मापन के स्तर अथवा मापनियाँ
(Levels or Scales of Measurement)
मापन के स्तर अथवा मापनियाँ – मनोवैज्ञानिक मापन में विभिन्न प्रदत्तों को चार स्तरों के अन्तर्गत रखा जाता है। विषय सामग्री भौतिक हो या सामाजिक अथवा मनोवैज्ञानिक उसका मापन कई प्रकार से हो सकता है। निम्नतम स्तर के मापन में सुगमता अधिक होगी, किन्तु परिशुद्धता बहुत कम मात्रा में पायी जायेगी जबकि उच्चतम स्तर के मापन में जटिलता अवश्य होगी, किन्तु वह माप अधिक परिशुद्ध (Accurate) निष्कर्ष प्रदान करेगा। मापन की परिशुद्धता, उसके मापन-स्तर तथा वैज्ञानिकता को दृष्टि में रखते हुए मापन को चार स्तर या मापनियों का प्रयोग किया जाता है-
- शाब्दिक स्तर
- क्रमिक स्तर
- अन्तराल स्तर
- अनुपात स्तर
प्रायः मापन-प्रक्रिया में व्यक्तियों, वस्तुओं, निरीक्षणों, घटनाओं, विशेषताओं या प्रतिक्रियाओं को मात्रात्मक (Quantitative) या आंकिक (Numerals) रूप में व्यक्त किया जाता है, अतः उपर्युक्त मापनियों का उद्देश्य एक ही होता है, इनकी पारस्परिक भिन्नता मुख्यतया इस तथ्य पर आधारित है कि कोई मापनी विषय-वस्तु को मात्रात्मक या आंकिक मूल्य प्रदान करने में किस विधि का प्रयोग करती है तथा मापन किस स्तर का है। प्रायः प्रत्येक मापनी या स्तर के अपने-अपने नियम, विशेषताएँ, सीमाएँ तथा उपर्युक्त सांख्यिकीय विधियाँ हैं।
1. शाब्दिक स्तर या मापनी (Nominal Level or Scale)-
मनोवैज्ञानिक मापन का यह सबसे निम्न स्तर है, इसे कभी-कभी वर्गीकरण (Classification) स्तर के नाम से भी जाना जाता है। मापन की इस सरलतम मापनी में वस्तुओं अथवा घटनाओं को किसी गुण या विशेषता के आधार पर अलग-अलग समूहों में रख दिया जाता है तथा प्रत्येक व्यक्ति या समूह की पहचान के लिए उसे कोई अमुक नाम (Name), संख्या (Number) या चिन्ह (Code) दे दिया जाता है, अतएव एक समूह में शामिल समस्त पदार्थ आपस में समान तथा अन्य समूह के प्रत्येक पदार्थ से भिन्न होते हैं।
उदाहरणार्थ, फुटबाल की टीम में खिलाड़ियों की जर्सी पर नम्बर अंकित करना जिनसे उन अंकों के द्वारा खिलाड़ियों को पहचाना जा सके। इसी प्रकार व्यक्ति का लिंग के आधार पर स्त्रियों तथा पुरुषों में, रंग के आधर पर काले तथा गोरे में, निवास के आधार पर शहरी-ग्रामीण में, पेशे के आधार पर व्यापारी तथा नौकर आदि वर्गों में विभक्त किया जा सकता है। चूंकि यह एक निम्न-स्तरीय मापनी है, अतः मनोवैज्ञानिक तथ्यों के मापन में इनका प्रयोग बहुत ही कम किया जाता है। इस प्रकार के मापन में केवल गणना (Counting) ही सम्भव होती है, इसमें गणितीय संक्रियाओं का प्रयोग केवल गिनने के लिए ही होता है तथा इसमें समूहों को पहचानने वाले अंकों, चिन्हों आदि को भी जोड़ा, घटाया, गुणा एवं भाग नहीं दिया जाता है। अतएव इसमें गणना के अलावा किसी भी प्रकार की सांख्यिकी गणना सम्भव नहीं होती। प्रत्येक समूह में सम्मिलित व्यक्तियों की केवल गिनती की जाती है। इस स्तर में सदैव किसी विशेष पहलू के आधार पर वर्गों की रचना होती है, इसीलिए उनमें आन्तरिक समजातीयता (Internal Homogeneity) पायी जाती है, डाक वितरण के जोनल क्षेत्र निर्धारित करने- आगरा-1, आगरा-2, आगरा-3, आगरा-4, आदि