बाढ़ के कारण एवं बाढ़ नियंत्रण के उपाय
“बाढ़ सामान्यतः पानी का बहाव है सूखे स्थान को डुबो देती है।” बाढ़ग्रस्त स्थान काफी समय तक पानी में डूबा रहता है। बाढ़ से लगभग सभी देश त्रस्त हैं। एस. कृष्णा के अनुसार, “जलाशयों में पानी की वृद्धि हो जाने अथवा भारी वर्षा के कारण नदी के अपने किनारों को लाँघ जाने, तेज हवाओं, चक्रवातों, तट के साथ-साथ तूफानी लहरों, सुनामी लहरों, पिघलती बर्फ, बाँध के टूट जाने आदि के कारण विशाल क्षेत्रों आदि के अस्थाई रूप से जलमग्न होने की स्थिति बाढ़ कहलाती है।
बाढ़ के कारण
(1) लगातार भारी वर्षा के कारण जब नदियाँ, झीलों, तालाबों इत्यादि में पानी निर्धारित स्तर से ऊपर बहने लगता है तब बाढ़ आ जाती है। इस स्थिति में आस-पास की भूमि जलमग्न हो जाती है।
(2) बाँधों, नहरों, पुलों एवं तटबंधों के दोषपूर्ण निर्माण से उसके टूटने से पानी का बहाव बाढ़ का रूप धारण कर लेता है।
(3) जल स्रोतों के तली में गाद जमा हो जाने के कारण।
(4) नदी के मार्ग परिवर्तन से भी बाढ़ आती है।
(5) बर्फ के पिघलने, बाँधों में जमा पानी को खोलने, सागर में लहरों के उत्पन्न होने से भी बाढ़ आ जाती है।
(6) भू-स्खलन के कारण से भी बाढ़ आ जाती है।
(7) वन विनाश भी बाढ़ का कारण है।
हमारे देश भारत के बाढ़ प्रभावित राज्य हैं- बिहार, आन्ध्रप्रदेश, गुजरात, पंजाब, हरियाणा, जम्मू एवं कश्मीर, केरल, मणिपुर, ओडिशा, असम, राजस्थान, तमिलनाडु एवं पश्चिम बंगाल इत्यादि ।
हालाँकि बाढ़ भी एक प्राकृतिक आपदा है अतः इसे खत्म तो नहीं किया जा सकता किन्तु इसे कम अवश्य किया जा सकता है।
बाढ़ नियन्त्रण के उपाय
(1) पानी के मुख्य स्रोत को चौड़ा एवं गहरा किया जाना चाहिए ताकि उनकी जलधारण क्षमता में वृद्धि हो सके। पानी के मुख्य स्रोत हैं— नदी, तालाब, झील आदि।
(2) नहर, बाँध, पुलों एवं नदियों के किनारों को मजबूत बनाया जाना चाहिए ताकि पानी के दबाव से उसमें टूट-फूट न हो और तटबंधों को तोड़कर बाढ़ का कारण न बने।
(3) बाँध, नहर, तालाब एवं नदी के जल स्तर के खतरे के निशान से आगे बढ़ने के पहले ही उसमें संग्रहित जल को किसी अन्यत्र जगह बहाकर विभिन्न मार्गों से वहाँ ले जाया जाये जहाँ पानी की कमी है।
(4) वर्षा के पानी को संग्रहित करने के लिए विभिन्न प्रकार की परियोजनाओं का निर्माण किया जाना चाहिए ताकि वे विनाश नहीं बल्कि निर्माण कार्यों में प्रयुक्त हो सके।
(5) गाँवों एवं शहरों में जल निकासी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए ताकि वो बाढ़ का रूप नहीं ले सके।
(6) नदियों एवं पानी के अन्य स्रोतों में मूर्तियों एवं पूजन सामग्रियों के प्रवाहित करने पर रोक लगायी जानी चाहिए।
(7) किसानों को तालाब निर्माण के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए और जरूरत हो तो इसे कानूनी जामा भी पहना दिया जाना चाहिए ताकि उन्हें भी सिंचाई के लिए पानी प्राप्त होता रहे।
(8) पहाड़ों एवं उस पर उत्पन्न वनस्पतियों से छेड़-छाड़ किया जाये।
(9) बाढ़-नियंत्रण के लिए जरूरी है कि वनों के विनाश पर भी रोक लगानी चाहिए।
(10) पहाड़ों की प्राकृतिक सुन्दरता को बरकरार रखा जाय। उसे काटकर वहाँ पर्यटन स्थल का विकास नहीं करना चाहिए न ही ऊँची-ऊँची इमारतों का निर्माण करना चाहिए वरना उत्तराखण्ड में आये दिन बाढ़ की तबाही से हम मनुष्यों को कोई नहीं रोक सकता।
(11) इमारतों के निर्माण के समय उसका निर्माण इस प्रकार से किया जाना चाहिए ताकि उनमें जल दाब के सहन करने की क्षमता हो जिससे बाढ़ आने पर भी वो इमारत बहे नहीं।
(12) घरों को ऊँचे स्थान पर बनाया जाना चाहिए ताकि वो बाढ़ से ग्रस्त नहीं हो सके।
इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि उपर्युक्त कुछ उपाय हैं जिन्हें अपनाकर हम बाढ़ को नियंत्रण में रख अपना बचाव कर सकते हैं।
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