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प्लेटो का जीवन परिचय, कृतियाँ, जीवन दर्शन, शैक्षिक दर्शन, प्लेटो की शिक्षा को देन

प्लेटो का जीवन परिचय
प्लेटो का जीवन परिचय

प्लेटो का जीवन परिचय

प्लेटो अपने समय के महान विद्वान थे। एथेन्स की सभ्यता प्लेटो के विचारों की देन थी। प्लेटो के पिता अरिस्तन एक अच्छे खिलाड़ी थे। उस समय खेलों और संगीत के माध्यम से शिक्षा देने की व्यवस्था थी। प्लेटो को भी इन्हीं के द्वारा शिक्षा प्राप्त हुई।

प्लेटो जब बीस वर्ष की आयु के थे, सुकरात के सम्पर्क में आए। उस समय सुकरात ग्रीक के महान दार्शनिक थे। प्लेटो जहाँ धनी परिवार से सम्बन्धित थे, वहीं सुकरात अत्यन्त निर्धन थे। सुकरात के व्यक्तित्व और विचारों ने प्लेटो को अत्यन्त प्रभावित किया। सुकरात से प्रेरणा प्राप्त कर प्लेटो ने संवाद रूप में कुछ रचनाएँ लिखी। इन रचनाओं में नैतिक आचरण की अभिव्यक्ति की गई थी। अपने गुरु की निर्मम हत्या से प्लेटो की आत्मा विद्रोह कर उठी और उन्होंने अपनी इच्छा से एथेन्स छोड़ दिया। प्रारम्भ में तो प्लेटो को अपने विचारों पर संदेह था किन्तु धीरे-धीरे उसमें आत्म-विश्वास का उदय हुआ और वह अपने विचारों को लिखने लगे। उसका कहना था कि जीवन के गुणों को पहले समझा जाए, तभी वे जीवन के अंग बन सकते हैं।

सुकरात की मृत्यु के पश्चात् प्लेटो ज्ञान की खोज में इधर-उधर भटकता रहा। वह मिश्र और मेगारा में रहा तथा मिश्र की शिक्षा-व्यवस्था से वह बहुत प्रभावित हुआ। वह इटली गया और वहाँ उसने पाइथागोरस के सिद्धान्तों का अध्ययन किया। सिसली जाकर उसने राजा डायनिसियस के दरबार में रहकर वहाँ की शासन व्यवस्था का अध्ययन किया। प्लेटो को साहित्यिक, राजनैतिक तथा सामाजिक तीनो पक्षों का वृहत्त ज्ञान था लेकिन उसने राजनीति के क्षेत्र में अधिक रुचि ली। शिक्षा-व्यवस्था के क्षेत्र में उसके विचार अभूतपूर्व हैं। उसके मतानुसार किसी भी देश की उन्नति वहाँ के नवयुवकों पर निर्भर है जिन्हें शिक्षा प्रदान कर कुशल नागरिक के रूप में तैयार किया जा सकता है।

उसने व्यक्ति को अच्छा नागरिक बनाने हेतु पाठ्यचर्या में दर्शनशास्त्र, संगीत, गणित, शिक्षा मनोविज्ञान, राजनीति और समाजशास्त्र पढ़ाने की व्यवस्था की। वह कसौटी पर परखे हुए सिद्धान्तों को ही स्वीकार करता था। वस्तुतः आज तक यूरोप की राजनीति, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र एवं शिक्षा-व्यवस्था प्लेटो के विचारों से ही प्रभावित है। प्लेटो के विचारों से समूचा विश्व ही प्रभावित रहा है।

प्लेटो की प्रमुख कृतियाँ (Plato’s Main Compositions)

प्लेटो की शिक्षा व राजनीति सम्बन्धी दो रचनाएँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं, ये हैं- ‘The Republic’ तथा ‘The Laws’। प्लेटो ने सुकरात पर भी एक पुस्तक वार्तालाप के रूप में लिखी थी। ‘द रिपब्लिक’ ग्रन्थ साहित्य का एक उत्कृष्ट नमूना है, जिसमें शिक्षा राज्य व राजनीति के सम्बन्ध में विचार संग्रहित है। यह पुस्तक दार्शनिक दृष्टिकोण से लिखी गई एक महान रचना है। ‘दि लॉज’ रचना को प्लेटो के सम्पूर्ण जीवन का दार्शनिक निष्कर्ष कहा जा सकता है। इसकी रचना प्लेटो ने अपनी वृद्धावस्था में की थी।

