संवैधानिक विधि/constitutional law

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन, अर्हता, कार्य एवं महत्व | vice- president Election

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन

उपराष्ट्रपति का निर्वाचन, अर्हता, कार्य एवं महत्व का वर्णन कीजिये। Explain the election, qualification, function and importance of Vice- President.. 

अनुच्छेद 63 में कहा गया है कि भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा तथा वह राज्यसभा का पदेन सभापित होगा (64)। उपराष्ट्रपति का निर्वाचन संसद के दोनों सदनों के सदस्य मिलकर आनुपातिक प्रतिनिधित्व-पद्धति के अनुसार एकल संक्रमणीय मत द्वारा करेंगे और ऐसे निर्वाचन में मतदान गूढ़ शलाका द्वारा होगा (अनु. 66)। राष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य विधान-मण्डल के सदस्य भी भाग लेते हैं, जबकि उपराष्ट्रपति के निर्वाचन में केवल संसद के सदस्य ही भाग लेते हैं। ऐसा उसके कार्यों को देखते हुए किया गया है। उसका मुख्य कार्य राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना है। उपराष्ट्रपति के निर्वाचन से सम्बन्धित किसी विषय का विनियमन संसद विधि बनाकर कर सकती है। उसके निर्वाचन से सम्बन्धित सभी शंकाओं और विवादों की जाँच और विनिश्चय उच्चतम न्यायालय करेगा और उसका विनिश्चय अन्तिम होगा। उसके निर्वाचन पर आपत्ति नियांचन पूरा होने के बाद ही की जा सकती है। निर्वाचकगण में विद्यमान किसी रिक्ति के आधार पर भी उसके निर्वाचन को चुनाता नहीं दी जा सकती है। न्यायालय द्वारा उसके निर्वाचन को शून्य घाषित किय जाने पर उसके पद की शक्तियों के प्रयोग में किये गये कार्य अमान्य नहीं होगे (अनु. 71)

उपराष्ट्रपति की अर्हताएँ- उपराष्ट्रपति की अर्हताएँ वही है जो राष्ट्रपति की हैं, सिवाय इसके कि उसे राज्यसभा के लिए चुने जाने की अर्हता चाहिये [अनुच्छेद 66(3) (ग)] | वह कोई लाभ का पद धारण नहीं कर सकता है। वह संसद के किसी सदन या राज्य के विधान-मण्डल के किसी सदन का सदस्य नहीं हो सकता और यदि ऐसा व्यक्ति उपराष्ट्रपति निर्वाचित हो जाता है तो यह समझा जायेगा कि उसने उस सदन का अपना स्थान अपने पद-ग्रहण की तारीख से रिक्त कर दिया है। उपराष्ट्रपति को अपना पद ग्रहण करने के पूर्व राष्ट्रपति अथवा उसके द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति के समक्ष संविधान में विहित रूप में शपथ लेनी पड़ती है। (अनु. 59)!

उपराष्ट्रपति की पदावधि- अनुच्छेद 67 के अनुसार उपराष्ट्रपति पाँच वर्ष के लिए पद धारण करता है तथा पाँच वर्ष पूरा हो जाने पर तबतक पद पर बना रहता है जब तक नव- निर्वाचित उपराष्ट्रपति पद ग्रहणं नहीं करता है। किन्तु इस अवधि के पहले ही-(क) वह अपने पद से राष्ट्रपति को सम्बन्धित करके अपना पद त्याग सकता है; (ख) उसे राज्य-सभा के संकल्प जिसे सदन के तत्कालीन समस्त सदस्यों को बहुमत ने पारित किया हो तथा जिसे लोकसभा के साधारण बहुमत ने स्वीकृत किया हो, अपने पद से हटाया जा सकता है। किन्तु ऐसे संकल्प को प्रस्तावित करने के पूर्व 14 दिन की नोटिस देना आवश्यक है (अनु. 67)। उपराष्ट्रपति के हटाने की प्रक्रिया राष्ट्रपति के हटाने की प्रक्रिया की अपेक्षा सरल है। राष्ट्रपति के मामले में महाभियोग का आरोप लगाने वाले संकल्प को दोनों सदनों के 2/3 बहुमत से पारित किया जाना चाहिए, जबकि उपराष्ट्रपति के लिए ऐसा केवल राज्यसभा में होता है। उपराष्ट्रपति के हटाए के लिए लोक-सभा का साधारण बहुमत ही पर्याप्त है और उसके आरोपों की जाँच भी नहीं की जाती है। संकल्प पहले राज्य-सभा में ही पेश किया जाता है, जबकि राष्ट्रपति के मामले में वह किसी सदन में किया जा सकता है। राष्ट्रपति केवल संविधान के अतिक्रमण के लिए हटाया जाता है, जबकि उपराष्ट्रपति किसी भी आधार पर, जिसे राज्य-सभा उचित समझे, हटाया जा सकता है।

