्थियों की रुचि और आवश्यकताओं के अनुरूप है या नहीं क्योंकि अरुचिकर और अनावश्यक विषयवस्तु बालक के उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधक बनती है इसके अतिरिक्त यह बालक के उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधक बनती है इसके अतिरिक्त यह बालक के लिए बोझिल और उबाऊ भी सिद्ध होती है रुचि और आवश्यकताओं के साथ-साथ विद्यार्थी की योग्यता क्षमता, उपयोगिता और व्यक्तिगत भिन्नता का भी ध्यान रखा जाए तो वांछित उद्देश्यों की प्राप्ति विद्यार्थी और अध्यापक के लिए और भी सहज हो जाती है।
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