संवैधानिक विधि/constitutional law

भारतीय लोकसभा के गठन | Constitution of Indian Lok Sabha – in Hindi

भारतीय लोकसभा के गठन

भारतीय लोकसभा के गठन

भारतीय लोकसभा के गठन की विवेचना कीजिए। Discuss the constitution of the Indian Lok Sabha 

लोकसभा का संगठन या रचना- भारतीय संविधान के प्रावधानों के अनुसार भारत में संसदीय शासन प्रणाली को स्वीकार किया गया है। भारतीय संसद के तीन अंग हैं- राष्ट्रपति, राज्य सभा तथा लोक सभा। इनमें सबसे प्रमुख लोकसभा है जिसे जनता की सभा या लोकप्रिय सदन भी कहा जाता है। यह संसद का प्रथम एवं निम्न सदन है। इसके सदस्य जनता द्वारा प्रत्यक्ष चुनकर सदन में आते हैं। इसका संगठन अग्रांकित रूप में समझा जा सकता है।

(1) सदस्य संख्या-

प्रारम्भ में संविधान में लोकसभा की सदस्य संख्या 500 निश्चित की गयी थी। परन्तु समय-समय पर इसकी संख्या में परिर्वतन किया जाता रहा है। सन् 1974 के 31वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा लोकसभा की अधिकतम संख्या 547 निश्चित कर दी गई थी, परन्तु अब गोवा, दमन और दीव पुनर्गठन अधिनियम 1987 द्वारा निश्चित किया गया कि अधिकतम 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से व अधिकतम 20 सदस्य संघीय क्षेत्रों से निर्वाचित किए जा सकेंगे एवं 2 सदस्य मनोनीत हो सकते हैं। इस प्रकार लोकसभा की अधिकतम सदस्य संख्या (530+20+2) 552 हो सकती है। वर्तमान में इसकी सदस्य संख्या (530-13+2) 545 है। जिनमें से 530 सदस्य राज्यों के निर्वाचन क्षेत्रों से, 13 सदस्य संघीय क्षेत्रों से एवं 2 सदस्य आंग्ल भारतीय वर्ग के राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होंगे।

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 82 में यह व्यवस्था की गयी है कि प्रति दस वर्ष पश्चात् होने वाली जनगणना के बाद परिसीमन आयोग संसद के निर्देशानुसार लोकसभा में राज्य व संघीय क्षेत्रों के प्रतिनिधियों की संख्या में आवश्यकतानुसार परिर्वतन करेगा। संविधान की इस व्यवस्था के अन्तर्गत सन्1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन आयोग द्वारा अगली लोकसभा के सम्बन्ध में निर्णय लिए गए, लेकिन 84वें संवैधानिक संशोधन 2002 के आधार पर लोकसभा में एवं राज्य वार प्रतिनिधित्व की संख्या 2026 तक यथावत् रखने का निर्णय पारित हुआ है। अब यह निर्धारित हुआ है कि पुर्नसीमांकन 2001 ई. की जनगणना के अनुसार होगा।

(2) लोकसभा सदस्यों का निर्वाचन-

लोकसभा के सदस्य प्रत्यक्ष निर्वाचन प्रणाली द्वारा वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित किये जाते हैं। 18 वर्ष की आयु का प्रत्येक भारतीय अपने मत का उपयोग कर सकता है। देश को उतने ही निर्वाचन क्षेत्रों में विभाजित किया जाता है, जितने कि लोकसभा के लिए सदस्य निर्वाचित किए जाने हैं। प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक सदस्य चुना जाता है। इन्हें एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र कहा जाता है। लोकसभा के सभी निर्वाचन क्षेत्र ‘एकल सदस्यीय’ हैं। इन निर्वाचन क्षेत्रों का निर्धारण इस प्रकार किया गया है कि लोकसभा का एक सदस्य कम से कम 5 लाख जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करे। भविष्य के लिए यह प्राविधान किया गया है कि बदलती परिस्थितियों के अनुरूप अधिकतम सीमा का निर्धारण किया जाता रहेगा।

