राजनीति विज्ञान / Political Science

जे एस मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार | JS Mill views on liberty in Hindi

जे एस मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार
जे एस मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार

जे एस मिल के स्वतंत्रता संबंधी विचार (JS Mill views on liberty in Hindi)

मिल के स्वतन्त्रता पर विचार- राजनीतिक चिन्तन के क्षेत्र में मिल की सबसे बड़ी देन उसके स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार हैं। व्यक्ति स्वातन्त्र्य का कट्टर समर्थक मिल यह मानता है कि मनुष्य के व्यक्तित्व के पूर्ण विकास के लिए स्वतन्त्रता का होना आवश्यक है।

मिल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचार तत्कालीन अतिशासन की स्थिति के परिणाम है। उसके समय में राज्य का कार्य क्षेत्र बढ़ता जा रहा था। नये-नये कानूनों के निर्माण से व्यक्ति की स्वतन्त्रता सीमित होती जा रही थी और वैयक्तिक जीवन में राज्य का हस्तक्षेप बढ़ता जा रहा था। जब जे.एस. मिल ने व्यक्ति के लुप्त व्यक्तित्व को सारयुक्त बनाने के लिए व्यक्ति स्वातन्त्र्य पर बल दिया। जे.एस. मिल ने अपने स्वतन्त्रता विचार का प्रतिपादन अपनी श्रेष्ठतम कृति ‘आन लिबर्टी’ (On Liberty) में सशक्त रूप में किया है।

मिल का मत है कि कोई भी व्यक्ति समाज में रहकर अपने श्रेष्ठतम रूप को तब तक प्राप्त नहीं कर सकता, जब तक कि उन्हें पर्याप्त स्वतन्त्रता न हो। उसके व्यक्तित्व के विकास के लिए स्वतन्त्रता का होना आवश्यक है। इसके लिए वह शासन पर अंकुश लगाना जरूरी मानता है। उसका कथन है कि न केवल निरंकुश शासन में बल्कि प्रजातन्त्र में भी स्वतन्त्रता का होना आवश्यक है, क्योंकि वह मानता है कि इसके अभाव में बहुमत का शासन स्थापित हो जाएगा और वह अल्पमत, पर तानाशाही करने लगेगा। इस सम्बन्ध में मिल का कथन है वह जनता जो शक्ति का प्रयोग करती है उस जनता से भिन्न है, जिस पर शक्ति का प्रयोग किया जाता है। जिसे हम स्वशासन कहते हैं, वह प्रत्येक का अपने ऊपर शासन न होकर वास्तव में प्रत्येक पर बचे हुए दूसरों का शासन है। अतः वह अन्य शासन प्रणालियों की भाँति प्रजातान्त्रिक प्रणाली वाले राज्यों में भी

शासन पर अंकुश लगाना चाहता है। किन्तु शासन के किन-किन कार्यों पर अंकुश लगाया जाए, ताकि व्यक्ति की स्वतन्त्रता, सुरक्षित रहे। इसके लिए मिल ने स्वतन्त्रता को दो भागों में बाँटा है वैचारिक स्वतन्त्रता (विचारों की स्वतन्त्रता) और कार्यों की स्वतन्त्रता ।

1. विचारों की स्वतन्त्रता- मिल ने विचारों की स्वतन्त्रता का पूर्ण समर्थन किया है। उसका कहना है कि किसी भी व्यक्ति को, किसी भी हालत में उसके विचारों का व्यक्त करने से नहीं रोका जाना चाहिए, क्योंकि किसी व्यक्ति के विचारों की अभिव्यक्ति को रोक कर शासन उस व्यक्ति का ही नहीं, बल्कि पूरे समाज का अहित करता है।

मिल का मत है कि यदि सारा समाज कोई एक विचार रखता है और कोई एक व्यक्ति उसके विपरीत विचार रखता है, तो भी उस व्यक्ति को उसके विचार व्यक्त करने से ही नहीं रोका जाना चाहिए। मिल के शब्दों में—“यदि एक व्यक्ति को छोड़कर सम्पूर्ण मानव जाति का एक ही मत हो जाए तो भी मानव जाति को उस एक व्यक्ति को बलात चुप करने का अधिकार नहीं है, जैसे कि यदि उसके पास शक्ति होती, तो उसे मानव जाति को चुप कराने का अधिकार नहीं होता।”

