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निर्देशन सेवाओं का संगठन | Organisation of Guidance Service in Hindi

निर्देशन सेवाओं का संगठन
निर्देशन सेवाओं का संगठन

अनुक्रम (Contents)

निर्देशन सेवाओं का संगठन (Organisation of Guidance Service)

विद्यालय में निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन की मूलभूत अवधारणा (Basic Concept of Organisation_of Guidance and Counselling Services in School)

विद्यालय में छात्रों के जीवन में उचित मार्गदर्शन प्रदान करने एवं उसके समस्त पक्षों के विकास हेतु निर्देशन अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होता है। अतः विद्यालय शिक्षा में निर्देशन व्यवस्था को सुव्यवस्थित ढंग से आयोजित कराता है। निर्देशन कार्यक्रम प्रायः विद्यालय की समस्त गतिविधियों का प्रमुख भाग होते हैं। इन निर्देशन सेवाओं को प्रदान करने एवं इनके संगठन में विद्यालय एवं उसके कर्मियों का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। शिक्षक का विशेष कार्य शिक्षण करना है परन्तु मात्र शिक्षण से शिक्षण प्रक्रिया को संचालित नहीं किया जा सकता है। शिक्षक को बालक के समायोजन एवं अधिगम सम्बन्धी ज्ञान होना आवश्यक है। इसके लिए अध्यापक को निर्देशन सेवाएँ को प्रदान करने हेतु निर्देशन सेवा संगठन के समस्त पक्षों से अवगत होना चाहिए। इसकी सहायता से अध्यापक छात्रों की समस्याओं के सन्दर्भ में उचित समाधान प्रस्तुत कर सकता है।

विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के संगठन की अवधारणा को विद्यालय में सुनियोजित ढंग से संचालन करने के रूप में स्पष्ट कर सकते हैं। इन सेवाओं के संगठन में अधिकारों तथा उत्तरदायित्वों की दृष्टि से विद्यालयों का अधीक्षक सर्वप्रमुख होता है, उसके पश्चात् प्रधानाध्यापक, शिक्षक वर्ग एवं छात्र होते हैं। निर्देशन सेवा समिति एवं शिक्षक सहयोगात्मक रूप से कार्य करते हैं। विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन द्वारा छात्रों की समस्याओं के समाधान हेतु विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है तथा मनोवैज्ञानिकों के साथ-साथ परामर्शदाता एवं अन्य कर्मचारियों को भी बुलाया जाता है। इन कार्यक्रमों के माध्यम से छात्रों को उनकी समस्या के प्रति उचित सेवाएँ प्रदान करने का प्रबन्ध किया जाता है।

अतः विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन की मूलभूत अवधारणा विद्यालय में इन सेवाओं हेतु समुचित प्रबन्धन से है। इन सेवाओं हेतु एक समिति का गठन, उनके कर्मचारियों के प्रशिक्षण एवं निर्देशन सेवा कार्यक्रमों हेतु उचित संसाधनों की व्यवस्था से है। इन कार्यक्रमों की योजना, संगठन इत्यादि सेवाओं का निर्धारण करना विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के अन्तर्गत आता है।

निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन का अर्थ (Meaning of Organisation of Guidance and Counselling Service)

निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन व्यक्ति के जीवन के विविध क्षेत्रों, जैसे-शिक्षा, व्यवसाय, पारिवारिक एवं वैवाहिक समायोजन, अन्य दूसरे क्षेत्रों में समायोजन एवं स्वास्थ्य आदि में सहायता करता है। इसके अतिरिक्त यह बाल्यावस्था, किशोरावस्था, प्रौढ़ावस्था एवं वृद्धावस्था में आने वाली अनेक समस्याओं के समाधान में सहायक होता है। विद्यालय में भी निर्देशन सेवा संगठन की बहुत आवश्यकता है परन्तु विद्यालयों में निर्देशन कार्य को सफलतापूर्वक चलाने के लिए यह भी आवश्यक है कि ये सेवाएँ संगठित एवं व्यवस्थित रूप से हों। विद्यालय में छात्र अपनी शैक्षिक प्रगति में जिन कठिनाइयों का अनुभव करता है उसका समाधान विद्यालय निर्देशन सेवा संगठन द्वारा किया जाना चाहिए। शिक्षा का मुख्य उद्देश्य छात्रों का सर्वांगीण विकास करना है जो निर्देशन सेवाओं की समुचित व्यवस्था (संगठन) के बिना पूर्णरूप से नहीं हो सकता है। निर्देशन सेवा संगठन में विद्यालय में विद्यालय के सभी कर्मचारियों का सहयोग प्राप्त होना चाहिए। निर्देशन सेवा संगठन की सफलता एवं असफलता संगठन से सम्बन्धित कर्मचारियों पर निर्भर करती है। निर्देशन सेवा संगठन प्रत्येक क्रिया-कलाप का एक महत्त्वपूर्ण भाग है। इसे विद्यालय के सामान्य जीवन से अलग नहीं किया जा सकता है। इस प्रकार विद्यालय की एक संगठित सेवा होनी चाहिए तथा विद्यालय के प्रत्येक व्यक्ति को इसे एकता की शक्ति समझना चाहिए। निर्देशन सेवा संगठन को रेबर, एरिक्सन, एवं स्मिथ ने इस प्रकार परिभाषित किया है- “निर्देशन सेवाएँ ऐसी संगठित गतिविधियाँ है जो व्यक्ति के परीक्षण, मूल्यांकन एवं वास्तविकतापूर्ण व्यक्तिगत लक्ष्यों के चयन में सहायक होती है तथा लक्ष्य की सिद्धि की दिशा में प्रत्येक व्यक्ति या छात्र का अनुवर्तन करती है।”

निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन का स्वरूप (Form of Organisation for Guidance and Counselling Services)

निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन का स्वरूप इस प्रकार है-

1) केन्द्रीय स्वरूप,

2) विकेन्द्रीय स्वरूप, एवं

3) मिश्रित स्वरूप।

(1) केन्द्रीय स्वरूप (Centralised Form)- निर्देशन सेवा संगठन के अन्तर्गत निर्देशन सम्बन्धी अधिकांश सेवाएँ निर्देशक द्वारा ही संचालित एवं नियन्त्रित होती हैं। इस संगठन का मानना है कि प्रत्येक शिक्षक निर्देशन सेवा में प्रशिक्षित नहीं होता है जबकि समस्याओं के समाधान में केवल निर्देशन सेवा में प्रशिक्षित व्यक्ति की सहायक हो सकता है। शिक्षक तो केवल निर्देशन संस्थाओं से प्राप्त आदर्शों के आधार पर ही कार्य करते हैं। निर्देशन पूर्णतया तकनीकी क्रियाविधि पर आधारित होता है। अतः निर्देशन सेवा संगठन का स्वरूप केन्द्रीय होता है।

(2) विकेन्द्रीय स्वरूप (Decentralised Form)- निर्देशन सेवा संगठन का स्वरूप विकेन्द्रीकृत भी माना जाता है इस प्रकार विकेन्द्रीय स्वरूप में निर्देशन का कार्य पूर्ण रूपेण शिक्षकों का ही उत्तरदायित्व माना जाता है। इस स्वरूप की अवधारणा है कि शिक्षक छात्रों के अधिकतम निकट रहते हैं इसलिए वे छात्रों की आवश्यकताओं एवं समस्याओं को अच्छी तरह से समझते हैं तथा उसका समाधान व्यावहारिक रूप में खोजते हैं।

(3) मिश्रित स्वरूप (Mixed Form)- कुछ विद्वानों के अनुसार निर्देशन सेवाएँ, निर्देशनकर्ताओं, अध्यापकों, सामाजिक कार्यकर्ताओं आदि के समन्वय से होना चाहिए क्योंकि मिल-जुलकर निर्देशन का कार्य अधिक अच्छी तरह से किया जा सकता है। अभिभावक भी अवसरानुकूल मिश्रित स्वरूप के अन्तर्गत सम्मिलित किए जाते हैं क्योंकि ये निर्देशन प्राप्तकर्ता के संवाहक के रूप में होते हैं।

विद्यालय में अच्छे निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन की विशेषताएँ (Characteristics of Good Guidance and Counselling Service Organisation in School)

किसी भी निर्देशन एवं परामर्श संगठन को संगठित करने से पूर्व कुछ विशेषताओं को ध्यान में रखना आवश्यक होता है जिससे निर्देशन सेवा संगठन पूर्णतया संगठित, स्वप्रेरित एवं आकर्षित हो अतः निर्देशन सेवा संगठन में कुछ प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार होनी चाहिए-

(1) निर्देशन कार्यक्रम छात्र केन्द्रित होना चाहिए (Guidance Programme Should be Student-Oriented)- निर्देशन सेवा संगठन से जुड़े व्यक्तियों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे अपने विचार छात्रों पर न थोपें निर्देशन आदेशात्मक न होकर परामर्श एवं सुझाव के रूप में होना चाहिए।

