राजनीति विज्ञान / Political Science

मैकियावेली के राजनीतिक विचार | मैकियावेली के राजनीतिक विचारों की मुख्य विशेषताएँ

मैकियावेली के राजनीतिक विचार
मैकियावेली के राजनीतिक विचार

मैकियावेली के राजनीतिक विचार

मैकियावेली के राजनीतिक विचार मुख्य रूप से उनकी दो पुस्तकों में मिलते हैं। ‘द प्रिन्स’ तथा ‘डिस्कोर्सेज’। इन पुस्तकों में मैकियावेली एक यथार्थवादी राजनीतिक विचारक के रूप में उभरकर सामने आता है। यद्यपि वह एक मध्ययुगीन विचारक था, यथापित एक परम्परा विरोधी विचारक होने के कारण यह माना जाता है कि वह ‘आधुनिक युग का सृष्टा है।’

मैकियावेली के राजनीतिक विचारों की मुख्य विशेषताएँ

मैकियावेली के प्रमुख राजनीतिक विचार या राजनीतिक विचारों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. राज्य की उत्पत्ति और प्रकृति सम्बन्धी विचार-मैकियावेली प्लेटो अथवा अरस्तू की तरह राज्य को स्वाभाविक नहीं मानता और न ही वह ईसाई सन्तों की भाँति यह मानता है कि राज्य ईश्वर की कृति है। मैकियावेली का कहना है कि मानव जन्म से ही दुष्ट, स्वार्थी और कपटी है। मानव के इन्हीं दोषों के विकास के कारण राज्य का जन्म हुआ है। इस प्रकार मैकियावेली के अनुसार राज्य मानव-कृत है, एक कृत्रिम संस्था है जिसे मानवों ने अपनी असुविधाओं को दूर करने के लिए बनाया है। मैकियावेली का विचार है कि राज्य से पूर्व की अवस्था में सदैव कलह और संघर्ष होते रहते थे। किसी का भी जीवन और सम्पत्ति सुरक्षित नहीं थी। ऐसी स्थिति में सामान्य हितों के कारण और दबाव के कारण कुछ लोगों ने अपने स्वार्थों का त्याग किया और राज्य की स्थापना हुई। इस प्रकार मैकियावेली राज्य की स्थापना से यह भी निष्कर्ष निकालता है कि व्यक्तिगत हितों या स्वार्थों की तुलना में राज्य के हित या स्वार्थ बड़े हैं।

2. राज्य की श्रेष्ठता-मैकियावेली राज्य को न केवल मानवकृत संस्था मानता है वरन् मानव के द्वारा निर्मित सभी संस्थाओं में उसे श्रेष्ठ मानता है। राज्य से बढ़कर दूसरी कोई संस्था व्यक्तियों का कल्याण नहीं कर सकती। परन्तु यह तभी सम्भव है जबकि व्यक्ति अपने व्यक्तित्व को राज्य में विलीन कर दे। वह कहता है कि राज्य हितों के सामने व्यक्तियों के हित कुछ नहीं। राज्य के ऊपर कोई नैतिक या अन्य बन्धन नहीं। वह अपनी नीति का निर्धारण करने के लिए स्वतंत्र है, उसके लिए मनुष्यों की ही तरह कोई आचार संहिता नहीं। राज्य किसी के प्रति उत्तरदायी नहीं, जबकि अन्य सभी संस्थाएँ या समुदाय राज्य के प्रति उत्तरदायी हैं।

3. राज्य परिवर्तनशील है— मैकियावली कहता है कि राज्य परिवर्तनशील है और उसके उत्थान और पतन का पुराना इतिहास है। वह राज्य को दो भागों में बाँटता है—(क) स्वस्थ राज्य, और (ख) अस्वस्थ राज्य स्वस्थ राज्य युद्धशील होता है और निरन्तर संघर्ष में लीन रहता है। यह राज्य एकता का प्रतीक है, क्योंकि छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए ऐसे राज्य के लोग परस्पर झगड़ते नहीं। इसके विपरीत अस्वस्थ राज्य शिथिल होता है जिसके मनुष्य छोटे-छोटे स्वार्थों के लिए संघर्ष करते हैं, उन्हें राज्य की एकता और स्थायित्व का ध्यान ही नहीं रहता।

