आपदाओं से आप क्या समझते हैं?
आपदा के भयानक दृश्य हमें विशेष रूप से प्राकृतिक घटनाओं के कारण तो दिखायी देते ही हैं, कभी-कभी यह मानवीय कृत्यों के कारण भी दिखायी दे जाते हैं। अतः आपदाओं को हम दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-
(1) मानवकृत आपदाएँ। (2) प्राकृतिक आपदाएँ।
प्राकृतिक आपदाओं के प्रकोप जल, थल तथा वायुवीय उद्वेगों के रूप में प्रकट होते हैं; जैसे—बाढ़, सूखा, भूकम्प, ज्वालमुखी विस्फोट, भूस्खलन तथा चक्रवात, शीत लहर, ताप लहर और विद्युतीय प्रपात ।
1. मानव निर्मित आपदाएँ (Human Made Disaster)
मानवीय अपकर्म आपदाएँ अग्रलिखित रूपों में प्रकट होती हैं-
(1) लोभ-लालच वश मनुष्य प्रायः ऐसे कार्यों को करते रहते हैं, जिनके विनाशकारी पीड़ादायक प्रभाव पारिस्थितिक सन्तुलन को विकृत कर देते हैं; जैसे—वनोन्मूलन, बाँधों का निर्माण, असंयोजित बस्तियों का निर्माण तथा पर्यावरण को प्रदूषित करने वाले औद्योगिक कार्य, आणविक परीक्षण, अवाध खनिज खनन तथा प्राकृतिक जल क्षेत्रों में संक्रामक त्याज्यों का प्रवाह आदि। इनके अतिरिक्त मानव द्वारा ऐसे कार्यों का निष्पादन भी होता है, जिनके कारण नियोजनीय, व्यवस्थापकीय तथा कार्यकारी दोषों की अनदेखी अनेक प्रकार की दुर्घटनात्मक आपदाओं के भीषण रूप में सहसा प्रकट हो जाती हैं। (2) ऐसे आन्दोलनों के रूप में भी देखने को मिलते हैं, जिनके उपसंहार अत्यन्त भीषण रूप में होते हैं। हम इनमें आपादीय भीषणकाल राजनीतिक युद्धों तथा वर्तमान में पैदा हुए आतंकवाद को भी सम्मिलित कर सकते हैं।
(2) प्राकृतिक आपदाएँ।
प्राकृतिक आपदाएँ निम्नलिखित प्रकार हैं
1. बाढ़ – बाढ़ भी एक ऐसी ही प्राकृतिक विभीषिका है, जो प्रकटतः नदियों में सहसा जल-बढ़ाव के कारण उनके तटवर्ती क्षेत्रों को अपने पंजे में ले लेती है और जन-धन पशु, कृषि तथा सम्पत्ति का नाश हो जाता है। भारत के समस्त भौगोलिक क्षेत्र में से 400 लाख हैक्टेयर क्षेत्र ऐसा है, जो बाढ़ प्रभावित क्षेत्र के रूप में पहचाना जा सकता है। बाढ़ खुले मैदानी क्षेत्रों में ही, जहाँ होकर नदियाँ बहती हैं, नहीं आती। यह समुद्र तटवर्ती क्षेत्रों में भी आती हैं, जिसके कारण समुद्र में आने वाले चक्रवात होते हैं। अधिक वर्षा के कारण बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती। है। नदियों के ऊपरी भागों में वनों की कटाई के कारण अचानक बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। कई निम्न क्षेत्रों में जल निकासी की व्यवस्था न होने के कारण बाढ़ उत्पन्न हो जाती। है। बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में लोगों के लिये करणीय कार्य निम्नलिखित प्रकार हैं- (1) अग्रिम ‘सूचना और सलाह के लिये आकाशवाणी के समाचार सुनिये। (2) बिजली के समस्त उपकरण बन्द कर दीजिये। (3) वाहनों और फार्म के पशुओं को लेकर ऊँचे स्थानों पर पहुँच जायें। (4) सभी कीटनाशकों को पानी से दूर रखिये।
