शैक्षिक मापन की विशेषताएँ
(CHARACTERISTICS OF EDUCATIONAL MEASUREMENT)
शैक्षिक मापन की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. मापन में कोई निरपेक्ष शून्य बिन्दु नहीं होता है। यह किसी कल्पित मानक के सापेक्ष होता है।
2. मापन की कोई भी इकाई निश्चित नहीं होती है। इनका मान हर एक व्यक्ति के लिए असमान होता है।
3. शिक्षा में मापन अनन्तता की दशा बनाए रखता है। हम कभी यह साबित नहीं कर सकते कि हमने छात्र की सभी उपलब्धियों का मापन कर लिया है।
4. मापन का उपयोग आत्मनिष्ठ मूल्यांकन की अपेक्षा ज्यादा मितव्ययी है।
5. मापन प्रत्यक्ष नहीं है अर्थात् उसका सीधा मापन न होकर किसी उपयुक्त माध्यम से होता है। जिस तरह बालक की उपलब्धि का मापन उसके काम तथा व्यवहारों के अवलोकन से करते हैं, उसी तरह बिजली की पहचान बल्ब के जलने पर होती है।
6. मापन किसी भी वस्तु का आंशिक वर्णन अत्यधिक शुद्ध रूप से करता है।
शैक्षिक मापन के आवश्यक तत्व
(Essential Elements of Measurement)
शैक्षिक मापन का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का मात्रात्मक रूप से अध्ययन करना है। यद्यपि हम किसी विशेष समय में व्यक्ति के समस्त गुणों का-मापन नहीं कर सकते, अतएव हमें उसके कुछ गुणों के चयन की आवश्यकता होती है। हम व्यक्ति के केवल उन गुणों का चयन एवं मापन करते हैं जिनका सम्बन्ध उसकी वर्तमान अवस्था से होता है। अतएव, किसी भी क्षेत्र सम्बन्ध मापन-क्रिया के अन्तर्गत निम्नलिखित तीन चरणों का अध्ययन आवश्यक होता है।
1. गुण को पहचानना एवं परिभाषित करना (Indentifying and Defining the Attribute)-
किसी भी वस्तु या व्यक्ति का मापन करने से पूर्व सर्वप्रथम उसके गुणों को पहचाना जाता है एवं उसकी व्याख्या की जाती है क्योंकि मापन-क्रिया के अन्तर्गत व्यक्ति या वस्तु के सम्पूर्ण व्यवहार का अध्ययन न करके केवल उसके कुछ ही गुणों (Attributes) के मापन का प्रयास किया जाता है। अतएव मापनकर्ता का सर्वप्रथम कार्य प्रस्तुत व्यक्ति या वस्तु के गुण की पहचान करना होता है, जैसे- मेज की लम्बाई, सिगरेट की गन्ध, साइकिल टायर के टिकाऊपन, बालक की बुद्धि, शरीर का तापक्रम, किशोर की संवेगात्मक परिपक्वता आदि। इसके अतिरिक्त, किसी गुण की पहचान करने के पश्चात् उसे परिभाषित करना या उसकी व्याख्या करना भी आवश्यक होता है जिससे मापन-क्रिया को सुगमतापूर्वक सम्पन्न किया जा सके। अधिकांश रूप से हमें साधारण भौतिक गुणों- लम्बाई, ऊँचाई, भार आदि की व्याख्या करने की कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती, क्योंकि प्रायः व्यक्ति इनका अभिप्राय या अर्थ समझते हैं, किन्तु सम्पूर्ण मानसिक गुणों एवं जटिल भौतिक गुणों के संदर्भ में यह कथन पूर्णतया सत्य नहीं माना जा सकता है। हम कभी-कभी ऐसे मानसिक एवं जटिल भौतिक गुणों का मापन करते हैं, जिनकी व्याख्या किये बिना हमारी मापन-क्रिया ही सम्भव नहीं, क्योंकि इस प्रकार के गुणों के कई अर्थ निकलते हैं। उदाहरणार्थ- किसी टायर से टिकाऊपन के यहाँ अनेक अर्थ हो सकते हैं, ऐसा टायर जो सड़क की रगड़ से कम फटे या ऐसा टायर जो लम्बे समय तक प्रयोग में लाया जा सके अथवा ऐसा टायर जिसमें कम पंचर हो अथवा इन तीनों विशेषताओं के मिश्रणा वाला टायर। कहने का तात्पर्य यह है कि जब तक हम टायर के टिकाऊपन का अर्थ निश्चित नहीं करेंगे, उसका मापन कदापि सम्भव नहीं हो सकेगा। इसी प्रकार किसी मानसिक गुण जैसे बुद्धि का मापन करने से पूर्व यह जान लेना आवश्यक है कि बुद्धि से हमारा क्या आशय है? क्या बुद्धि अमूर्त विचारों का नाम है? या क्या बुद्धि चयन एवं विभेद करने की शक्ति है? या क्या बुद्धि अवधान की स्थिति है? अथवा क्या बुद्धि नवीन परिस्थितियों में समायोजन की योग्यता है, आदि। अतएव, यह स्पष्ट है कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति के गुणों की व्याख्या करने में हमें अनेक प्रकार से विचार करना होता है। यह कथन लगभग समस्त मनोवैज्ञानिक प्रत्ययों के सम्बन्ध में उपयुक्त इसीलिए जब भी मापनकर्ता किसी वस्तु या व्यक्ति के गुण के मापन का प्रयास करता है उसके समक्ष सर्वप्रथम समस्या उस गुण की स्पष्ट एवं उपयुक्त परिभाषा करने की होती है। अतएव मापन के प्रथम चरण में वस्तु या व्यक्ति के गुण की पहचान एवं परिभाषा प्रस्तुत की जाती है।
