समाजशास्‍त्र / Sociology

सामाजिक मानव शास्त्र की परिभाषा तथा इसके उद्देश्य | definition & objective of social anthropology in Hindi

सामाजिक मानव शास्त्र

सामाजिक मानव शास्त्र

 सामाजिक मानव शास्त्र की परिभाषा तथा इसके उद्देश्य

सामाजिक मानव शास्त्र, मानव शास्त्र की एक प्रमुख शाखा है। मानव शास्त्र, जैसा कि उसके नाम से स्पष्ट है, मानव का शास्त्र अथवा मानव का विज्ञान या शास्त्रीय अध्ययन है। मानव शास्त्र का अंग्रेजी पर्याय Anthropology शब्द anthropology और Logos दो शब्दों से बना है। एन्थ्रोपोस का अर्थ है मानव और लोगस का अर्थ है विज्ञान। इस प्रकार क्रोबर ने ठीक ही लिखा है कि “मानव शास्त्र मानव के समूहों और उनके व्यवहार तथा उत्पादन का विज्ञान है। मानव शास्त्र की इस परिभाषा से स्पष्ट है कि सामाजिक मानव शास्त्र कम से कम मनुष्य का अध्ययन तो करता ही है। परन्तु केवल इतना कहने भर से मानव शास्त्र की अन्य शाखाओं से उसका अन्तर स्पष्ट नहीं होता है। यह अन्तर ‘सामाजिक’ का अर्थ करने से स्पष्ट होगा। सामाजिक मानव शास्त्र सामाजिक है। अतः इसी अर्थ में ही उसका क्षेत्र और दृष्टिकोण मानव शास्त्र की अन्य शाखाओं से भिन्न है। पिडिंगटन ने कहा है, “सामाजिक मानव शास्त्री समकालीन आदिम संस्कृतियों का अध्ययन करते हैं।” विभिन्न विद्वानों ने मानवशास्त्र को अपने-अपने विचारों के अनुरूप विभिन्न प्रकार से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषायें अग्रांकित हैं-

(1) प्रो. इबान्स प्रिंटचार्ड (Evans Pritchard) के अनुसार “सामाजिक मानव शास्त्र समाजशास्त्रीय अध्ययनों की एक शाखा माना जा सकता है। वह शाखा जो कि मुख्यतः अपने को आदिम समाजों के अध्ययन में लगाती है।”

(2) रैडक्लिफ-ब्राउन (Radcliffe-Brown) के अनुसार “सामाजिक मानव शास्त्र विविध प्रकार से समाजों को क्रमबद्ध तुलना द्वारा मानव समाज की प्रकृति के सम्बन्धों में खोज है।”

(3) श्रीनिवास (Srinivas) के कथनानुसार–“यह मानव-समाजों का एक तुलनात्मक अध्ययन है। आदर्शरूप में यह सभी समाजों, सभ्य और ऐतिहासिक, को सम्मिलित कर लेता है।”

(4) नाडेल (Nadel) के शब्दों में “सामाजिक मानव शास्त्र का प्राथमिक लक्ष्य आदिम लोगों द्वारा निर्मित संस्कृतियों और सामाजिक व्यवस्था, जिसमें वे रहते तथा कार्य करते हैं, को समझना है।”

(5) डॉ. एस.सी. दुबे (S.C. Dube) के अनुसार–“सामाजिक मानव शास्त्र सांस्कृतिक मानव शास्त्र का वह भाग है जो संस्कृति में भौतिक भाषा की अपेक्षा अपना ध्यान प्राथमिक रूप से सामाजिक ढाँचे तथा धर्म के अध्ययन की ओर केन्द्रित करता है।”

उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट है कि सामाजिक मानव शास्त्र सांस्कृतिक मानव शास्त्र की एक शाखा है जो आदिम समाजों का सामाजिक परिस्थितयों मे मानव व्यवहार का अध्ययन करता है साथ ही संगठन के विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित ढाँचे का तुलनात्मक रूप से भी अध्ययन करता है।