टेलीफोन नम्बर देने, मोटर लाइसेंस नम्बर देने, इलाहाबाद बैंक 45, किसी टीम के खिलाड़ियों को नम्बर देने आदि में शाब्दिक स्तर के मापन का प्रयोग किया जाता है। इस मापनी के अन्तर्गत समूहों में वस्तुएँ किसी न किसी रूप में मिलती-जुलती होनी चाहिए। जैसे- केलों को वर्ग 1, सन्तरों को वर्ग 2, आम को वर्ग 3 देना। लिंग-भेद के अनुसार पुरुषों को कोड 1 तथा स्त्रियों को कोड 2, सफल-असफल, रुचिकर- अरुचिकर आदि वर्गों को अंक प्रदान किये जाते हैं।
2. क्रमिक स्तर या मापनी (Ordinal Level of scale)-
शाब्दिक स्तर से एक सोपान ऊपर स्तर जिसमें अंक-क्रमों को इंगित करते हैं। अन्य शब्दों में, इस स्तर के मापन में व्यक्तियों, वस्तुओं, घटनाओं, विशेषताओं या प्रतिक्रियाओं को किसी गुण या लक्षण के आधार पर उच्चतम से निम्नतम के क्रम में व्यवस्थित किया जाता है तथा प्रत्येक वस्तु आदि को एक क्रमसूचक अंक प्रदान किया जाता है।
उदाहरणार्थ– जब हम किसी कॉलेज की अमुक कक्षा के छात्रों को परीक्षा प्राप्तांकों के आधार पर प्रथम, द्वितीय, तृतीय आदि क्रम देते हैं, खिलाड़ियों को पुरस्कार प्रदान करते हैं, प्रार्थियों को रोजगार देते हैं, घुड़दौड़ करवाते हैं, सुन्दरता के आधर पर मिस इण्डिया या मिस वर्ल्ड का चयन करते हैं, किसी समूह में व्यक्तियों को सम्मान देते हैं आदि स्थितियों में क्रमिक स्तर मापनी का प्रयोग करते हैं। इस प्रकार व्यवसाय, प्रतिष्ठा, वेतन आदि के आधर पर भी व्यक्तियों को क्रमित किया जाता ।
इस प्रकार के प्रयोग में क्रम देने के लिए प्रायः दो विधियों का प्रयोग प्रचलित है-
(i) पंक्ति क्रम विधि-
यह एक सीधी विधि है जिसमें वस्तुओं आदि को कोटिक्रम के अनुसार क्रमबद्ध कर लिया जाता है। अपनी रुचि एवं स्वाद के आधार पर हम फलों की व्यवस्था इस क्रम- 1. आम, अंगूर, 2. सेब, 4. अनार, 5. सन्तरा आदि में करते हैं। इस प्रकार से शृखला के समस्त सदस्यों को उनका क्रम देने के लिए I II III, IV V… nth स्थान दिये जाते हैं तथा उनको इसी क्रम में रखा जाता है।
(ii) इसकी दूसरी विधि युग्म तुलना विधि (Paired Comparison Method) है, जिसमें समूह के समस्त सदस्यों का शृंखला के समस्त पदार्थों की युग्म या जोड़ों में तुलना की जाती है, किसी समूह में कितने जोड़े बनेंगे उसके nc2 = n(n-1) / 2 सूत्र का प्रयोग किया जाता है।
यद्यपि इस प्रकार की मापनी का अधिकांश रूप में उपयोग भौतिक, सामाजिक तथा मनोविज्ञान में किया जाता है, फिर भी इसे अत्यधिक परिशुद्ध, विश्वसनीय एवं वैज्ञानिक पद्धति नहीं समझा जाता है। इस स्तर में वस्तुओं का क्रमिक रूप देने के लिए जो अंक दिये जाते हैं, उसमें सामान्य गणितीय संक्रियाओं (गुणा, भाग, जोड़, घटाना) का प्रयोग नहीं होता बल्कि इसमें क्रमों पर आधारित सांख्यिकीय विधियाँ ही उपयुक्त रहती हैं। इन क्रमसूचक अंकों से मध्यांक (Median), शतांशीय मान (Percentile), क्रमबद्ध सह-सम्बन्ध गुणांक (p) की गणनाएँ सम्भव होती हैं, जिसमें मनोवैज्ञानिक तथ्यों के वर्णन में सहायता मिलती है। यह मापनी दो व्यक्तियों के मध्य अन्तर तो बताती है किन्तु इसके द्वारा यह ज्ञात नहीं हो पाता कि दो व्यक्तियों के मध्य वास्तविक अन्तर कितना है ?