मूल संविधान में अनुसूचित जातियों तथा अनुसूचित जनजातियों के लिए 10 वर्ष की समयावधि तक के लिए स्थान सुरक्षित रखने का प्रावधान किया गया था। बाद में इस अवधि को समयानुसार बढ़ाया जाता रहा। सन् 1990 में किए गए 62वे संविधान संशोधन द्वारा 25 जनवरी, 2000 ई. तक उसके लिए स्थान आरक्षित कर दिए गए, लेकिन संविधान के 79वें संवैधानिक संशोधन (2000) के अनुसार अब अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों के लिए 25 जनवरी 2010 ई. तक स्थान आरक्षित कर दिए गए हैं। प्रतिनिधित्व का अनुपात कुछ अपवादों को छोड़कर यथासम्भव समस्त देश में समान रखने का प्रयत्न किया गया है। अत: जाति धर्म, लिंग, आदि के आधार पर मताधिकार में कोई भेद नहीं किया जाता है। निर्वाचन व्यवस्था हेतु निर्वाचन आयोग गठित किया गया है, जिसमें मुख्य निर्वाचन आयुक्त की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। भारत के चुनाव आयोग से यह अपेक्षा की जाती है कि वह निष्पक्षता और ईमानदारी से अपना कार्य करेगा।

(3) मतदाताओं की योग्यताएँ-

लोकसभा के निर्वाचन में उन समस्त व्यक्तियों को मतदान का अधिकार है, जो निम्नलिखित योग्यताएँ पूर्ण करता हो:

1. जो भारत का नागरिक हो।
2. जिन्होंने कम से कम 18 वर्ष की आयु पूरी कर ली हो।
3. जि. नाम उनके निर्वाचन क्षेत्र की मतदान सूची में अंकित हों।
4. जो पागल, दिवालिया अथवा कोढ़ी न हो।
5. जिन्हें संसद के किसी कानून द्वारा किसी अपराध के कारण मताधिकार से वंचित न किया गया हो।
6.निर्वाचन आयोग द्वारा सन् 1996 के लोकसभा चुनाव के लिए फोटो पहचान पत्र मतदाता के पास होना अनिवार्य कर दिया गया था लेकिन यह प्रक्रिया पूर्ण न होने के कारण प्रस्तावित प्रतिबन्ध कुछ शिथिल कर दिया है।

(4) सदस्यों की योग्यताएँ –

भारतीय संविधान के अनुच्छेद 84 में लोकसभा की सदस्यता के लिए निम्नलिखित अर्हतायें निर्धारित की गई हैं-

1. वह भारत का नागरिक हो
2. कम से कम 25 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो।
3. संसद के किसी कानून द्वारा अयोग्य न ठहराया गया हो।
4. भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभ के पद पर कार्यरत न हो।
5. किसी न्यायालय द्वारा पागल अथवा दिवालिया घोषित न किया गया हो।

(5) संविधान के अनुच्छेद (102) में –

संसद सदस्यों की निम्नलिखित निरर्हताएं निर्धारित की गई हैं-

(i) भारत सरकार या राज्य सरकार के अधीन लाभ का पद धारण करता हो।
(ii) सक्षम न्यायालय द्वारा घोषित विक्रत चित्त हो।
(iii) अनुन्मोचित दिवालिया हो।
(iv) यदि किसी कारण से भारत का नागरिक नहीं रह जाता।
(v) संसद द्वारा बनाई गई किसी विधि के अधीन निर्रह घोषित कर दिया गया हो।

(6) कार्यकाल-

संविधान के अनुच्छेद 83(2) की व्यवस्था के अनुसार लोकसभा का कार्यकाल प्रथम बैठक की तिथि से 5 वर्ष निर्धारित किया गया है। यह अवधि पूर्ण होते ही लोकसभा भंग हो जाती है परन्तु पाँच वर्ष से पूर्व भी प्रधानमन्त्री के परामर्श पर राष्ट्रपति द्वारा लोकसभा को भंग किया जा सकता है। ऐसा अब तक 8 बार (सन् 1970, 1977, 1979 नवम्बर, 1984 नवम्बर, 1989 मार्च, 1991 दिसम्बर, 1997 एवं सन् 1999) किया गया है। आपातकालीन स्थिति में संसदीय कानून द्वारा राष्ट्रपति लोकसभा के कार्यकाल में वृद्धि भी कर सकता है। एक बार में यह अवधि । वर्ष से अधिक के लिए नहीं बढ़ायी जा सकती और तीन बार में 3 वर्ष से अधिक इस अवधि को नहीं बढ़ाया जा सकता।

