मुद्रा स्फीति के विभिन्न रूप-Various Types of Inflation in Hindi
मुद्रा स्फीति के विभिन्न रूप (Various Types of Inflation)- मुद्रास्फीति के विभिन्न रूपों का वर्गीकरण निम्नलिखित आधारों पर किया जाता है-
1. मूल्यों की वृद्धि के अनुसार स्फीति का वर्गीकरण
इसके आधार पर स्फीति का वर्गीकरण निम्नलिखित दो प्रकार से किया जाता हैं-
(1) खुली स्फीति- एक खुली स्फीति में सरकार की ओर से मूल्य वृद्धि पर को नियन्त्रण नहीं होता है। इसमें मूल्य बाजार की परिस्थितियों के अनुसार माँग एवं पूर्ति पर निर्भर करते हैं।
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(2) दमित-स्फीति- दमित स्फीति से आशय उस स्थिति से है जिसमें सरकार कीमत नियन्त्रण एवं राशनिंग की नीतियों द्वारा कीमतों को नियन्त्रित रखने का प्रयास करती है। वस्तुओं की पूर्ति एवं माँग को नियन्त्रित करके सरकार मुद्रा की मात्रा में होने वाली वृद्धि को प्रभावहीन बना देती है। व्यावहारिक रूप में नियन्त्रण पूर्ण रूप से सफल नहीं हो पाते एवं कीमतों में कुछ वृद्धि हो। जाती हैं किन्तु यह वृद्धि उस वृद्धि की अपेक्षा बहुत कम होती है जो नियन्त्रण न रहने की स्थिति में होती है।
2. मूल्यों की वृद्धि की गति के अनुसार स्फीति का वर्गीकरण
इसके आधार पर मुद्रास्फीति के निम्न चार रूप होते हैं-
(1) रेगती स्फीति- यह उस स्थिति की सूचक है जबकि कीमत स्तर में धीरे-धीरे वृद्धि होती हैं।
कीन्स के अनुसार इस तरह की हल्की सी मुद्रास्फीति अर्थव्यवस्था को विकासोन्मुख रखने के लिए जरूरी है, लेकिन इस बात को ध्यान में रखना आवश्यक है कि यह रेंगती हुई मुद्रा स्फीति आगे चलकर कूदना या दौड़ना शुरू न कर दें।
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(2) चलती स्फीति- रेंगती स्फीति की गति बढ़ जाने के बाद जब खतरे के कुछ चिन्ह दृष्टिगोचर होने लगें तो यह स्थिति चलती स्फीति की होती है।
(3) दौड़ती स्फीति- इस स्थिति में कीमतों में तेजी से वृद्धि होने लगती है जिसके परिणामस्वरूप स्थिर आय वाले व्यक्तियों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
(4) सरपट दौड़ती स्फीति- इस स्थिति में कीमतें इतनी तीव्रता से बढ़ती है कि वृद्धि की कोई सीमा नहीं होती और न ही इसके बारे में अनुमान लगाना सम्भव होता है। मुद्रा का मूल्य अत्यधिक कम होने से लोगों का उस पर से विश्वास हट जाता है। इन परिस्थितियों में सम्पूर्ण अर्थव्यवस्था अस्त-व्यस्त हो जाती है।
3. प्रक्रियाओं के अनुसार स्फीति का वर्गीकरण
इसके आधार पर मुद्रास्फीति का वर्गीकरण निम्न तीन प्रकार से किया जाता है-
(1) घाटा प्रेरित स्फीति- जब सरकार का व्यय अपनी आय से अधिक हो जाता है। तब वह घाटे की पूर्ति हीनार्थ प्रबन्धन द्वारा करती है, जिससे चलन में मुद्रा की मात्रा में वृद्धि होती है एवं मुद्रा-स्फीति की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। इसे घाटा प्रेरित स्फीति कहते हैं।
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(2) वेतन प्रेरित स्फीति- वेतन प्रेरित स्फीति वह स्थिति है जबकि मजदूरी में वृद्धि का अनुपात श्रम की उत्पादकता से अधिक होता है, जिसके कारण उत्पादन लागत एवं कीमत स्तर में वृद्धि होती है।
(3) लाभ-प्रेरित स्फीति- इस स्फीति के अन्तर्गत उत्पादन लागत में कमी होने पर होती है।
कीमतों को नीचे गिरने से जब कृत्रिम उपायों द्वारा रोका जाता है तो उत्पादकों के लाभ में वृद्धि इस प्रकार की स्थिति को केन्स ने लाभ प्रेरित स्फीति कहा है।
4. समय के अनुसार स्फीति का वर्गीकरण
इसके आधार पर मुद्रास्फीति का वर्गीकरण निम्न दो रूपों में किया जाता है।
(1) शान्तिकालीन स्फीति- शान्तिकालीन स्फीति वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि की उस दशा की ओर संकेत करती है जो कि साधारण रूप से शान्तिकाल में विद्यमान होती है।
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(2) युद्धकालीन स्फीति- युद्धकालीन स्फीति वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि की उस दशा की ओर संकेत करती है जो कि युद्धोत्तर काल में वस्तुओं की माँग की अपेक्षा इनकी पूर्ति के कम होने के कारण उत्पन्न होती है।
5. समय की अवधि के अनुसार स्फीति का वर्गीकरण
समय की अवधि के आधार पर मुद्रास्फीति का वर्गीकरण निम्न रूपों में किया जाता है-
(1) अल्पकालीन स्फीति- अल्पकालीन स्फीति अल्पकाल में वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में होने वाली वृद्धि की अवस्था की ओर संकेत करती है।
(2) दीर्घकालीन स्फीति- दीर्घकालीन स्फीति दीर्घकाल में वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में होने वाली वृद्धि को दर्शाता है।
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(3) चिरकालीन स्फीति- चिरकालीन स्फीति का सम्बन्ध कई शताब्दियों से होता है अर्थात् जब कई शताब्दियों के दौरान वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि की प्रवृत्ति पायी जाती है तो इस प्रवृत्ति को चिरकालीन स्फीति कहा जाता है।
6. वस्तुओं की संख्या के अनुसार मुद्रास्फीति का वर्गीकरण
इसके अन्तर्गत मुद्रास्फीति का वर्गीकरण निम्नलिखित दो प्रकार से किया जाता है-
(1) व्यापक स्फीति- जब अर्थव्यवस्था में सभी वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होने की प्रवृत्ति पायी जाती है तो इस अवस्था को व्यापक स्फीति कहा जाता है।
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(2) खण्डीय स्फीति- जब अर्थव्यवस्था में केवल कुछ वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि होती है जो इसे खण्डीय स्फीति कहते हैं। खण्डीय स्फीति की दशा स्थायी स्वभाव की होती है अर्थात् खण्डीय स्फीति की दशा उस समय उत्पन्न होती है जबकि वस्तुओं के उत्पादन में शीघ्र वृद्धि नहीं की जा सकती या बजार में रुकी हुई भूतपूर्व माँग की उपस्थिति के कारण माँग की मात्रा उत्पादन की मात्रा की तुलना में अधिक होती है।
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