शिक्षा के अधिकार (Right to Education)
“विश्व में सर्वाधिक निरक्षर भारत में रहते हैं” जैसे अभिशाप से देश को मुक्ति दिलाने का निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार अन्तत: 1 अप्रैल, 2010 में एक वास्तविकता बन गया हैं। सन् 2002 में संविधान के 86वें संशोधन से शिक्षा पाने के अधिकार को मौलिक अधिकारों में शामिल करने के लिए सन् 2009 में निःशुल्क अनिवार्य शिक्षा पाने का अधिकार अधिनियम, 2009 पारित किया गया। इस प्रकार अब भारत में 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के सभी बच्चे विधिक तौर पर निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा पाने के हकदार हैं।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम जिसमें संविधान के 86वें संशोधन अधिनियम 2002 के द्वारा 21 क जोड़कर शिक्षा को मौलिक अधिकार बना दिया गया है, को द्वारा राज्य को यह कर्त्तव्य सौंपा गया है कि वह 6 से 14 वर्ष की आयु के सभी बच्चों के निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करेगा। शिक्षा अधिकार विधेयक को संसद ने 4 अगस्त, 2009 को मंजूरी प्रदान की तथा 1 अप्रैल, 2010 से शिक्षा का अधिकार कानून लागू किया गया । कानून के अन्तर्गत बच्चों को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए अनेक प्रावधान किए गए हैं, जिसमें शिक्षकों को नियुक्ति देने सम्बन्धी प्रशिक्षण, आवश्यक आधारभूत ढाँचे का विकास, निजी स्कूलों में बच्चों को प्रवेश देने सम्बन्धी आरक्षण, स्कूलों में मिड-डे मील समेत अन्य आवश्यक सुविधाओं के विकास के लिए विशेष कदम उठाए गए हैं।
इस कानून के अनुसार शिक्षा के दायरे से बाहर छूट गए करोड़ों बच्चों को स्कूल में दाखिला दिलाना, हर बच्चे के पड़ोस में विद्यालय की व्यवस्था करना, हर विद्यालय को आर. टी.ई. में दिए गए मानक के आधार पर मान्यता लेने योग्य बनाया तथा मान्यता न होने पर दण्ड का प्रावधान, पैरा शिक्षक की नियुक्ति तथा नॉनफॉर्मल स्कूलों पर पाबन्दी, कानून में दिए गए मानक के आधार पर आधारभूत संरचना उपलब्ध कराने, योग्य व प्रशिक्षित अध्यापकों की नियुक्ति तथा अप्रशिक्षित व अल्प वेतन भोगी अध्यापकों को प्रशिक्षित करने, फेल-पास प्रणाली से अलग बच्चों के लगातार सम्पूर्ण मूल्यांकन (सीसीई) आदि जैसे कदम तत्काल उठाने होंगे, साथ ही 75% अभिभावकों एवं कुल संख्या का पचास प्रतिशत ‘महिलाओं की भागीदारी वाली स्कूल प्रबन्धन समितियों का जनतान्त्रिक तरीके से गठन व संचालन तथा उनके द्वारा स्कूल के लिए विकास योजना बनाने व निगरानी जैसी प्रगतिशील योजनाएँ तय की गई हैं। प्राइवेट स्कूलों में कुल बच्चों की संख्या का 25% पड़ोस की गरीब – बस्तियों में रह रहे आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को दाखिला दिए जाने का प्रावधान किया गया है। प्राइवेट स्कूलों के प्रबन्धन ने एकजुट होकर उच्चतम न्यायालय की अदालत में इस प्रावधान को रद्द करने की याचिका दाखिल की थी। मगर उच्चतम न्यायालय ने अप्रैल, 2012 के आदेश के जरिए इस याचिका को खारिज कर दिया। हालांकि अदालत ने अनुदानरहित अल्पसंख्यक स्कूलों को कानून के दायरे से बाहर कर दिया। इन अल्पसंख्यक विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे कानून द्वारा दिए गए अन्य अधिकरों से भी वंचित हो जायेंगे जबकि यह मौलिक अधिकार 6-14 वर्षों की उम्र के सभी बच्चों को हासिल है। संसद ने एक और संशोधन कर मदरसों व वैदिक विद्यालयों को भी इसके दायरे से बाहर कर दिया । सरकारी स्कूलों को मजबूत करने की बजाय कानून को ही कमजोर बना देने की तमाम कोशिश जारी है । वह यह कानून तरह-तरह के राजनीतिक दबावों और समझौतों का शिकार होता जा रहा है। अतः इस कानून की सफलता के लिए अध्यापकों व अभिभावकों में जागरूकता फैलाना और उन्हें साथ लाना आवश्यक हो गया है जिसके लिए उन्हें इस ‘अधिनियम से परिचित होना भी आवश्यक है।