(2) सरल (Simple)- निर्देशन सेवा का संगठन सरल रूप में होना चाहिए ताकि विद्यार्थी सरलतापूर्वक अधिक से अधिक निर्देशन सेवा संगठनों से लाभ प्राप्त कर सकें।

(3) व्यक्ति की सहायता (To Help a Person)- सम्पूर्ण निर्देशन सेवा संगठन का उद्देश्य व्यक्ति या छात्र की अधिक से अधिक सहायता करना होना चाहिए।

(4) सभी व्यक्तियों के लिए (For Each and Every Person)- निर्देशन सेवा सभी व्यक्तियों को मिलनी चाहिए। इसी प्रकार विद्यालय में भी निर्देशन सेवाएँ केवल विशिष्ट छात्रों के समुदायों के लिए ही नहीं, बल्कि सभी छात्रों को समान रूप से उपलब्ध होना चाहिए।

(5) प्रशिक्षित कार्यकर्ता का चयन (Selection of Trained Workers)- अच्छे निर्देशन सेवा संगठन में प्रशिक्षित व्यक्तियों का होना आवश्यक है क्योंकि छात्रों को निर्देशित करने के लिए विद्यालय में कुशल प्रशिक्षित कार्यकर्ताओं की आवश्यकता होती है।

(6) परिवर्तनशीलता (Flexibility)– समाज के अनुरूप छात्रों व व्यक्तियों की आवश्यकताओं व समस्याओं में परिवर्तन आता रहता है इसलिए निर्देशन सेवा संगठनों में भी छात्रों की आवश्यकता के अनुरूप समय-समय पर परिवर्तन होना चाहिए। निर्देशन हमेशा समय एवं स्थान केन्द्रित होना चाहिए।

(7) पर्याप्त निर्देशन सामग्री की उपलब्धता (Availability of Sufficient Guidance Material)- निर्देशन देने के लिए आवश्यक परीक्षण, उपकरण एवं शैक्षिक व्यावसायिक सूचनाओं से सम्बन्धित जानकारी उपलब्ध होनी चाहिए।

(8) विभिन्न विधियों का प्रयोग (Use of All Guidance Techniques) – निर्देशन सेवा संगठन में निर्देशन कार्यकर्ताओं के द्वारा किसी एक विधि को अन्तिम रूप से न अपनाकर छात्रों की आवश्यकता एवं अवसर के अनुरूप निर्देशन विधि को अपनाना चाहिए।

(9) परीक्षणों का प्रयोग (Use of Tests)- निर्देशन सेवा संगठन के द्वारा केवल वार्तालाप विधि के आधार पर ही निर्देशन देना पर्याप्त नहीं है। इसके लिए विभिन्न प्रकार के परीक्षणों का प्रयोग करके निर्देशन में सफलता एवं विश्वसनीयता का विकास करना चाहिए।

(10) स्पष्ट उद्देश्य (Clear Objectives)– अच्छे निर्देशन सेवा संगठन के उद्देश्य स्पष्ट होते हैं संगठन की सम्पूर्ण क्रियाएँ एवं विधियाँ इन्हीं उद्देश्यों पर आधारित होती है।

(11) गोपनीयता का सिद्धान्त (Principle of Confidentiality)- निर्देशन सेवा संगठन कार्यकर्ताओं के लिए यह आवश्यक है कि वे छात्रों से जो बातें करें तथा जो सूचनाएँ प्राप्त हों उन्हें पूर्णतः गोपनीय रखें तथा इन सूचनाओं के आधार पर उनका मार्ग दर्शन करें।

(12) निरन्तरता (Continuity)- निर्देशन एक बार देकर समाप्त नहीं कर देना चाहिए। अच्छे निर्देशन संगठन द्वारा इसे निरन्तर दिया जाना चाहिए। बाद में भी यह आत्म निर्देशन के रूप में चलता रहता है।

(13) आर्थिक सुविधाएँ उपलब्ध होना (Availability of Economic Facilities) – निर्देशन सेवा संगठन के पास छात्रों को निर्देशित करने के लिए वित्तीय साधनों का होना अति आवश्यक है। वित्तीय साधनों के अभाव में इस संगठन की कोई महत्ता नहीं रह जाती है।

(14) समस्त कर्मचारियों का सामूहिक उत्तरदायित्व (Common Responsibility of All Workers)- निर्देशन सेवा संगठन में कर्मचारियों को योग्यतानुसार उत्तरदायित्व दिया जाता है। ये कर्मचारी शिक्षित तथा मनोविज्ञान एवं परामर्श में प्रशिक्षित होते हैं।

