राजनीति विज्ञान / Political Science

प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त- विशेषतायें, शिक्षा पद्धति तथा आलोचना

प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त
प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त

प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त-प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचार

प्लेटो का मत है— राज्य का प्राण है—न्याय। इसका आशय यह है कि राज्य से न्याय और सामंजस्य स्थापित करने के लिए उसके सभी निवासियों द्वारा अपने कर्तव्यों का पालन किया जाना चाहिए और यह स्थिति उसी दशा में सम्भव है जबकि उनको अपने कर्त्तव्यों और दायित्वों का ज्ञान हो। उनको यह ज्ञान शिक्षा द्वारा ही प्राप्त हो सकता है।

प्लेटो ने अपने ग्रन्थ ‘रिपब्लिक’ में शिक्षा पर अत्यधिक जोर दिया है। साथ ही उसने शिक्षा को इतना महत्त्व दिया है कि अनेक विद्वानों ने इसे ‘रिपब्लिक’ का केन्द्र माना है। प्लेटो के शिक्षा सम्बन्धी विचारों से प्रभावित होकर प्रसिद्ध फ्रांसीसी विचारक रूसो ने कहा था—

‘रिपब्लिक’ राजनीति पर लिखित ग्रन्थ नहीं है वरन् शिक्षा पर ऐसी उत्कृष्ट कृति है जैसी पहले कभी नहीं लिखी गयी।

शिक्षा की आवश्यकता– प्लेटो ने ‘रिपब्लिक’ में शिक्षा को केन्द्रीय स्थान क्यों प्रदान किया? इसके दो महत्त्वपूर्ण कारण थे पहला, प्लेटो के समय के सभी राज्यों का शासन दोषपूर्ण था। दूसरा, प्लेटो का इस बात में अटल विश्वास था कि शिक्षा द्वारा शासन में सुधार किया जा सकता था। इस सम्बन्ध में प्लेटो ने लिखा है

“सभी आधुनिक राज्यों का संविधान और शासन असन्तोषजनक है। प्रत्येक राज्य की यही दशा है। अतः बाध्य होकर मुझे इस निष्कर्ष को स्वीकरना पड़ा कि इस समस्या का समाधान तभी हो सकता है, जब सही शिक्षा को ही राज्यों और व्यक्तियों के सम्यक् आचरण का आधार माना जाये।”

प्लेटो की यह मान्यता थी कि शिक्षा द्वारा मनुष्य के गुणों का सर्वोत्तम विकास किया जा । सकता है। शिक्षा के द्वारा व्यक्ति के स्वभाव में परिवर्तन सम्भव है।

प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त

प्लेटो के अनुसार शिक्षा का स्वरूप निम्न रूप से वर्णन किया जा सकता है-

1. शिक्षा द्वारा बौद्धिक विकास- योग्य शिक्षा के द्वारा मनुष्य का स्वभाव सुधारा जा सकता है। जिस प्रकार शारीरिक शिक्षा से शरीर सुदृढ़ बनता है, उसी प्रकार से मानसिक एवं बौद्धिक विकास भी सम्भव है।

2. शिक्षा द्वारा सामाजिक चेतना-प्लेटो के अनुसार सामाजिक चेतना व सत्ता की अनुभूति ही शिक्षा का उद्देश्य है।

3. शिक्षा एक प्रक्रिया- शिक्षा जीवन भर की प्रक्रिया (Life long process) हैं। शिक्षा का कार्य है कि वह मनुष्य के मानसिक नेत्रों को रोशनी दें, जिससे वह वस्तुओं को यथार्थ रूप से देख सके। मनुष्य की आयु के अनुसार मनुष्य पर बाह्य वातावरण की प्रतिक्रिया बदलती रहती है। जैसे शैशवावस्था में व्यक्ति की भावना कल्पना प्रधान पदार्थों से प्रभावित होती है। अतः संगीत एवं साहित्य की शिक्षा दी जानी चाहिए। कुछ काल बाद वैज्ञानिक विषय उपयोगी होंगे। इसी प्रकार आत्मा के और अधिक विकास के लिए दर्शनशास्त्र की शिक्षा दी जानी चाहिए।