2. गुणों को अभिव्यक्त या जानने वाले संक्रिया-विन्यास को निश्चित करना (Determining Set of Operations by which Attributes may be expressed)-
मापन का दूसरा आवश्यक पहलू, उन संक्रिया विन्यासों (Set of Operations) को निश्चित करना है जिनके माध्यम से मापनकर्ता गुणों को अभिव्यक्त कर सके। लम्बाई के मापन हेतु हम बहुधा एक-सी ही संक्रिया-प्रक्रियाओं, जैसे- मीटर, टेप आदि का प्रयोग करते हैं, किन्तु यह जान लेना आवश्यक है कि लम्बाई एवं दूरी का मापन सदैव ही सरल नहीं होता, प्रश्न उठता है, सूर्य से पृथ्वी की दूरी या भारत एवं अमेरिका की दूरी अथवा एक तपेदिक के अत्यन्त ही सूक्ष्म कीटाणु की लम्बाई मापने में हम संक्रियाओं (Operations) का प्रयोग कैसे करेंगे? अतएव, इनका उपयुक्त रूप से मापन करने हेतु कुछ अप्रत्यक्ष, विस्तृत एवं उपयुक्त संक्रियाओं को निर्धारित किया जाता है जो गुणों को अभिव्यक्त एवं जानने में सहायक होती हैं। यहाँ यह स्मरणीय है कि किसी गुण की परिभाषा करने एवं उसमें प्रयोग होने वाली संक्रियाओं के मध्य आपस में सम्बन्ध होता है अर्थात् गुण की परिभाषा करते समय उसमें प्रयुक्त होने वाली सार्थक संक्रियाओं का वर्णन भी किया जाता है तथा संक्रियाओं के प्रयोग से पूर्व उस गुण की क्रियात्मक परिभाषा (Functional Definition) दी जाती है। अतएव, मापन के अन्तर्गत हमारा दूसरा उद्देश्य गुण की क्रियात्मक एवं प्रकार्यरूप में परिभाषा प्रस्तुत करते हुए उसमें प्रयोग होने वाले संक्रिया विन्यास को निर्धारित करना होता है। उदाहरणार्थ- यदि हम किसी विद्यालय के छात्रों के किसी शीलगुण-नागरिकता का मापन करना चाहते हैं तो हमारे सम्मुख सर्वप्रथम प्रश्न उठता है कि बच्चों के लिए नागरिकता का क्या आशय है? इसलिए हमें नागरिकता की एक सर्वसम्मत परिभाषा देनी होगी तथा यह देखना होगा कि बच्चों में उसकी उपस्थिति एवं अनुपस्थिति ज्ञात करने के लिए किन संक्रियाओं का प्रयोग किया जा सकता है।
3. गुणों को अंशों या योग का इकाईयों में मात्रांकित करना (To Quantity the Traits in the Units of Parts or Sum)-
मापन के तीसरे चरण में, संक्रियाओं के निष्कर्षों को मात्रात्मक रूप में व्यक्त किया जाता है। मापन में हमारा सम्बन्ध अधिकांश रूप में इन प्रश्नों- कितने (How many) तथा कितना (How much) से रहता है। भौतिक गुणों के मापन में तो इकाइयों में समानता दृष्टिगत होती है, जब किसी मेज की लम्बाई के विषय में बात करते हैं तो यह कहते हैं- यह मेज कितने इंच लम्बी है तथा उतने ही इंच लम्बी दूसरी मेज को प्रस्तुत कर सकते हैं किन्तु मनोवैज्ञानिक गुणों की ऐसी कुछ भी इकाइयाँ नहीं होतीं जिनकी समानता को प्रत्यक्ष तुलना में व्यक्त किया जाए। हम कैसे कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति की गणित योग्यता जानने में X- समस्या Y- समस्या के समान है या दो व्यक्ति बुद्धि के दृष्टिकोण से समान हैं। अतएव, उन गुणों, जिनका सम्बन्ध मनोवैज्ञानिक से होता है, की कुछ ऐसी परिभाषाएँ देनी होती हैं जो उनकी इकाई तथा मात्रात्मकता को व्यक्त करें। इस प्रकार से मापन के अन्तिम चरण में, गुणों को योग की इकाइयों में मात्रांकित किया जाता है।
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