डॉ. अम्बेडकर के सामाजिक विचार (Social Ideas of Dr. Ambedkar)
एक सामाजिक विचारक और समाज व्यवस्था में क्रांतिकारी परिवर्तन का समर्थन करने वाले विचारक डॉ. अम्बेडकर थे। उनके सामाजिक विचार निम्नलिखित है-
1. जाति प्रथा सम्बन्धी विचार
अम्बेडकर ने जाति प्रथा पर भी विचार प्रकट किये। वे ब्राह्मणवाद के खिलाफ थे। वे ब्राह्मणों की उच्चता को अस्पृश्यता का कारण मानते थे। इसके कारण भारतीय समाज में एकता स्थापित करने में कठिनाई का अनुभव किया जा रहा था।
2. वर्ण व्यवस्था सम्बन्धी विचार
भारतीय समाज व्यवस्था का संगठन चार वर्णों के आधार पर होता है। ये चार वर्ण थे, ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य और शूद्र अम्बेडकर चातुर्वणीय व्यवस्था के प्रबल आलोचक थे। इस विभाजन में शूद्रों के हितों की रक्षा का कोई प्रावधान नहीं है। यहाँ तक कि शूद्रों के लिए ज्ञान प्राप्ति भी वर्जित था। शिक्षा और अपनी अवस्था प्रत्येक व्यक्ति के लिए अपरिहार्य है किन्तु चतुर्वर्ण व्यवस्था में शूद्रों के लिए ये दोनों ही वर्जित थे। इसी कारण से अम्बेडकर ने शूद्रों की रक्षा और सेवा को अपने जीवन का ध्येय बनाया था।
3. अस्पृश्यता सम्बन्धी विचार
भारतीय समाज में अस्पृश्यता एक ऐसा कोढ़ था जिसे दूर करना बहुत जरूरी था। अम्बेडकर अस्पृश्यता के खिलाफ थे। अस्पृश्यता अमानवीय और औचित्यरहित प्रथा थी। इसमें भारतीय समाज की एकता प्रभावित होती थी। उन्होंने धर्मशास्त्र और भारतीय साहित्य के आधार पर यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि अस्पृश्यता मनुष्यकृत दुर्गुण है, न कि ईश्वरीय कृति । वर्तमान में अस्पृश्यों की स्थिति बड़ी शोचनीय है। अतः उनकी सामाजिक दशा को सुधारने के लिए आर्थिक और सामाजिक प्रयत्न अपेक्षित हैं।
4. धर्म सम्बन्धी विचार
यद्यपि वह दलितों/अछूतों के नेता थे फिर भी हिन्दू धर्म के विचार और समाज को सुदृढ़ बनाने के लिए चिन्तित रहते थे। वह चाहते थे कि हिन्दू धर्म और समाज का संगठन इस प्रकार से किया जाए कि वह विस्तृत बने और अन्य धर्मानुयाइयों को अपने में समाहित करने में समर्थ हो सके। वह हिन्दू धर्म को नई परिस्थितियों के अनुरूप परिष्कृत करना चाहते थे, ताकि समाज के सभी वर्गों के लिए समता, स्वतंत्रता और भ्रातृत्व का मार्ग सरल बन सके। बौद्ध धर्म विश्व के अन्य धर्मों से इस दृष्टि से अलग और विशिष्ट है कि उसका दर्शन प्रज्ञा, कर्मण्यता तथा श्रद्धा के उस त्रिपथ को निर्मित करता है, जो आज मानव संस्कृति के लिए अत्यावश्यक है। धर्म को नैतिकता की दृष्टि से परिचालित होना चाहिए। धर्म में निर्धनता को अभिशाप नहीं समझना चाहिए। धर्म को विज्ञान के अनुकूल बनना चाहिए।
5. शिक्षा सम्बन्धी विचार
डा० अम्बेडकर समझते थे कि दलितों की पशुतुल्य अवस्था का एक कारण उनकी अज्ञानता और अशिक्षा है। अतः उन्होंने कहा शिक्षित हो, संगठित हो और संघर्ष करो। वह ऐसी शिक्षा पद्धति के समर्थक थे, जिसमें समता निर्माण की क्षमता है। उनकी शिक्षा का सम्बन्ध आचरण, व्यवहार, संगठन, अनुभव, अनुभूति और अभिव्यक्ति की शिक्षा से है, केवल पढ़ाई-लिखाई की शिक्षा से ही नहीं। उनका मानना था कि दलितों की शिक्षा उन्हें सरकारी नौकरियों में ले जाएगी, जिससे उनका आर्थिक सामाजिक स्तर ऊँचा उठेगा। इससे दलितों के साथ होने वाला भेदभाव और छूआछूत दूर होगा। वह शील एवं सदाचाराधारित शिक्षा पर आग्रह देते थे। उनका कहना था कि शिक्षा को नैतिक तथा सामाजिक स्तर को ऊँचा करने वाले गुणों से युक्त होना चाहिए।
