चक्रवात क्या है?
चक्रवात अत्यधिक दूरी तक जाने वाले भीषण तूफान होते हैं जिनके साथ वायुमण्डल में कम दबाव वाले शांत क्षेत्र के चारों तरफ तेज हवायें चलती हैं जिसकी गति 50 किमी प्रति घंटे होती है जिससे ये ऊपर की ओर उठ जाती हैं। हम सभी जानते हैं कि तूफान एक भयंकर प्राकृतिक आपदा है जिसके आने से पर्यावरण में असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। जन-जीवन तबाह हो जाता है। आकार छोटा होते हुए बड़ी तबाही का कारण तूफान बन जाता है।
हालाँकि चक्रवात को बनने में समय लगता है किन्तु इसका आगमन अचानक होता है। यह एक भँवरनुमा आकृति है जो विभिन्न एवं विशिष्ट वायवीय कारकों से बनता है। चक्रवात में हवा ऊपर की ओर उठती है और संघनन क्रिया के माध्यम से वर्षा होती है जो कि अनिश्चित होती है। कम तापमान वाले उच्च अक्षांशों और उच्च पर्वतों पर जल वर्षा न होकर हिम वर्षा होती है। चक्रवात अण्डाकार होता है जिसमें न्यून वायुदाब इसके केन्द्र के नजदीक होता है। केन्द्र के बाहर की ओर सभी दिशाओं में वायुदाब क्रमशः बढ़ता जाता है जिससे सभी दिशाओं से हवायें केन्द्र की बहती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी गति घड़ी की सूई की दिशा के विपरीत दिशा में होती है जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में इसकी गति घड़ी के दिशा के समान होती है। चक्रवात एवं प्रतिचक्रवात दोनों उष्ण तथा शीतोष्ण कटिबंधों से चलते हैं। इसमें गर्म एवं ठंडी वायु राशियों का सम्मिश्रण होता है। विश्व की अधिकतर बारिश लगभग 85% चक्रवातों द्वारा ही होती है। मौसम परिवर्तन का मुख्य कारण चक्रवात ही होता है। गतिशील होने के कारण चक्रवात एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर गमन करते रहता है और उसे प्रभावित करते हैं जिससे मौसम में परिवर्तन आता है। चक्रवात विभिन्न अवस्थाओं से गुजरते हुए समाप्त हो जाता है। क्षेत्रों के आधार पर चक्रवात को दो वर्गों में विभाजित किया गया है
1. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात, 2. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात ।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात
तरंगनुमा आकृति होने के कारण इस चक्रवात को तरंग चक्रवात के नाम से भी जाना जाता है। पछुवा पवनों की पेटियों में वाताग्र के साथ निर्मित होते हैं। ये चक्रवात और पश्चिम से पूर्व की ओर इनकी गति होती है। शीत ऋतु में उत्पन्न इस चक्रवात का विस्तार बहुत अधिक होता है। इस प्रकार के चक्रवात सामान्यतः ध्रुवीय पवनों का ही विकसित रूप होता है जो गर्म एवं ठंडी वायु की क्रिया प्रतिक्रिया के रूप में विकसित होकर चक्रवात का रूप धारण कर लेता है। यह चक्रवात 35° से 65° अक्षांशों के मध्य दोनों गोलार्थों में उपस्थित पवनों के साथ चलते हैं। इस चक्रवात की उत्पत्ति के कुछ मुख्य क्षेत्र निम्नलिखित हैं-
1. उत्तरी प्रशांत महासागर का एलूशियन निम्न दाब केन्द्र- इस क्षेत्र में उत्पन्न चक्रवात पश्चिम से पूर्व की ओर चलते हुए कनाडा तथा संयुक्त राष्ट्र के पश्चिमी तटों पर मौसम को चक्रवातीय बना देते हैं जिससे वहाँ के अधिकांश क्षेत्रों में बारिश होती है।
