भूमण्डलीकरण/वैश्वीकरण (GLOBALISATION):
वैश्वीकरण का अर्थ (Meaning of Globalisation)
‘वैश्वीकरण’ शब्द का अर्थ सामाजिक परिप्रेक्ष्य में ‘संयोजन’ से है और यह इसी पर बल देता है|‘वैश्वीकरण’ अंग्रेजी शब्द ग्लोबलाइजेशन (Globalisation) का हिन्दी रूपान्तरण है, जिसका अर्थ वर्तमान परिप्रेक्ष्य में सम्पूर्ण वैश्विक भूखण्ड से है। वैश्वीकरण के विचार को लेकर विद्वानों में अलग-अलग मत हैं। कोई इसे आर्थिक दृष्टि से समझता है तो कोई सामाजिक, राजनीतिक रूप में आंकलन करता है। भारतीय कथन ‘वसुधैव कुटुंबकम’ को ही आज सम्पूर्ण विश्व वैश्वीकरण के माध्यम से चरितार्थ कर रहा है।
वैश्वीकरण शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम एंथनी गिडेंस (Anthony Giddens) ने किया।
सामान्य अर्थ में इसका अभिप्राय सम्पूर्ण विश्व एक परिवार के रूप में एकीकृत होकर अपनी भौगोलिक, आर्थिक, राजनैतिक एवं सामाजिक दूरियों को मिटाकर मानव समाज के एकीकरण की प्रक्रिया को पूर्ण करना है। वैश्वीकरण ने भौगोलिक दूरियों को कम किया है. साथ-साथ प्रादेशिक सीमाओं का महत्त्व भी निरंतर कम होने लगा है।
प्रो. टी. के. राघवन के अनुसार, “विश्व की अर्थव्यवस्था का विकास एवं सामाजिक विकास राज्य के नियन्त्रण की सीमितता के अन्तर्गत होता है, तब यह प्रक्रिया वैश्वीकरण कहलाती है।”
वैश्वीकरण एक जटिल आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक प्रक्रिया है। सामाजिक वैज्ञानिकों की दृष्टि में वैश्वीकरण की प्रक्रिया समय और दूरी का राष्ट्र-राज्य से आगे की प्रक्रिया है। यह पूँजी, श्रम, उत्पाद, प्रौद्योगिकी और सूचना के माध्यम से आधुनिकीकरण, राष्ट्र-निर्माण एवं राष्ट्रों के बीच गठबंधन के साथ ही उत्पन्न हो रही है। इसमें वैश्विक अन्तर्सम्बद्धता का त्वरित विचार, सम्बन्ध और सम्पर्क, चिरस्थाई सांस्कृतिक अन्तःक्रियाओं और विनिमय पर बल दिया जाता है। प्रतियोगिता, दक्षता, बेहतर उत्पादकता एवं प्रौद्योगिकी के विकास के माध्यम से प्रगति की सम्भावना होती है।
वैश्वीकरण के उद्देश्य (Objectives of Globalisation)
1) आर्थिक समानता- वैश्वीकरण का प्रमुख उद्देश्य आर्थिक असमानता को दूर करते हुए विकासशील देशों को विकसित देश बनाना है।
2) विकास के लिए नवीन साझेदारी- वैश्वीकरण में विकास के लिए विभिन्न प्रकार के संगठनों का सहयोग एवं नवीन सन्धियाँ विकासशील देशों के सर्वत्र विकास के पथ पर अग्रसर कर रही हैं जिससे विश्व की एक अत्यन्त नयी एवं विकसित संरचना दृष्टिगोचर होती है।
3) विश्वबन्धुत्व की भावना- भमूण्डलीकरण के द्वारा विश्वबन्धुत्व की भावना का विकास होता है। वर्तमान समय में विभिन्न समस्याओं से निपटने के लिए सभी देश एकजुट होकर समस्या का समाधान करते हैं यह भूमण्डलीकरण का ही प्रभाव है। गुजरात के भूकम्प में पुनर्निर्माण एवं बचाव कार्य के लिए प्रचुर मात्रा में धन उपलब्ध कराना एवं मानवीय सहायता उपलब्ध कराना इसका एक महत्त्वपूर्ण उदाहरण है।
4) अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग– अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की अविरल धारा जो संसार में प्रवाहित हो रही है, यह भूमण्डलीकरण का ही एक परिणाम है। अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग की भावना का एक उत्कृष्ट उदाहरण है, पाकिस्तान के द्वारा गैस पाइप लाइन को अपने क्षेत्र से होकर जाने की अनुमति प्रदान करना। यह वैश्वीकरण का ही एक परिणाम है।
वैश्वीकरण की विशेषताएँ (Features)
1) पारस्परिक निर्भरता– वैश्वीकरण राज्य की ओर बढ़ता एक प्रयास है। वैश्वीकरण सहयोग, पारस्परिक निर्भरता तथा पारस्परिक सम्बन्धों को व्यवहार में बदलने की प्रक्रिया है। भूकम्प, बाढ़ तथा सुनामी आदि दैवीय आपदा के समय अन्तर्राष्ट्रीय सहायता पारस्परिक सहयोग पर ही आधारित है।
2) विकसित देशों का नियन्त्रण- यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका स्वरूप बहुमुखी है, जैसे- सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक एवं तकनीकी आदि। वैश्वीकरण राज्यों की अर्थव्यवस्थाओं को निकट लाने की एक प्रक्रिया है। यह विकासशील देशों को अपनी अर्थव्यवस्था को सुधारने का अवसर प्रदान करता है। वर्तमान समय में विकसित देशों जैसे अमेरिका का प्रभाव दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है।
3) मानवता का विकास- वैश्वीकरण दूरियों को कम करने की एक प्रक्रिया है। यह संस्कृतियों के आदान-प्रदान, जीवन शैली को एक दूसरे से जोड़ने और विश्व सभ्यता के निर्माण का कार्य करती है। इसके अन्तर्गत मानवतावादी विचारधारा को महत्त्व दिया जाता है। कई अन्तर्राष्ट्रीय संस्थाओं को मानव कल्याण के लिए प्रभावशाली बनाया जा रहा है। जैसे-यूनीसेफ(UNICEF)।
4) तकनीकी शिक्षा का विकास- वैश्वीकरण में तकनीकी शिक्षा का तीव्र विकास होता है क्योंकि यह विश्व की समस्याओं को विश्व के सहयोग से सुलझाने का प्रयास है। विभिन्न प्रकार के राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक आयोजनों में विभिन्न विचारधाराओं को एक मंच पर सुना जाता है और आवश्यकता के अनुसार इन्हें महत्त्व भी प्रदान किया जाता है। वैश्वीकरण में तकनीकी शिक्षा वीभत्स बीमारी, सुनामी एवं आतंकवाद जैसी घटनाओं को विश्व स्तर पर राज्य के सहयोग से समाधान करती है।
वैश्वीकरण के कारक (Factors of Globalisation)
1) वर्तमान आर्थिक परिवर्तनों के त्वरित विकास के द्वारा व्यापार, व्यवस्था एवं आर्थिक संसाधनों का आदान-प्रदान।
2) संचार साधनों में विकास के द्वारा विभिन्न देशों के मध्य सूचना एवं संवाद द्वारा निकटता का सम्बन्ध।
3) राजनैतिक उदारीकरण के माध्यम से पर्यटन क्षेत्र में विकास द्वारा वैश्वीकरण संस्कृति में वृद्धि।
4) देशों के मध्य बढ़ती समशील, गतिविधियों द्वारा एकरूपता की स्थापना।
5) परिवहन एवं अन्य साधनों के विकास द्वारा समय तथा गति का सम्पीड़न|
6) वैश्विक राजनीति का विकास एवं उसकी उपयोगिता।
वैश्वीकरण के लाभ (Benefits of Globalisation)
1) मानवीय दृष्टिकोण का विकास- भूमण्डलीकरण एक ऐसी स्थिति है जहाँ लगभग सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। आज किसी भी देश की मानवीय समस्या हो, कुपोषण की हो या भुखमरी की, सभी देश उसका मिलकर सामना करते हैं। जैसे- ईरान में आया भूकम्प सिर्फ ईरान की समस्या नहीं बल्कि सभी देशों की समस्या थी तथा सभी देशों ने ईरान की सहायता की।