सामाजिक मानव शास्त्र के उद्देश्य (Aims of Social Anthropology)

मानव जीवन से सम्बन्धित किसी भी विज्ञान का लक्ष्य मानव संसार के किसी एक विशेष भाग का अध्ययन करना और अध्ययन से प्राप्त तथ्यों को सिद्धान्त रूप में संकलित करना है, जिससे कि मानव संस्कृति के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान सम्भव हो सके। इस ज्ञान के आधार पर या तो हम अपने अनुसन्धान को और आगे बढ़ाते हैं अथवा उस ज्ञान का मानव कल्याण के हेतु व्यावहारिक रूप में प्रयोग करते हैं। इस तरह प्रो. पिडिंगटन ने सामाजिक मानव शास्त्र के दो उद्देश्यों की ओर इंगित किया है-

(1) मानव प्रकृति के सम्बन्ध में यथार्थ ज्ञान प्राप्त करना। मानव प्रकृति के सन्दर्भ में कई विरोधी मत प्रचलित है कहा जाता है कि मानव स्वभाव से साम्यवादी, परार्थवादी और शान्तिप्रिय है। इसके साथ यह भी कहा जाता है कि मानव वास्तव में व्यक्तिवादी और युद्धप्रिय होता है और वह स्वभाव से धार्मिक होता है और धर्म और नीति उसके आर्थिक परिवर्तन का ही परिणाम हैं। इन समस्त वाद-विवादों के मध्य सामाजिक मानव शास्त्र का उद्देश्य मानव प्रकृति के सम्बन्ध में वैज्ञानिक तथा ठोस प्रमाणों को प्रस्तुत करना तथा मानव प्रकृति तथा मानव सम्बन्धों के अन्तर्गत नियमों को खोज निकालना है।

(2) सामाजिक मानव शास्त्र का दूसरा प्रमुख उद्देश्य उन परिणामों या प्रभावों का अध्ययन करना है जो कि सभ्य समाजों के सम्पर्क में आने के कारण आदिम समाजों में दृष्टिगोचर होते हैं। सभ्य समाजों के सम्पर्क में आने से आदिम मनुष्यों के जीवन में अनेक सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक तथा राजनैतिक समस्यायें दिन-प्रतिदिन उनके जीवन के विघटन का कारण बन रही हैं। उनकी इन समस्याओं को सुलझाने का कार्य मानवशास्त्रियों का ही है। ग्रेट-ब्रिटेन कव आयरलैंड की शाही मानव शास्त्रीय संस्था की एक समिति ने सामाजिक मानव शास्त्र के प्रमुख उद्देश्यों को संक्षिप्त रूप से इस प्रकार बताया है-

(i) सार्वभौमिक रूप प्रमाणित सामाजिक नियमों को खोजना।
(ii) सामाजिक इतिहास का पुनर्निर्माण करना।
(ii) आदिम संस्कृति का उसी रूप में उल्लेख करना जिस रूप में वह आज है।
(iv) सांस्कृतिक सम्पर्क तथा परिवर्तन या विशिष्ट प्रक्रियाओं के रूप में अध्ययन करना।

जिस संस्कृति में कुछ विभिन्नताएँ हो गयी हैं, उसमें बाह्य समूहों के उन पर प्रभावों को खोजना जिनके परिणामस्वरूप वे परिवर्तन हैं।

इस प्रकार सामाजिक मानव शास्त्र का उद्देश्य आदिम समाजों के सामाजिक जीवन व सम्बन्धों, सामाजिक अवस्थाओं एवं संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन करना तथा उन सामाजिक प्रक्रियाओं का विश्लेषण तथा निरूपण करना है। जिनके द्वारा मानव समाज, संस्कृति तथा सभ्यता विकसित एवं स्थिर रहती है।

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