उपराष्ट्रपति की पदावधि की समाप्ति से हुई रिक्ति को भरने के लिए निर्वाचन पदावधि की समाप्ति से पहले ही पूर्ण करा लिया जाएगा। उपराष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग या पद से हटाए जाने या अन्य कारण से हुई उसके पद में रिक्ति के लिए निर्वाचन यथाशीघ्र किया जाएगा। इस प्रकार निर्वाचित व्यक्ति अनुच्छेद 67 के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, अपने पद ग्रहण की तारीख से पाँच वर्ष की पूरी अवधि तक पद धारण करने का हकदार होगा (अनु. 68)।

उपराष्ट्रपति के कार्य एवं महत्व-

उपराष्ट्रपति के साथ प्रत्यक्ष रूप से कोई कृत्य नहीं जुड़ा है। वह राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। उसका सामान्य कार्य राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करना है। उपराष्ट्रपति चूँकि राज्यसभा का सदस्य नहीं होता है; अतएव उसे मतदान का अधिकार नहीं है किन्तु सभापति के रूप में निर्णायक मत देने का अधिकार प्राप्त है। संविधान में उपराष्ट्रपति का महत्व इस नाते हैं कि जब कभी भी राष्ट्रपति का पद किसी कारणवश रिक्त हो जाता है तो वह राष्ट्रपति के कार्यों का तब तक सम्पादन करता है जब तक नये राष्ट्रपति का निर्वाचन नहीं हो जाता। राष्ट्रपति की मृत्यु, पदत्याग अथवा पद से हटाये जाने अथवा अन्य कारण से उसके पद से हुई रिक्तता की अवस्था में या अनुपस्थिति, बीमारी अथवा अन्य कारण से जब राष्ट्रपति अपने कृत्यों को करने में असमर्थ हो तो उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य करेगा। प्रथम, जब तक निर्वाचित राष्ट्रपति अपना पद न ग्रहण कर ले और दूसरा, जब तक राष्ट्रपति अपने कार्य- भार को फिर से न सँभाल ले (अनु. 65)। जिस किसी कालावधि में उपराष्ट्रपति राष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है, वह राज्य-सभा के सभापति के पद के कार्यों को नहीं करेगा। जब उपराष्ट्रपति के रूप में कार्य करता है तो उसे राष्ट्रपति की सब शक्तियों, उन्मुक्तियों, उपलब्धियों, भत्तों और विशेषाधिकार का अधिकार प्राप्त होगा।

उपराष्ट्रपति परिलब्धियाँ तथा पेन्शन (संशोधन) अध्यादेश, 2009 द्वारा उपराष्ट्रपति के वेतन को बढ़ाकर 1 लाख 25 हजार प्रतिमाह कर दिया गया है।

अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों का निर्वहन (अनु. 70)- मान लीजिए  राष्ट्रपति के पद के किसी कारणवश रिक्त हो जाने के साथ ही साथ उपराष्ट्रपति का पद भी रिक्त हो जाता है, ऐसे समय में कौन राष्ट्रपति के कार्यों का निर्वाह करेगा? अनुच्छेद 70 ऐसी किसी अन्य आकस्मिकताओं में राष्ट्रपति के कृत्यों के निर्वहन का उपबन्ध करता है। इसके अनुसार संसद जैसा उचित समझे वैसा उपबन्ध कर सकती है। इसी उद्देश्य से संसद ने राष्ट्रपति उत्तराधिकार अधिनियम, 1969 पारित किया है जो यह उपबन्धित करता है कि यदि उपराष्ट्रपति भी किसी कारणवश उपलब्ध नहीं है तो उच्चतम न्यायालय का मुख्य न्यायाधीश या उसके न रहने पर उसी न्यायालय का श्रेष्ठतम न्यायाधीश, जो उस समय उपलब्ध हो, राष्ट्रपति के कृत्यों को सम्पादित करेगा।

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