(15) संचित अभिलेखों का रख-रखाव (Cumulative Maintenance of Records)- छात्रों से सम्बन्धित सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए प्रत्येक विद्यालय में संचित अभिलेखों का उचित रख-रखाव किया जाता है।

(16) अभिभावकों से सम्पर्क करना (To Contact with Gaurdians)- निर्देशन सेवा योजना को सफल बनाने के लिए यह आवश्यक है कि विद्यालय के संगठनकर्ताओं का छात्रों के अभिभावकों से बराबर सम्पर्क बना रहे क्योंकि अभिभावकों के सहयोग के बिना निर्देशन सेवा संगठन के उद्देश्यों की पूर्ति नहीं हो सकती है।

(17) अन्य संस्थाओं से सम्पर्क करना (To Contact with Other Agencies of Guidance)- विद्यालय में निर्देशन सेवा को सफल बनाने के लिए समाज की अन्य निर्देशन संस्थाओं, जैसे- रोजगार कार्यालयों, व्यापारिक संस्थाओं उद्योग केन्द्रों एव राजकीय संस्थाओं, से निर्देशन संगठनकर्ताओं को सम्पर्क करते रहना चाहिए, जिससे छात्र आवश्यकतानुसार उनसे सहायता प्राप्त कर सकें।

(18) व्यावसायिक कार्यक्रमों का आयोजन (Organisation of Vocational Activities)- निर्देशन सेवा संगठन की सफलता के लिए विभिन्न प्रकार के व्यावसायिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। विद्यालय द्वारा आर्थिक दृष्टि से पिछड़े बालकों के लिए विद्यालय द्वारा अंशकालिक तथा ग्रीष्मकालीन व्यावसायिक सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।

(19) व्यावसायिक गोष्ठियों का आयोजन (Organisation of Occupational Conferences)- निर्देशन सेवा संगठन को कभी-कभी सफल बनाने के लिए व्यावसायिक गोष्ठियों का आयोजन करना अत्यन्त आवश्यक है।

(20) सेवा-भावना (Social Service)- निर्देशन सेवा संगठन द्वारा छात्रों की समस्या को अच्छी तरह से समझकर सहायता एवं सहानुभूति पूर्वक उनका समाधान करना चाहिए इसलिए निर्देशनकर्ताओं एवं परामर्शदाताओं में हमेशा सेवाभाव विद्यमान रहता है।

(21) छात्रों में निर्णय क्षमता का विकास (Development of Decision-Making Power in Students)- सफल निर्देशन सेवा संगठन छात्रों को अधिक से अधिक निर्णय लेने का अवसर देता है जिससे छात्रों में निर्णय लेने की क्षमता का विकास हो तथा वे अपने विषय में स्वयं निर्णय ले सकें।

(22) समस्यात्मक बालकों के लिए विशिष्ट कार्यक्रम (Special Program for Problematic Children) – निर्देशन सेवाओं के संगठन के अन्तर्गत समस्यात्मक बालकों के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है जिससे छात्रों की समस्याओं को पूर्णरूप से समझकर उनका उचित निर्देशन किया जा सके।

(23) शिक्षकों का सहयोग (Cooperation of Teachers) – एक सफल निर्देशन सेवा संगठन के लिए अत्यावश्यक है कि अध्यापक निर्देशन में अपना पूर्ण सहयोग एवं योगदान दे।

(24) समन्वय (Coordination) – विभिन्न निर्देशन सेवाओं एवं संस्था में होने वाली क्रियाओं के मध्य उचित समन्वय एक अन्छे निर्देशन संगठन की विशेषता है।

निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन की आवश्यकता (Need of Organising of Guidance and Counselling Services)

विद्यालय में निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन की आवश्यकता अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है।

इन सेवाओं की निम्नलिखित आवश्यकताएँ होती हैं-

(1) यह शिक्षकों को छात्रों की योग्यता का विभिन्न स्तरों में विभिन्न परिणामों पर ध्यान देने में सहायता करता है।

(2) इसके द्वारा छात्रों एवं उनके माता-पिता के लिए सही एवं उचित कैरियर की योजना बनाने के लिए मदद करता है।

(3) यह शारीरिक, सामाजिक, भावात्मक और बौद्धिक विशेषताओं और विद्यार्थियों की आवश्यकताओं को समझने में मदद करता है।

(4) यह छात्रों को आवश्यक विश्वसनीय एवं वैज्ञानिक आँकड़े प्रदान करने की दक्षता को बढ़ावा देता है।

