राजनीति विज्ञान / Political Science

धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना

धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना
धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार तथा आलोचना

धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में मैकियावेली के विचार

इटली का मध्य युगीन मैकियावेली एक महान राजनीतिक विचारक था। उसका दृष्टिकोण यथार्थवादी था। उसके राजनीतिक विचारों का प्रतिनिधित्व करने वाली पुस्तक है ‘द प्रिन्स’। इस पुस्तक में मैकियावेली ने राजा की कार्यशैली के सम्बन्ध में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे वास्तव में उसके नैतिकता और धर्म सम्बन्धी दृष्टिकोण पर ही आधारित हैं। डॉ. वी. पी. शर्मा के अनुसार “नैतिकता और धर्म के सम्बन्ध में मैकियावेली का दृष्टिकोण परम्परा विरोधी था।”

नैतिकता और धर्म सम्बन्धी विचारों की पृष्ठभूमि डनिंग ने लिखा है कि मैकियावेली अपने युग का शिशु है। वास्तव में मैकियावेली के विचारों पर तत्कालीन समाज की परिस्थितियों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ा है। उस समय इटली का समाज दुर्दशा के दौर से गुजर रहा था, इटली पाँच राज्यों में विभक्त था और वे राज्य आपस में लड़ते रहते थे। राजनीतिक नेतृत्व भ्रष्ट और चरित्रहीन था। पोप और चर्च भी भ्रष्टाचार और राजनीति का अखाड़ा बने हुए थे। वे इटली की एकता में बाधक थे।

मैकियावेली चाहता था इटली को एकीकृत का एक महान् देश बनाया जाए। यदि इस काम में धर्म और नैतिकता बाधक हो, तो उसकी चिन्ता न की जाए।

मैकियावेली के नैतिकता सम्बन्धी विचार

मैकियावेली ने कहा कि मानव स्वभाव दुष्ट और लालची होता है। मनुष्य लोभी, झगड़ालू और डरपोक होते हैं। ऐसे लोगों पर कोरी नैतिकता के सहारे शासन नहीं किया जा सकता। इसलिये, राजा की नैतिकता की चिन्ता किए बिना दृढ़तापूर्वक शासन करना चाहिये। डॉ. नागपाल के शब्दों में— “मैकियावेली ने कहा- नैतिकता कुछ नहीं होती। यह केवल सापेक्ष होती है। एक राजा को नैतिक-अनैतिक की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। उसे सदा एक बात की चिन्ता करनी चाहिए कि वह सदा राज्य की सुरक्षा, प्रगति की चिन्ता करे और उसके लिये वह जो भी साधन अपनाएगा, वे उचित माने जायेंगे।”

मैकियावेली के नैतिकता सम्बन्धी विचारों के बारे में एक अन्य उल्लेखनीय बात यह है कि वह नैतिकता के दोहरे मापदण्ड की व्यवस्था करता है। वह चाहता है कि जनता तो नैतिक रहे, क्योंकि उसके बिना अच्छा समाज बन ही नहीं सकता। परन्तु, शासक के लिये नैतिक होना जरूरी नहीं है, शासन अच्छे उद्देश्य के लिये आवश्कतानुसार अनैतिक साधनों का प्रयोग कर सकता है। साथ ही मैकियावेली शासक को यह भी सुझाता है कि शासक को इस बात का प्रयास करना चाहिए कि वह नैतिक दिखाई दे। मैकियावेली के अनुसार राजा के लिये यह आवश्यक नहीं है कि वह एक अच्छा व्यक्ति हो, परन्तु यह आवश्यक है कि वह एक अच्छा व्यक्ति प्रतीत हो ।’

इस प्रकार, मैकियावेली ने राजनीति और नैतिकता को सर्वथा पृथक कर दिया है। उसके इसी दृष्टिकोण को ‘मैकियावेलीवाद’ कहा जाता है।

मैकियावेली के धर्म सम्बन्धी विचार

रोटेल के शब्दों में- “मैकियावेली का अपने पूर्वनामी लेखकों से मुख्य भेद यह था कि वह धर्म और नैतिकता के सम्बन्ध में उनकी धारणा को नहीं मानता।”

नैतिकता के समान धर्म के बारे में भी मैकियावेली के विचार परम्परा विरोधी थे। उसकी स्पष्ट धारणा थी कि धर्म ने मनुष्य को भीरु बनाया है। वह यह भी मानता था कि धर्म इटली की एकता के मार्ग में बाधक है। मैकियावेली के शब्दों में—’हम इटली के लोग अधार्मिक और बुरे होने के कारण रोम के चर्च और पादरियों के ऋणी हैं, परन्तु इससे भी अधिक हम इस बात के लिये भी उनके ऋणी हैं कि वे इटली के एकीकरण के मार्ग में बाधक रहे।’