शिक्षा का अधिकार अधिनियम की विशेषताएँ (Characteristics of Right to Education Act)
इस अधिनियम की प्रमुख विशेषतायें निम्न प्रकार हैं
(1) 6-14 वर्ष तक के उम्र के सभी बच्चों को निःशुल्क व अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा पाने का अधिकार होगा ।
(2) 6-14 वर्ष तक के लगभग 22 करोड़ बच्चों में से 92 लाख यानि 4.6% आरक्षण स्कूल नहीं जा पाते हैं जिनकी शिक्षा के लिए 1.71 लाख करोड़ रुपये की 5 वर्षों में जरूरत होगी जिसमें 25,000 करोड़ रुपये वित्त आयोग राज्यों को देगा।
(3) 6-14 वर्ष की आयु वर्ग के अशिक्षित और विद्यालयों में शिक्षा प्राप्त नहीं पा रहे बालकों को चिह्नित करने का कार्य स्थानीय विद्यालय की प्रबन्ध समिति अथवा स्थानीय निकायों द्वारा किया जायेगा।
(4) स्थानीय निकाय ही बालकों के चिह्नांकन के लिए परिवार स्तर पर सर्वेक्षण आयोजित करेगा। इस प्रकार के सर्वेक्षण नियमित रूप से आयोजित किये जायेंगे। इससे प्राथमिक शिक्षा से वंचित बालकों का चिह्नांकन करने में मदद मिलेगी ।
(5) निजी क्षेत्र के प्रत्येक विद्यालय में 2% स्थान कमजोर वर्ग के विद्यार्थियों के लिए आरक्षित किए जा सकेंगे और उनमें वही शुल्क लिया जायेगा जो सरकारी विद्यालय में समकक्ष छात्रों से लिया जाता है।
(6) इन बच्चों को न स्कूल फीस देनी होगी, न ही यूनिफार्म, पुस्तकों, ट्रांसपोर्टेशन या मिड-डे मील जैसी चीजों पर खर्च करना होगा।
(7) बच्चों को न तो अगली कक्षा में पहुँचने से रोका जायेगा, न निकाला जायेगा और न ही बोर्ड परीक्षा पास करना अनिवार्य होगा।
(8) कोई स्कूल बच्चों को प्रवेश देने से इन्कार नहीं कर सकेगा।
(9) सभी निजी स्कूलों में पहली कक्षा में नामांकन के दौरान कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए 25% सीटें आरक्षित होंगी।
(10) सभी राज्य सरकारों व स्थानीय निकायों के लिए यह अनिवार्य होगा कि उनके इलाके का हर बच्चा स्कूल जाये।
(11) जिन स्कूलों का इन्फ्रास्ट्रक्चर ठीक नहीं है उन्हें 3 वर्ष के अन्दर दुरस्त करना होगा वरना मान्यता समाप्त कर दी जायेगी।
(12) इस कानून को लागू करने पर आने वाले खर्च को केन्द्र व राज्य सरकारें मिलकर उठायेंगी।
(13) इस आयु वर्ग के किसी भी बालक को आयु-प्रमाण पत्र के अभाव में प्राथमिक शिक्षा पूर्ण होने तक विद्यालय से निष्कासित नहीं किया जा सकेगा।
(14) शिक्षा में परिमाणात्मक वृद्धि के साथ-साथ बालकों को गुणवत्तायुक्त शिक्षा प्रदान की जायेगी। इस दिशा में निम्नलिखित प्रयास किये जायेंगे-
(A) योग्यताधारी शिक्षकों की भर्ती ।
(B) विद्यालय में उपयुक्त आधारभूत सुविधाओं का विकास ।
(C) प्रभावी पाठ्य सामग्री का विकास।
(D) शिक्षकों को सामयिक प्रशिक्षण दिये जाने की व्यवस्था ।
(15) प्राथमिक शिक्षा पूर्ण करने वाले छात्र को 1 प्रमाण पत्र दिया जायेगा ।