4. सरकारों का वर्गीकरण-मैकियावेली ने राज्यों का नहीं वरन् शासनतंत्रों अर्थात् सरकारों का वर्गीकरण किया है। उसके वर्गीकरण का उद्देश्य आदर्श शासनतंत्र की स्थापना है। मैकियावेली ने दो ही शासन प्रणालियों राजतन्त्र और गणतन्त्र का उल्लेख किया है। अपनी रचना ‘प्रिंस’ में उसने ‘राजतन्त्र’ का गुणगान किया है। उसने एक ऐसे राजा की कल्पना की है जो सर्वशक्तिमान हो और राज्य के लोगों को एकता के सूत्र में बाँध सके। ऐसा उसने इटली की तत्कालीन परिस्थितियों के सन्दर्भ में कहा है। मैकियावेली राजतंत्र के दो भेद करता है— पैतृक राजतन्त्र (Hereditary Monarchy) और कृत्रिम राजतन्त्र (Artificial Monarchy)। प्रथम (पैतृक) राजतन्त्र में अपना ही राजा वंश के आधार पर शासन करता है और दूसरे राजतन्त्र की स्थापना उस समय होती है जबकि शत्रु को परास्त करके दूसरा राज्य पराजित राज्य पर अपना शासन थोंपता है। मैकियावेली कृत्रिम राजतन्त्र को ठीक नहीं समझता है।

मैकियावेली ने अपनी दूसरी रचना ‘डिसकोर्सेज’ में गणतन्त्र की प्रशंसा की है। मैकियावेली की मान्यता है कि शासनतन्त्रों का स्वरूप समयानुकूल बदलते रहना चाहिए। वह कहता है कि जहाँ आर्थिक एवं धन की अत्यधिक समानता हो, वहाँ गणतन्त्र अधिक सफल हो सकता है। मैकियावेली ने गणराज्य को इसलिए अच्छा बताया है कि राजतन्त्र में राजा जनता का अहित भी कर सकता है क्योंकि मानव स्वभाव से दुष्ट होता है, जबकि जनता अपने हितों को अधिक समझ सकती है। गणतन्त्र में स्वतन्त्रता भी सुरक्षित रहती है तथा इस शासन में अनेक सुधार भी सम्भव है।

5. राज्य विस्तार सम्बन्धी विचार-मैकियावेली की राज्य विस्तार या साम्राज्यवाद सम्बन्धी धारणा प्लेटो से एकदम विपरीत है। फोस्टर के शब्दों में, प्लेटो के लिए राज्य विस्तार की भावना  जहाँ राज्य के रोग का लक्षण है, वहाँ मैकियावेली के लिए राज्य विस्तार, राज्य के स्वास्थ्य का लक्षण है।” मैकियावेली का कहना है कि राज्य का क्रमिक विकास और विस्तार होना आवश्यक है, नहीं तो वह स्वयं नष्ट हो जायेगा। मैकियावेली का मत है, “एक राज्य या तो विस्तृत होता रहे या समाप्त हो जाये इसका विस्तार अपने ही देश में अधिक सरल है, क्योंकि यहाँ भाषा और संस्कृति की एकता के आधार पर समस्त निवासियों को एकतन्त्रीय सरकार संरक्षण में लाना अत्यन्त सरल होता है। मैकियावेली ने राज्य विस्तार की अपनी धारणा को मानव स्वभाव के आधार पर सही सिद्ध करना चाहता है। वह कहना है कि मानव स्वभाव पारे (Mercury) की तरह है जो बढ़ते रहना चाहता है। इसी तरह राज्य को भी बढ़ते रहना चाहिए। जो चीज स्थिर रहेगी, वह अधिक दिनों तक नहीं ठहर सकती है। वह कहता है कि रोमन साम्राज्य के पतन का यही मुख्य कारण था कि उसको शासकों ने उसका विस्तार नहीं किया, उसे स्थिर रखा।

मैकियावेली ने दो प्रकार से राज्य विस्तार की बात कही है- (i) अपने देश के किसी प्रान्त अथवा क्षेत्र पर एक ही सरकार का शासन लागू करना, और (ii) अन्य किसी पड़ौसी राज्य को अपने स्वामित्व में ले आना।