2. आइसलैंड का निम्न दाब क्षेत्र – इस क्षेत्र में उत्पन्न चक्रवातों से उत्तर-पश्चिमी यूरोप की जलवायु और मौसम प्रभावित होता है। सर्दियों में इनकी संख्या अधिक होती है पर गर्मियों में ये अपेक्षाकृत कम होते हैं फलतः इसका प्रभाव यूरोप तक नहीं पहुँच पाता जिससे वहाँ वर्षों की कमी हो जाती है।
3. ग्रीनलैंड के दक्षिणी तथा न्यूफाउण्डलैंड के आस-पास का निम्न दाब केन्द्र – इन क्षेत्रों में चक्रवातों का निर्माण उत्तर-पूर्वी संयुक्त राज्य तथा कनाडा के दक्षिणी पूर्वी तटीय क्षेत्रों के पास होता है जो दो अलग-अलग क्षेत्रों की ओर यात्रा करते हैं-
(i) ग्रीनलैण्ड की ओर – जहाँ इस चक्रवात की वजह से बारिश और हिमपात होते हैं।
(ii) आइसलैण्ड की ओर- इस क्षेत्र के आस-पास पहुँचने में चक्रवात को काफी लम्बी यात्रा करनी पड़ती है जिससे इसकी शक्ति क्षीण हो जाती है किन्तु निम्नदाब केन्द्र पर पहुँचने पर ये फिर सक्रिय हो जाते हैं और पूरी शक्ति के साथ यूरोप पहुँच जाते हैं।
1. मध्य अटलांटिक में संयुक्त राज्य का उत्तर पूर्वी तटीय क्षेत्र – इस क्षेत्रों में चक्रवात प्रायः सर्दियों में उत्पन्न होते हैं। दो विपरीत भौतिक गुणों वाली वायु के मिश्रण से उत्पन्न ये चक्रवात का शक्तिशाली होता है जो उत्तर दिशा की ओर बढ़ते हुए ग्रीनलैण्ड पहुँचता है। इनमें से कुछ चक्रवात पूर्वी मार्ग अपनाकर उत्तर-पश्चिम यूरोप पहुँच जाते हैं।
2. भूमध्यसागरीय क्षेत्र- -इस क्षेत्र में दो तरह की वायु विद्यमान होती है। एक शुष्क वायु और एक ठण्डी वायु जिसके संगम से इन क्षेत्रों में शक्तिशाली चक्रवातों का निर्माण होता है। इस चक्रवात की उत्पत्ति मुख्यतः सर्दियों के मौसम में होता है और इसके प्रभाव क्षेत्र में दक्षिणी स्पेन, दक्षिणी पुर्तगाल, दक्षिणी फ्रांस, इटली, टर्की, ईरान, ईराक, पाकिस्तान, जार्डन, लेबनान आदि देश आते हैं हमारे देश के विभिन्न हिस्सों से जिनमें जम्मू-कश्मीर, हिमाचल, पंजाब, हरियाणा का उत्तरी भाग, उत्तर प्रदेश, बिहार के मैदानी भाग एवं झारखण्ड इत्यादि से ये चक्रवात नवम्बर माह से फरवरी माह तक प्रभावित रहते हैं।
3. दक्षिणी गोलार्द्ध के शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के क्षेत्र – इस क्षेत्र में चक्रवातों की उत्पत्ति दक्षिण महासागर की गर्म एवं आर्द्र वायु तथा अटलांटिक महाद्वीप की अत्यन्त ठंडी और शुष्क वायु के अभिसरण से होती है। इसके प्रभाव क्षेत्र में दक्षिणी चिली एवं दक्षिणी अर्जेंटीना के साथ साथ दक्षिणी ऑस्ट्रेलिया का कुछ क्षेत्र, न्यूजीलैंड एवं तस्मानिया द्वीप इत्यादि आता है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के प्रकार
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात मुख्यतः दो विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियों के संगम के कारण उत्पन्न होते हैं जिनमें तापमान की मुख्य भूमिका होती है। इस आधार पर इस चक्रवातों को मुख्यतः तीन प्रकारों में वर्गीकृत किया जाता है जो कि निम्नलिखित हैं-