प्लेटो का जीवन दर्शन (Plato’s Philosophy of Life)

(1) ज्ञान (Knowledge) – सुकरात के अनुसार, ‘ज्ञान’ आत्मा को संस्कारों के रूप में मिलता है और मनुष्य के मस्तिष्क में उपस्थित रहता है। जन्म लेने पर यह ज्ञान संस्कारों के रूप में व्यक्ति को मिल जाता है। प्लेटो ने सुकरात से प्रभावित होकर ज्ञान के तीन प्रमुख स्रोत बतलाए हैं-

(i) ज्ञानेन्द्रियों से प्राप्त ज्ञान- हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ आँख, कान, नाक, जीभ और त्वचा जिन संवेदनाओं से हमें अनुभूत कराती हैं, वह ज्ञानेन्द्रियजन्य ज्ञान होता है। ठोस, द्रव, गैस, सुगन्ध-दुर्गन्ध, तीखा, कोमल, गर्म, ठण्डा आदि ज्ञान इसी प्रकार का ज्ञान है।

(ii) किसी वस्तु के प्रति अपनी सम्मति- पहले व्यक्ति ज्ञानेन्द्रियजन्य ज्ञान प्राप्त करता है फिर वह किसी वस्तु के प्रति अपनी सम्मति देने लगता है परन्तु यह सम्मति वैयक्तिक भेद के कारण सभी को समान रूप से मान्य नहीं होती इसलिए यह ज्ञान विश्वसनीय नहीं माना जाता।

(iii) मस्तिष्कजन्य ज्ञान (विवेक)- यह सर्वोत्तम ज्ञान हैं जिसमें सत्यं शिवं और सुन्दरम् के गुण छिपे होते हैं। गणित सम्बन्धी ज्ञान इसी प्रकार का ज्ञान है। सूक्ष्म होने के कारण इस ज्ञान को स्थूल पदार्थ की भाँति नहीं जाना जा सकता फिर भी इसकी कल्पना की जा सकती है। यह ज्ञान विचारात्मक, मौलिक चिन्तन पर आधारित एवं प्रमाणित होता है। यह सार्वभौमिक रूप से सर्वमान्य होता है।

(2) शरीर और आत्मा (Body and Soul)- प्लेटो आदर्शवादी दार्शनिक था। उसने आत्मा और शरीर के बीच अन्तर स्पष्ट करने का प्रयत्न किया। मानव, आत्मा और शरीर से बनता है और यह विश्व की सर्वोत्तम रचना है। यह जगत का सार है। शरीर की रचना भौतिक तत्वों से होती है। इसलिए इसमें बहुत से विकार और बुराइयाँ होती हैं। प्लेटो के अनुसार आत्मा सद्गुणों से युक्त होती है। इसके तीन अंश है-

(i) तृष्णा- इसका केन्द्र नाभि है तथा दैहिक इच्छाएँ इसी से पैदा होती हैं।

(ii) साहस- इसका केन्द्र हृदय है। साहस और सहनशीलता इसी से उत्पन्न होती है। यह सभी कार्यों को प्रोत्साहन देता है।

(iii) विवेक- इसका केन्द्र मस्तिष्क है। विवेक सदैव एक सा रहता है। इसका रूप नहीं बदलता। शरीर विवेक का बन्दीगृह है। यदि शरीर से विवेक निकल जाए तो शरीर का अस्तित्व नष्ट हो जाएगा। विवेक दैवीय शक्ति का अंश है। इसी से अच्छे कार्य प्रेरित होते हैं। भौतिक शरीर नेत्रों से देखकर प्रत्यक्ष ज्ञान की अनुभूति करता है तो आत्मा विवेक से देखकर सत्यं शिवं और सुन्दरम् की अनुभूति किया करती है। शिक्षा का लक्ष्य इसी विवेक को जागृत करना है जिसके बिना जीवन की पूर्णता प्राप्त नहीं होती।

