विद्यालय वातावरण को परिभाषित कीजिए वातावरण व्यवस्था के तत्वों पर प्रकाश डालिए।
विद्यालय वातावरण का अर्थः (Meaning of school climate)-
विद्यालयी वातावरण के अन्तर्गत उन सभी तथ्यों का समावेश होता है जो विद्यालय के वातावरण को स्वस्थ्य रखने, बालकों में स्वस्थ जीवन व्यतीत करने की आदतों के निर्माण में सहायक सिद्ध होता है। विद्यालयी वातावरण निर्माण करने में पास-पड़ोस, भवन का प्रकार, खेल के मैदान, स्वच्छता, वायु, जल, मिट्टी, प्रकाश की व्यवस्था तथा फर्नीचर आदि का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। यदि भवन गन्दे एवं अवांछनीय स्थान पर स्थित हैं तो उसमें प्रकाश एवं वायु की समुचित व्यवस्था सम्भव नहीं है। बैठने के लिए उचित फर्नीचर, खेल-कूद के लिए मनोरंजन के साधनों का अभाव है तो बालक का शारीरिक व मानसिक विकास पूर्ण रूप से नहीं हो पायेगा और उसकी अधिगम प्रक्रिया तथा स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा। अत: विद्यालय प्रशासन को शैक्षिक वातावरण उच्च कोटि का निर्माण करने के लिए समुचित व्यवस्थाएँ करना अत्यन्त आवश्यक है। वातावरण व्यवस्था के तत्त्व- वातावरण व्यवस्था के तत्त्व निम्न हैं-
1.विद्यालय भवन की स्थिति-
विद्यालय भवन का निर्माण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि विद्यालय घनी आबादी से हटकर खुले स्थान पर हो तथा विद्यालय नगर की आबादी से इतना दूर न हो कि विद्यार्थियों को आने-जाने में असुविधा हो। विद्यालय के निकट किसी भी प्रकार का शोरयुक्त वातावरण नहीं होना चाहिए जैसे-कल-कारखाने, बस स्टैण्ड, रेलवे स्टेशन आदि।
2. प्राकृतिक वातावरण से परिपूर्ण-
विद्यालय भवन का निर्माण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि वह स्थान प्राकृतिक सुन्दर वातावरण से परिपूर्ण हो जिससे विद्यार्थियों का स्वास्थ्य अच्छा रह सके तथा अधिगम प्रक्रिया को प्रभावी एवं रुचिपूर्ण बनाया जा सके। प्राकृतिक वातावरण युक्त विद्यालय-भवन विद्यार्थियों, शिक्षकों तथा आगन्तुकों का सदैव आकर्षण का केन्द्र होता है।
3. विद्यालय-भवन का धरातल-विद्यालय-
भवन का निर्माण करते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि उसका धरातल ऊँचा हो जिससे वर्षा के दिनों में विद्यालय-भवन के आस-पास जल भराव न हो सके अन्यथा विषैले कीटाणुओं का भय रहता है जिससे शिक्षक व शिक्षार्थियों के स्वास्थ्य पर बुरा पड़ सकता है।
4. विद्यालय भवन की दिशा-विद्यालय-
भवन का निर्माण करते समय यह अत्यन्त महत्वपूर्ण सम्प्रत्यय है कि विद्यालय भवन दक्षिण पूर्व दिशा में हो तो सर्वोत्तम होता है। इससे शीतकाल में विद्यार्थियों को धूप सीधी उपलब्ध हो सकेगी तथा ग्रीष्म काल में सूर्य का प्रकाश सीधा भवन में प्रवेश नहीं कर सकेगा और ग्रीष्म काल में तेज चलने वाली हवाओं का प्रभाव कक्षा-कक्ष में नहीं पड़ेगा।
5. मिट्टी की प्रकृति का चयन-
विद्यालय भवन का निर्माण करते समय मिट्टी के चयन का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए। विद्यालय भवन के निर्माण के लिए रेतीली मिट्टी अधिक उपयोगी होती है क्योंकि इसमें वर्षा का जल नहीं ठहरतरा। यह बालू, कंकड़ तथा खड़िया से युक्त होती है अत: इसमें बने भवनों में सीलन आने का भय नहीं रहता।
6. भूमिगत जल-
विद्यालय निर्माण के लिए स्थान का चयन करते समय ऐसी भूमि का चुनाव करना चाहिए जहाँ भूमिगत जल का स्तर अधिक नीचा न हो तथा शीतल एवं मीठा हो। विद्यालय भूमि का चुनाव करते समय वहाँ के जल का निरीक्षण अवश्य करा लेना चाहिए। जिससे यह पता लग सके कि जल फ्लोराइड रहित है या नहीं। यदि जल फ्लोराइड रहित होगा तो विद्यार्थियों के स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव पड़ेगा अन्यथा विद्यार्थियों का स्वास्थ्य खराब रहेगा और उनमें विभिन्न रोग उत्पन्न होंगे।
7. अन्य-
यथासम्भव विद्यालय भवन का निर्माणा ऐसे स्थान पर होना चाहिए जहाँ प्राकृतिक प्रकाश, शुद्ध हवा, आवागमन, बिजली, पानी आदि की व्यवस्था सुगमता से उपलब्ध सके अन्यथा शिक्षक, शिक्षार्थियों को अध्ययन-अध्यापन में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। वर्तमान समय में विद्यालय भवन एक व्यापक एवं जटिल सम्प्रत्यय है। इसके अन्तर्गत विद्यालय की स्थिति, विद्यालय भवन, खेल का मैदान, शैक्षिक, उपकरण, पेयजल, शौचालय, साज-सज्जा तथा फर्नीचर आदि सभी की व्यवस्था आती है। इसके लिए उपयुक्त स्थान, स्थिति, भूमि तथा वातावरण आदि का विशेष ध्यान रखना चाहिए। विद्यालय भवन निर्माण के लिए भवन योजना अति आवश्यक होती है। अत: यह आवश्यक है कि विद्यालय भवन निर्माण करने से पहले उसका मास्टर प्लान (Master Plan) अवश्य किसी योग्य अभियन्ता के द्वारा स्वीकृत करा लेना चाहिए।
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