3. अन्तराल स्तर या मापनी (Interval Level or Scale) –
मापन के तृतीय स्तर में क्रमिक स्तर की समस्त विशेषताएँ निहित हैं। इसमें दो वस्तुओं, व्यक्तियों या वर्गों के लिए मध्य दूरी या अन्तर को अंकों के माध्यम से ज्ञात किया जाता है तथा प्रत्येक अंक का अन्तर या दूरी सम होती है किन्तु इसमें यह ज्ञात नहीं होता कि उसमें से कोई भी अंक शून्य से कितनी दूर है क्योंकि इसमें वास्तविक शून्य बिन्दु नहीं पाया जाता है। अतएव सम दूरी पर व्यवस्थित अंक ही इस मापनी की स्थिर इकाई है। इसकी गणितीय संक्रियाओं में हम केवल अंकों को जोड़ तथा घटा सकते हैं। इसकी सबसे प्रमुख कमी यह है कि इसमें वास्तविक मूल्य बिन्दु नहीं होता। अतः इस मापनी द्वारा सापेक्षिक मापन (Relative measurement) तो सम्भव है निरपेक्ष मापन नहीं। यह सत्य हो सकता है कि एक छात्र किसी परीक्षण में शून्य प्राप्तांक हासिल करता है, इससे यह अभिप्राय नहीं कि वह छात्र उस विषय में कुछ भी ज्ञान नहीं रखता है। इस स्तर के मापन का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण थर्मामीटर है। मानव-शरीर का तापक्रम मापने हेतु जिस थर्मामीटर का उपयोग करते हैं उसमें 94° से 108° तक अंकित होते हैं। यहाँ 98 से 99% के मध्य जितनी दूरी है उतनी दूरी 107° से 108° के मध्य पायी जाती है, क्योंकि अन्तराल मापनी की प्रत्येक इकाई समान दूरी पर है। थर्मामीटर से ज्वर नापने पर यदि हम पारे को 95° पर ही पाते हैं तो माना जाता है कि शरीर में ज्वर की मात्रा शून्य है किन्तु इसका यह कदापि आशय नहीं है कि शरीर के भीतर तापक्रम का सर्वथा अभाव है। इसी प्रकार जब मनोवैज्ञानिक मापन में कोई छात्र किसी उपलब्धि परीक्षण में शून्य प्राप्तांक हासिल करता है तो यह नहीं कहा जा सकता कि उस छात्र की उस विषय में शून्य क्षमता है। वर्ष, महीना, सप्ताह, घंटा, मिनट आदि भी अन्तराल मापनी के उदाहरण हैं। इस मापनी के प्रयोग से जो अंक या संख्या प्राप्त होती है, उनमें अनेक भाँति की सांख्यिकी गणनाएँ जैसे- मध्यमान, मानक विचलन आदि सम्भव हैं।
4. अनुपात स्तर या मापनी (Ratio Level or Scale) –
भौतिक तथा मनोवैज्ञानिक मापन की अन्तिम या सर्वोच्च स्तर मापनी अनुपात मापनी है। यह मापनी अन्य मापनियों की अपेक्षा श्रेष्ठ, उच्चस्तरीय तथा वैज्ञानिक समझी जाती है। इसमें अन्तराल मापनी की समस्त विशेषताओं के साथ-साथ एक सत्य शून्य बिन्दु विद्यमान रहता है जो अन्य किसी भी मापनी में नहीं होता है। इसलिए इसे अन्तराल मापनी से भी अधिक श्रेष्ठ समझा जाता है। अनुपात मापनी में वास्तविक शून्य बिन्दु (True zero point) कोई कल्पित बिन्दु नहीं होता बल्कि इसका आशय किसी शीतगुण या विशेषता की शून्य मात्रा से है। भौतिक मापन में अनेक उदाहरण ऐसे हैं जहाँ कि निरपेक्ष शुन्य बिन्दु पाया है, जैसे- मीटर, मिलीमीटर, किलोमीटर, लीटर, ग्राम आदि। जब हम कपड़े की लम्बाई, वस्तुओं का भार या स्थानों की दूरी का माप करते हैं, ऐसी स्थिति में बिन्दु से ही प्रारम्भ किया जाता है जहाँ लम्बाई, भार या दूरी का अपना कोई अस्तित्व नहीं होता है। वास्तव में शून्य इंच की लम्बाई या शून्य किलोमीटर की दूरी कोई लम्बाई या दूरी नहीं होते, इसीलिए अनुपात मापनी में वास्तविक शून्य बिन्दु को ही मापनी का प्रारम्भिक बिन्दु माना जाता है। ऐसा होने के कारण ही हम दो विभिन्न दूरी के स्थानों में अनुपात का पता लगा लेते हैं और निश्चित रूप से कह सकते हैं कि ‘अ’ स्थान ‘ब’ स्थान से आधी, दुगुनी या तिगुनी दूरी पर है। इसी प्रकार यदि किसी गुण विशेष की मात्रा के आधार पर राखी, शशि तथा विभा को 15, 30 तथा 60 प्राप्तांक प्रदान किये जाएँ तो इस मापनी के अनुसार यह अर्थ होगा कि राखी के अन्दर वह गुण जिस मात्रा में विद्यमान है शशि में उसकी दुगुनी मात्रा में है तथा विभा में चौगुनी मात्रा में पाया जाता है। अतः इस मापनी की पत्येक इकाई की दी गई संख्या मापित गुण की विभिन्न मात्राओं के मध्य अनुपात को प्रकट करती है। इसमें गणितीय, संक्रियाओं के प्रयोग की कोई निश्चित सीमा न होकर समस्त संक्रियाओं- गुणा, जोड़, भाग, घटाने का प्रयोग किया जाता है।
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