अतः किसी भी हालत में व्यक्ति को उसके विचार व्यक्त करने से नहीं रोका जाना चाहिए। यह तो और भी अन्यायपूर्ण होगा कि किसी व्यक्ति को झक्की या सनकी मानकर उनके विचारों को दबाया जाए, क्योंकि कितने ही महान विचारक और दार्शनिक झक्की और सनकी प्रतीत होते हैं। ऐसे व्यक्तियों के विचारों को सुनने से रोकना या उनके विचारों पर प्रतिबन्ध लगाना और भी अन्यायपूर्ण है।

2. कार्यों की स्वतन्त्रता- विचार और अभिव्यक्ति के क्षेत्र में मिल यदि व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करता है, तो कार्यों के क्षेत्र में वह व्यक्ति की स्वतन्त्रता पर थोड़ी-सी मर्यादा लगाना चाहता है। निःसन्देह विचार और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पंगू रहती है, यदि मनुष्य को कार्य की स्वतन्त्रता न दी जाए। इसलिए मिल कार्य के क्षेत्र में व्यक्ति को व्यापक स्वतन्त्रता प्रदान करता हुआ भी उसकी स्वतन्त्रता को समाज के हित में सीमित करता है।

परन्तु व्यक्ति के वे कौन से कार्य हैं जिन पर कुछ रुकावट हो? और वे कौन से कार्य हैं जिन पर रुकावट न हो? इस सीमा रेखा को निर्धारित करने के लिए मिल व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में बाँटता है (1) स्वसम्बन्धी कार्य (2) परसम्बन्धी कार्य ।

1. स्वसम्बन्धी कार्य– मनुष्य के ये कार्य हैं, जो व्यक्ति के निजी कार्य हैं। इन कार्यों का अन्य व्यक्तियों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता। यह कार्य व्यक्ति के स्वयं तक ही सीमित रहते हैं। जैसे व्यक्ति क्या खाता है? क्या पहनता है? इस तरह के कार्यों को समाज से विशेष सम्बन्ध नहीं होता। मिल के अनुसार इन कार्यों के सम्बन्ध में राज्य को चाहिए कि वह व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता प्रदान करे। मिल के शब्दों में— “मेरा यह आग्रह है कि व्यक्ति के चरित्र, आचरण और व्यवहार के उस अंश के सम्बन्ध में इसका प्रभाव केवल उसी पर पड़ता है और जिसका दूसरों से सम्बन्ध नहीं है…… उसके लिए उसे किसी प्रकार का दण्ड नहीं देना चाहिए।” अर्थात् इस क्षेत्र में उसे पूर्ण स्वतन्त्रता मिलनी चाहिए।

2. परसम्बन्धी कार्य– वे कार्य हैं जिनका समाज पर प्रभाव पड़ता है, व्यक्ति के ऐसे कार्य जो समाज के अन्य व्यक्तियों को प्रभावित करते हैं—परसम्बन्धी कार्य हैं। यदि व्यक्ति परसम्बन्धी कार्यों से समाज का कोई अहित न हो तो उसके सम्बन्ध में व्यक्ति पर और उसके कार्यों पर कोई अंकुश नहीं होना चाहिए, किन्तु यदि व्यक्ति के परसम्बन्धी कार्यों से समाज को अहित होता हो, अन्य व्यक्तियों की स्वतन्त्रता बाधित होती तो राज्य उन कार्यों को मर्यादित कर सकता है। मिल कहता है कि व्यक्ति के जिस आचरण और व्यवहार से समाज पर प्रभाव पड़ता है उस आचरण और व्यवहार पर समाज का अधिकार होना चाहिए। इस सम्बन्ध में मिल की धारणा स्पष्ट है। मिल के शब्दों में—“यदि कोई व्यक्ति दूसरों के अधिकार का अतिक्रमण करता है अथवा दूसरों को कोई क्षति पहुँचाता है।…..तो उसे दण्ड देना और उसे प्रायश्चित करना उचित होगा।”

