राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो के साम्यवाद का सिद्धान्त | प्लेटो के साम्यवाद की मार्क्स के साम्यवाद से तुलना | प्लेटो के साम्यवाद की आलोचना

प्लेटो के साम्यवाद का सिद्धान्त
प्लेटो के साम्यवाद का सिद्धान्त

प्लेटो के साम्यवाद का सिद्धान्त

प्लेटो का साम्यवाद सम्बन्धी विचार–प्लेटो ने अपने न्याय सिद्धान्त के आधार पर जिस आदर्श राज्य की कल्पना की है, उसको मूर्त रूप देने के लिए ही उसे सम्पत्ति तथा परिवार के साम्यवाद की व्यवस्था का प्रतिपादन किया है। प्लेटो का साम्यवाद राजनैतिक सत्ता और आर्थिक प्रलोभन की बुराइयों को दूर करने का साहसपूर्ण उपचार है। साम्यवाद के माध्यम से प्लेटो शासक वर्ग को उन बुराइयों से दूर रखना चाहता है जो उन्हें भ्रष्ट करती हैं।

प्लेटो अपने आदर्श राज्य की क्रियान्विति के लिए विशेष उत्सुक था। अपनी कल्पना के दार्शनिक शासन को धरती पर उतारने के लिए वह दो बार सिराक्यूज भी गया। इसी सन्दर्भ में मैक्सी ने लिखा भी है “वास्तव में सभी समाजवादी विचारों की जड़ें प्लेटो तक गई हैं। यदि वह जीवित होता तो वह सर्वाधिक लाल होता और रूस की ओर उसी उत्साह से जाता जिस उत्साह से वह सिराक्यूज के शासक की ओर गया था।”

प्लेटो के मतानुसार न्याय मानव मस्तिष्क की उपज है। उसके अनुसार न्याय की सच्ची अभिव्यक्ति के लिए मानव को उत्तम आदतों का सृजन किया जाना चाहिए और यह तभी सम्भव है जबकि मनुष्य भौतिक विचारों से मुक्त रहे।

प्लेटो के अनुसार दो वस्तुएँ मनुष्य को भ्रष्ट करती हैं, ये हैं सम्पत्ति और परिवार। अभिभावक वर्ग के लिए इन दोनों संस्थाओं को समाप्त कर दिया जाये।

यहाँ यह स्मरणीय है कि प्लेटो के साम्यवाद की यह व्यवस्था उत्पादक वर्ग के लिए नहीं है। इस सम्बन्ध में प्लेटो का कहना है कि उत्पादक वर्ग तो वासना द्वारा संचालित वर्ग है, अतः उसके लिए साम्यवाद की व्यवस्था लागू करना उचित नहीं है।

प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था के दो पक्ष हैं—सम्पत्ति का साम्यवाद और परिवार का साम्यवाद ।

1. सम्पत्ति का साम्यवाद

प्लेटो का विश्वास है कि एक समुचित तथा स्वस्थ शिक्षा प्रणाली द्वारा अभिभावक वर्ग को अपने विशेष कार्य करने के लिए तैयार किया जा सकता है। किन्तु सम्पत्ति का आकर्षण उन्हें भ्रष्ट कर सकता है और वैसे भी एक ही हाथों में राजनैतिक और आर्थिक सत्ता का होना हानिकारक है। वेपर के शब्दों में— “एक ही हाथों में राजनीतिक और आर्थिक शक्तियों का योग संसार में कई विपदाओं का कारण है।” इसलिए प्लेटो शासक वर्ग को सम्पत्ति से दूर रखना चाहता है। किन्तु प्रश्न यह उठता है कि यदि उनके पास सम्पत्ति नहीं होगी तो वे रहेंगे कैसे ? उनके खाने की व्यवस्था कैसी होगी? इसके सम्बन्ध में प्लेटो का कहना है वे शासकीय मकानों में रहेंगे, सार्वजनिक भोजलनायों में भोजन करेंगे। प्लेटो के अनुसार “अभिभावक वर्ग के पास केवल उतनी ही सम्पत्ति होगी जो जीवन के लिए नितान्त अनिवार्य है।”

2. परिवार का साम्यवाद

सम्पत्ति के सामूहिकीकरण के साथ प्लेटो परिवार के सामूहिकीकरण की व्यवस्था करता है। सम्पत्ति के समान परिवार को भी एक ऐसी संस्था मानता है जो कि अभिभावकों को भ्रष्ट करती है।

प्लेटो द्वारा परिवार के सामूहिकीकरण को पत्नियों का साम्यवाद भी कहा जाता है।

प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद की तुलना

आधुनिक युग में अनेक सिद्धान्त प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था की ओर मार्क्स एवं लेनिन की साम्यवादी व्यवस्था को एक समान मानते हैं।

दूसरी ओर, पाश्चात्य राजनीति दर्शन के प्रसिद्ध भारतीय विद्वान डॉ. वी.पी. वर्मा ने प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में अनेक अन्तर बताए हैं। इससे स्पष्ट है कि प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में कई बातें समान हैं और कई बातें भिन्न भी।

