राजनीति विज्ञान / Political Science

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार | Aristotle’s Views on Revolution in Hindi

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार
अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार

अरस्तू के क्रान्ति सम्बन्धी विचार (Aristotle’s Views on Revolution in Hindi)

राज्यों में प्रचलित शासन प्रणालियों में प्रायः क्रान्ति द्वारा परिवर्तन होते रहते हैं। अरस्तू के जीवनकाल में यूनान में भी बहुत अधिक क्रान्तियाँ हुई जिनका प्रभाव उस पर भी पड़ा और उसने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘पॉलिटिक्स’ में क्रान्ति का विशुद्ध विवेचन किया है। इसमें अरस्तू ने क्रान्ति का अर्थ तथा उसके प्रकारों का वर्णन तक किया ही है, इसके पाँचवें भाग में क्रान्ति के कारणों और उपायों का वर्णन भी किया है।

अरस्तू ने ‘पॉलिटिक्स’ में क्रान्ति के जो कारण बताये हैं, उन्हें निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) मूल कारण

अरस्तू क्रान्ति का मूल कारण विषमता को मानता है। उसके अनुसार क्रान्ति समानता की भावना के कारण होती है। उसका मत है कि सभी मनुष्य इस बात से तो प्रायः सहमत हो जाते हैं कि निरपेक्ष न्याय योग्यता के आधार पर ही होना चाहिए, किन्तु व्यवहार में वे योग्यता के प्रश्न पर असहमत हो जाते हैं। वे सोचते हैं कि जब मनुष्य की दृष्टि से सभी समान हैं, तो फिर अधिकारों, धन-सम्पत्ति आदि में भी किसी प्रकार की विषमता नहीं होनी चाहिए और जब वह देखता है कि उसे अन्य वर्ग से कम अधिकार प्राप्त हैं तक उसमें असन्तोष उत्पन्न होता है और वह क्रान्ति का कारण बनता है।

दूसरी ओर व्यक्ति यह मानते हैं कि यदि कोई वर्ग किसी एक बात में उच्च है तो अन्य कुछ बातों में भी असमान होने चाहिए। इन दोनों विचारधाराओं में संघर्ष ही क्रान्ति का कारण होता है अरस्तू के अनुसार, “कुछ मनुष्य ऐसे होते हैं, जिनके हृदय समानता की भावना से ओत-प्रोत होते हैं, वे यह जानते हुए विद्रोह खड़ा करते हैं कि यद्यपि वे उन लोगों के समान हैं जो उनसे कहीं अधिक धन-सम्पत्ति पाये हुए हैं, तथापि उनके स्वयं अन्य लोगों से कम सुविधाएँ प्राप्त हैं। दूसरे कुछ विद्रोह करने वाले ये लोग होते हैं, जिनका हृदय असमानता की भावना से भरा होता है, क्योंकि वे समझते हैं कि यद्यपि वे अन्य मनुष्य से बढ़कर हैं, तथापि उन्हें अन्य लोगों की उपेक्षा अधिक कुछ नहीं मिलता। इस प्रकार छोटे व्यक्ति बराबर होने के लिए विद्रोही बना करते हैं और बराबर स्थिति वाले बड़े बनने के लिए। यही वह मनोदशा है जिससे क्रान्तियों की उत्पत्ति होती है।” जब-जब जनता का कोई भाग यह अनुभव करता है कि उसके साथ अन्मय हो रहा है, तब-तब क्रान्ति होती है।

(ii) सामान्य कारण

अरस्तू के अनुसार क्रान्ति के सामान्य कारण इस प्रकार हैं-

1. शासकों की धृष्टता तथा लाभ की लालसा- जब शासक वर्ग धृष्यतावश जनहित की चिन्ता नहीं करता या सार्वजनिक हित की उपेक्षा करके स्वयं के लाभ में लग जाते हैं, तब शासक या शासन प्रणाली के विरुद्ध जनता विद्रोह करती है, जिसका उग्र रूप क्रान्ति है।

2. सम्मान की लालसा – सभी मनुष्यों को सम्मान पाने की लालसा रहती है। किन्तु जब – शासक किसी व्यक्ति को अनुचित रूप से सम्मानित या अपमानित करता है तो जनता विद्रोह कर देती है।

3. श्रेष्ठता का होना- जब किसी राज्य में कोई व्यक्ति या समूह अधिक उत्कृष्ट या शक्तिशाली हो जाता है, तो वह सत्ता हथिया लेता है किन्तु कालान्तर में उसकी अकर्त्तव्यनिष्ठा के प्रकट होने पर क्रान्ति हो जाती है।

4. भय–अरस्तू के अनुसार भय दो प्रकार से व्यक्तियों को क्रान्ति करने के लिए बाध्य करता है—(1) अपराध करने वाले व्यक्ति दण्ड से बचने के लिए विद्रोह कर देते हैं। (2) कभी-कभी यह भय कि अन्य दल या वर्ग द्वारा क्रान्ति न हो जाए, दूसरे वर्ग को क्रान्ति के लिए प्रेरित करता है। अविश्वास भय को जन्म देता है और भय क्रान्ति को ।

5. घृणा और विरोधी विचारधाराएँ- जब धनिक वर्ग के लोग दा में होते हैं और वे बहुसंख्यक अधिकारहीन दरिद्र जनता का तिरस्कार करता है, तब जनता में शासकों के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है, जो क्रान्ति कारण होती है। इसी प्रकार जनतान्त्रिक विचारधारा के लोगों के सत्ताहीन होने पर क्रान्ति तब होती है, जब शक्तिशाली व्यक्तियों को राष्ट्र में फैली अराजकता व अव्यवस्था के प्रति घृणा उत्पन्न हो जाती है।

6. राज्य के किसी अंग की अनुपात से अधिक वृद्धि– राज्य के किसी अंग प्रदेश, वर्ग आदि में विशेष वृद्धि होती है तो दूसरे वर्ग या प्रदेश के लोगों का चिन्तित होना स्वाभाविक है। इससे इनमें द्वेष की भावना उत्पन्न होती है जो क्रान्ति को जन्म देती है। निर्धनों की संख्या में असाधारण वृद्धि के कारण वे अभाव और असन्तोष से ग्रसित होकर सत्तारूढ़ दल के विरुद्ध क्रान्ति कर देते हैं।

7. निर्वाचन सम्बन्धी षड्यन्त्र- निर्वाचन सम्बन्धी षड्यन्त्र को समाप्त करने के लिए किसी विशेष निर्वाचन प्रणाली को बदल दिया जाता है। यह भी क्रान्ति ही है।

8. शासक वर्ग की असावधानी- कभी-कभी शासक वर्ग की अज्ञानता व असावधानी कारण कुछ राजद्रोहियों को भी महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त कर दिया जाता है, जो मौका पाकर क्रान्ति कर देते हैं।

9. अल्प परिवर्तनों की उपेक्षा-प्रकृति परिवर्तनशील है, यदि इन परिवर्तनों के अनुसार ही व्यवस्था में परिवर्तन नहीं कर लिए जाते हैं तो छोटी-सी बात भी विकराल रूप धारण करके क्रान्ति को जन्म दे सकती है।

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