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विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999, प्रमुख प्रावधान एवं उद्देश्य

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999
विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999

विदेशी विनिमय प्रबंधन अधिनियम (फेमा) 1999-FEMA in Hindi

विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम (FEMA) – हैबरलर के मतानुसार विनिमय नियमन से आशय उन राजकीय नियमों से है जिसका उद्देश्य विदेशी विनिमय बाजार में आर्थिक शक्तियों की स्वतन्त्र क्रियाशीलता को प्रतिबन्धित करना है। भारत में रिजर्व बैंक द्वारा विदेशी विनिमय व्यवहारों पर नियन्त्रण केन्द्रीय सरकार द्वारा बनाये गये नियमों के अन्तर्गत किया जाता है जिसके लिए भारत सरकार ने विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम, 1973 (FERA) पारित किया जो जनवरी 1974 से सम्पूर्ण भारत में (जम्मू-कश्मीर को छोड़कर) लागू किया गया। यह अधिनियम विदेश में रहे भारतीय नागरिकों तथा भारतीय कम्पनियों की विदेशी शाखाओं व एजेन्सियों पर लागू होता है। वर्ष 1991 की उदारीकरण की लहर के कारण वैश्वीकरण व उदारीकरण के बढ़ते हुए प्रभावों से विदेशी विनिमय नियमन अधिनियम में और अधिक उदार संशोधनों को माँग की जाने लगी। अन्ततः सरकार को विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम, 1999 (FEMA) पारित करना पड़ा जो 1 जनवरी 2000 को लागू किया गया।

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विदेशी विनिमय प्रबन्ध अधिनियम के प्रावधान (Provisions )

(1) चालू खाता तथा पूँजी खाता लेनदेन- धारा 5 के अनुसार, यदि लेनदेन चालू खाते से सम्बन्धित है तो कोई भी व्यक्ति किसी अधिकृत व्यक्ति से विनिमय सम्बन्धी लेनदेन कर सकता है, परन्तु केन्द्र सरकार को यह अधिकार होंगे कि यदि वह उचित समझे तो इस प्रकार के लेनदेनों पर प्रतिबन्ध लगा सकती है। धारा 6(1) में यह व्यवस्था की गयी है कि कोई भी व्यक्ति किसी भी अधिकृत व्यक्ति से उपधारा 2 की सीमाओं के अन्तर्गत पूँजी खाते पर विदेशी विनिमय का लेनदेन कर सकता है। उपधारा 2 के अनुसार, रिजर्व बैंक केन्द्र सरकार की सलाह पर पूँजी खाते पर ऐसे लेनदेन का विशिष्ट उल्लेख कर सकता है जिनकी इजाजत है तथा इस लेनदेन में अधिकतम विदेशी विनिमय की सीमा निर्धारित कर सकता है। धारा 6 की उपधारा 4 में यह व्यवस्था की गयी है कि कोई भी भारतीय, विदेशों में विदेशी मुद्रा, विदेशी प्रतिभूतियाँ या कोई भी अचल सम्पत्ति अपने पास रख सकता है यदि विदेश में रहते हुए उसने इसे खरीदी है। इसी धारा की उपधारा 5 में यह व्यवस्था है कि कोई भी विदेशी भारत में भारतीय मुद्रा, प्रतिभूतियाँ, सम्पत्ति रख सकता है यदि उसने इसे अपने भारत निवास के दौरान क्रय की है।

(2) विदेशी मुद्रा की प्राप्ति- इस अधिनियम की धारा 8 में यह प्रावधान है कि यदि किसी भारतीय को किसी भी स्त्रोत से विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है तो उसे रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित समयावधि में और रिजर्व बैंक द्वारा निर्धारित रूप में भारत में उस विदेशी मुद्रा को लाने के लिए उचित कदम उठाने होंगे।

(3) अधिनियम का उल्लंघन- इस अधिनियम के अध्याय (iv) में अधिनियम के उल्लंघन से सम्बन्धित व्यवस्था की गयी है कि यदि कोई भी इस अधिनियम का उल्लंघन करे तो उल्लंघन की सीमा के तीन गुना अधिक तक जुर्माना किया जा सकता है और यदि उल्लंघन की सीमा निर्धारित करना सम्भव न हो तो यह जुर्माना तीन लाख रुपये तक हो सकता है और यदि जुर्माने के बाद भी व्यक्ति उल्लंघन जारी रखता है तो निर्धारित तिथि के बाद से प्रत्येक दिन 5000 रु. की दर से अतिरिक्त जुर्माना लगाया जा सकता है। धारा 14 के अनुसार 90 दिन के अन्दर जुर्माना जमा न करने पर दोषी व्यक्ति को हिरासत में लिया जा सकता है।

(4) निर्णय और अपील- अधिनियम का अध्याय (v) न्याय निर्णय तथा अपील से सम्बन्धित है। धारा 16 के अनुसार अभियुक्त व्यक्ति को अपनी सफाई देने का उचित मौका देने के बाद केन्द्रीय सरकार जाँच पड़ताल करने के लिए न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति कर सकती है। धारा 18 के अनुसार केन्द्रीय सरकार सुनवाई के लिए एक ट्रिब्यूनल की स्थापना कर सकती है।

