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मैक्स वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत | मैक्स वेबर के नौकरशाही उपागम

मैक्स वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत
मैक्स वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत

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मैक्स वेबर के नौकरशाही के सिद्धांत

नौकरशाही शब्द वेबर के साथ अभिन्न रूप से जुड़ा हुआ है, किन्तु उसका प्रयोग अर्वाचीन है। प्रारम्भ में 18वीं शताब्दी में इस शब्द का प्रयोग फ्रेंच सरकार के अधिकारियों की डेस्कों को ढकने वाले कपड़े के लिए किया जाता था। बाद में जहां-जहां सरकार में निरंकुशता, संकुचित दृष्टिकोण तथा सरकारी अधिकारियों की स्वेच्छाचारिता दिखाई पड़ी, वहीं उसे ‘नौकरशाही’ कहा जाने लगा। धीरे-धीरे इसका भावार्थ नियमों का कठोर पालन, अनुत्तरदायित्व, जटिल प्रक्रियाओं तथा निहित स्वार्थों से लिया जाने लगा। द्वितीय महायुद्ध के बाद इसे ‘पार्किन्सन कानून की प्रतिमूर्ति मान लिया गया जिसका संकेत नौकरशाही द्वारा सत्ता साम्राज्य निर्माण, साधनों का अपव्यय, उदासीनता, आत्म प्रसार, आदि दुष्प्रभावपूर्ण प्रवृत्तियों से था।

आधुनिक विचारकों में मैक्स वेबर सर्वप्रमुख समाजशास्त्री हैं जिनके नौकरशाही सम्बन्धी विचार महत्वपूर्ण माने जाते हैं। वेबर का नौकरशाही सिद्धान्त प्रभुत्व के सिद्धान्त का ही एक अंग है।

वेबर ने नौकरशाही तथा उससे सम्बन्धित अन्य संरचनाओं जैसे, सत्ता, औचित्यपूर्ण या वैधानिकता, वर्ग आदि का अध्ययन किया है। उसकी विश्लेषणात्मक विषय परिधि व्यापक है। इसलिए वह समाज, विशेषतः पश्चिमी समाज (मूलतः प्रशिया का राजतन्त्र), के प्रमुख तत्वों का विश्लेषण प्रस्तुत करता है। उनके अनुसार समाज के संगठन के मूल में शक्ति और प्रभुत्व (डोमिनेशन) है। मूल्य सहभागिता के कारण ये सत्ता नेतृत्व और औचित्यपूर्ण बन जाते हैं।

वेबर के अनुसार प्रभुत्व का अर्थ है नियन्त्रण की अधिकारिता शक्ति। दूसरे शब्दों में कहें तो वेबर ने यह प्रश्न उठाया कि कैसे एक व्यक्ति दूसरों पर अपना प्रभुत्व जमाता है और इसी के उत्तर में यह भी कहा कि प्रभुत्व का उपयोग यदि किसी भी तरह न्यायसंगत तथा वैध हो, तो वह स्वीकार्य हो जाता है। एक तरह से देखें तो एक प्रकार की वैधता से किसी विशिष्ट प्रकार का प्रभुत्व होता है और दूसरी तरह की वैधता से एक अन्य प्रकार का। अतः वेबर ने प्रभुत्व के कुल तीन प्रकार माने: (i) पारम्परिक प्रभुत्व, (ii) श्रद्धा पर आधारित प्रभुत्व, तथा (iii) वैधानिक या कानूनी प्रभुत्व। नौकरशाही इनमें से अन्तिम श्रेणी में आती है।

वेबर ने इस बात पर बल दिया कि किसी संगठन (राज) के उद्देश्यों की उचित प्राप्ति के लिए नौकरशाही अनिवार्य है। संस्थाओं के उद्देश्य भिन्न हो सकते हैं, परन्तु उनके नौकरशाही तन्त्र की विशेषताएं एक-सी होती हैं। किन्तु वेबर ने किसी आनुभविक नौकरशाही का विश्लेषण न करके केवल एक ‘आदर्श प्रकार’ के रूप में अध्ययन किया। कानूनी सत्ता का विशुद्ध प्रकार नौकरशाही के प्रशासनिक कर्मचारी वर्ग को नियुक्त करता है। उस संगठन का सर्वोच्च अध्ययन निर्वाचन के आधार पर नियुक्त होता है। उसकी सत्ता का आधार कानूनी सक्षमता होता है। वेबर के अनुसार नौकरशाही की निम्नलिखित विशेषताएं हैं-