(5) यह बालकों को विद्यालय एवं समुदाय में सन्तोषजनक समायोजन स्थापित करने का ज्ञान प्रदान करता है।

(6) संगठित निर्देशन कार्यक्रम द्वारा समय, धन एवं प्रयास की बचत होती है।

(7) यह छात्रों को उचित व्यवसाय या उद्यम प्राप्त करने में सहायता प्रदान करता है।

(8) यह शिक्षकों को विभिन्न क्षेत्रों में बालक के व्यक्तिगत मतभेदों को समझने में सहायता करता है।

(9) यह विद्यालय के सभी स्टाफ सदस्यों के कौशल, प्रशिक्षण, योग्यताओं एवं रुचियों का उचित उपयोग करने के लिए किया जा सकता है।

(10) इसके द्वारा निर्देशन कार्यक्रमों में लगे सभी व्यक्तियों के काम का समन्वय करता है।

(11) यह निर्देशन कार्यक्रम के सुचारू संगठन को सुनिश्चित करने के लिए उचित सामुदायिक संसाधनों का प्रयोग करता है।

(12) छात्रों को आत्म विकास, आत्म-नेतृत्व एवं स्व अनुभूति की प्राप्ति में सहायता प्राप्त होती है।

(13) यह विद्यालय निर्देशन सेवाओं में लगे कर्मियों के कार्यों एवं गतिविधियों को समझता है।

(14) यह अच्छे मानवीय रिश्तों को विकसित करने में सहायता करता है।

अतः उपरोक्त समस्त तथ्यों से हमें यह ज्ञात होता है कि विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के संगठन की अत्यन्त आवश्यकता है जिनके द्वारा विद्यालय की प्रत्येक क्रियाओं को संगठित किया जा सकता है।

विद्यालय में निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन के क्षेत्र (Places of Guidance and Counselling Service Organisation in School)

विद्यालय में निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन के अपने विशिष्ट क्षेत्र, उद्देश्य सुविधाएँ होती हैं जो छात्रों को प्रदान किया जाता है तथा इन गतिविधियों को विद्यालय विस्तार में आयोजित किया जा सकता है। किसी भी विद्यालय या शैक्षिक संस्थानों में निर्देशन सेवाएँ या कार्यक्रमों के क्षेत्र या विषयवस्तु इसके संसाधनों (भौतिक, आर्थिक एवं मानवीय संसाधन) के सम्पूर्ण उपयोग पर निर्भर है। विद्यालय में निर्देशन सेवाओं के संगठन के लिए विद्यालय के निर्देशन कार्यक्रम के क्षेत्र निम्नलिखित हैं-

(1) छात्र विश्लेषण सेवा के लिए छात्रों के विषय में सूचना एकत्रित करना।

(2) एक निर्देशन केन्द्र या निर्देशन बिन्दु की स्थापना करना ।

(3) कैरियर सम्बन्धी बातचीत, कैरियर सम्मेलन, कॉलेजों का दौरा, विश्वविद्यालयों का संगठन आदि ।

(4) निर्देशन प्रदर्शनी का आयोजन।

(5) शैक्षिक एवं व्यावसायिक जानकारी का प्रचार प्रसार।

(6) प्रत्येक छात्र के लिए संचयी कार्ड (C.R.C.) का रख-रखाव।

(7) नए लोगों के लिए उन्मुखीकरण बातचीत का संगठन।

(8) विद्यार्थियों को उनकी समायोजन समस्या सम्बन्धी परामर्श प्रदान करना।

(9) विभिन्न शैक्षिक कैरियर के विषय में शैक्षिक वार्ता का आयोजन करना।

(10) अन्य अभिकरण जैसे रोजगार कार्यालय, प्रशिक्षण संस्थानों एवं उच्च शिक्षा संस्थानों के साथ सम्बन्ध रखना।

(11) विद्यालय छोड़ने वालों से सम्पर्क स्थापित करना जिससे निर्देशन एवं परामर्श की प्रभावशीलता को निश्चित किया जा सके।

(12) कॉलेज शिक्षा, व्यावसायिक जीवन एवं सामाजिक जीवन में विद्यालय छोड़ने वालों के लिए निर्देशन कार्यक्रमों के अल्पकालीन सत्र का संगठन करना।

निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन के सिद्धान्त (Principles of Organisation of Guidance and Counselling Services)

निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन के प्रमुख सिद्धान्त निम्नलिखित हैं-

(1) निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं का संगठन सभी श्रेणी के छात्रों के लिए होना चाहिए।