(16) अधिनियम में छात्र- शिक्षक अनुपात 30% निर्धारित किया गया है। इस अनुपात को प्राप्त करने के लिए 12 लाख प्रशिक्षित अध्यापकों की आवश्यकता होगी।
(17) केन्द्रीय सरकार द्वारा ही शिक्षक प्रशिक्षण के मापदण्ड निर्धारित किये जायेंगे, इसी के द्वारा तकनीक सहयोग व संसाधन राज्य सरकारों को उपलब्ध कराये जा सकेंगे ताकि शैक्षणिक शोध, नवाचार व क्षमताओं के विनिर्माण व विकास को प्रोत्साहन देकर उन्हें प्रोन्नत किया जा सके।
(18) विद्यालय पाठ्यक्रम के निर्माण व मूल्यांकन प्रक्रिया की ओर विशेष ध्यान दिया जायेगा ।
(19) पाठ्य सामग्री की विषय-वस्तु का निर्माण इस प्रकार किया जायेगा कि बालक में शैक्षिक मूल्यों का विकास किया जा सके। इस प्रकार की शिक्षा प्रणाली के माध्यम से बालक के शारीरिक विकास की ओर भी पर्याप्त ध्यान दिया जायेगा ।
(20) विभिन्न शैक्षणिक गतिविधियों के माध्यम में बालक में ज्ञान की क्षमता का निर्माण व प्रतिभा के विकास की ओर पर्याप्त ध्यान दिया जायेगा ।
(21) शिक्षक द्वारा बालकों को किसी भी प्रकार की शारीरिक एवं मानसिक प्रताड़ना नहीं दी जायेगी
(22) अधिनियम के अन्तर्गत निजी ट्यूशन प्रवृत्ति को निषेधित किया गया है।
(23) इस अधिनियम का वित्तीय बोझ केन्द्र सरकार व राज्य सरकार के बीच 55:45 अनुपात में साझा किया जायेगा। के
(24) जम्मू-कश्मीर को छोड़कर यह प्रावधान सम्पूर्ण देश में लागू होगा।
अधिनियम की प्रमुख चुनौतियाँ (Main Challenges of Act)
(1) शिक्षा का अधिकार 1 अप्रैल, 2010 में लागू हुआ परन्तु इसे पूर्ण रूप से गति प्रदान करने के लिए अभी लम्बी दूरी तय करनी बाकी है।
(2) इस अधिनियम को लागू करने के लिए विशाल धनराशि की आवश्यकता है। । इन वर्षों का बँटवारा राज्य व केन्द्र सरकारों के बीच किया गया है। इन खर्चों में 55% केन्द्र सरकार 45% राज्य सरकार के पक्ष में आया है जिसमें केन्द्र सरकार ने 25,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। अगले 5 वर्षों में 1,71,000 करोड़ रुपये तक के खर्चे का अनुमान लगाया गया है।
(3) केन्द्र ने शिक्षा के अधिकार कानून का पालन करने के लिए एक शैक्षिक ढाँचे का निर्माण किया है। इस शैक्षिक ढाँचे के आधार पर ही प्रत्येक राज्य और संघ शासित दिशा-निर्देश तैयार करेंगे। इसमें काफी समय लग जायेगा ।
(4) शिक्षा के अधिकार के लिए पहले देशभर में प्राथमिक शिक्षा में मजबूत इंफ्रास्ट्रक्चर की आवश्यकता है। कानून में बच्चों को अपने घर से 3 किमी. के दायरे में स्कूल देने का प्रावधान है। यदि स्कूल इससे दूर होगा तो बच्चों को लाने व जाने की निःशुल्क व्यवस्था राज्य सरकार द्वारा की जायेगी ।
(5) नये स्कूल खोलने से पहले राज्य सरकार को स्थानीय निकायों की सहायता से यह पता लगाना होगा कि 6-14 वर्ष के कितने बच्चे हैं जो शिक्षा नहीं ग्रहण कर रहे हैं। उनकी एक सूची तैयार करना और यह पता लगाना कि वे किस वर्ग के हैं। यदि वे पिछड़ी जाति के हों तो उनकी एक अलग सूची तैयार करना, इस काम में बहुत अधिक समय लगेगा ।
(6) शिक्षा के अधिकार को लागू करने के लिए बड़े स्तर पर प्राइमरी शिक्षकों की भर्ती होगी । अभी देश में प्रशिक्षित शिक्षकों की कमी को पूरा करने के लिए राज्य स्तरीय भर्ती प्रक्रिया चरण बद्ध रूप से चल रही है।
(7) निजी स्कूलों की 25% सीटें पिछड़े वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षित किये जाने का भी प्रावधान किया गया है। राज्य सरकारें सरकारी स्कूल से तुलना कर इन बच्चों पर खर्च देगी परन्तु इसमें भी विवाद है क्योंकि कुछ स्कूलों का कहना है कि वे ज्यादा सुविधायें देते हैं तो उन्हें ज्यादा पैसा दिया जाये।
