अपक्षय किसे कहते हैं?
अपक्षय (Weathring)— अपक्षय एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें खुली चट्टानों का विघटन और अपघटन अपने मूल स्थान पर ही होता है। चट्टानों के विघटन में मुख्य रूप से मौसम या ऋतु के तत्त्वों का प्रभाव पड़ता है। तापमान, वर्षा, पाला (तुषार), कोहरा और हिम मौसम के मुख्य तत्त्व हैं। इसलिये उन्हें ऋतु अपक्षयकारी शक्तियाँ भी कहते हैं। धरातल पर पड़ी हुई चट्टानें जैसे ही मौसम के तत्त्वों के सम्पर्क में आती हैं, वैसे ही उनका अपक्षय होने लगता है। प्रत्येक चट्टान में किसी न किसी खनिज का अंश अवश्य रहता है जो रासायनिक परिवर्तन में सहायक होता है।
चट्टानों का विघटन (टूट-फूट ) तापमान में परिवर्तन और पाले (तुषार) के प्रभाव से होता है। चट्टानों का विघटन होने से उनके टुकड़े एवं मलबा उसी स्थान पर गुरुत्वाकर्षण के कारण इकट्ठा होता रहता है। दिन की गर्मी में चट्टानें फैलती हैं और रात्रि की ठण्ड में एकाएक सिकुड़ने से उनमें तड़कन या दरारें पड़ जाती हैं जो धीरे-धीरे चट्टानों को चूर-चूर करती जाती हैं। चट्टानों का विघटन एक यान्त्रिक प्रक्रिया है, जबकि अपघटन की प्रक्रिया में चट्टानों में रासायनिक परिवर्तन होते हैं। चट्टानों में खनिजों के कण इस प्रकार आपस में गुँथे होते हैं कि पहले तो उनका अस्तित्व दिखायी नहीं पड़ता, लेकिन जब पानी गिरता है तब चट्टानों के कुछ खनिज घुलकर बह जाते हैं और कुछ खनिजों का रूप बदल जाता है। इस प्रकार प्रकृति में विघटन (टूट-फूट) और अपघटन (घुलन) की क्रियाएँ साथ-साथ अपने ही स्थान पर चलती रहती हैं। इस प्रकार पूरी प्रक्रिया को ही अपक्षय कहते हैं। इस प्रक्रिया में ऋतुओं का भी सहयोग रहता है इसलिये इसे ऋतुअपक्षय भी कहते हैं।
अपक्षय के प्रकार (Types of weathering)
अपक्षय तीन प्रकार से होता है- (1) भौतिक अपक्षय, (2) रासायनिक अपक्षय तथा (3) जैविक अपक्षय ।
1. भौतिक अपक्षय (Physical weathering)
जब कोई चट्टान बिना किसी रासायनिक परिवर्तन के छोटे-छोटे टुकड़ों में विभक्त हो जाती है तो उसे भौतिक अपक्षय कहते हैं। जब तापमान अत्यधिक बढ़ता है तब चट्टान फैलती है और ताप अत्यधिक गिर जाता है तब सिकुड़ जाती है। इस प्रकार फैलने और सिकुड़ने से चट्टानें चटक जाती हैं और उनमें दरारें पड़ जाती हैं। ये दरारें चौड़ी होकर अन्तर में टूटकर अलग हो जाती हैं। अधिक ठण्डे प्रदेशों में चट्टानों की सन्धियों में भरा जल तापमान गिरने पर जम जाता है। जमने पर बर्फ का आयतन बढ़ जाता है, जिससे सन्धियाँ और अधिक चौड़ी होती जाती हैं और अन्त में टूट जाती हैं।
2. रासायनिक अपक्षय (Chemical weathering)
रासायनिक परिवर्तनों के कारण चूना, जिप्सम, गन्धक, सेंधा नमक की चट्टानें जल में घुल जाती हैं या बिखर जाती हैं, गल जाती हैं या जंग खा जाती हैं। इस प्रकार चट्टानें अपना मूल स्वरूप खो देती हैं और पानी में घुलकर या चूर्ण होकर नये पदार्थों को जन्म देती हैं। इस क्रिया को रासायनिक अपक्षय कहते हैं। इसमें नमी और वर्षा का महत्त्वपूर्ण योगदान होता है।
3. जैविक अपक्षय (Biological weathering)
जैविक अपक्षय वनस्पतियों, जीव-जन्तुओं और मनुष्यों द्वारा होता है। वृक्षों की जड़ें चट्टानों की सन्धियों में पहुँचकर और अधिक चौड़ा कर उन्हें तोड़ देती हैं। चूहे, दीमक, चीटियाँ, केंचुए और जीव नरम चट्टानों को तोड़ते-फोड़ते और खुरचते हैं। मनुष्य भी कृषि उपयोग के लिये, भवन निर्माण के लिये तथा सड़क निर्माण के लिये चट्टानों की तोड़-फोड़ करता है। इस प्रकार के अपक्षय को जैविक अपक्षय कहते हैं।
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