प्लेटो का साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में समानता

प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में निम्नलिखित समानताएँ हैं-

1. प्लेटो का साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद दोनों ही पूँजी और वन स्वामित्व के विरुद्ध हैं—दोनों ही सम्पत्ति को भ्रष्ट करने वाला तत्त्व मानते हैं। दोनों ही चाहते हैं कि सम्पत्ति का निजी स्वामित्व समाप्त किया जाए। गीजर और जान्सी के शब्दों में, “दोनों निजी सम्पत्ति को सभी बुराइयों का मूल मानते हैं और दोनों ही सम्पत्ति और दौलत को समाप्त करना चाहते हैं।

2. दोनों ही सामूहिक और राजकीय शिक्षा में विश्वास करते हैं— प्लेटो की शिक्षा योजना पूरी तरह शासन के अधीन है। उसमें न केवल शासन ही शिक्षा का संचालन करता है, वरन् साहित्य तक भी प्रतिबन्धित है। प्लेटो की शिक्षा योजनाओं में सभी बच्चों का लालन-पालन सार्वजनिक रूप से होता है और उन्हें सामूहिक रूप से शिक्षा दी जाती है। आधुनिक साम्यवाद की भी यही व्यवस्था है वह भी सार्वजनिक शिक्षा में और शासन द्वारा नियन्त्रित शिक्षा में विश्वास करता है। इसमें भी साहित्य कला और संस्कृति शासकीय नियन्त्रण में रहती है।

3. दोनों साम्यवादी प्रणालियों में व्यक्ति साधन है और राज्य साध्य-प्लेटो का मानता है कि राज्य एक विशाल व्यक्ति है। व्यक्ति को सामूहिक हित के लिए अपने स्वार्थों को त्याग देना चाहिए। आधुनिक साम्यवाद सिद्धान्त में तो एक राज्यविहीन समाज की स्थापना में विश्वास करता है, परन्तु व्यवहार में वह भी राज्य प्रधान व्यवस्था का समर्थक है। आधुनिक साम्यवादी राज्यों में व्यक्ति एक साधन मात्र ही है। दोनों साम्यवादी व्यवस्थाओं में राज्य ही सर्वोपरि है।

4. दोनों साम्यवाद और अधिनायकतन्त्र के समर्थक-प्लेटो का साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद दोनों ही अधिनायकतन्त्र के समर्थक हैं। प्लेटो का साम्यवादी राज्य विवेकशील व्यक्तियों के अधिनायकतन्त्र में विश्वास करता है और आधुनिक साम्यवाद श्रमिकों के अभिनायकवाद में विश्वास करता है। इसी आधार पर कैटलिन प्लेटो की पुस्तक ‘रिपब्लिक’ को उसकी ‘कैपिटल’ कहता है।

5. दोनों सामुदायिक जीवन पर बल देते हैं—प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था में सामुदायिक जीवन का प्रतिपादन किया गया है। अभिभावक सार्वजनिक मकानों में रहेंगे। साथ-साथ काम करेंगे। साथ-साथ भोजन करेंगे। आधुनिक व्यवस्था में भी सामूहिक जीवन को प्रोत्साहित किया गया है। सोवियत रूस में ‘कम्यून्स’ और प्लेटो की साम्यवादी व्यवस्था एक समान ही है।

प्लेटो का साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में अन्तर

यदि प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद में समानताएँ हैं, तो दोनों साम्यवाद में पर्याप्त अन्तर भी है। मुख्य अन्तर इस प्रकार हैं-

1. प्लेटो का साम्यवाद अभिभावक वर्ग के लिए, आधुनिक साम्यवाद सबके लिए- प्लेटो की सम्पूर्ण साम्यवादी योजना केवल अभिभावकों के लिए है। उसमें श्रमिकों के लिए कोई गुंजाइश नहीं है। उत्पादक वर्ग सम्पत्ति भी रख सकता है और परिवार भी उल्लेखनीय है कि प्लेटो की व्यवस्था में व्यावसायिक भी उत्पादक वर्ग में आते हैं। उसकी साम्यवादी योजना इन पर भी लागू नहीं होती। जबकि आधुनिक साम्यवाद पूरे समाज पर लागू होता है। यह सभी लोगों को सम्पत्ति के स्वामित्व से वंचित करता है।

2. प्लेटो वर्ग सामंजस्य का समर्थक है, आधुनिक साम्यवाद वर्ग संघर्ष पर आधारित- प्लेटो अपने समाज को आत्मा के गुणों और कार्य की विशिष्टता के आधार पर तीन वर्गों में बाँटता है। साथ ही न्याय के माध्यम से उनमें सामंजस्य भी स्थापित करता है। प्लेटो के साम्यवाद में वर्ग संघर्ष की कोई गुंजाइश नहीं है। इसके विपरीत आधुनिक साम्यवाद वर्ग संघर्ष पर ही आधारित है। आधुनिक साम्यवाद अब तक के लिए विश्व इतिहास को वर्ग संघर्ष का इतिहास मानता है तथा साम्यवाद की स्थापना तक इस वर्ग संघर्ष को आवश्यक माना है। प्लेटो के साम्यवाद की स्थापना के बाद समाज में तीन वर्ग रहेंगे। जबकि आधुनिक साम्यवाद की स्थापना के बाद समाज में केवल एक ही वर्ग रहेगा।