(3) प्लेटो के नैतिक आदर्श (Plato’s Moral Ideals)- प्लेटो के शिक्षा-सिद्धान्त उसके आदशों पर आधारित है। प्लेटो प्रत्येक नागरिक को आदर्श नागरिक बनाना चाहता था। उसका आदर्श बनाने का अर्थ सद्गुणों को ग्रहण करके उनके अनुकूल आचरण करने से है। वह इन सद्गुणों को आत्मिक मानते हैं। मानव के मनोवैज्ञानिक स्वभाव के आधार पर प्लेटो आत्मा के सद्गुणों, जैसें- धैर्य, न्याय, आत्म-संयम, तीव्र बोधगम्यता, स्मरण शक्ति को उच्च आदर्श का नाम देता है। प्लेटो के अनुसार, विवेक मानव का सर्वोत्तम गुण है। जब व्यक्ति आत्म-संयम (Self-Control), धैर्य (Courage) और ज्ञान (Knowledge) का संयोग हो जाता है तो उसमें न्याय (Justice) उभर कर आता है। इससे व्यक्ति उच्च आदर्शो (High Ideals) को अपनाने के लिए प्रेरित होता है।

सुकरात की भाँति प्लेटो भी विश्व कल्याण को प्राथमिकता देता है। इसी से चरम आनन्द की उपलब्धि हो सकती है।

प्लेटो का शैक्षिक दर्शन (Plato’s Educational Philosophy)

प्लेटो अपने समय की व्यक्तिगत तथा सामाजिक समस्याओं को शिक्षा के माध्यम से हल करना चाहता था। उसने व्यक्ति तथा समाज दोनों को समान महत्व दिया तथा दोनों को एक दूसरें का पूरक समझा। उसके शिक्षा सम्बन्धी प्रमुख विचार इस प्रकार हैं-

(1) शिक्षा प्रदान करना राज्य का कर्त्तव्य है। यह केवल शिक्षा ही है जो योग्य योद्धा एवं उत्तम नागरिकों का निर्माण कर सकती है। अतः शिक्षा के माध्यम से अच्छे नागरिक उत्पन्न करना राज्य का कर्त्तव्य है

(2) राज्य की संस्कृति से शिक्षा को अलग नहीं किया जा सकता।

(3) अपने देश के लिए जीना तथा अपने देश के लिए मरना यह प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है। शिक्षा को उसमें देश-भक्ति की भावना भरनी चाहिए।

(4) एक आदर्श राज्य में शिक्षा व्यक्ति एवं राज्य दोनों की उन्नति का साधन होती है। यह केवल शिक्षा ही है जो राजनीतिक तन्त्र के दोषों को दूर करके उसे एक आदर्श राज्य का स्वरूप प्रदान कर सकती। इसलिए परिवार के हाथों में शिक्षा का दायित्व नहीं सौंपना चाहिए। प्लेटो कहता है कि एथेन्स के पतन का यही मुख्य कारण था।

(5) राज्य को शिक्षा की समस्त जिम्मेदारियों को स्वयं वहन करना चाहिए।

(6) प्लेटो के शैक्षिक सिद्धान्त चार स्तम्भों पर टिके हैं- योग्यता, ज्ञान, सेवा एवं राजनीति । योग्यता का अर्थ सीखने वाले की योग्यता के अनुसार शिक्षा एवं ज्ञान का प्रदान करने से है। अच्छी शिक्षा वही मानी जाती है जो बालक को यह सिखाए कि अच्छी चीजों से प्यार करना चाहिए तथा बुरी चीजों से घृणा करनी चाहिए। सेवा का अर्थ है कि शिक्षा नवयुवकों में देश प्रेम की भावना जागृत करे तथा राजनीति का अर्थ शासन एवं प्रशासन करने की कला से है।

उपरोक्त विचारों के अतिरिक्त प्लेटो ने शिक्षा के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला है। जिसका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

शिक्षा का अर्थ (Meaning of Education)

प्लेटो के अनुसार, “शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस प्रशिक्षण से है, जिससे अच्छी आदतों के द्वारा बालकों में नैतिकता का विकास होता है।”

प्लेटो ने शिक्षा को नैतिक शिक्षण की प्रक्रिया के रूप में माना है जिसके द्वारा व्यक्ति की प्रवृत्तियों का सुधार किया जाता है। उसके अनुसार, शिक्षा वह प्रयत्न है जो प्रौढ़ व्यक्ति बालकों की उन्नति हेतु करते हैं। प्लेटो शिक्षा को सत्यम् शिवम् सुन्दरम की प्राप्ति का साधन मानता है।

शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education)