मैकियावेली ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि राजनीति का धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं है। यदि राजा को लगे कि धर्म उसके सद्प्रयासों के मार्ग में बाधक बन गया है, तो वह धर्म को कुचल दे।

परन्तु मैकियावेली धर्म की शक्ति को जानता था। वह जानता था कि धर्म के प्रति जनता के मन में कितनी आस्था होती है। अतः वह जानता था कि राजा इस धर्म की शक्ति का राज्य के हित में प्रयोग करे। फास्टर के अनुसार “मैकियावेली धर्म को राज्य के उद्देश्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में चर्च को राज्य के अंग के रूप में महत्त्व देता है।”

मैकियावेली के नैतिकता और धर्म सम्बन्धी विचारों की आलोचना

मैकियावेली के नैतिकता और धर्म सम्बन्धी विचारों के कारण उस पर तीखे प्रहार हुए हैं। उन विचारों पर मुख्य आरोप निम्नलिखित हैं- 

1. मानव स्वभाव सम्बन्धी गलत धारणा पर आधारित- ‘मैकियावेली के नैतिकता तथा धर्म सम्बन्धी विचार उसकी मानव-सम्बन्धी गलत धारणा पर आधारित है। जिस नींव पर मैकियावेली के विचारों का महल बना है, वह नींव ही गलत है। मनुष्य स्वभाव से दुष्ट और कायर नहीं होता। राजा को उन पर अच्छी तरह शासन करने के लिए अनैतिक और अधार्मिक होना आवश्यक नहीं है।’

2. तत्कालीन परिस्थितियाँ सर्वकालिक परिस्थितियाँ नहीं- मैकियावेली का सम्पूर्ण चिन्तन तत्कालीन परिस्थितियों पर आधारित हैं। उस समय के इटली का समाज सर्वथा अनैतिक और स्पष्ट था और चर्च का पतन हो चुका था। परन्तु समाज सदैव भ्रष्ट नहीं होता। धार्मिक संस्थाएँ सदैव पतित नहीं होती हैं। मैकियावेली का निजी अनुभवों के आधार पर सर्वकालिक नियमों का निर्धारण गलत है। ऐसे सिद्धान्त सही हो ही नहीं सकते।

3. नैतिकता का दोहरा मापदण्ड- मैकियावेली ने नैतिकता के दोहरे मापदण्ड का प्रतिपादन किया है। वह मानता है कि जनता को तो नैतिक होना चाहिए परन्तु शासक के लिए नैतिक होना आवश्यक नहीं है। जबकि वास्तविकता यह है कि जिस समाज में शासक अनैतिक होगा, वहाँ उसका अनुसरण कर जनता भी अनैतिक होती जाएगी।

4. धर्म का सही अर्थ नहीं- मैकियावेली ने धर्म का सही अर्थ नहीं जाना था। डॉ. वी.पी. शर्मा के शब्दों में—“ऐसा प्रतीत होता है कि धर्म के रागात्मक, प्रज्ञात्मक और लोकोत्तर पक्ष से वह पूर्णतः उदासीन था।’ उसने केवल धर्म का विकृत और दूषित रूप ही देखा था। धर्म के रचनात्मक रूप से परिचित न होने के कारण धर्म के प्रति उसका दृष्टिकोण सन्तुलित न था।

5. निरंकुशवाद का समर्थन- नैतिकता और धर्म के प्रति असन्तुलित दृष्टिकोण के कारण मैकियावेली के शासन सम्बन्धी विचार भी आपत्तिजनक बन गए। मैकियावेली का शासन धूर्त और निरंकुश है। वह अपने राजा को शक्ति का निर्ममतापूर्वक प्रयोग करने की अनुमति देता है और इस प्रकार निरंकुशवाद का समर्थन करता है।

निष्कर्ष—मैकियावेली के नैतिकता और धर्म सम्बन्धी विचारों की आलोचना के उपरान्त भी, यह कहना उपयुक्त होगा कि उसके विचारों को गलत समझा गया है। वह न तो अनैतिक था और न अधार्मिक। वह तो गैर-नैतिक (Non-moral) गैर-धार्मिक (Non-religious) था। अर्थात् वह नैतिकता और धर्म का विरोधी न होकर उनके प्रति उदासीन था। वह यथार्थवादी था। मैक्सी के शब्दों में—“सामान्यतः मैकियावेली के सिद्धान्तों को अस्वीकार किया जाता है, परन्तु व्यवहार में उनका नियमित रूप से अनुसरण किया जाता है।”

Important Links

Disclaimer

Disclaimer: Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment

close button