मैकियावेली के अनुसार राजतन्त्र और गणतन्त्र दोनों में ही राज्य विस्तार की आवश्यकता है। राजतन्त्र में राजा की महत्वाकांक्षा के कारण और गणतन्त्र में जनता की आवश्यकताओं की पूर्ति के कारण राज्य विस्तार की आवश्यकता है। मैकियावेली का विचार है कि राज्य विस्तार के लिए राजा या शासक को साम, दाम, दण्ड और भेद आदि सभी नीतियों से काम लेना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो सेना का भी प्रयोग करना चाहिए, परन्तु इसके लिए किराए की सेना नहीं वरन् नागरिकों की सुशिक्षित सेनाएँ होनी चाहिए।

6. राज्य के स्वामित्व एवं सुरक्षा सम्बन्धी विचार-शक्ति संचय और उसका उपयोग करने के बाद मैकियावेली उसके स्थायित्व अर्थात् सुरक्षा की बात करता है। मैकियावेली के अनुसार राज्य को सुरक्षित रखना शासक का पहला कार्य है। शासक या राजा को राज्य की सुरक्षा के लिए झूठ, छल, कपट, विश्वासघात जैसे किसी भी अनैतिक कार्य से नहीं घबराना चाहिए। मैकियावेली कहता है कि राज्य की सुरक्षा और स्थिरता की दृष्टि से शासक को सर्वप्रथम अपनी प्रजा की सम्पत्ति की सुरक्षा करना चाहिए, उसे सम्पत्ति को नहीं हड़पना चाहिए। अर्थात् यदि राजा किसी व्यक्ति को कठोरतम दण्ड देना ही चाहता है तो उसको भले ही मृत्यु दण्ड दे दे, परन्तु उसकी सम्पत्ति न छीने।

मैकियावेली के अनुसार राजा को अत्यधिक बलवान सेना रखनी चाहिए और उसे भाड़े के टट्टू विदेशी सिपाहियों पर कभी निर्भर नहीं रहना चाहिए, अपने ही देश के सिपाहियों की विश्वासपात्र सेना रखनी चाहिए। मैकियावेली ने ऐसा इसीलिए कहा है कि उसने देखा था कि तत्कालीन इटली में विदेशी सिपाही विरोधियों की अपेक्षा अपने स्वामियों के लिए अधिक संकट पैदा कर रहे थे।

7. राज्य की स्थायित्व एवं सुरक्षा के लिए निर्देश- शासक कौन-से साधनों से राज्य को • स्थायित्व एवं सुरक्षा प्रदान कर सकता है कि इसके लिए मैकियावेली ने ‘दि प्रिन्स’ में शासकों को कुछ निर्देश दिए हैं जो इस प्रकार हैं-

(1) शासक को कठोर दण्ड एक ही बार देना चाहिए परन्तु इच्छित वस्तुएँ लोगों को धीरे धीरे देना चाहिए।

(2) जहाँ तक हो सके, शासक को समाज की परम्पराओं व रूढ़ियों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा होने पर जनता का विरोध उभरकर आता है।

(3) राजा को अच्छे कार्य स्वयं अपने हाथों से करने चाहिए और लोगों को दण्ड देने जैसे बुरे या अप्रिय कार्य राज्य के अधिकारियों से कराने चाहिए, जिससे वह जनता द्वारा बदनामी से बच सके।

(4) राजा को दयालु होते हुए भी यह ध्यान रखना चाहिए कि उसके इस गुण का लोग अनुचित लाभ न उठायें अतः आवश्यकता पड़ने पर उसे क्रूर होने से नहीं डरना चाहिए। अपनी सफलता के लिए उसे क्रूरता, विश्वासघात, अनैतिकता, अधार्मिक आदि सभी उपायों को ग्रहण करना चाहिए।

(5) राजा को प्रजा के धन को व्यय करने में मितव्ययी होना चाहिए।

(6) शासक को छोटे-छोटे राज्यों को हड़पकर जनता के सामने अपनी योग्यता ओर प्रतिमा का समय-समय पर परिचय देना चाहिए।

(7) राजा को जहाँ तक हो सके, कम से कम राजस्व वसूल करना चाहिए।

(8) राजा को तरह-तरह की आकर्षक योजनाओं द्वारा प्रजा के मस्तिष्क को अपने नियंत्रण में रखना चाहिए।