2. सूखा – बाढ़ की तरह सूखा भी एक भारी त्रासदायक विपदा है। एक लम्बी कालावधि तक बरसात से वंचित रहने वाले क्षेत्रों में इसका प्रभाव देखा जा सकता है। प्रत्यक्षतः ही बरसात न होने के कारण कृषि कार्य ठप्प हो जाते हैं और अभोत्यादन इतना क्षीण हो जाता है कि लोग भूख से मरने लगते हैं अर्थात् दुर्भिक्ष का शिकार हो जाते हैं। सूखा का प्रभाव सीधे-सीधे रूप में कृषि उत्पादन पर पड़ता है। सूखा क्षेत्रों में फसलें न होने से अकाल दुर्भिक्ष की दशाएँ उत्पन्न हो जाती हैं। वर्तमान समय में वैज्ञानिक युग में सूखा-सम्बन्धी कार्यक्रम तथा प्रयोगशालाएँ सरकारी मौसम विभाग कार्यरत रहने लगे हैं।
3. चक्रवात या तीव्र आँधी- चक्रवात एक वायुमण्डलीय विपदा है। वायुमण्डल’ कभी-कभी किन्हीं अन्तरिक्षीय प्रभावों से अपनी क्रमबद्धता और सन्तुलित निरन्तर प्रवाहकता भी को विक्षुब्ध होने पर खो देता है। इससे पृथ्वी पर प्रवाही वायु राशियाँ अपना क्रम खो बैठती हैं, जिसके फलस्वरूप भीषण वायु प्रभज्जन पैदा हो जाते हैं। इन्हें हम प्राय: तूफान, चक्रवात या साइक्लोन नामों से जानते हैं। विशेष रूप से जब तूफानी वायु प्रवेग भँवर स्वरूपी होकर घूमने लगते हैं तो उन्हें हम चक्रवात कहते हैं। यह अस्थिर पवन के वायुवृत होने के कारण अधिक समय तक नहीं रहते परन्तु जितनी देर तक रहते हैं यदि भयानक वेग को पकड़ लेते हैं तो भारी तबाही का कारण भी बनते हैं। वस्तुतः इनके उद्भव तब होते हैं, जब न्यून वायु दबावों के हो हैं जाने से उनके ऊपर उच्चद वायु भार वाली हवाएँ चलती हैं।
4. भूकम्प – पृथ्वी की सतह का अचानक काँप जाना ही भूकम्प होता है। पृथ्वी की सतह के नीचे ऊर्जा (शक्ति) ऊपर की ओर धक्का देती है। जिससे पृथ्वी के ऊपर की सतह काँप जाती है। भूकम्प का सम्बन्ध भूपटल के कमजोर एवं अव्यवस्थित भागों से है। प्रशान्त महासागर के दोनों तटीय भागों में सबसे अधिक भूकम्प आते हैं। इसे परि प्रशान्त (महासागरीय) भूकम्प पेटी कहा जाता है। इसका दूसरा क्षेत्र भूमध्य सागर से हिमालय पर्वत तक फैला हुआ है। जिसे अन्तः महाद्वीपीय पेटी कहते हैं। भूकम्प अक्सर भूगर्भीय दोषों के कारण आते हैं, भारी मात्रा में गैस प्रवास, पृथ्वी के भीतर मुख्यतः गहरी मीथेन, ज्वालामुखी, भूस्खलन और नाभिकीय परीक्षण ऐसे मुख्य दोष हैं।
भूकम्प आने के कारण
भूकम्प आने के निम्नलिखित कारण हैं-
(1) ज्वालामुखी विस्फोट – जब ज्वालामुखी विस्फोट होते हैं तो उनके निकटवर्ती क्षेत्रों में हलचल होती है, जिसे भूकम्प कहते हैं। कई बार लावा बाहर आने का प्रयास करता है परन्तु ऊपर के कड़े शैलों के अवरोध के कारण वह बाहर नहीं आ पाता और ऊपर की चट्टानों में कम्पन कर देता है। इस प्रकार ज्वालामुखी क्षेत्रों में कई बार बिना ज्वालामुखी विस्फोट के भी भूकम्प आ जाते हैं।
(2) पृथ्वी का सिकुड़ना – पृथ्वी अपने जन्म से अब तक निरन्तर ठण्डी होकर सिकुड़ रही है। पृथ्वी के सिकुड़ने से इसके शैलों में अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है जिससे कम्पन उत्पन्न हो जाता है और भूकम्प आ जाता है।
(3) कृत्रिम भूकम्प- ये भूकम्प मनुष्य के कार्यकलाप द्वारा आते हैं; जैसे-बम के धमाके से, रेलों के चलने से अथवा कारखानों में भारी मशीनों के चलने से भी पृथ्वी में कम्पन होता रहता है।
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