2) मानव कल्याण की भावना का विकास- आज विश्व के अन्तर्गत एक ही विचारधारा पर जोर दिया जा रहा है, वह है, मानव कल्याण की भावना। प्रत्येक देश में राज्य स्तर एवं केन्द्र स्तर पर मानव अधिकार संगठनों का गठन हुआ है। ‘अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर भी मानवाधिकार की चर्चा होती है।
3) समस्याओं का मिलकर सामना – भूमण्डलीकरण एक ऐसी स्थिति है जहाँ लगभग सभी राष्ट्र अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का समाधान करने का प्रयास करते हैं। जैसे- आतंकवाद की समस्या तथा पर्यावरण प्रदूषण की समस्या। इस प्रकार इन समस्याओं का समाधान आपसी मतभेदों को भुलाकर ही किया जा सकता है। इस प्रकार वैश्वीकरण में सभी राष्ट्र एक दूसरे की समस्याओं को साझा करते हैं। इससे विश्व एक परिवार की तरह बन जाता है जहाँ आपसी तालमेल के द्वारा मानवीय मूल्यों का विकास होता है।
4) बाधारहित व्यापार – वैश्वीकरण के कारण विभिन्न राष्ट्र एक दूसरे के निकट आते हैं। इससे व्यापार तथा सांस्कृतिक कार्यों को सांझा किया जाता है तथा आपसी प्रतिस्पर्धा की भावना को बल प्रदान किया जाता है। वैश्वीकरण के द्वारा विभिन्न राष्ट्रों की व्यापारिक गतिविधियों का संचालन किया जाता है। विभिन्न कम्पनियाँ अपनी शाखाएँ विभिन्न राष्ट्रों में स्थापित करती हैं। इससे उस राष्ट्र के नागरिकों को रोजगार के अवसर सुलभता से प्राप्त होते हैं।
वैश्वीकरण की सीमाएँ (Limitations Globalisation)
1) नैतिक मूल्यों का हास- इस प्रक्रिया से नैतिक मूल्यों में गिरावट आती है। इस प्रक्रिया द्वारा वस्तुओं का उत्पादन अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर होता है। इसके फलस्वरूप नागरिक राष्ट्रीय वस्तुओं का उपभोग करने के बजाय दूसरे देशों की वस्तुओं पर निर्भर रहते हैं। इस प्रकार इससे नैतिक मूल्यों का हास होता है।
2) अच्छी शिक्षण प्रक्रिया अपनाना चुनौतीपूर्ण– वैश्वीकरण से सभी राष्ट्र एक दूसरे के साथ विभिन्न क्षेत्रों में आदान-प्रदान की स्थिति उत्पन्न करते हैं। विकासशील राष्ट्र विकसित राष्ट्रों का अनुसरण करते है जिसके परिणामस्वरूप विकसित राष्ट्र मजबूत शिक्षण प्रक्रिया को अपनाते हैं लेकिन विकासशील राष्ट्रों के लिए इस शिक्षा प्रक्रिया को अपनाना महँगा तथा चुनौतीपूर्ण है।
3) तानाशाही- वर्तमान में विश्व स्तर पर अमेरिका एवं उसके सहयोगी देशों का वर्चस्व होने के कारण तानाशाही पूर्ण व्यवहार सभी के समक्ष उपस्थित है। अमेरिका एवं उसके सहयोगी देश सभी क्षेत्रों में अपनी मनमानी करके विश्व के समक्ष अपने सर्वाधिकार का प्रदर्शन कर रहे हैं जो वैश्वीकरण के लिए उचित नहीं है।
4) एक देश की दूसरे देश पर निर्भरता- वैश्वीकरण के कारण एक देश दूसरे देश पर निर्भर हो चुके हैं क्योंकि विकास कार्यों के लिए मिलने वाली सहायता, विदेशी पूँजी निवेश तथा अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार नियमों में अपने देश की अर्थव्यवस्था को दूसरे देश की अर्थव्यवस्था पर निर्भर बना दिया है। दूसरे देश पर अधिक निर्भर रहना अपने देश की सम्प्रभुता के लिए हानिकारक है।
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