प्लेटो ने शिक्षा के निम्नलिखित उद्देश्य बतायें हैं-

(1) ईश्वर को जानना (To Know God)- शिक्षा का यह दायित्व है कि वह बालक को इस योग्य बनाए कि वह ईश्वर के साथ आत्म-साक्षात्कार कर सकें। इसके लिए उसने बालकों को जीवन के मूल्यों की शिक्षा देने पर बल दिया। उसका मानना था कि इसके लिए बालकों को संसार के वास्तविक स्वरूप की जानकारी दी जाए। वस्तुतः प्लेटो के ये विचार भारतीय दर्शन से मिलते जुलते हैं क्योंकि भारतीय शिक्षाशास्त्रियों ने मुक्ति अथवा मोक्ष को शिक्षा का अन्तिम उद्देश्य स्वीकार किया है।

(2) सत्यम् शिवम् सुन्दरम् के प्रति आस्था उत्पन्न करना (To Awake Faith in the Truth God and the Beauty) – प्लेटो ने शिक्षा का प्रारम्भिक उद्देश्य सत्यम्, शिवम्, सुन्दरम की भावना का विकास माना है तथा उसे प्रारम्भिक वर्षों की शिक्षा के द्वारा प्राप्त करने के लिए बल दिया है। प्लेटो के अनुसार, प्रारम्भ में ऐसा शैक्षिक वातावरण उत्पन्न करना चाहिए जिससे बालक में सुन्दरम् के प्रति उत्पन्न हो तथा आगे चलकर यह प्रेम सत्यम् एवं शिवम् के रूप में विकसित हो

(3) व्यक्तित्व का विकास करना (To Develop Personality) – प्लेटो के अनुसार, शिक्षा का दायित्व बालक के व्यक्तित्व का विकास करना है। वस्तुतः शिक्षा द्वारा ऐसे जीवन का निर्माण होना चाहिए जो प्रेम का जीवन हो, न्याय का जीवन हो और सौन्दर्य का जीवन हो । स्पष्ट है कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तित्व का समविकास करना होना चाहिए। प्लेटो के अनुसार, आदर्श व्यक्तित्व का निर्माण व विकास शिक्षा का महत्वपूर्ण उद्देश्य है।

(4) नागरिकता के गुणों का विकास करना (To Develop the Qualities of Citizenship) – प्लेटो के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य बालकों में नागरिकता के गुणों का विकास करना है। राज्य के प्रत्येक नागरिक में सत्यम, शिवम्, सुन्दरम् के गुणों के साथ ही साथ सहिष्णुता, प्रेम, त्याग, सामूहिक जीवन की भावना, साहस, वीरता आदि गुण भी होने चाहिए। इसके साथ ही उसमें ज्ञान व विवेक भी हो जिससे वह भौतिक इच्छाओं का दास न बनें तथा समाज के हितार्थ अपना कुछ योगदान दे सके।

(5) मानव जीवन में संतुलन स्थापित करना (To Establish Equilibrium in Human Life)– मानव जीवन में अनेकानेक विरोधी तत्व विद्यमान रहते हैं। शिक्षा का लक्ष्य यह होना चाहिए कि बालक इन तत्वों को पहचानने तथा इनमें संतुलन स्थापित करे। उसमें विरोधी परिस्थितियों में कार्य करने की क्षमता उत्पन्न हो शिक्षा के द्वारा बालक में पूर्ण आत्मविश्वास का भाव जागृत होना चाहिए।

शिक्षा की पाठ्यचर्या (Curriculum of Education)

प्लेटो वह प्रथम शिक्षाशास्त्री हैं जिसने पाश्चात्य शिक्षा के इतिहास में पाठ्यचर्या के विषय में व्यवस्थित विचार व्यक्त किए हैं। प्लेटो के अनुसार, प्रथम 10 वर्षों में बालकों को अंकगणित, ज्यामितीय, संगीत, नक्षत्र विद्या की कुछ बातें सिखानी चाहिए। माध्यमिक स्तर पर वह खेलकूद, व्यायाम, शैक्षिक प्रशिक्षण, गणित, कविता, संगीत तथा धर्मशास्त्र की शिक्षा देने के पक्षधर हैं। प्लेटों ने काव्य तथा साहित्य शिक्षा पर भी बल दिया है। उच्च शिक्षा के पाठ्यचर्या में डाइलेक्ट्रिक (Dielectric) को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान दिया है। डाइलेक्ट्रिक का अर्थ सत्य की खोज के लिए होता है। डाइलेक्ट्रिक प्रशिक्षण से ही व्यक्ति दार्शनिक शासक बन सकता है। इसके अतिरिक्त मनोविज्ञान, राजनीति, न्याय और समाजशास्त्र आदि के अध्ययन पर भी बल दिया गया।