(2) किसी भी प्रकार के निर्देशन कार्यक्रम का संगठन चाहे वह शैक्षिक व्यावसायिक एवं व्यक्तिगत हो, वह छात्रों की रुचि, आवश्यकता एवं उद्देश्यों के अनुरूपता के अनुसार किया जाना चाहिए।

(3) जब छात्रों के लिए निर्देशन कार्यक्रम का संगठन किया जाए तब निर्देशन सेवा बालक के सम्पूर्ण वातावरण के अनुसार प्रदान करना चाहिए।

(4) एक औद्योगिक विद्यालय के निर्देशन एक कृषि विद्यालय से भिन्न हो सकते हैं।

(5) निर्देशन एवं परामर्श सेवाएँ छात्र को उसकी सम्पूर्णता के अनुसार प्रदान किया जाना चाहिए।

(6) छात्रों की विशिष्ट आवश्यकताओं एवं समस्याओं को भी ज्ञात करना चाहिए।

(7) व्यावसायिक एवं शैक्षिक आवश्यकताओं एवं अवसरों के विषय में पर्याप्त जानकारी संग्रहित की जानी चाहिए।

(8) निर्देशन एवं परामर्श सेवाएँ शिक्षा के समस्त अभिकरणों के साथ सहयोग और नेतृत्व प्रदान करने के लिए प्रदान चाहिए।

(9) छात्रों की समस्याओं का गम्भीर होने से पूर्व ही समाधान कर देना चाहिए।

(10) यह विद्यार्थियों के आत्म-ज्ञान एवं आत्म निर्देशन में सुधार की दिशा में निर्देशित किया जाना चाहिए।

(11) निर्देशन सेवाओं में परीक्षण उपकरणों के प्रयोग किए जाने के लिए उचित प्रावधान बनाए जाने चाहिए।

(12) सभी कर्मचारियों की रुचि एवं प्रयासों को निर्देशन सेवाओं के संगठन में सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए।

(13) यह जहाँ तक सम्भव हो सरल रूप में होना चाहिए।

संगठित निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं का महत्त्व (Importance of Organised Guidance and Counselling Services)

किसी भी विद्यालय में संगठित निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं का विशेष महत्त्व होता हैं क्योंकि संगठित निर्देशन सेवाओं का संचालन उचित प्रकार से होता है। अतः संगठित निर्देशन सेवाओं के महत्त्व को इस प्रकार स्पष्ट कर सकते हैं-

(1) प्रभावी सामंजस्य- यदि विद्यालय में सभी निर्देशन सेवाओं को संगठित किया जाता है तो निर्देशन कार्यक्रमों के समस्त पक्षों में प्रभावशाली सामंजस्य स्थापित होता है तथा परामर्शदाताओं को समस्या समाधान में कोई परेशानी नहीं होती है।

(2) छात्र आवश्यकताओं का निर्धारण- संगठित निर्देशन सेवाओं के माध्यम से मनोवैज्ञानिक या परामर्शदाता प्रार्थियों की आवश्यकता का पूर्णरूपेण निर्धारण करता है। इन समस्याओं का निर्धारण करके ही उन्हें उचित परामर्श प्रदान किया जा सकता है। अतः समस्या निर्धारण में संगठित निर्देशन सेवाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

(3) मितव्ययी निर्देशन- निर्देशन सेवाओं के संगठित होने से निर्देशन कार्यक्रमों में मितव्ययिता बनी रहती है। निर्देशन सेवाएँ प्रदान करने हेतु पूर्णरूपेण योजना बनाने से समय एवं धन दोनों की बचत होती है।

(4) कार्यों का सरल क्रियान्वयन- निर्देशन सेवाओं को उचित प्रकार से संगठित करने से निर्देशन कार्य सरलतापूर्वक क्रियान्वित होते हैं। समस्त निर्देशन कार्यों को बिना किसी समस्या के सरल रूप में संचालित करने में संगठित निर्देशन सेवाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है।

(5) सभी को ‘लाभ- संगठित निर्देशन सेवाओं के माध्यम से समस्त व्यक्तियों जैसे- छात्र/ प्रार्थी, निर्देशनकर्ताओं एवं अध्यापकों को पूर्ण लाभ प्राप्त होता है।

(6) सरल लक्ष्य प्राप्ति- संगठित निर्देशन सेवाओं के माध्यम से प्रत्येक क्रियाएँ सरल रूप से क्रियान्वित एवं संचालित होती है जिससे लक्ष्य की प्राप्ति सरल रूप में हो जाती है। अतः संगठित निर्देशन सेवाएँ सरल लक्ष्य प्राप्ति में अति महत्त्वपूर्ण हैं।