1. संगठन के कार्य को कर्मचारियों में इस प्रकार विभाजित कर दिया जाता है कि प्रत्येक कर्मचारी को कार्य का कोई विशेष भाग पूरा करना होता है। इस पद्धति में वह एक ही कार्य को बार-बार करते हुए उस कार्य में कुशल हो जाता है।

2. प्रत्येक नौकरशाही तन्त्र में प्रशासन की एक श्रृंखला या पद क्रम की परम्परा होती है। जिससे अधीनस्थ कर्मचारी उच्चस्तरीय कर्मचारियों की देख-रेख में रहते हैं।

3. आधुनिक कार्यालयों की प्रबन्ध व्यवस्था लिखित दस्तावेजों तथा फाइलों पर ही आधारित है।

4. कर्मचारियों का चयन उनकी तकनीकी योग्यताओं के आधार पर किया जाता है।

5. नौकरशाही के सदस्य के रूप में रोजगार को प्रत्येक व्यक्ति अपनी आजीविका बना लेता है।

6. इस तन्त्र में कर्मचारियों को निश्चित वेतन के रूप में पारिश्रामिक दिया जाता है।

7. इस तन्त्र में प्रबन्ध व्यवस्था द्वारा निर्धारित कुछ नियम होते हैं जिनका सभी कर्मचारियों तथा अनुयायियों को पता होता है।

8. कर्मचारियों से यह अपेक्षा की जाती है कि व्यक्तिगत पसन्द और नापसन्दगी से बाधित हुए बिना ही अपने कर्त्तव्य का निर्वाह करें।

9. नौकरशाही संगठन एक अत्यन्त कार्यकुशल संगठन है। नौकरशाही ठीक वैसे ही अधिक कार्यकुशल आधुनिक संगठनों में, उसके कार्यों को, लक्ष्य प्राप्ति के लिए, श्रम विभाजन के सिद्धान्तानुसार विभाजित एवं वितरित कर दिया जाता है। इससे उच्च मात्रा में विशेषीकरण सम्भव हो जाता है। पदों को एक सोपानबद्ध सत्ता संरचना के रूप में संगठित करने के कारण उसका आकार एक ‘पिरैमिड’ का हो जाता है। प्रत्येक वरिष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थ के निर्णयों एवं कार्यों के लिए उत्तरदायी होता है। औपचारिक रूप से बनाए गए नियमों और विनियमों के द्वारा उन निर्णयों एवं कार्यों को अधिशासित किया जाता है। इसमें उनमें तथा सत्ता संरचना में एकरूपता आ जाती है जिससे प्रशासन की विभिन्न गतिविधियों में समन्वय स्थापित हो जाता है। इन नियमों से कार्मिक वर्ग के सदस्यों के परिवर्तित होते रहने पर भी उनके संचालन में निरन्तरता एवं स्थायित्व बना रहता है। एक विशेष प्रशासनिक वर्ग संगठन में संचार मार्ग को प्रवाही बनाए रखता है। वह संगठन की पत्रावलियों तथा लिखित अभिलेखों, जिसमें सरकारी निर्णय एवं कार्यों का उल्लेख होता है, के लिए उत्तरदायी होता है।

वेबर के शब्दों में, “सभी विशेषताएं मिलकर संगठन को ‘उच्चतम मात्रा में कुशलता प्राप्त करने में सक्षम बना देती है। सिद्धान्ततः यह ‘आदर्श प्रकार’ विभिन्न क्षेत्र में सभी प्रकार के संगठनों के लिए लागू होता है चाहे वह निजी हो या सरकारी नौकरशाही सत्ता अपने विशुद्ध रूप में वहां लागू होती है, जहां प्रशासन में अधिकाधिक बौद्धिकता को आधार बनाया गया हो। नौकरशाही की बुराई कितनी ही क्यों न की जाए, सरकारी कार्यालयों में बैठे कर्मचारियों के बिना प्रशासनिक कार्यों को निरन्तर एवं प्रभावशाली ढंग से नहीं कराया जा सकता। नौकरशाही प्रशासन का मूलभूत आधार ही ज्ञान पर आश्रित नियन्त्रण का प्रयोग है। यही विशेषता उसे बौद्धिक बना देती है। इस बौद्धिकता के कारण उसे असाधारण शक्ति प्राप्त हो जाती है।

वेबर के शब्दों में, “शासन व्यवस्था (संगठन) चाहे पूंजीवादी हो अथवा समाजवादी यदि तकनीकी कुशलता पर आश्रित वृहद प्रशासनिक कार्य करने हों तो विशेषीकरण नौकरशाही के बिना कोई चारा नहीं है।”

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