शिक्षण विधि (Method of Teaching)

प्लेटो ने उद्देश्य के अनुकूल निम्नलिखित शिक्षण विधियाँ बतलायी है-

(1) तर्क या वाद-विवाद विधि- शिक्षण विधियों में प्लेटो ने तर्क या वाद-विवाद विधि को सर्वश्रेष्ठ माना है। इस सम्बन्ध में कहा गया है ‘प्लेटो की योजना में सबसे महान विषय डाइलेक्ट्रिक (तर्क) का है। “डाइलेक्ट्रिक क्या हैं? शाब्दिक अर्थ में वह ‘विचारवान व्यक्तियों का वाद-विवाद या तर्कयुक्त स्पष्टीकरण हैं।

(2) प्रश्नोत्तर विधि – इस विधि का सूत्रपात सुकरात ने किया था। प्लेटो ने इसे स्वीकार किया। इस विधि में तीन सोपान माने जाते हैं-

(i) उदाहरण,

(ii) परिभाषा, तथा

(iii) निष्कर्ष।

प्रथम सोपान अर्थात् उदाहरण का आरम्भ वार्तालाप से होता है। दूसरे सोपान में परिभाषा में आवश्यक व्याख्या तथा सामान्य गुणों का निर्धारण होता है और तीसरे सोपान अर्थात् निष्कर्ष में परिणाम प्राप्त होता है।

(3) वार्तालाप विधि – इस विधि को प्रश्नोत्तर विधि का अंग कह सकते हैं। प्रारम्भ में इसका प्रयोग सुकरात और प्लेटो ने ही किया था। बाद में इस विधि का इतना अधिक प्रयोग किया गया है कि यह उच्च शिक्षा का माध्यम बन गई है।

(4) प्रयोगात्मक विधि- विभिन्न कलाओं एवं उद्यमों को सीखने तथा वैज्ञानिक विधियों के के लिए प्रयोगात्मक विधि का प्रयोग किया गया। व्यायाम, जिमनास्टिक, संगीत और विज्ञान के शिक्षण के लिए इस विधि को सर्वोत्तम माना गया है।

(5 ) स्वाध्याय विधि – 50 वर्ष की आयु के बाद की शिक्षा के लिए प्लेटो ने स्वाध्याय विधि सर्वोत्तम बतायी है। इस अवस्था में दर्शन, तर्क, अध्यात्म शास्त्र आदि विषयों के के लिए कहा गया है।

शिक्षक (Teacher)

प्लेटो ने शिक्षक को बहुत उच्च स्थान प्रदान किया। उसके अनुसार शिक्षक को बहुत योग्य, आदर्श गुणों से युक्त और अनुभवी होना चाहिए जिससे वह शिक्षा के कार्य क सम्पादन भली प्रकार से कर सके। प्लेटो स्वयं शिक्षक था इसलिए उसने अपने आदर्शों और गुणों को सामने रखकर शिक्षक के गुणों एवं कर्तव्यों को निर्धारित किया है। प्लेटो ने दार्शनिकों को ही समाज का कर्णधार माना है। इन्हीं दार्शनिकों में शिक्षक की गणना की जा सकती है।

अनुशासन (Discipline)

प्लेटो का विश्वास था कि बालक स्वभाव से नियमों में बँधना नहीं चाहता है। नियन्त्रण में रखने के लिए उसे दण्ड भी दिया जाना चाहिए। दण्ड विधान और पुरस्कार में प्लेटो का विश्वास था। इस प्रकार प्लेटो मुक्त्यात्मक अनुशासन का विरोधी था। इसलिए उसने कहा कि बालक को खेल में भी स्वतन्त्र नहीं रखा जाना चाहिए। उस पर वयस्कों तथा अधिकारियों का कठोर निरीक्षण तथा नियन्त्रण होना चाहिए।

प्लेटो की शिक्षा के अन्य पक्ष (Other Aspects of Plato’s Education)

