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श्रम-विभाजन का महत्व (प्रकार्य) | श्रम-विभाजन से हानियां

श्रम-विभाजन का महत्व
श्रम-विभाजन का महत्व

श्रम-विभाजन का महत्व (प्रकार्य)

1. उत्पादन एवं उसके गुणों में वृद्धि (Improvement in Production and its Quality ) — श्रम विभाजन का सर्वाधिक महत्व उत्पादन एवं उसके गुणों में वृद्धि करना है। श्रम-विभाजन में एक व्यक्ति सम्पूर्ण उत्पादन की प्रक्रिया का कोई एक ही भाग सम्पन्न करता है। एक ही कार्य को लम्बे समय तक करने के कारण व्यक्ति को उस कार्य में दक्षता प्राप्त हो जाती है। अतः उस कार्य को वह तीव्र गति से कम समय में एवं सरलता से सम्पन्न कर लेता है। इससे उत्पादन तीव्र गति से होता है तथा वस्तु के गुणों में भी वृद्धि होती है।

2. विशेषीकरण का विकास ( Development of Specialization ) – श्रम विभाजन विशेषीकरण को जन्म देता है। श्रम-विभाजन में एक व्यक्ति एक ही कार्य को अधि समय तक सम्पन्न करता है, फलस्वरूप उस व्यक्ति को उस कार्य के सम्बन्ध में दक्षता एवं विशेषज्ञता प्राप्त हो जाती है। उस कार्य से सम्बन्धित व्यक्ति के ज्ञान और कुशलता में वृद्धि हो जाती है और वह उस कार्य का विशेषज्ञ हो जाता है। विशेषज्ञता के कारण कार्य को सरलता से एवं तीव्र गति से सम्पन्न किया जा सकता है।

3. कार्य की सरलता (Simplicity of Work ) – श्रम विभाजन में कार्यों का विभाजन कर दिया जाता है अथवा उत्पादन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को छोटे-छोटे भागों में बांट दिया जाता है जिसके फलस्वरूप विशेषज्ञता पनपती है। धीरे-धीरे श्रमिक उस कार्य को करने में दक्ष हो जाते हैं और वह कार्य सरलता से सम्पन्न होने लगता है।

4. श्रमिकों की कुशलता में वृद्धि (imporvement in the Skill of labourers ) – श्रम-विभाजन के कारण श्रमिकों की दक्षता एवं कुशलता में भी वृद्धि होती है। श्रम-विभाजन में एक व्यक्ति उसी कार्य को करता है जिसमें उसकी रुचि होती हैं और जिसे वह दक्षतापूर्वक कर सकता है फलस्वरूप वह उस कार्य को उत्तम ढंग से सम्पन्न करता है। व्यक्ति की ज्ञानेन्द्रियां व कमेन्द्रियां भी उस कार्य में दक्ष हो जाती हैं।

5. समय धन एवं साधनों की बचत (Saving of Money Time and (Means )- श्रम विभाजन के कारण समय धन एवं साधनों की बचत होती है। श्रम विभाजन में व्यक्ति एक ही कार्य को सम्पन्न करने के कारण उस कार्य को दक्षता से कम समय में कर लेता है। एक ही कार्य से सम्बन्धित औजार एवं मशीनें एक ही स्थान पर होने से औजारों के उठाने व रखने में अधिक समय नहीं लगता और न ही व्यक्ति को कार्य के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना होता है। इससे समय की बचत होती है। समय की बचत से धन की बचत होती है। श्रम-विभाजन के कारण दक्षता व कुशलता से कार्य सम्पन्न किया जाता है जिससे धन व साधनों का दुरुपयोग नहीं हो पाता और कम खर्च में ही अधिक उत्पादन सम्भव हो जाता है।

6. आविष्कारों में वृद्धि ( Increase of Inventions)- श्रम विभाजन के दौरान व्यक्ति एक ही कार्य को करता है। उस कार्य को शीघ्र सम्पन्न करने के लिए वह इस प्रकार के उपाय ढूँढ़ निकालता है जिससे कि कार्य में दक्षता व कुशलता आ सके। अतः नये-नये साधनों एवं उपकरणों को ढूंढ़ा जाता है जिसके फलस्वरूप नये नये आविष्कार अस्तित्व में आते हैं।

