निबंध / Essay

वर्षा ऋतु पर निबंध |Essay on Rainy Season in Hindi

वर्षा ऋतु पर निबंध |Essay on Rainy Season in Hindi
वर्षा ऋतु पर निबंध |Essay on Rainy Season in Hindi

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वर्षा ऋतु पर निबंध

प्रस्तावना- भारतवर्ष में हर वर्ष छः ऋतुओं का आवागमन होता है- बसन्त, ग्रीष्म, वर्षा, शरद, हेमन्त एवं शिशिर। हमारे देश की जलवायु बहुत विविधता लिए हुए हैं इसीलिए हर दो माह के पश्चात् एक नई ऋतु आ जाती है। इन सभी ऋतुओं में ‘वर्षा ऋतु’ बहुत महत्त्वपूर्ण है तथा प्रायः ‘ऋतुओं की रानी’ के नाम से जानी जाती है।

वर्षा ऋतु का शुभारम्भ-वर्षा ऋतु का शुभ आगमन सावन भादो में उस समय होता है जब सूर्य देवता की तीव्र किरणों से त्रस्त प्राणी तथा वनस्पति त्राहि त्राहि कर रहे होते हैं। नदी, नाले, कुएँ, तालाब सभी सूख जाते हैं तथा प्रकृति मानो वैधव्य धारण कर लेती है। पशु-पक्षी एक-एक बूंद पानी के लिए तरस जाते हैं। कृषक भी जब आने वाले अकाल की चिन्ता से चिन्तित इन्द्र देवता के आगमन की प्रार्थना करने लगते हैं तथा इन्द्र देवता को मनाने के लिए तरह-तरह के गीत गाते हैं-

“काले मेघा पानी दे, पानी दे गुडधानी दे।
‘बरसो राम झडाके से या बुढ़िया मर गई फाके से।”

ऐसे हाहाकर में धरती, प्रकृति तथा प्राणियों की प्यास तथा गर्मी शान्त करने के लिए वर्षा ऋतु का शुभ आगमन जीवनदायी प्रतीत होता है। वर्षा ऋतु को ‘चौमासा’ कहते हैं क्योंकि वर्षा ऋतु लगभग आषाढ़ मास से अश्विन माह तक चलती है।

वर्षा ऋतु का सुस्वागत- वर्षा ऋतु के आगमन के साथ हवा का तेज झोंका भी वन उपवनों सहित नदी नालों को भी अपनी मस्त ब्यार से मदमस्त कर डालता है। सभी जीवजन्तु, पशु-पक्षी, धरती-अम्बर खुले हृदय से वर्षा-ऋतु का स्वागत करते हैं। काले-काले बादल छा जाते हैं, शीतल वायु मन को तृप्त करने लगती है तथा कभी-कभी आकाश में चमकती बिजली भय भी पैदा कर देती परन्तु (ज्यों ही टप-टप की आवाज के साथ बारिश की बूंदे धरती पर पड़ने लगती है तो मेढ़कों की टर्र-टर्र, झींगुरों की झंकार, जुगनुओं की चमक-दमक से काली रात में भी रोशनी तथा खुशी छा जाती है। एक ओर वर्षा की ये बूंदे पपीहे की प्यास बुझाती है तो दूसरी ओर सूखे पड़ गए पेड़-पौधों में भी नव-जीवन का संचार कर देती है तभी तो धरती माँ का तप्त आँचल शीतल एवं सुहावनी हरियाली से सज-धज जाता है। वर्षा ऋतु का अनुपम सौन्दर्य जहाँ संगीत-प्रेमियों को मुक्त कण्ठ से मल्हार गाने के लिए आमन्त्रित करता है, वही दूसरी ओर कवियों को भी लेखनी तथा कागज लेकर कुछ लिखने के लिए प्रेरित करता है। महाकवि गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘रामचरितमानस’ में वर्षा का वर्णन इस प्रकार किया है-

“वर्षाकाल मेघ नभ छाये। गर्जन लागत परम सुहायो॥
दामिनी दमक रही धन माही। खल की प्रीति यथा चिर नाही॥”

