राजनीति विज्ञान / Political Science

उदरीकरण का लोक प्रशासन पर प्रभाव | Impact of Liberalization on Public Administration in Hindi

उदरीकरण का लोक प्रशासन पर प्रभाव
उदरीकरण का लोक प्रशासन पर प्रभाव

उदरीकरण का लोक प्रशासन पर प्रभाव

उदारीकरण के परिणामस्वरूप विकास की पूरी जोति में आमूल-चूल परिवर्तन हुआ है। अर्थव्यवस्था में राज्य की भूमिका को दोबारा परिभाषित किया गया है। आर्थिक विकास की प्रक्रिया में व्यक्तिगत क्षेत्रों को ज्यादा प्राथमिकता दी गयी है। भारतीय अर्थव्यवस्था बाजार मैत्रीपूर्ण अर्थव्यवस्था की तरह बढ़ रहा है। गैर जरूरी जनयंत्रण को हटाकर केन्द्रीकृत नियोजन की तरफ कदमों को बढ़ाया गया है। ऐसी अवस्था में नौकरशाही व लोकप्रशासन की भूमिका में परिवर्तन प्रारम्भ हुआ है। इन परिवर्तनों को निम्नलिखित शीर्षकों के माध्यम से व्यक्त किया गया है-

1. रोजगार के सिकुड़ते अवसर

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर पहला प्रभाव यह है कि आर्थिक उदारीकरण के पश्चात् राष्ट्र में विदेशी उत्पादों एवं सेवाओं ने उन्नति करके भारतीय उद्योग क्षेत्र की मन्दी की अवस्था में पहुँचा दिया है जिससे रोजगार की चिन्तायें उभरी हैं। दूसरी ओर विदेशों में रोजगार प्राप्त करने वाले मानव श्रम हेतु रोजगार के अवसरों में कमी आयी है। वे विदेशों में रोजगार प्राप्त करने के लिए सन् 1997 में करीब 4 लाख 46 हजार व्यक्तियों ने भारत सरकार के अप्रवासी संरक्षक से आज्ञा माँगी थी। यह संख्या सन् 1999 में घटकर 3 लाख 55 हजार हो गयी। देश के रोजगार कार्यालयों में पंजीकृत बेरोजागरी की संख्या 4 करोड़ 6 लाख के लगभग हो गई। सम्पूर्ण रोजगार पाने वाले लोगों का 8% ही संगठित एवं सार्वजनिक क्षेत्रों में शामिल हुआ है। बाकी 92% असंगठित क्षेत्रों में कार्यरत है। आजकल देश में बेरोजगारी का 2.5% है यह 1987 के बाद की ज्यादा दर है। उदारीकरण के दौर में देश के सार्वजनिक उपक्रमों में लगभग एक लाख चालीस हजार कर्मचारियों को छुट्टी कर दी गई। सार्वजनिक व – सरकारी क्षेत्रों के उपक्रमों में निरन्तर नवीन रोजगारी की कमी हो रही है दूसरी ओर निजी क्षेत्रों में लगातार रोजगार के अवसरों में वृद्धि हो रही। रोजगार व कैरियर हेतु राष्ट्र के प्रत्येक राज्यों से विदेशी जमीन पर वृद्धि करते हुए भारतीयों का ग्राफ निम्न की ओर जाने लगा है। मात्र केरल राज्य में सबसे ज्यादा श्रम बल में प्रवासित किया जो वर्तमान में कम हुआ है। सन् 1997 में केरल से विदेशों को जाने वाले श्रम की संख्या एक लाख छप्पन हजार के करीब थी जो 1998 में कम होकर 92 हजार के करीब है। 1999 में यह संख्या 62 हजार के करीब हो गई।

2.संविदा पर कार्य करना

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर दूसरा प्रभाव यह है कि किसी समय में राज्य सरकार सबसे बड़ा नियोक्ता होती थी। किन्त अब सरकारी क्षेत्रों में कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगा दी गयी। ऐसी सेवाओं का कार्य व्यापक हो रहा है। वह सरकार विभागी रूप से कार्य कर रही है। इसी काम को संविदा पर आधारित व्यक्तिगत क्षेत्रों में दिया जा सकता है।

3. कोटा, परमिट एवं लाइसेंस राज की समाप्ति

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर तीसरा प्रभाव यह है कि आजादी के बाद से अर्थव्यवस्था पर विभिन्न प्राकर के नियन्त्रण लगाये गये परमिट, कोटा व राज्य लाइसेंस का गठन किया गया। इसके गठन से नौकशाही में बढ़ोत्तरी हुई तथा लाल फीताशाही तथा भ्रष्टाचार का बोल बाला बढ़ा। उदारीकरण एवं आर्थिक सुधारों से नियन्त्रण एवं नियमन की बजाये निजीकरण व बाजारीकरण पर विशेष ध्यान दिया गया तथा सब्सिडी परमिट व लाइसेंसों को जारी रखने न रखकर इन्हें न्यून करने पर ज्यादा बल दिया गया जिसके परिणामस्वरूप नौकरशाही व सरकार की जिम्मेदारी संकुचित रूप धारण करने लगी तथा अर्थव्यवस्था को मुक्तका आयी।