इसके और भी अन्य समस्याएँ हैं; जैसे—संसाधनों की उपलब्धता इस कार्य के पारित होते ही राज्य सरकारों ने इस खर्चों को वहन करने में अपनी असमर्थता को व्यक्त यकरना प्रारम्भ कर दिया । तब यह घोषणा की गई कि जब तक भारत सरकार इसके खर्च को वहन करने में सहायता नहीं करेगी तब तक इसे लागू करना असम्भव है। परन्तु ऐसा नहीं है कि यह नियम लागू होने के बाद शिक्षा व्यवस्था में सुधार न आया हो। कई क्षेत्र में इसके लागू होने के अच्छे परिणाम दिखने लगे हैं जिनका विवरण नीचे दिया जा रहा है।
‘शिक्षा का अधिकार’ अधिनियम के सुपरिणाम (Good Results of ‘Right to Education Act’)
शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 लागू होने से शिक्षा जगत में एक जन-जागृति आई है। मध्य प्रदेश व विशेषकर भोपाल के सन्दर्भ में इसके सुपरिणाम निम्नलिखित हैं-
(1) शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत सभी निजी स्कूलों का निरीक्षण करने व संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित कर मान्यता लेनी है जिसमें गुणात्मक शिक्षा के उचित शिक्षकों और संसाधनों की उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
(2) शिक्षा सत्र 2011-12 के प्रारम्भ होने से पहले सभी स्कूलों में अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अन्तर्गत प्रबन्ध समितियों के गठन हो जाने से इनमें 50% अभिभावक व बाकी शिक्षा व जन प्रतिनिधियों के शामिल होने से शिक्षा का स्तर बढ़ेगा ।
(3) सरकारी स्कूलों में शिक्षक छात्र अनुपात को ध्यान में रखते हुए एक अभियान चलाकर शिक्षकों की नियुक्ति की जा सकेगी।
(4) पाठ्यक्रम की दृष्टि से भी इस नियम के अनुसार बच्चों को अपने आस-पास के वातावरण से परिचित कराने हेतु इनके पाठ्यक्रम में गाँव व शहर के इतिहास को खोज में शामिल कर दिया गया है जिसका सार्थक परिणाम आने की सम्भावना है।
(5) शिक्षण प्रक्रिया में बच्चों को रटने की बजाए सीखने की ललक जगाना मुख्य उद्देश्य है।
(6) इस अधिनियम के अनुसार कक्षा 1 से 8 तक के विद्यार्थियों के लिए शारीरिक विकास व नियमित स्वास्थ्य परीक्षण के अतिरिक्त साहित्यिक व सांस्कृतिक गतिविधियों को रोजाना कक्षा में चलाए जाने से उनकी अन्तर्निहित प्रतिभाओं के प्रस्फुटन में सहायता मिलेगी।
(7) हर बच्चे का पोर्टफोलियो बनाया जायेगा जिसमें उसकी हर उपलब्धि का लेखा-जोखा होगा । कक्षा 8 के बाद यह फाईल बच्चे को दे दी जायेगी जिससे उसकी स्कूल गतिविधियों का रिकॉर्ड सामने आ जायेगा ।
(8) स्कूली विद्यार्थियों को छात्रवृत्ति, वर्दी, साइकिल तथा अन्य सुविधाएँ और अध्यापकों को वेतन, भत्ते आदि के बारे में जिलों के शिक्षा अधिकारियों से एस. एम. एस. (S.M.S.) के माध्यम से स्थिति (Status) पूछी जायेगी और इनके समय पर न मिलने की दशा में चेतावनी दी जायेगी और कार्यवाही होगी।
(9) अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अन्तर्गत बच्चों को फेल, पास व परीक्षा के झंझट से मुक्ति मिल गई। शिक्षण प्रक्रिया में ही सात मासिक मूल्यांकन होंगे जबकि एक अर्द्धवार्षिक और वार्षिक रहेगा ।