7. विभेदीकरण एवं स्तरीकरण का आधार ( Basis of Differentation & Stratification )- सभी समाजों में हमें विभेदीकरण एवं स्तरीकरण की व्यवस्था देखने को मिलती है। विभेदीकरण व स्तरीकरण के कई आधार हैं। उनमें से श्रम विभाजन भी एक प्रमुख आधार है। सामान्यतः आयु रंग, लिंग, वंश, गोत्र एवं धर्म आदि के आधार पर सभी समाजों में विभेदीकरण पाया जाता है। ये सभी ऐसे आधार हैं जो व्यक्ति के गुण के स्थान पर उसके जन्म को अधिक महत्व देते हैं किन्तु वर्तमान युग में जन्म के स्थान पर व्यक्ति के गुणों का महत्व देते हैं किन्तु वर्तमान युग में जन्म के स्थान पर व्यक्ति के गुणों का महत्व बढ़ा है। आधुनिक श्रम विभाजन व्यक्ति के गुणों पर ही आधारित है और व्यक्ति के गुणों को ही अधिक महत्व देता है।

8. श्रमिकों का मानसिक एवं सांस्कृतिक विकास ( Mental and Cultural Development of Labourers ) – आधुनिक समय में श्रम विभाजन औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषता है। उद्योगों में विभिन्न कार्यों को विभिन्न व्यक्तियों द्वारा सम्पन्न किया जाता है। उद्योगों में काम करने के लिए विभिन्न स्थानों से विभिन्न धर्म, जाति, प्रजाति, संस्कृति, भाषा, खान पान एवं रीति रिवाज से सम्बन्धित व्यक्ति एक स्थान पर एकत्रित होते हैं और परस्पर सम्पर्क में आते हैं। इससे वे एक-दूसरे की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों से परिचित होते हैं। इससे उनकी मानसिक संकीर्णता समाप्त होती है और मस्तिष्क विकसित होता है तथा समझ में वृद्धि होती है।

9. व्यक्ति की कुशलता का उचि मूल्यांकन (Proper Evaluation of Individual ) – श्रम-विभाजन में व्यक्ति को उसकी योग्यता, कुशलता, शिक्षा प्रशिक्षण एवं रुचि के आधार पर ही कार्य सौंपा जाता है। यदि श्रम विभाजन न हो तो व्यक्ति को ऐसा कार्य भी करना पड़ सकता है जिसमें उसकी रुचि न हो अथवा वह जिसके योग्य न हो, तब कार्य में न तो निपुणता आ पायेगी और न ही वह सरलता से शीघ्र ही सम्पन्न होगा। इससे श्रम शक्ति का अपव्यय होता है या बेकार पड़ी रहती है।

10. सामाजिक एकता (Social Integration ) — श्रम-विभाजन सामाजिक एकता का भी प्रमुख आधार है। श्रम विभाजन में विभिन्न व्यक्तियों को विभिन्न कार्य सौंपे जाते हैं। एक व्यक्ति एक ही कार्य को सम्पन्न कर सकता है, अतः अन्य कार्यों के लिए उसे दूसरे व्यक्तियों पर निर्भर रहना पड़ता है। इससे पारस्परिक निर्भरता, सहयोग एवं एकता में वृद्धि होती है। उत्पादन की सम्पूर्ण प्रक्रिया सभी लोगों के सहयोग से ही सम्पन्न हो जाती है। इससे समाज में संगठन की भावना पनपती है।

प्रक्रिया है। उपर्युक्त विवरण से स्पष्ट है कि श्रम विभाजन सामाजिक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण

श्रम-विभाजन से हानियां ( Disadvantages of Division of Labour)

श्रम विभाजन के जहां एक ओर अनेक लाभ हैं वहीं दूसरी ओर यह समाज में अनेक कमियों व दोषों के लिए भी उत्तरदायी है। श्रम-विभाजन के विभिन्न दुष्यपरिणाम या हानियां इस प्रकार है।