4 लोक विकल्प (चयन) विचारधारा पर विशेष ध्यान

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर चौथा प्रभाव यह है कि उदारीकरण के इस समय में लोक विकल्प सिद्धान्त पर विशेष ध्यान दिया गया। लोक विकल्प राजनीतिक आर्थिक सिद्धान्त है। लोक विकल्प सिद्धान्त पेशेवर नौकरशाही प्रति संवेदना शून्य होते हैं। इससे अकुशलता और जनमानस के प्रति उपेक्षित भाव रखने वाला मानता है। विकल्प में प्रतिस्पर्द्धा छिपी होती है लोक विकल्प सिद्धान्त लोक प्रशासन में प्रतिस्पर्द्धा को शामिल करता है, लोक विकल्प सिद्धान्त सेवाओं व वस्तुओं के विषय में बहुलवाद व संस्थात्मक को मानने वाला होता है। सार्वजनिक सेवाओं पर पूरा करने हेतु निजी स्रोतों का ज्यादा प्रयोग करके नौकरशाही हेतु प्रतिस्पर्द्धा को बढ़ाया जाता है। सारतः लोक विकल्प सिद्धान्त सार्वजनिक सेवा को पूर्ण करने में सरकार के एकाधिकार को खत्म कर सकता है।

5. सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में विनिवेश

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर पाँचवाँ प्रभाव यह है कि सार्वजनिक उपक्रमों में बढ़ती समस्याओं को देखे हुए सरकार के आर्थिक सुधारों के कार्यक्रमों की श्रृंखला के समय में सार्वजनिक उपक्रमों में विनिवेशन की नीति को अंगीकार किया तथा सार्वजनिक उपक्रमों के निजीकरण के रास्ते को सही किया है। इस प्रक्रिया के अन्तर्गत सरकार सार्वजनिक उपक्रमों के अंशों को सरकार जनता के मध्य बेच देती है। सार्वजनिक क्षेत्रों में व्यक्तिगत सहभागिता की वृद्धि करना ही मुख्य उद्देश्य है। सार्वजनिक उपक्रमों में मौजूदा दोषों एवं असफलताओं को समाप्त करके उसको लाभदायक बनाना। इससे सार्वजनिक उपक्रम लालफीताशाही एवं सरकारी नियन्त्रण से स्वतन्त्र हो सकें। निजी क्षेत्रों की प्रबन्धकीय क्षमता से फायदा उठाया जा सकता है।

6. प्रशासनिक सुधार

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर छठवाँ प्रभाव यह है कि उदारीकरण के पश्चात् प्रशासनिक सुधारों पर ध्यान दिया गया जिससे नौकरशाही परिणामोन्मुखी संगठन में परिवर्तित हो सके तथा लक्षणों व परिणामों की प्राप्ति हो सके। इन परिणामों व लक्ष्यों की जवाबदेही निश्चित की गई। वर्तमान लोक प्रशासन में हमें ई-गवर्नेन्स, पारदर्शिता, गुणवत्ता, नागरिक चार्टर जैसे गुण दिखाई देते हैं।

7. राज्य एवं सरकार की भूमिका में कटौती

उदारीकरण का लोक-प्रशासन पर सातवाँ प्रभाव यह है कि आजादी के बाद हमारे देश में राज्य एवं सरकार की भूमिकाओं में अधिकाधिक वृद्धि हुई। योजनाबद्ध आर्थिक विकास के नाम पर आर्थिक गतिविधियों के नियमन संचालन एवं निर्देशन का काम सरकाराधीन हो गया। इसके साथ ही सरकार अपना आकार, बढ़ाती है। उदारीकरण के परिणामस्वरूप राज्य एवं सरकार के द्वारा होने वाले विभिन्न कार्य निजी क्षेत्रों के लिए खोल दिये गये हैं। राज्य सरकार का उत्तरदायित्व कम होने लगा है। उनका स्थान गैर सरकारी संगठन एवं समुदाय आधारित संगठन व बाजार के आकार के रूप में हुआ है। राज्य की भूमिका का दोबारा निर्धारण किया जा रहा है। नव उद्भुत बातों पर ध्यान दिया जा रहा है। विकेन्द्रीकरण व नौकरशाहीकरण व बाजार तन्त्र की स्थापना। इसके परिणामस्वरूप वर्तमान में राज्य सरकार का स्वरूप छोटा होता जा रहा है।

8. नवीन लोक प्रबन्ध प्रतिमान

उदारीकरण का लोक प्रशासन पर आठवाँ प्रभाव यह है कि वर्तमान समय में लोक प्रशासन में नवीन विचार को लोक प्रतिमान के नाम से पुकारा में जाता है। यह प्रतिमान सार्वजनिक क्षेत्र में लोक प्रबन्धकों की इस भूमि पर विशेष ध्यान देता है। कि उन्हें जनता हेतु उच्च स्तरी सेवायें दी जाये। यह सेवा लचीलापन तथा शासन का पुनर्मुखीकरण परिवर्तित माहौल में सार्वजनिक क्षेत्र में प्रबन्धकों को सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमी में रूपान्तरित किया जाने लगा है। आधुनिक में बाजारन्मुखी लोक प्रशासन एवं उद्यमी अभिशासन की अवधारणाओं को व्यवहार में प्रयोग करने की दिशा में कदम बढ़ा रही हैं।

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