इस प्रकार मिल व्यक्ति के केवल उन्हीं कार्यों पर सीमाएँ बाँधना चाहता है जो समाज की हानि पहुँचाए। अन्य सभी क्षेत्रों में व्यक्ति को पूर्ण स्वतन्त्रता होनी चाहिए। मिल के अनुसार “मानव जाति व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से अपने किसी भी घटक की स्वतन्त्रता में हस्तक्षेप केवल एक ही बात के लिए कर सकती है और वह है, आत्मरक्षा। सभ्य समाज के किसी भी घटक के विरुद्ध शक्ति का प्रयोग केवल एक उद्देश्य के लिए उचित हो सकता है और वह है दूसरों को हानि पहुँचाने से रोकना।”

मिल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों की आलोचना–मिल के स्वतन्त्रता सम्बन्धी विचारों के लिए यदि उसे पर्याप्त यश मिला है और उसकी बहुत प्रशंसा हुई, तो साथ ही इन्हीं विचारों के लिए
मिल की आलोचना भी हुई। प्रो. बार्कर तो मानते हैं कि “मिल खोखली स्वतन्त्रता और काल्पनिक व्यक्ति का मसीहा है।”

मिल की स्वतन्त्रता की आलोचना

मुख्य रूप से निम्नलिखित आधारों पर मिल की स्वतन्त्रता की आलोचना की जाती है-

1. व्यक्ति के कार्यों का विभाजन काल्पनिक–मिल ने व्यक्ति के कार्यों को दो भागों में बाँटा है— स्व-सम्बन्धी कार्य और पर-सम्बन्धी कुछ कार्य ऐसे हैं, जिनसे समाज प्रभावित नहीं होता।

परन्तु व्यक्ति के कार्यों का यह विभाजन एकदम कृत्रिम है। वास्तव में व्यक्ति के कार्यों को दो डिब्बों में बन्द नहीं किया जा सकता है। कपड़े पहनना व्यक्ति का निजी कार्य है, परन्तु क्या अश्लील और भोंडे कपड़े पहनने से समाज प्रभावित नहीं होगा और ऐसे निजी कार्यों वाला व्यक्ति बार्कर के शब्दों में एक काल्पनिक व्यक्ति है। इसलिए मिल की स्वतन्त्रता की सीमा रेखा व्यावहारिक और काल्पनिक ही है।

2. निरंकुशवादी सिद्धान्त – यद्यपि सरकारी तौर पर देखने में ऐसा लगता है मानों मिल व्यक्ति को बहुत अधिक स्वतन्त्रता दे रहा है परन्तु वास्तव में मिल का सिद्धान्त काफी हद तक निरंकुश सिद्धान्त ही है, क्योंकि मिल यह मानता है कि राज्य जब चाहे व्यक्ति के कार्यों को प्रतिबन्धित कर सकता है। और यह कह सकता है कि इन कार्यों में समाज के हितों की हानि हो रही थी। बार्कर ठीक ही तो कहते हैं “मिल खोखली स्वतन्त्रता का मसीहा है।”

3. अधिकारों का कोई प्रावधान नहीं- मिल की स्वतन्त्रता का बहुत बड़ा दोष यह है कि उसके का कोई प्रावधान नहीं करता। अधिकारों की गारण्टी के बिना स्वतन्त्रता का कोई अस्तित्व नहीं होता। यदि राज्य व्यक्ति को स्वतन्त्रता दे भी दे और उस स्वतन्त्रता का उपयोग की कोई ठोस व्यवस्था न हो, तो स्वतन्त्रा के सम्पूर्ण आश्वासन निरर्थक हो जाते हैं। इस दृष्टि से तो मिल की स्वतन्त्रता एकदम आधारहीन है और अधूरी है। मिल की स्वतन्त्रता के साथ-साथ स्पष्ट रूप से अधिकारों का प्रतिपादन भी करना चाहिए था।

4. स्वतन्त्रता की गलत परिभाषा– स्वतन्त्रता की व्याख्या करते समय मिल यह कहता है कि व्यक्ति की इच्छाओं की पूर्ति का नाम स्वतन्त्रता है। वह यह भी कहता है कि कई बार व्यक्ति से कार्य उसकी इच्छाओं के अनुरूप नहीं होती। उदाहरणार्थ व्यक्ति चाहता तो गरीबी से मुक्ति पा सकता है, परन्तु सट्टा खेलकर और अधिक गरीब बन जाता है। इस तरह की अवस्थाओं में राज्य को चाहिए कि वह ऐसे कार्य को जिसके व्यक्ति की इच्छाएँ वास्तव में पूरी हो ।

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