सन् 1976 में लोकसभा का कार्यकाल दो बार एक-एक वर्ष की अवधि के लिए बढ़ाया गया था।

(7) वेतन, भत्ते तथा पेन्शन-

सांसद वेतन भत्ते अधिनियम, अगस्त 2001 के अनुसार सदनों के प्रत्येक संसद सदस्य को 12,000 रु. मासिक वेतन, 10,000 रु. मासिक निर्वाचन क्षेत्र भत्ता तथा 14,000 रु. कार्यालय खर्च प्राप्त होता है। प्रत्येक सांसद को अधिवेशन में भाग लेने, समितियों आदि की बैठकों में भाग लेने और अन्य ऐसे ही कार्यों के लिए 500 रु. प्रतिदिन के हिसाब से भत्ता प्राप्त होता है। इसके अतिरिक्त निवास, टेलीफोन, प्रथम श्रेणी में रेल यात्रा, बिजली-पानी व चिकित्सा सुविधा उपलब्ध कराई गई है। ये सभी सुविधाएँ नि:शुल्क हैं। प्रत्येक सांसद को कार खरीदने के लिए । लाख रुपया अग्रिम दिए जाने का भी प्रावधान किया गया है। प्रत्येक सांसद को वर्ष में 32 हवाई यात्राएँ करने की नि:शुल्क सुविधा प्राप्त है।

प्रतिवर्ष दो करोड़ के विकास कार्यों के लिए सुझाव देने का अधिकार- प्रत्येक लोकसभा सदस्य स्थानीय क्षेत्र विकास योजना के अन्तर्गत अपने निर्वाचन क्षेत्र में और राज्य सभा का सदस्य अपने प्रदेश के चुने हुए क्षेत्र में 10 लाख रुपये तक की विकास परक योजना का सुझाव दे सकेंगे। प्रत्येक सांसद एक वर्ष में दो करोड़ रुपये तक की योजनाओं का सुझाव दे सकेंगे। इन योजनाओं के क्रियान्वयन का दायित्व सरकारी एजेन्सियों को होगा।

(8) पदाधिकारी-

संविधान के अनुच्छेद 93 के अनुसार लोकसभा के सदस्यों में से ही एक अध्यक्ष और एक उपाध्यक्ष निर्वाचित किए जाने की व्यवस्था है। इन दोनों पदाधिकारियों का कार्यकाल 5 वर्ष होता है। इससे पूर्व भी स्वेच्छा से अपने पद से त्यागपत्र दे सकते हैं। अध्यक्ष द्वारा उपाध्यक्ष को और उपाध्यक्ष द्वारा अध्यक्ष को त्यागपत्र प्रस्तुत किए जाने की व्यवस्था है। इसके अतिरिक्त उन्हें 14 दिन से पूर्व सूचना पर लोकसभा के तत्कालीन समस्त सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा पद से हटाया जा सकता है। लोकसभा अध्यक्ष को वर्तमान में 40 हजार रुपये मासिक वेतन मिलता है। इसके अतिरिक्त अन्य सुविधाओं में नि:शुल्क आवास आदि सुविधाएँ मिलती हैं।

(9) अधिवेशन-

लोकसभा और राज्यसभा के अधिवेशन राष्ट्रपति द्वारा ही बुलाए और स्थगित किए जाते हैं। इस सम्बन्ध में नियम केवल यह है कि लोकसभा की बैठकों में 6 माह से अधिक का अन्तराल नहीं होना चाहिए। आवश्यकतानुसार दो से अधिक सत्र भी बुलाए जा सकते हैं। संसद के दोनों सदनों के सत्र साथ-साथ चलते हैं। गणपूर्ति के लिए प्रत्येक सदन के समस्त सदस्यों की संख्या के 1/10 सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होती है।

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