अतः उपरोक्त तथ्यों से हमें ज्ञात होता है कि संगठित निर्देशन सेवाएँ प्रत्येक निर्देशन कार्यक्रम क्रियान्वयन में विशेष महत्त्व रखती हैं।

निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन की सीमाएँ (Limitations of Organisation of Guidance and Counselling Services)

निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं के संगठन की प्रमुख सीमाएँ निम्नलिखित हैं-

(1) किसी भी निर्देशन सेवाओं एवं विद्यालय में कार्यक्रमों के संगठन के लिए मनोवैज्ञानिक, परामर्शदाता एवं कैरियर मास्टर्स की आवश्यकता होती है परन्तु वास्तविक रूप में अधिकतर विद्यालयों के पास ये कर्मचारी नहीं होते हैं।

(2) निर्देशन सेवा कार्यक्रम को बहुत सी बुनियादी सुविधाओं की आवश्यकता होती है। जैसे-उपयुक्त आवास, उपकरण एवं बैठने की व्यवस्था इत्यादि जिनको एक विद्यालय में निर्देशन कार्यक्रम को पूरा करने के लिए आवश्यक माना जाता है।

(3) माध्यमिक विद्यालयों में निर्देशन कार्यक्रमों के संगठन से सम्बन्धित सरकारी नीति विशिष्ट एवं निश्चित नही हैं। इसके परिणामस्वरूप यह विद्यालय प्रशासन के लिए छात्रों के सुधार के लिए निर्देशन कार्यक्रमों को पूरा करने में कठिन होता है।

(4) हमारे अधिकतर माध्यमिक विद्यालयों में संगठित निर्देशन कार्यक्रम नहीं होते हैं।

(5) विद्यालय निर्देशन सेवाओं के संगठन के लिए मनोवैज्ञानिक परीक्षण जैसे व्यक्तित्व परीक्षण, रुचि आविष्कार, अभिवृत्ति परीक्षण, मनोवृत्ति स्तर इत्यादि तथा मानकीकृत उपलब्धि परीक्षण जो छात्रों के लिए उपयुक्त होते हैं अधिकाशतः विद्यालयों में होते ही नहीं। इसके अतिरिक्त ऐसे बहुत से विद्यालय हैं जहाँ यह सभी मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं आँकड़े भी उपलब्ध नहीं हैं।

(6) वे शिक्षक जिन पर विद्यालय निर्देशन सेवाओं की सफलता निर्भर होती है। उनके पास छात्रों को उचित निर्देशन प्रदान करने के लिए पर्याप्त ज्ञान, दक्षता एवं योग्यता नहीं है।

(7) अधिकतर विद्यालयों में निर्देशन एवं परामर्श कार्यक्रम के लिए शिक्षक प्रशिक्षित नहीं होते हैं।

(8) निर्देशन सेवा या कार्यक्रम छात्रों की परीक्षण या मूल्यांकन क्षेत्र के अन्तर्गत नहीं आते हैं। अन्य शब्दों में यह एक परीक्षात्मक विषय नहीं है अतः शिक्षक बिना किसी पुरस्कार के इस प्रकार का कार्य करने में रुचि नहीं दिखाते हैं।

(9) हमारे माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षक प्रायः अपने शिक्षण कार्य के अधिक बोझ तले दबे रहते हैं जिनके परिणामस्वरूप वे इस उद्देश्य के लिए उचित समय प्रदान नहीं कर पाते हैं।

निर्देशन एवं परामर्श सेवा संगठन की सफलता के लिए ध्यान देने योग्य बातें (Considerations for the Success of Guidance and Counselling Service Organisation)

भारत के अधिकांश विद्यालयों में निर्देशन एवं परामर्श सेवाओं का पर्याप्त अभाव दिखाई पड़ता है इसलिए भारत के विद्यालयों में निर्देशन सेवाओं का संगठन किस प्रकार किया जाना चाहिए तथा निर्देशन सेवाओं के संगठन को सफल बनाने के लिए किन-किन बातों का ध्यान रखना चाहिए। इसका वर्णन अग्रलिखित रूप में किया जा रहा है-

(1) निर्देशन (Direction)- कार्यकर्ता को अपना कार्य प्रारम्भ करने से पहले विद्यालय में एक समिति का गठन करना चाहिए।

(2) विभिन्न स्तरों पर सम्पर्क स्थापित करना (Establish Communication at Various Levels)- निर्देशन सेवा संगठन की सफलता के लिए निर्देशनकर्ता को सभी स्तरों पर सम्पर्क स्थापित करना चाहिए।