4. राज्य मन की उपज है तथा मन राज्य का परिणाम है-प्लेटो का कथन है कि आत्मा का विकास जन्म-जन्मान्तरों के अनुभव का परिणाम है। सरकार के कार्यों का व्यावहारिक ज्ञान भी इस बात का ही एक महत्त्वपूर्ण अंश है। अतएव व्यावहारिक ज्ञान से आत्मा के ज्ञान की भी वृद्धि होती है।

5. सद्गुण ही ज्ञान है—प्लेटो का कथन है कि मन अथवा आत्मा के सम्पूर्ण विकास के लिये प्रशिक्षण आवश्यक है। इस प्रकार व्यावहारिक प्रशिक्षण शिक्षा का एक भाग है। सिद्धान्त तथा व्यवहार भिन्न-भिन्न वस्तुयें नहीं हैं।

6. राज्य एक प्रशिक्षण संस्था है- प्लेटो ने कहा है कि राज्य का अस्तित्व ही नागरिकों को शिक्षित करने के लिए है। ‘राज्य का निर्माण’ नामक निबन्ध से प्लेटो ने राजनीतिक संगठन का विवेचन नहीं किया है वरन् शिक्षा की प्रणाली का वर्णन किया है।

7. शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया- प्लेटो की धारणा है कि शिक्षा का मुख्य उद्देश्य एक ऐसी सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना है, जिससे व्यक्ति समाज में अपना उचित स्थान निश्चित कर सके तथा वह अपने कर्त्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन कर सके।

शिक्षा का आधार

शिक्षा के स्वरूप को समझते हुए प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना के आधार पर निम्न प्रकार प्रस्तुत किये हैं

1. मनोवैज्ञानिक आधार, 2. दार्शनिक आधार

1. मनोवैज्ञानिक आधार-प्लेटो के अनुसार शिक्षा बाहरी जगत की प्रक्रिया है। यह व्यवस्था के अनुसार बदलती रहती है। उसके अनुसार शिक्षा का उद्देश्य ‘आन्तरिक दृष्टि को प्रकाश की ओर उन्मुख करना है। आज भी शिक्षा विशारद् वातावरण के प्रभाव को बड़ा महत्त्व देते हैं। जिस प्रकार शरीर के पोषण के लिये भोजन चाहिये, उसी प्रकार आत्मा के पोषण के लिये शिक्षा चाहिये। विभिन्न अवस्थाओं में भिन्न-भिन्न प्रकार की शिक्षा दी जानी चाहिये। अतः शिक्षा क्रम कभी समाप्त नहीं होता। सामान्यतः वह 35 वर्ष तक शिक्षा का क्रम प्रस्तुत करता है।

2. दार्शनिक आधार- शासक वर्ग के लिये शिक्षा के क्रम को उसने 50 वर्ष के बाद भी बतलाया है क्योंकि सत्य के दर्शन के लिये उसका अध्ययन करते रहना आवश्यक है।

प्लेटो की शिक्षा की विशेषतायें

1.प्लेटो ने अपनी शिक्षा योजना में राज्य द्वारा अनिवार्य शिक्षा को प्रस्तुत किया है। शिक्षा के द्वारा ही मनुष्य निःस्वार्थी एवं कर्त्तव्यपरायण बनता है। न्याय तभी सम्भव है जब सभी अपने-अपने कर्तव्य का पालन करें। अतः सभी के लिए शिक्षा आवश्यक है। यदि शिक्षा अनिवार्य न होगी तो व्यक्ति को अपने कर्तव्य का ज्ञान न हो सकेगा। राज्याश्रित अनिवार्य शिक्षा प्लेटो का मौलिक विचार था। सेबाइन ने इस सम्बन्ध में कहा है कि, “इसे उस जनतन्त्री प्रथा की समालोचना कह सकते हैं जो प्रत्येक व्यक्ति अपने बच्चों के लिये ऐसी शिक्षा खरीदने की स्वतन्त्रता देती है जो या तो उसे अच्छी लगती है। या जो बाजार में उपलब्ध हो।”