उपरोक्त के अतिरिक्त अधिनियम के अंतिम अध्याय (vii) में धारा 39 से 49 तक की ) धाराओं को शामिल किया गया है जिनमें विदेशी विनिमय से जुड़े विविध मामलों की चर्चा हैं। FEMA 1999 की प्रस्तावना में यह कहा गया है कि यह अधिनियम विदेशी विनिमय से सम्बन्धित कानून को संघटित और संशोधित करे ताकि व्यापार का सरलीकरण हो तथा भारत का विदेशी विनिमय बाजार ठीक से चलता रहे तथा उसका व्यवस्थित विकास हो ।

फेमा की विशेषताएँ

फेमा की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-

(1) फेमा पूर्ववर्ती ‘फेरा’ की तुलना में अदि उदार अधिनियम है। कठोर प्रावधानों वाले फेरा को 1973 में ऐसे समय में लागू किया गया था जबकि देश में विदेशी मुद्रा की बहुत कमी थी।

(2) भारत में रह चुका कोई व्यक्ति भारत के बाहर का निवासी हो जाने पर भी उन शेयरों, प्रतिभूतियों एवं सम्पत्तियों को धारण कर सकेगा जो उसने भारत में प्रवास के दौरान धारण की थीं।

(3) ‘फेरा’ से अलग हटकर अन्य प्रमुख परिवर्तन जो ‘फेमा’ में किया गया है, वह यह है कि फेरा के तहत जहाँ सिद्ध करने का दायित्व आरोपी का था, वहीं फेमा के तहत यह दायित्व अब प्रवर्तन एजेंजी का होगा।

(4) फेमा के एक ‘सनसेट अनुच्छेद’ सम्मिलित किया गया है जिसमें फेरा के लम्बित प्रकरणों को दो वर्ष में समाप्त करने का उल्लेख है।

(5) इसके अन्तर्गत सरकार व रिजर्व बैंक को यह अधिकार दिया गया है कि वह दूसरे से परामर्श करके चालू खाते के लेन-देन पर समुचित प्रतिबिन्ध आरोपित कर सके। साथ ही पूँजी खाते के तहत लेन-देन के लिए विदेशी मुद्रा की निकासी की समुचित सीमा निर्धारित कर सके।

(6) फेरा के विपरीत इसमें सरकार को यह अधिकार है कि वह इस अधिनियम के किसी प्रावधान को कार्यान्वयन से रोक दे या आवश्यक समझे तो सम्पूर्ण अधिनियम को कार्यान्वयन से निलम्बित कर दे ।

विदेशी विनिमय का नियमन एवं प्रबन्ध अथवा फेमा के कार्य

विदेशी नियमन एवं प्रबन्ध के हेतु निम्नलिखित नियम बनाये गये हैं-

(1) विदेशी विनिमय आदि में लेन-देन करने पर प्रतिबन्ध

(2) विदेशी विनिमय आदि को रखने पर प्रतिबन्ध

(3) चालू खाता सौदे

(4) पूँजी खाता सौदे

(5) माल अथवा सेवा निर्यात

(6) विनिमय विनिमय को वसूली एवं वापसी

(7) कुछ मामलों में वसूली अथवा वापसी से छूट

फेरा के उद्देश्य (Objectives)

(1) भारत में विदेशी पूँजी की प्रविष्टि का नियमन करना ।

(2) भारत में विदेशियों के रोजगार का नियमन करना।

(3) विदेशी विनिमय के क्रय-विक्रय पर नियन्त्रण रखना ।

(4) विदेशी विनिमय दर में स्थिरता लाना।

(5) विदेशों से विदेशों को होने वाले भुगतानों का नियमन करना।

(6) भारत के विदेशी विनिमय बाजार को सुदृढ़ एवं विकसित करना ।

(7) भुगतान असन्तुलन को दूर करने में सहायता करना।

(8) भारत में पूँजी बहिर्गमन पर रोक लगाना।

(9) आर्थिक कार्यक्रमों के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति बनाये रखने में सहायता प्रदान करना।

(10) अनिवासी भारतीयों के भारत में रोजगार, व्यवसाय, विनियोजन, पेशा आदि का  नियमन करना।

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फेमा के उद्देश्य

(1) भारत में विदेशी पूँजी की प्रविष्टि का नियमन करना । (2) भारत में विदेशी रोजगार का नियमन करना । (3) विदेशी विनिमय के क्रय-1 -विक्रय पर नियन्त्रण करना। (4) विदेशी विनिमय दर में स्थिरता रखना। (5) भारत के विदेशी विनिमय बाजार को सुदृढ़ एवं विकसित बनाये रखना। (6) विदेशों से तथा विदेशों में होने वाले भुगतानों का नियमन करना। (7) भुगतान असन्तुलन को दूर करने में सहायता करना। (8) भारत में पूँजी के बहिर्गमन पर रोक लगाना। (9) आर्थिक कार्यक्रमों के लिए विदेशी मुद्रा की पूर्ति बनाये रखने में सहायता प्रदान करना। (10) अनिवासी भारतीय के भारत में रोजगार, व्यवसाय, विनियोजन, पेशा आदि का नियमन करना। (11) विदेशी बिलों में होने वाली हेराफेरी को रोकना।

1. देश के विनिमय संसाधनों का अनुरक्षण करना।

2. विदेशी व्यापार को प्रोत्साहन देना।

3. देश की आवश्यकताओं के अनुकूल विदेशी विनिमय में संशोधन सुझाना आदि।

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