(10) मध्य प्रदेश राज्य शिक्षा केन्द्र ने ‘प्रश्न भेजो इनाम पाओ’ प्रतियोगिता कराई जिसमें शिक्षा विभाग ने आम लोगों से पूछा कि बच्चों को क्या पढ़ाया जाए और उनसे कैसे प्रश्न किए जाएँ ? अभिभावक, शिक्षाविद् और आम नागरिकों ने ढेरों जबाव भेजे जिनमें से कुछ को पाठ्यक्रम में शामिल किया जायेगा।
(11) गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए राज्य शिक्षा केन्द्र ने सत्र 2011-12 से प्रतिभा एवं योजना प्रारम्भ की है जिसमें निर्धारित दक्षताएँ (90%) प्राप्त करने पर 5000 एवं 80% दक्षता हासिल करने पर ढाई हजार रुपये व राज्यपाल द्वारा प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया जायेगा।
(12) सरकारी स्कूलों का परीक्षा परिणाम सुधारने हेतु सरकार ने यह भी निर्णय लिया कि शिक्षकों की ड्यूटी पढ़ाई को छोड़कर चुनाव व जनगणना जैसे कार्यों में न लगाई जाय।
(13) महिला एवं बाल विकास विभाग ने शिक्षा के अधिकार के अन्तर्गत 24 बच्चों की सूची शिक्षा विभाग को दी जिनका प्रवेश निजी स्कूलों में होना है। इनमें से 5 बच्चों को भोपाल के कटारा हिल्स स्थित रियॉन पब्लिक स्कूल में दाखिला देना होगा।
(14) प्रदेश में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अन्तर्गत एक लाख शिक्षकों की नियुक्ति की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए गणित, अंग्रेजी व संस्कृत के शिक्षकों की कमी से हुए डी. एड. या बी. एड. की डिग्री न होने पर भी शिक्षक के रूप में भर्ती हो सकेगी तथा तीन वर्ष के अन्दर उन्हें शैक्षिक डिग्री पूरी करनी होगी।
(15) मध्य प्रदेश के हर जिले में एक शिक्षक को इंग्लिश टीचिंग इन्स्टीट्यूट में भेजा जाना है जहाँ उन्हें अंग्रेजी के बदलते स्वरूप व पढ़ाई को बेहतर बनाने के तरीके सिखाये जायेंगे |
(16) शिक्षकों की शिकायतें दूर करने के लिए जिला स्तर पर जिलाधीश की अध्यक्षता में एक समिति का गठन होगा, जिसके मुख्य सदस्य, जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालक अधिकारी, पुलिस अधीक्षक, नगर निगम आयुक्त या नगरपालिका अधिकारी, मुख्य चिकित्सा एवं स्वास्थ्य अधिकारी, सहायक आयुक्त, आदिम जाति कल्याण विभाग और जिला शिक्षा अधिकारी होंगे।
माध्यमिक शिक्षा के सार्वजनीकरण हेतु शिक्षा के अधिकार अधिनियम के निहितार्थ
इसके लिए निम्न सुझावों पर ध्यान देना होगा-
(1) अधिनियम का पालन करना केवल प्रशासन की जिम्मेदारी नहीं है बल्कि सभी की सम्मिलित सोच एवं प्रयासों की आवश्यकता है। अतः इसके लिए ग्रामीण क्षेत्रों में विशेष जागरूकता लाने की आवश्यकता है।
(2) हमारे देश में अधिकांश जनता अभी भी गाँवों में निवास करती है, इसलिए गाँवों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए शैक्षिक योजनाएँ बनाई व लागू की जानी चाहिए।
(3) विद्यालयों, विशेष रूप में ग्रामीण क्षेत्रों में स्कूल की सामान्य सुविधाओं और खेल-कूद की सामग्री की उचित व्यवस्था करने की आवश्यकता है।
(4) शिक्षा के अधिकार के परिपालन हेतु ग्रामीण क्षेत्रों में जनशिक्षा रजिस्टर बनाने होंगे कि प्रत्येक बच्चा अपने अधिकार का उपयोग कर ले। इसी प्रकार शहरों में वार्ड रजिस्टर होंगे।
(5) शिक्षा के अधिकार अधिनियम के लागू होने के बाद स्कूलों की संख्या भी बढ़ानी हो सकती है तथा शिक्षा की गुणवत्ता के लिए नवीन मापदण्ड बनाने होंगे और उनकी भरपाई के लिए प्रभावी कदम उठाने की आवश्यकता है।