निष्कर्ष के रूप में कहा जा सकता है कि डॉ० अम्बेडकर अपने जीवन के अन्तिम समय तक सामाजिक न्याय और दलित उद्धार के लिए संघर्ष करते रहे। उन्हें ऊँच-नीच और जात-पात के भेदभाव से घृणा थी। 14 अक्टूबर 1956 को उन्होंने अपनी पूर्व घोषणा के अनुसार नागपुर में अपने दो लाख दलितों के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। इसके दो कारण थे—बौद्ध धर्म में ही जात-पात के लिए स्थान नहीं था और गौतम बुद्ध भारत थे। डॉ. अम्बेडकर ने कई पुस्तकों की रचना की। अन्तिम दिनों में उन्होंने गास्पल आफ बुद्ध का लेखन कार्य किया। 5 दिसम्बर, 1956 की मध्य रात्रि को उनका देहान्त गया। उनका निधन हरिजन समाज के लिए विशेष रूप से शोक का कारण था। नेहरू जी ने कहा कि डॉ. अम्बेडकर हिन्दू समाज के लिए दमनात्मक कार्यों के विरुद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। डॉ. अम्बेडकर के विचार आज भी उतने ही समीचीन और सार्थक हैं जितने कि पहले थे। गाँधी जी ने उनके बारे में कहा था “भविष्य में डॉ. अम्बेडकर के नाम के साथ चाहे किसी भी विशेष का प्रयोग हो, वे एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्हें मुलाया नहीं जा सकता।”
इसे भी पढ़े…
- अम्बेडकर के राजनीतिक विचार | Political thoughts of Ambedkar in Hindi
- सामाजिक न्याय पर बी. आर. अंबेडकर के विचार | Thoughts of BR Amberdkar on social justice hindi
- लोकमान्य तिलक के स्वराज्य सम्बन्धी विचार | तिलक भारतीय अशान्ति के अग्रदूत थे | तिलक उग्रवाद के मसीहा थे
- लोकमान्य तिलक के राजनीतिक एवं सामाजिक विचार
- गांधी जी के अहिंसक राज्य के सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
- महात्मा गांधी के आर्थिक विचार | Gandhi Ke Aarthik Vichar
- गांधी जी के संरक्षकता सिद्धान्त | वर्तमान समय में संरक्षकता सिद्धान्त का महत्त्व
- वर्तमान समय में गांधीवाद की प्रासंगिकता | Relevance of Gandhism in Present Day in Hindi
- महात्मा गाँधी के राजनीतिक विचार | Mahatma Gandhi ke Rajnitik Vichar
- महात्मा गांधी के सामाजिक विचार | Gandhi Ke Samajik Vichar
- महात्मा गांधी का सत्याग्रह सिद्धांत | सत्याग्रह की अवधारणा
- महादेव गोविन्द रानाडे के धार्मिक विचार | Religious Thoughts of Mahadev Govind Ranade in Hindi
- महादेव गोविंद रानाडे के समाज सुधार सम्बन्धी विचार | Political Ideas of Ranade in Hindi
- महादेव गोविन्द रानाडे के आर्थिक विचार | Economic Ideas of Ranade in Hindi
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के सामाजिक विचार | Swami Dayanand Sarswati Ke Samajik Vichar
- स्वामी दयानन्द सरस्वती के राष्ट्रवाद सम्बन्धी विचार | दयानन्द सरस्वती के राष्ट्रवादी विचार
- भारतीय पुनर्जागरण से आप क्या समझते हैं? आधुनिक भारतीय राष्ट्रवाद पर इसका क्या प्रभाव पड़ा है?
- राजा राममोहन राय के राजनीतिक विचार | आधुनिक भारतीय राजनीतिक चिन्तन को राजाराम मोहन राय की देन
- राजा राममोहन राय के सामाजिक विचार | Raja Rammohan Raay Ke Samajik Vichar
- मैकियावेली अपने युग का शिशु | Maikiyaveli Apne Yug Ka Shishu
- धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना
- मैकियावेली के राजा सम्बन्धी विचार | मैकियावेली के अनुसार शासक के गुण
- मैकियावेली के राजनीतिक विचार | मैकियावेली के राजनीतिक विचारों की मुख्य विशेषताएँ