2. उत्पादन तथा कृषक वर्ग की उपेक्षा–प्लेटो ने उत्पादक या कृषक वर्ग के लिये शिक्षा को अनिवार्य नहीं माना। सभी के लिये अनिवार्य शिक्षा का अर्थ सैनिक तथा शासन वर्ग में से प्रत्येक व्यक्ति से है।

3. शिक्षा का मनोवैज्ञानिक रूप- प्लेटो की शिक्षा का रूप मनोवैज्ञानिक है। उसके अनुसार मानव मन में ज्ञान का प्रसार ही शिक्षा है। प्लेटो ने आयु के अनुसार उचित वातावरण को महत्त्व दिया है। अतः मनोवैज्ञानिक के अनुसार वह पाठ्यक्रम को अलग-अलग निश्चित करता है।

4. स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहन- समस्त यूनान की परम्पराओं में जो सबसे बड़ा परिवर्तन प्लेटो ने करने का प्रयास किया। वह महिलाओं के विकास की योजना थी। प्लेटो का कथन था कि स्त्री-पुरुष में केवल शारीरिक बनावट का अन्तर है, अन्यथा दोनों में समानता है। अतः वह एथेन्स की स्त्रियों को घर की चार दीवार से निकाल कर पुरुषों के बराबर का स्तर देता है एवं उनके लिये भी उसी प्रकार की शिक्षा का पाठ्यक्रम प्रस्तुत करता है।

प्लेटो की शिक्षा पद्धति

प्लेटो राज्य द्वारा संचालित एक अनिवार्य शिक्षा की योजना को रखता है जिसे आयु के अनुसार दो भागों में बाँटा जा सकता है (1) प्रारम्भिक शिक्षा, (2) उच्च शिक्षा

(i) प्रारम्भिक शिक्षा–इस शिक्षा का उद्देश्य अभिभावकों की सन्तानों को सैनिक बनाना है। यह शिक्षा 20 वर्ष तक चलती है। इसके अध्ययन के पश्चात् जिनको उच्च शिक्षा के प्रति रुचि होगी उन्हें दार्शनिक शासक बनने की शिक्षा दी जायेगी।

प्रारम्भिक शिक्षा का उद्देश्य सैनिक की आत्मा को पवित्र एवं शरीर को स्वस्थ बनाना है। यूनानी शिक्षा का एक मुख्य सिद्धान्त यह था कि “स्वस्थ्य शरीर में स्वस्थ मन का निवास होता है।” शिक्षा के इस उद्देश्य से प्लेटो बहुत प्रभावित था, अतः इस अवस्था में शारीरिक शिक्षा के लिए व्यायाम की एवं मानसिक शिक्षा के लिए संगीत की शिक्षा निर्धारित की गयी है। संगीत में गायन-वादन के अतिरिक्त सत्साहित्य भी सम्मिलित है, क्योंकि यह मनुष्य के मन को पवित्र बनाते हैं और व्यायाम में खेलकूद, शारीरिक श्रम सम्मिलित है। वस्तुतः प्लेटो इस योजना के माध्यम से केवल अच्छे सैनिकों का ही नहीं अपितु अच्छे मनुष्यों का निर्माण करना चाहता है।

प्लेटो की शिक्षा योजना में व्यायाम को बहुत महत्त्व दिया गया है। अतः उसके समाज में डॉक्टरों की कोई आवश्यकता नहीं है। बच्चों को शैशवावस्था से ही कथाएँ सुनाने का क्रम शुरू हो जायेगा। 6 वर्ष तक उन्हें नैतिक आध्यात्मिक शिक्षा दी जायेगी। 12 से 18 वर्ष तक शारीरिक शिक्षा पर बल दिया जायेगा क्योंकि इसी अवस्था में अच्छे सैनिकों का निर्माण होगा। उनमें साहस के साथ मानवोचित गुणों का विकास किया जायेगा। 18 से 20 वर्ष तक की आयु में उन्हें पूर्णरूपेण सैनिक बना दिया जायेगा।