(6) नि:शक्त बच्चों को शिक्षा के लिए (विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में) अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है, उनके लिए अलग से सर्वेक्षण करके उन्हें या या उनके घर पर ही शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी। तो स्कूल में लाना होगा
(7) अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अन्तर्गत प्रबन्ध समितियों का गठन किया जायेगा। इन प्रबन्ध समितियों की मासिक या द्विमासिक आधार पर नियमित बैठकें होनी चाहिए तथा इन बैठकों में शिक्षा के गुणात्मक सुधार और शिक्षकों की समस्याओं के मुद्दों पर चर्चा होनी चाहिए।
(8) शिक्षा का अधिकार अधिनियम में हर शिक्षक को प्रति सप्ताह 45 घंटे स्कूल में देने हैं। यह विलम्ब से स्कूल आने और जल्दी वापस जाने पर सम्भव नहीं होगा । इसलिए शिक्षकों की सेवा शर्तों में संशोधन कर उन्हें गांव में रहने की शर्त जोड़नी होगी।
(9) स्कूलों के निरीक्षण सहित अन्य कार्यों के लिए जनशिक्षक, संकुल शैक्षिक समन्वयक, विकास खण्ड शैक्षिक समन्वयक और शिक्षा अधिकारियों की टीम बनाकर समन्वित प्रयास करने की आवश्यकता होगी।
(10) सामान्य रूप से शिक्षक, जनशिक्षक, संकुल शैक्षिक समन्वयक, विकास खण्ड शैक्षिक समन्वयक आदि की जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं, इसलिए इन पदों पर कार्य करने के लिए कुछ विशेष मौद्रिक और अमौद्रिक प्रोत्साहन देने की आवश्यकता
(11) स्कूलों में शैक्षिक प्रौद्योगिकी (Educational Technology) और संचार व संप्रेषण तकनीक (Information and Communication Technology : ICT) का भरपूर उपयोग करके शिक्षा को प्रभावी बनाना चाहिए। इससे सूचनाओं के आदान-प्रदान में लगने वाले समय की बचत होगी ।
(12) वंचित समूह के सम्पन्न परिवारों के बच्चे भी अच्छे निजी स्कूलों में अधिनियम के आधार पर दाखिला के लिए आवेदन करते हैं। इसलिए वंचित समूह में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के बच्चों के लिए आय सीमा का निर्धारण भी होना चाहिए।
(13) शिक्षा प्रणाली में लचीलापन और जीवन की विविधता होनी चाहिए। वह परीक्षा केन्द्रित या नौकरी केन्द्रित न हो। उसे व्यक्ति के सर्वांगीण विकास का ध्यान रखना होगा तथा पूरे देश में एक समान शिक्षा प्रणाली लागू की जानी चाहिए ताकि सभी बच्चे बराबरी के स्तर पर आ सकें।
मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 का पालन व क्रियान्वयन देश के बच्चों के लिए एक ऐतिहासिक कदम है, यह कानून सुनिश्चित करता है कि प्रत्येक बच्चे को गुणवत्तापूर्ण प्राथमिक शिक्षा का अधिकार प्राप्त हो और वह उसे परिवार, राज्य एवं केन्द्र की सहायता से पूरा करे। यह अधिनियम सैद्धान्तिक रूप से तो आदर्श है, परन्तु अभी व्यावहारिकता की कसौटी पर खरा उतरना भविष्य के गर्त में है। देश में कानूनों की भरमार है परन्तु आवश्यकता है इन कानूनों को वास्तविकता के धरातल पर दृढ़ इच्छा शक्ति एवं सकारात्मक विचारधारा से क्रियान्वित करने की। वर्तमान में देश के शिक्षा तन्त्र और शासन तन्त्र की स्थिति कमजोर होने से, प्रत्येक देशवासी की नजरें आर. टी. ई. पर केन्द्रित हैं और एक आशाभरी नजरों में देख रहे हैं कि अब वंचित वर्ग, गरीब, शिक्षा से दूर बच्चों को भी शिक्षा का अवसर प्राप्त होगा। यदि इस दिशा में शासन तन्त्र, प्रशासन तन्त्र एवं आम जनता से आपसी तालमेल बैठाया गया तो वह दिन दूर नहीं जब हम शत-प्रतिशत साक्षर होंगे।
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