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विद्यालय अनुशासन के नकारात्मक व सकारात्मक साधन से आप क्या समझते हैं?

विद्यालय अनुशासन के नकारात्मक व सकारात्मक साधन से आप क्या समझते हैं?
विद्यालय अनुशासन के नकारात्मक व सकारात्मक साधन से आप क्या समझते हैं?

विद्यालय में अनुशासन बनाये रखने के उपायों का उल्लेख कीजिए। अथवा विद्यालय अनुशासन के नकारात्मक व सकारात्मक साधन से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए।

विद्यालय में अनुशासन बनाये रखने के दो तरह के साधन हैं- 

  1. सकारात्मक साधन

  2. नकारात्मक साधन

अनुक्रम (Contents)

(1) सकारात्मक साधन

(1) छात्रों का स्वशासन- विद्यालय प्रशासन में छात्र का सक्रिय योगदान अनुशासन की समस्या को कुछ दैनिक कार्यों का उत्तरदायित्व छात्रों पर डाल दिया जाये। जैसे—विद्यालय की सफाई, रख-रखाव, छात्रों का समय से विद्यालय में आना, पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं का आयोजन आदि। तो छात्र स्वयं अनुशासित हो जायेगा। इन कार्यों के सम्पादन के लिए वे स्वयं नियम बनायेंगे और तब उन नियमों के पालन की आवश्यकता को समझें, तब अनुशासन थोपा नहीं जायेगा, स्वैच्छिक होगा।

(2) विद्यालय के नियम, परम्पराएँ व वातावरण– यदि विद्यालय के नियम छात्रों के लिए हैं तो यह छात्रों का बताया जाना चाहिए। विद्यालय में स्वस्थ परम्पराएँ भी बलक को अनुशासन का महत्त्व बताती हैं। यदि विद्यालय का वातावरण अच्छा है तो वे अनुशासन की समस्या हो ही नहीं सकती है। यदि विद्यालय में अध्यापकों व प्रधानाध्यापकों में आपस में ठनी हो, तो छात्र वही सीखेगा, यदि वे एक-दूसरे का सम्मान करते हैं तो छात्र भी वही सीखेगा।

(3) परस्पर समस्या- विद्यालय में क्रिया-कलाप किसी एक व्यक्ति के द्वारा पूरे नहीं किये जा सकते हैं। प्रधानाध्यापक बिना अध्यापक, छात्र-अभिभावक व समाज के सहयोग से अपनी जिम्मेदारियां पूरी नहीं कर सकता है।

(4) पाठ्य-सहगामी क्रियाओं का आयोजन- इन क्रियाओं के गठन से छात्र की Surplus Energy जो किशोरावस्था में सभी छात्रों में होती है, को उचित रूप से काम में लाया जा सकता है जिससे छात्र की ऊर्जा सृजानात्मक कार्य में लगे, विध्वंसात्मक में नहीं। इन गतिविधियों में भाग लेने से छात्रों में अच्छे नागरिक के अनेक गुणों का विकास होता है।

(5) नैतिक शिक्षा की व्यवस्था- हमारे देश में चारित्रिक पतन का कारण ही नैतिक शिक्षा का अभाव है। नैतिक शिक्षा अनुशासन बनाये रखने में बहुत महत्त्वपूर्ण है। उच्च आदर्शों में विश्वास व उनके अनुकरण की प्रवृत्ति का बालकों में विकास किया जाना जरूरी है। पर नैतिक शिक्षा विद्यालय में एक विषय के रूप में ही नहीं पढ़ाई जाये। इसका प्रभाव कम होता है। यदि अपने व्यवहार से अध्यापक, प्रधानाध्यापक आदि छात्रों के सम्मुख प्रस्तुत करें तो छात्र उनका अनुकरण अधिक सरलता से कर लेते हैं। छात्र के मन में अपने अध्यापक का चरित्र आदर्श चरित्र होता है। उसका प्रभाव उनके मन पर अन्य बातों से ज्यादा पड़ता है।

(2) नकारात्मक साधन

दण्ड अनुशासन का नकारात्मक साधन है। नकारात्मक साधन छात्रों को इस बात की प्रेरणा देने के बजाय कि कोई कार्य अच्छे ढंग से किया जाय इस बात पर बल देता है कि कोई भी कार्य ऐसा न किया जाये जिससे दण्ड मिले। यह कार्य करने के स्थान पर कार्य न करने की प्रेरणा देता है। शिक्षा के क्षेत्र में यह एक अच्छा साधन नहीं माना जाता है। फिर भी इसका प्रयोग किया जाता है। दण्ड शारीरिक या मानसिक पीड़ा देकर छात्र को यह अनुभव कराता है कि नियमों का मानना इस पीड़ा से दूर रहने के लिए आवश्क है। सभी शिक्षाविदों ने दण्ड को एक आवश्यक बुराई माना है। P.C. Wren ने कहा हैं—“दण्ड एक बुराई है और त्यागने योग्य है। इसी प्रकार से एक डाक्टर का चाकू होता है, परन्तु आवश्कता दोनों की ही पड़ती है।”

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