3. प्लेटो का साम्यवाद नगर राज्य का दर्शन है, आधुनिक साम्यवाद एक अन्तर्राष्ट्रीय आन्दोलन है- प्लेटो का आदर्श राज्य नगर राज्य तक ही सीमित है। उसके साम्यवाद समाज की परिधि राज्य तक ही सीमित है। इसके विपरीत आधुनिक साम्यवाद तो एक विश्वव्यापी आन्दोलन है। उसकी परिधि सम्पूर्ण विश्व और सम्पूर्ण मानवता है। कैटलिन के शब्दों में, “प्लेटो किसी भी हालत में मार्क्सवादी साम्यवादी नहीं है उसका साम्यवाद न तो विश्वव्यापी है, न ही अन्तर्राष्ट्रीय ।”

4. प्लेटो का साम्यवाद नैतिक आधुनिक साम्यवाद भौतिक- प्लेटो भौकितवादी नहीं है। उसकी साम्यवादी व्यवस्था का उद्देश्य व्यक्तियों को एक उच्च और श्रेष्ठ जीवन प्रदान करता है। उसका न्याय सिद्धान्त नैतिकता का ही सिद्धान्त है। साम्यवाद व्यवस्था नैतिक और आध्यात्मिक उद्देश्यों के लिए है। परन्तु, आधुनिक साम्यवाद विशुद्ध भौतिकवाद पर आधारित है। उसका आधार ही द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद है। वह किसी नैतिकवाद या आध्यात्मवाद में विश्वास नहीं करता।

5. प्लेटो का उद्देश्य ‘आदर्श राज्य’ की स्थापना करना, मार्क्स का उद्देश्य ‘राज्य’ का अन्त करना-प्लेटो का उद्देश्य आदर्श राज्य की स्थापना करना है। राज्य उसके लिए उच्च संस्था है। केवल इसी में व्यक्ति का श्रेष्ठ जीवन प्राप्त हो सकता है। परन्तु मार्क्स राज्य का विरोधी है। वह राज्य को शोषणवादी संस्था मानता है। उसका उद्देश्य राज्य को समाप्त कर, एक राज्यहीन समाज की स्थापना करना है।

इस प्रकार, प्लेटो के साम्यवाद और आधुनिक साम्यवाद का तुलनात्मक विवेचन करने पर सरलता से कहा जा सकता है कि दोनों में ‘साम्य’ भी है और ‘अन्तर’ भी ।

प्लेटो के साम्यवाद की आलोचना

1. अधूरा साम्यवाद–प्लेटो के साम्यवाद की योजना अधूरी है। बार्कर ने उसकी योजना को ‘अर्द्ध साम्यवाद’ की संज्ञा दी है। इस कथन का आधार यह है कि एक ओर प्लेटो “एक राज्य के अन्दर दो राज्यों के सिद्धान्त की भर्त्सना करता है वहीं दूसरी ओर बलात् राज्यों में दो वर्गों की सृष्टि करता है। यदि वस्तुतः प्लेटो सम्पत्ति और परिवार सम्बन्धी साम्यवाद अच्छी व्यवस्था है तो उसे सम्पूर्ण समाज के लिए लागू होना चाहिए, किसी एक विशेष वर्ग के लिए नहीं।”

2. नकारात्मक योजना- प्लेटो को साम्यवादी योजना एक नकारात्मक योजना है, क्योंकि वह आर्थिक और भौतिक सम्पन्नता को तनिक भी महत्व नहीं देता है।

3. अमनोवैज्ञानिक–प्लेटो का सम्पत्ति सम्बन्धी साम्यवाद न केवल अधूरे समाज की व्यवस्था है, प्रत्युत यह मानव इतिहास तथा मनोविज्ञान की भी उपेक्षा करता है। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि व्यक्तिगत सम्पत्ति सभ्यता की संस्था है। किन्तु प्लेटो अभिभावक वर्ग के लिए उसे समाप्त कर देना चाहता है जो कि अमनोवैज्ञानिक है।

4. पलायनवादी विचारधारा-प्लेटो के साम्यवाद सम्बन्धी विचार पलायनवादी है। प्लेटो ने आत्मा के गुणों के आधार पर समाज में सभी को उनके कार्य सौंप दिये। उन्हें एक श्रेष्ठ शिक्षा व्यवस्था प्रदान की, किन्तु फिर भी उसे अपने दार्शनिक शासन की क्षमता पर भरोसा नहीं है। इसीलिए वह साम्यवाद की व्यवस्था करता है।

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