(ii) उच्च शिक्षा-20 वर्ष तक प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने एवं उसमें सफल होने के पश्चात् सफल प्रतियोगियों को उच्च शिक्षा प्रदान की जाती है। यह शिक्षा आदर्श शासकों के निर्माण हेतु प्रदान की जायेगी। इसके अन्तर्गत 20 से 30 वर्ष की आयु तक के युवक-युवतियों को गणित की शिक्षा दी जायेगी। इस अवस्था में क्रमिक वैज्ञानिक शिक्षा होगी, पाठ्यक्रम में गणित, प्राकृतिक विज्ञान, रेखा गणित आदि पर ध्यान दिया जायेगा। 30 वर्ष की आयु के पश्चात् पुनः एक प्रतियोगिता परीक्षा होगी, जो इनमें सफल होंगे उन्हें 35 वर्ष की आयु तक प्रशिक्षित किया जायेगा। गणित तथा द्वन्द्ववाद मुख्य विषय होंगे।

इसके पश्चात् संरक्षकों को राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त किया जायेगा, 50 वर्ष तक वे प्रशासकीय कार्य करते हुए प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। तत्पश्चात् दार्शनिक शासक का निर्माण होगा।

प्लेटो का शिक्षा सिद्धान्त की आलोचना

यद्यपि प्लेटो ने शिक्षा की एक विशद् योजना तैयार की और उसके इस कार्य की प्रशंसा भी हुई, किन्तु प्लेटो के शिक्षा योजना को पूर्णतः सफल नहीं माना जा सकता क्योंकि उसकी इस योजना में निम्न त्रुटियाँ हैं-

1. उत्पादक वर्ग की उपेक्षा–प्लेटो की शिक्षा योजना का सबसे कमजोर पक्ष यह है कि प्लेटो ने उत्पादक वर्ग की शिक्षा की व्यवस्था नहीं की है। एक ओर तो वह आदर्श राज्य के निर्माण हेतु शिक्षा को अनिवार्य मानता है, दूसरी ओर समाज के एक बड़े भाग को शिक्षा देने से वंचित करता है जो त्रुटिपूर्ण है।

सेबाइन—“राज्य में शिक्षा के महत्त्व को देखते हुए यह विचित्र बात नहीं है कि प्लेटो श्रमिकों की शिक्षा की कोई चर्चा नहीं करता और वह यह भी स्पष्ट नहीं करता कि यदि उत्पादकों को किसी प्रकार की शिक्षा दी जायेगी तो उसका स्वरूप क्या होगा?”

2. पाठ्यक्रम में लोचता का अभाव-पाठ्यक्रम निर्धारण में भी प्लेटो की योजना पूर्णतः दोषमुक्त नहीं है। शिक्षा में सिर्फ विवेक को महत्त्व देना उचित नहीं है। प्लेटो काव्य, नाटक, कला से सिर्फ इसलिए घृणा करता है कि वे व्यक्तियों की भावनाओं को प्रभावित करते हैं न कि विवेक को। परन्तु मानव आत्मा के विकास में भावनाओं का भी विशिष्ट स्थान है। उन्हें कुण्ठित कर देना उचित नहीं है।

3. राज्य का एकाधिकार दोषपूर्ण–प्लेटो की शिक्षा योजना में राज्य स्वयं एक शिक्षा व्यवस्था है। शिक्षा दार्शनिकों के शासन का सृजन करेगी। इसका सीधा परिणाम यह होगा कि शिक्षा मनुष्य की वैयक्तिकता तथा व्यक्तिगत चेतना के विकास के मार्ग में बाधक होगी। राज्य द्वारा शिक्षा की व्यवस्था का फल यह होगा कि राज्य सर्वशक्तिमान हो जायेगा।

4. शिक्षा की दीर्घावधि-व्यावहारिक दृष्टि से भी प्लेटो की शिक्षा योजना दोषपूर्ण है।

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