प्लेटो ने अन्य शिक्षा के पक्ष इस प्रकार हैं-

(1) स्त्री शिक्षा- प्लेटो ने स्त्री एवं पुरूष को समान माना है तथा उनमें कोई अन्तर नहीं किया है फिर भी वह स्त्री वर्ग को पुरुष वर्ग से कमजोर माना तथा उनके लिए अलग से कोई शिक्षा का प्रावधान नहीं किया। प्लेटो ने अपनी पुस्तक ‘Republic ‘ में लिखा है- “राज्य का संरक्षण करने की क्षमता स्त्री-पुरुष में समान है परन्तु स्त्री बल की दृष्टि से निर्बल अवश्य होती है।”

प्लेटो ने पुरुषों की भाँति स्त्री शिक्षा को महत्व दिया तथा विभिन्न पदों की उनके लिए मांग की।

(2) दास वर्ग की शिक्षा- प्लेटो ने दास वर्ग को किसी भी प्रकार की शिक्षा प्रदान करने के पक्ष में नहीं था। दास वर्ग युद्ध में पराजित व्यक्ति होते थे। प्लेटो ने पुश्तैनी कार्य एवं हाथ से किये जाने वाले सभी कार्य दास वर्ग को ही करने के पक्ष में था।

आलोचना (Criticism)

शिक्षा जगत में प्लेटो की शिक्षा योजना की आलोचना हुई है। इनकी शिक्षा योजना में बतलाए गए कुछ प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(1) प्लेटो समाज को व्यक्ति से ऊपर मानते थे जिससे व्यक्तिगत स्वतन्त्रता का हनन होता है।

(2) प्लेटो व्यक्ति के अधिकारों और कर्तव्यों में कोई सामंजस्य नहीं ला सके। व्यक्ति के राज्य के प्रति कर्तव्य तो सभी हैं परन्तु अधिकार कोई नहीं।

(3) प्लेटो ने औद्योगिक एवं व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था को आवश्यक नहीं माना।

(4) प्लेटो ने प्रशासक के लिए भी दर्शन-शास्त्र का अध्ययन आवश्यक बताया परन्तु इसमें सन्देह है कि दर्शन-शास्त्र प्रशासन में किसी भी प्रकार का सहायक हो सकता है।

(5) बालक की शिक्षा में परिवार का महत्वपूर्ण स्थान होता है परन्तु प्लेटो बालक शिक्षा में परिवार के प्रयासों को स्वीकार नहीं करता। की

(6) स्त्री-पुरुष का स्वभाव व आवश्यकताएँ भिन्न होने के कारण स्त्री की शिक्षा की पृथक् व्यवस्था होनी चाहिए परन्तु प्लेटो ने स्त्री शिक्षा का पृथक् उल्लेख नहीं किया।

प्लेटो की शिक्षा को देन (Plato’s Contribution to Education)

शिक्षा के क्षेत्र में प्लेटो के योगदान को निम्न प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है-

(1) प्लेटो ने ही सर्वप्रथम शैशवावस्था से लेकर सम्पूर्ण जीवन शिक्षा योजना सुव्यवस्थित ढंग से निर्मित करके प्रस्तुत की। इससे पूर्व इस तरह की योजना नहीं बनी थी

(2) प्लेटो ने शिक्षा में आदर्शवादी दृष्टिकोण का समावेश किया। उसने व्यक्ति व समाज के समक्ष सत्यम्, शिवम् व सुन्दरम् का आदर्श रखा।

(3) प्लेटो ने शिक्षा को बुद्धि-विभेद के आधार पर देने की योजना प्रस्तुत की। इस प्रकार उन्होंने बालक की शिक्षा को मनोवैज्ञानिक आधार प्रदान किया।

(4) प्लेटो ने संगीत की शिक्षा व शारीरिक शिक्षा में समन्वय का प्रयास किया। उनके शब्दों में, “बिना संगीत के पहलवान हिंसक पशु होगा और बिना व्यायाम के संगीतज्ञ कायर व्यक्ति होगा।”

(5) प्लेटो ने स्त्रियों को पुरुषों के बराबर के दर्जा दिया। वस्तुतः उनका यह विचार आधुनिक विचारधाराओं के अनुकूल है।

(6) प्लेटो ने शिक्षा सम्बन्धी सिद्धान्तों की केवल चर्चा ही नहीं की वरन् उन्हें व्यावहारिक रूप प्रदान करने हेतु उसने ‘एकेडेमी’ नामक संस्था की स्थापना की थी। वह एक योग्य एवं गुणी अध्यापक भी थे ।

(7) प्लेटो दार्शनिकों में एक बहु-आयामी व्यक्तित्व (Dynamic Personality) के रूप में जाने जाते हैं।

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