1. श्रमिकों की कुशलता व गतिशीलता में बाधक (Hindrance to the Skill and Mobility of Labourers)– श्रम विभाजन का एक प्रमुख दोष यह है कि यह कभी-कभी श्रमिकों की कुशलता व गतिशीलता में बाधक बन जाता है। श्रम-विभाजन में श्रमिक के सम्पूर्ण उत्पादन के किसी एक भाग से सम्बन्धित होने से वह दूसरे कार्यों से अपरिचित ही रहता है। अतः यदि वह अपना व्यवसाय बदलना चाहता है तो उसके सामने यह समस्या आती
है कि वह नये कार्य को कैसे करे क्योंकि वह अन्य कार्यों तो प्रशिक्षित होता है और न अनुभवी ही ।

2. बेरोजगारी ( Unemployment)- आधुनिक श्रम विभाजन में मशीनों का अधिकाधिक प्रयोग होने लगा है। जिस कार्य को पूर्ण करने में 40-45 व्यक्तियों की जरूरत होती है, मशीन से वह 4-5 व्यक्तियों की सहायता से ही कर लिया जाता है। इससे श्रमिक बेकार हो जाते हैं और देश में बेकारी व गरीबी फैलती है।

3. कार्य की नीरसता (Monotony of Work) — श्रम विभाजन में एक व्यक्ति को एक ही कार्य सौंपा जाता है जिसे वह प्रतिदिन करता है। वर्षों तक एक ही कार्य करने से व्यक्ति में उस कार्य के प्रति अरुचि पैदा हो जाती है और उसे सारा निर्माण कार्य नीरस लगने लगता है। इस नीरसता के कारण वह जीवन में ऊब और थकान महसूस करने लगता है।

4. उत्तरदायित्व की भावना में कमी (Lack of Sense of Responsibility) श्रम-विभाजन में व्यक्ति को सम्पूर्ण उत्पादन के केवल किसी एक अंश को ही सम्पन्न करना होता है। अतः यदि उत्पादन में किसी प्रकार की कमी है तो उसके लिए किसी एक को उत्तरदायी नहीं ठहराया जा सकता।

5. सन्तोष का अभाव (Lack of Satisfcation ) — चूँकि श्रम-विभाजन में उत्पादन की प्रक्रिया छोटे-छोटे भागों में विभक्त होती है और व्यक्ति को सम्पूर्ण उत्पादन का एक भाग ही सम्पन्न करना होता है। अतः वस्तु के निर्माण के बाद व्यक्ति को वह आनन्द प्राप्त नहीं होता जो उसे सम्पूर्ण उत्पादन स्वयं के द्वारा ही करने पर होता है। इससे मानसिक असन्तोष पैदा होता है।

6. श्रमिकों का शोषण ( Exploitation of Labourers ) — श्रम विभाजन आधुनिक औद्योगीकरण की प्रमुख विशेषता है। औद्योगीकरण ने ही आधुनिक पूंजीवादी व्यवस्था को जन्म दिया है। पूंजीवादी व्यवस्था में पूंजीपति श्रमिकों का शोषण करते हैं और उनके द्वारा निर्मित वस्तुओं से लाभ का अधिकांश भाग स्वयं हड़प जाते हैं। यही कारण है कि इस व्यवस्था में श्रमिक अधिक गरीब व पूंजीपति अधिक पूंजीपति होता चला जाता है।

7. वर्ग संघर्ष ( Class Conflict ) – आधुनिक समय में श्रम विभाजन ने वर्ग संघर्ष को जन्म दिया है। श्रम-विभाजन के कारण मालिक एवं मजदूर दो पृथक वर्ग बन जाते हैं। उनमें एक-दूसरे से प्रत्यक्ष सम्पर्क नहीं रह पाता। वे एक-दूसरे के कष्टों को नहीं समझ पाते और अपने हितों की पूर्ति को ही सर्वोच्च प्राथमिकता देते हैं। इससे दोनों वर्गों में टकराव पैदा होता है, तोड़-फोड़ घेराव, हड़ताल, तालाबन्दी एवं आगजनी की घटनाएं होती हैं और संघर्ष उग्र हो जाता है।

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