(9) राज्य को अपनी लोकप्रियता बढ़ाने के लिए साहित्य, संगीत और कला के विकास की ओर भी ध्यान देना चाहिए।

(10) राजा को समय-समय पर प्रजा के मनोरंजन के लिए मेलों आदि की व्यवस्था करनी चाहिए।

8. शासक के कर्त्तव्य – ‘दि प्रिन्स’ में मैकियावेली ने शासक के कुछ प्रमुख कर्तव्य बतायें हैं, जो इस प्रकार हैं-

(1) नागरिकों के जीवन की सुरक्षा प्रदान करना राज्य या शासन का प्रमुख कर्त्तव्य है।

(2) मैकियावेली भी अरस्तु की तरह धन व सम्पत्ति को व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक मानता है, अतः उसका विचार है कि शासक को लोगों की सम्पत्ति की सुरक्षा करनी चाहिए और उसका अपहरण नहीं करना चाहिए।

(3) मैकियावेली का कहना है कि राज्य में स्त्रियों को समुचित आदर मिलना चाहिए। शासक को के सतीत्व को नष्ट नहीं करना चाहिए।

(4) उपरोक्त के अलावा शासक को प्रजा को सन्तुष्ट करने के लिए हर सम्भव प्रयत्न करना चाहिए। उसे ऐसे कार्य करने चाहिए कि वह अपनी प्रजा में लोकप्रिय बने।

मैकियावेली के अनुसार यदि शासक को अपने राज्य को मजबूत बनाना है, उसे संपन्न बनाना है, अपने देश में एकता बनाये रखना है तथा अपनी सीमाओं की रक्षा करना है तो उपरोक्त लिखित निर्देश उसके काम आ सकते हैं।

आलोचनात्मक परीक्षण

मैकियावेली एक सच्चा देशभक्त, उच्चकोटि का विचारक, एक महान राजनीतिज्ञ और कूटनीतिज्ञ था। उसने जो राज्य सिद्धान्त बताये हैं, उनमें से अनेक राजनीतिक विचारों के इतिहास में उसकी महान् देन माने जाते हैं। मैकियावेली के राजनीतिक विचार उसके अनुभव पर आधारित थे। उसका व्यावहारिक अनुभव उसके दनार्शनिक दृष्टिकोण से अधिक बढ़कर था। मैकियावेली के राजनीतिक विचारों की निम्न आलोचनाएँ की जाती हैं-

(1) मैकियावेली के राज्य सम्बन्धी अनेक विचार दोषपूर्ण, अस्पष्ट एवं परस्पर विरोधी भी हैं। उसने राज्य की उत्पत्ति को पूर्णतया स्पष्ट नहीं किया है।

(2) इसी प्रकार व्यक्ति और राज्य के सम्बन्ध, राज्य के उद्देश्य, राज्य के आवश्यक तत्व और सम्प्रभुता जैसे महत्वपूर्ण तत्वों की विवेचना ही नहीं की है।

(3) मैकियावेली ने अपने राज्य सम्बन्धी विचारों में नागरिकों के अधिकारों का उल्लेख ही नहीं किया है। वह शासक के बहुरुपिये बनने पर जोर भी देता है।

(4) वह एक ओर जहाँ आर्थिक समानता है, वहाँ के लिए गणतन्त्र को अच्छा शासक बताता है परन्तु उससे अव्यावहारिक मानकर वह राजतन्त्र का गुणगान करता है। इस प्रकार वह दो परस्पर विरोधी तत्वों के बीच सम्बन्ध स्थापित करता है—(क) शक्तिशाली राजा और (ख) स्वशासनयोग्य जनता प्रश्न यह नहीं है कि जहाँ जनता शासन करने योग्य होगी, वहाँ वह बलवान शासक को कैसे सहन करेगी ?

(5) उपर्युक्त के अलावा मैकियावेली के निष्कर्ष उसके संकुचित दृष्टिकोण के सूचक हैं। उसके इतिहास अथवा विचारों का दायरा अथवा अध्ययन क्षेत्र केवल इटली तक सीमित था। मैकियावेली के विचारों में त्रुटियों के बावजूद उसका राजनीतिक चिन्तन को बड़ा योगदान है। उसके विचारों के कारण ही मध्ययुग के सिद्धान्त छह गये और नये युग का सूत्रपात हुआ।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment

close button