1. गतिक चक्रवात – इस चक्रवात की उत्पत्ति ठंडी ध्रुवीय वायु एवं आर्द्र तथा उष्ण सागरीय वायु के मिलने से होती है। गतिक प्रक्रिया के कारण इसका निर्माण होता है अतः इस चक्रवात को गतिक चक्रवात के नाम से पुकारा जाता है। वस्तुतः होता यह है कि विपरीत गुण धर्म वाली वायु जब विपरीत क्षेत्रों से आने वाली वायुराशियाँ जब एक-दूसरे के क्षेत्र में प्रवेश करती है तब एक-दूसरे से मिलने के पहले एक ऐसे क्षेत्र द्वारा अलग हो जाती है जिसकी प्रकृति उन दोनों वायु अलग होता है, इस क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं जिसके सहारे विपरीत स्वभाव वाली वायुराशियाँ मिलती राशियों से हैं। इस प्रकार से इस चक्रवात की उत्पत्ति होती है जो अधिकतम क्षेत्रों को प्रभावित करता है।
2. तापीय चक्रवात- तापीय चक्रवात का सम्बन्ध सूर्य के ताप से होता है। सूर्य के ताप से उत्पत्ति होने कारण इसे सूर्यातप चक्रवात भी कहा जाता है। चक्रवात का ये नाम हम्फ्रीज ने दिया था। ब्राण्ट के अनुसार, “इस प्रकार के चक्रवात की उत्पत्ति गर्मी के मौसम में महाद्वीपों पर तथा सर्दी के मौसम में सागरों पर होती है। उसकी वजह यह है कि शीतोष्ण कटिबंधों में गर्मियों के मौसम में अधिक ताप के कारण महाद्वीपों के आन्तरिक भाग में निम्न दाब के केन्द्र बन जाते हैं जिससे हवाएँ बाहर से केन्द्र की ओर बहने लगती हैं। इस प्रकार के चक्रवात स्थायी होते हैं। इसके विपरीत सर्दी के मौसम में सागरों के चारों ओर उष्ण किन्तु अंदर की ओर शीतल ठंडी हवाओं के कारण उच्च दाब के केन्द्र बन जाते हैं जिससे हवाएँ केन्द्र से बाहर की ओर बहने लगती हैं।”
तापीय चक्रवातों की उत्पत्ति गर्मियों के मौसम में महाद्वीपों, साइबेरिया प्रायद्वीप, अलास्का, दक्षिणी-पश्चिमी संयुक्त राज्य अमेरिका इत्यादि जगहों पर होती है और सर्दियों में दक्षिण-पश्चिम ग्रीनलैण्ड ओखोटस्क सागर, आइसलैंड तथा नार्वेविजयन सागर इत्यादि क्षेत्रों में होता है।
3. गौण चक्रवात/द्वितीयक चक्रवात – वो चक्रवात जो मुख्य चक्रवात के खत्म हो जाने पर उत्पन्न होते हैं गौण अथवा द्वितीयक चक्रवात कहलाते हैं। इसकी उत्पत्ति शीत वाताग्र की ठंडी हवा के गर्म सागर के ऊपर बहने के कारण होता है। यह चक्रवात बहुत लघु अवधि के लिए आता है।
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की विशेषताएँ
(1) इसकी आकृति अण्डाकार अथवा V आकार की होती है।
(2) इस चक्रवात की गति लगभग 30 से 45 किमी / घंटा होती है अतः इससे ज्यादा नुकसान नहीं होता है।
(3) इस प्रकार के चक्रवात वाताग्री होते हैं इनका एक वाताग्र उष्ण तथा दूसरा शीतल होता है जब दोनों आपस में मिल जाते हैं तब चक्रवात का अन्त हो जाता है।
(4) चूँकि हवाएँ केन्द्र की ओर चलती हैं इसलिए हवाओं का रूप अभिसारी प्रकार का होता है।
(5) इस चक्रवात के मार्ग की दिशा पश्चिम से पूर्व की ओर होता है चूँकि इसकी उत्पत्ति के ऊपर होता है अतः ये महाद्वीपों में इस चक्रवात के प्रवेश करने से बारिश होती है।
(6) इस चक्रवात के केन्द्र में निम्न वायुदाब होता है जो 980 से 1002mb के बीच हो सकता है।
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