वर्षा ऋतु का मुख्य आकर्षण बारिश की आँख मिचौली होती है। इसके आवागमन के विषय में अनेक मौसम-विशेषज्ञ पूर्वाभास करते हैं, किन्तु कभी-कभी उनकी भविष्यवाणियाँ भी गलत साबित हो जाती है। कभी-कभी बादल घुमड़-घुमड़कर आते हैं लेकिन बिना बरसे ही लौट भी जाते हैं, तथा कभी-कभी मौसम एकदम साफ होता है और फिर भी मेघ बरस जाते हैं। कभी-कभी सूर्य देवता भी चमक रहे होते हैं और मेघ देवता भी बरस रहे होते हैं और कभी-कभी तो इतना बरसते है कि लगता है आज भगवान अपने ये नल बन्द करना ही भूल गए हैं। वर्षा ऋतु की यह आँख मिचौली सभी का मन मोह लेती है और हमें सोचने पर विवश कर देती है कि कहाँ तो हम एक-एक बूंद के लिए तरस रहे थे और अब जहाँ देखो वहाँ पानी ही पानी दिखाई पड़ता है।

सावन की सुगंध- सावन का महीना तो जैसे पागल प्रेमी-प्रेमिकाओं के लिए ही बना है। मन्द-मन्द समीर चलती है तो लताओं तथा पुष्पों की सेज सी बिछ जाती है, वही प्रेम में पागल युवतियों का हदय झमने गाने लगता है। ऐसे सुहावने मौसम में प्रेम की विरह में पागल नारी तो और भी बेहाल हो उठती है। गाँवों का तो दृश्य ही परिवर्तित हो जाता है। बोआई तथा निराई का काम है। वर्षा ऋतु का आगमन भारतीय कृषकों के लिए सबसे सुखद वरदान होता प्रारम्भ हो जाता है। थोड़े ही दिनों में खेतों में धान, ज्वार, बाजरा तथा मक्का आदि की फसल लहलहाने लगती है, लगता है धरती माँ ने हरी चादर ओढ़ ली है। इस ऋतु में ग्वाल-वाल अपने पशुओं को सरोवरों में छोड़कर बागों में आनन्द मनाते हैं। वर्षा ऋतु का सबसे अधिक आनन्द बच्चे लेते हैं तथा पानी में कागज़ की नाव चलाते हैं, तो कभी छप-छप कर सारे गीले हो जाते हैं।

वर्षा ऋतु के त्योहार- वर्षा ऋतु के इसी मौसम में पेड़ों में झूले पड़ जाते हैं क्योंकि हिन्दुओं का प्रसिद्ध त्योहार ‘तीज’ एवं भाई-बहन के स्नेह का प्रतीक रक्षाबन्धन’ भी वर्षा ऋतु में ही आते हैं। तीज सावन मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को तथा रक्षाबन्धन पूर्णिमा को मनाते हैं। सभी सखी-सहेलियाँ मिलकर सावन के गीत गाती हैं तथा हृदय को पल्लवित कर देने वाली वर्षा-ऋतु का पूर्ण आनन्द लेती हैं।

वर्षा ऋतु की हानियाँ- एक ओर जहाँ वर्षा हमें जल, भोजन तथा शीतलता प्रदान करती है, वहीं दूसरी ओर हमें अनेक दुखों का भी सामना करना पड़ता है। इस मौसम में अनेक बीमारियाँ जैसे-डेंगू, मलेरिया, आन्त्रशोध आदि फैल जाते हैं क्योंकि कीड़े-मकोड़े तथा मच्छर-मक्खियाँ हर तरफ अपना साम्राज्य स्थापित कर लेते हैं। झुग्गी-झोपड़ियों में पानी भर जाता है और गरीब लोगों का जीवन दुश्वार हो जाता है। अधिक वर्षा से बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है, जिससे अनगिनत लोग बेघर हो जाते हैं तथा धन की भी बहुत हानि होती है। कभी-कभी तो पूरे के पूरे गाँव भी बाढ़ की चपेट में आ जाते हैं, पशु बह जाते हैं, पुल टूट जाते हैं, मकान गिर जाते हैं अर्थात् हर तरफ त्राहि-त्राहि मच जाती है।

उपसंहार- वर्षा ऋतु का स्वागत हमें इसके लाभों को मस्तिष्क में रखते हुए करना चाहिए क्योंकि वर्षा के बिना तो हम अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। वर्षा ऋतु तो वास्तव में जीवनदायिनी है। हमें तो प्रकृति देवी से यह प्रार्थना करनी चाहिए कि इन्द्र देवता इतना अधिक न बरसे कि सब कुछ अस्त-व्यस्त हो जाए बस ‘ऋतुओं की रानी’ बनकर ही हमारे जीवन आए तथा हम सबकी प्यास बुझा जाए।

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