(3) मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला की व्यवस्था (Arrangement of Psychological Laboratory)- निर्देशन कार्य के लिए छात्रों की रुचियों, क्षमताओं, अभिवृत्तियों तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों के बारे में व्यवस्थित जानकारी प्राप्त करने के लिए विद्यालय में मनोवैज्ञानिक प्रयोगशाला का आयोजन किया जाना चाहिए।

(4) निर्देशन कार्यालय वाचनालय एवं पुस्तकालय की व्यवस्था (Arrangement of Guidance Office, Reading Room and Library)- निर्देशन कार्य विद्यालयों में सुचारु रूप से आरम्भ करने के लिए निर्देशन कार्यालय, पुस्तकालय एवं वाचनालय की व्यवस्था होनी चाहिए।

(5) उद्देश्यों को स्पष्ट करना (Clarification of Objectives) – प्रत्येक संस्था के अपने-अपने उद्देश्य होते हैं, उन्हीं उद्देश्यों के आधार पर निर्देशन सेवाओं का संगठन करना चाहिए।

(6) छात्रों की आवश्यकता स्पष्ट करना (Clarification of Student’s Need)- निर्देशन सेवा का संगठन विद्यार्थियों की आवश्यकता के अनुरूप होना चाहिए जो उनकी शैक्षिक समस्याओं के समाधान में सहायक हो।

(7) भौतिक साधनों का स्पष्टीकरण (Clarification of Physical Resources) – निर्देशन सेवा संगठन के लिए भौतिक साधनों की आवश्यकता होती है। ये भौतिक साधन निम्नलिखित हो सकते हैं।

(i) भवन एवं कमरे (Building and Rooms)- निर्देशन सेवा संगठन चलाने के लिए कितने कमरों की आवश्यकता है इसे कहाँ स्थापित करना उचित होगा, आदि बातों का ध्यान देना चाहिए।

(ii) फर्नीचर (Furniture)- कमरे में किस प्रकार की एवं कितनी अलमारियाँ, कुर्सी मेज एवं पर्दे चाहिए। इसकी व्यवस्था संगठन निर्मित करने से पूर्व ही कर लेनी चाहिए।

(iii) उपकरण (Equipment)- निर्देशन सेवा संगठन के लिए जिन वस्तुओं एवं उपकरणों की आवश्यकता हो। इसकी सूची तैयार कर उन्हें एकत्रित कर लेना चाहिए।

(iv) बजट (Budget)– विभिन्न साधनों को एकत्रित करने, कर्मचारियों को वेतन देने के लिए व संस्था चलाने के लिए आवश्यक धन की व्यवस्था को भी प्रारम्भ में ही देख लेना चाहिए तथा बजट के अनुसार निर्देशन सेवा संगठन की व्यवस्था करनी चाहिए।

(8) कर्मचारियों का निर्धारण (Determination of Workers) – निर्देशन सेवा को संगठित करने से पूर्व कर्मचारियों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना चाहिए। कर्मचारियों की योग्यता के अनुसार उनके कार्यों का निर्धारण भी पूर्व में ही कर देना चाहिए। निर्देशन सेवा कार्यकर्ताओं को समय-समय पर प्रशिक्षित करने की व्यवस्था पर भी विचार-विमर्श किया जाना चाहिए।

(9) समस्या का मूल्यांकन (Evaluation of Problem)- निर्देशन सेवा संगठन में आने वाली सभी समस्याओं पर भी पहले ही विचार कर लेना चाहिए। निर्देशन सेवा को संगठित करने से पहले ही निर्देशन की समस्याओं एवं उन समस्याओं को दूर करने के उपायों को ध्यान में रखना चाहिए ।

(10) निर्देशन कार्यक्रम का मूल्यांकन (Evaluation of Guidance Programme)- निर्देशन सेवा संगठन की सफलता के लिए उनके सभी पहलुओं का समय – समय पर मूल्यांकन करते रहना चाहिए, जैसे- छात्रों के उद्देश्यों की पूर्ति कहाँ तक सफल रही है ? निर्देशन सेवा संगठन वर्तमान आवश्यकताओं के अनुरूप है या नहीं आदि। इससे निर्देशन सेवा संगठन में समय – समय पर परिस्थितियों के अनुकूल परिवर्तन किया जा सकता है। प्रत्येक प्राणी के जीवन में विविधता की आवश्यकता होती है। इन्हीं आवश्यकताओं के अनुरूप व्यावहारिक दृष्टिकोण रखते हुए मूल्यांकन करना चाहिए।

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