B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

पर्यावरण प्रदूषण : अर्थ, प्रकार, प्रभाव, कारण तथा रोकने के उपाय

पर्यावरण प्रदूषण
पर्यावरण प्रदूषण

पर्यावरण प्रदूषण क्या होता है?

आज के युग में सभी प्रकारों के विकास की क्रिया में रुकाव आना ही प्रदूषण का कारण है। इसलिये विकास के परिणामस्वरूप देश में गैसों, तरल पदार्थों तथा ठोस पदार्थों का अपव्यय माना जाता है। पर्यावरण संरक्षण के लिये प्रदूषण नियन्त्रण की देश को आवश्यकता है। औद्योगिक विकास के कारण अधिकांश अनावश्यक पदार्थ इतना इकट्ठा हो गया है कि इससे पर्यावरण में प्रदूषण उत्पन्न हो गया है। प्रदूषण से पर्यावरण की गुणवत्ता का ह्रास हुआ है और इसकी गुणवत्ता में ह्रास हुआ है। पर्यावरण प्रदूषण और पर्यावरण विघटन दो शब्दों को एक ही अर्थ में प्रयुक्त किया गया है। इसके यहाँ दो पक्ष हैं-

(1) पर्यावरण की गुणवत्ता को कम करना ।

(2) पर्यावरण की गुणवत्ता को नष्ट करना ।

पर्यावरण प्रदूषण का अर्थ होता है-पर्यावरण की गुणवत्ता को कम करना, जो मानवीय क्रियाओं द्वारा प्राकृतिक संसाधनों के अधिक उपयोग के कारण होता है; जैसे—वनों के कटाव से, कृषि में, रासायनिक खादों के प्रयोग से तथा औद्योगीकरण से। मानवीय क्रियाओं द्वारा स्थानीय स्तर पर पर्यावरण की गुणवत्ता पर विपरीत प्रभाव डालना एवं इसमें परिवर्तन होना पर्यावरण प्रदूषण कहलाता है।

पर्यावरण प्रदूषण के प्रकार (Kinds of environment pollution)

निम्नलिखित प्रकार के प्रदूषण को पर्यावरण के क्षेत्र में सम्मिलित किया गया है-

(1) वायु प्रदूषण (Air pollution)। (2) जल प्रदूषण (Water pollution)! (3) ध्वनि प्रदूषण (Sound pollution)। (4) भूमि प्रदूषण (Soil or land pollution)। (5) रेडियोधर्मी प्रदूषण (Radio active pollution) ।

वायु प्रदूषण से आप क्या समझते हैं?

वायु को प्राण तत्त्व माना गया है। मनुष्य को जीवित रहने के लिये वायु की परम आवश्यकता होती है। इसके बिना जीवित रहना सम्भव नहीं है। वायु के 80 प्रतिशत भाग में नाइट्रोजन तथा शेष 20 प्रतिशत भाग में ऑक्सीजन की मात्रा होती है। दस हजार व भाग से तीन या चार भाग में कार्बन डाई-ऑक्साइड तथा ऑर्गेन, हीलियम आदि अक्रिय गैसे होती हैं। वायु में ऑक्सीजन तत्त्व ही हमारे लिये अति महत्त्वपूर्ण होता है। वायु प्रदूषण से कितने घातक परिणाम हो सकते हैं। इसका जागृत उदाहरण हमारे सामने भोपाल गैस काण्ड है। इसमें दो हजार से भी अधिक लोग काल के गाल में चले गये थे। सोते हुए लोग सोते ही रह गये थे। आजकल वायु प्रदूषण विकासशील देशों के लिये एक समस्या बनकर रह गया है।

वायु प्रदूषण के कारण (Causes of Air Pollution)

वायु प्रदूषण के कारण निम्नलिखित है-

(1) घरों, भट्टियों और कारखानों में ईंधन का जलना।

(2) औद्योगिक अवशिष्ट (कण और गैस)।

(3) यातायात वाहनों से निकला हुआ धुआँ

(4) पेड़ों और वनों का तीव्र गति से काटा जाना।

(5) जनसंख्या में तीव्र दर से अभिवृद्धि होना।

ईंधन के रूप में कोयले, खनिज तेल एवं मिट्टी के तेल से CO2 गैस निकलती है। बसों, ट्रेनों तथा स्कूटरों आदि से भी पेट्रोल एवं डीजल द्वारा CO2 निकलती है। दूषित गैस तथा अनपेक्षित धुएँ के रूप में धूल के कण एक-साथ मिलते रहते हैं, इन सभी से वायु में प्रदूषण होता है। कारखानों, उद्योग वाहनों तथा अन्य गैसीय साधनों द्वारा गहरे काले धुएँ से अवशिष्ट गैसों के अतिरिक्त अनेक पदार्थों के सूक्ष्म कण होते हैं। ये कण श्वसन के समय शरीर में प्रवेश कर रोग उत्पन्न कर देते हैं। डीजल पेट्रोल तथा कारखानों की गैसों में प्रमुख रूप से कार्बन मोनो ऑक्साइड, कार्बन डाई ऑक्साइड, नाइट्स ऑक्साइड, हाइड्रोक्लोरिक एसिड तथा विभिन्न हाइड्रोकार्बन आदि प्रमुख हैं।

वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव (Bad effect of Air Pollution)

वायु प्रदूषण के दुष्प्रभाव निम्नलिखित हैं-

(1) कारखानों से जो गैसें (CI2. NH3, SO2 तथा NO आदि) निकलती हैं, उनके प्रभाव से आँखों में जलन होती है एवं गले के रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

(2) कारखानों में रसायनों के उत्पादन के फलस्वरूप निकली वाष्प से फेफड़ों के अनेक रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

(3) वायुमण्डल में धुआँ तथा धूल के कण से जुकाम, खाँसी, दमा एवं टी. वी. आदि रोग हो जाते हैं।

(4) एल्यूमीनियम तथा सुपर फॉस्फेट उत्पन्न करने वाले कारखानों से निकलने वाली गैसों से दातों और हड्डियों के रोग हो जाते हैं।

(5) पेट्रोल और डीजल के वाहनों द्वारा कार्बन डाई ऑक्साइड और टेटा मेथिल लैड आदि गैसें उत्पन्न होती हैं, जिनको श्वसन में लगातार लेने से कैन्सर एवं क्षय आदि रोग उत्पन्न हो जाते हैं।

(6) वायु प्रदूषण से पौधों को भी बहुत हानि होती है। सल्फर डाई ऑक्साइड तो पौधों को पूर्ण रूप से मृत बना देती है।

(7) वन अनियन्त्रित रूप से कट रहे हैं और हमें पर्याप्त ऑक्सीजन न मिल पाने के कारण स्वास्थ्य गिर रहा है।

(8) वायु में रेडियोएक्टिव विकिरण भी मिश्रित है, जो कि स्वास्थ्य के लिये हानिप्रद है।’

वायु प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय (Procedure of Air Pollution Control)

वायु प्रदूषण को निम्नलिखित साधनों तथा विधियों द्वारा नियन्त्रित किया जा सकता है (1) कारखानों की चिमनियों पर गैस अवशोषण यन्त्र को अनिवार्यत: लगाया जाय।

(2) कल-कारखानों अथवा उद्योगों को बस्ती से दूर लगाया जाये, जिससे कारखाने से निकलने वाली गैसें बस्ती अथवा शहर के नागरिकों को प्रभावित न कर सकें।

(3) कारखानों में कार्यरत व्यक्तियों का समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण कराया जाय।

(4) अवशिष्ट गैसों तथा धुएँ के वायुमण्डल में पहुँचने के पूर्व ही उसमें इतनी ऑक्सीजन मिला दी जाय कि उसमें उपस्थित पदार्थों का पूर्ण ऑक्सीकरण हो जाय जिससे प्रदूषण कम हो जाय।

(5) जिन ईंधनों का प्रयोग किया जाय वह ऐसा हो कि दहन प्रक्रिया के समय उसका पूर्ण ऑक्सीकरण हो जाय, जिससे कम-से-कम धुआँ और दूषित गैसें बाहर निकलें।

(6) वाहनों के लिये उपयुक्त ईंधन उचित मात्रा में प्रयोग किया जाना चाहिये। समय-समय पर दहन ईंधन का परीक्षण किया जाना चाहिये।

(7) अपशिष्ट पदार्थ युक्त बड़े कणों को उपयुक्त छन्ने (Filters) लगाकर वायुमण्डल में फैलने से रोकना चाहिये।

(8) वनों को बर्बरतापूर्वक नहीं काटना चाहिये। प्रत्येक छात्र एवं नागरिक को एक वृक्ष काटने पर दो नये वृक्ष लगाना चाहिये।

(9) प्रदूषण को रोकने के लिये नये उपाय खोजना चाहिये।

(10) पर्यावरण सन्तुलन के लिये सरकारी तथा सामाजिक स्तर पर भी उपाय करने चाहिये।

(11) कारखानों में काम करने वाले व्यक्तियों का समय-समय पर स्वास्थ्य परीक्षण करते रहना चाहिये ।

जल प्रदूषण क्या है?

जल में अनेक प्रकार के खनिज, कार्बनिक तथा अकार्बनिक पदार्थों तथा गैसों के निश्चित अनुपात से कम अथवा अधिक तथा अन्य अनावश्यक पदार्थ घुले होने से जल प्रदूषित हो जाता है।

जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के उपाय

जल प्रदूषण को नियन्त्रित करने के लिये निम्नलिखित उपचारों की आवश्यकता है-

(1) नगर पालिका तथा महापालिकाओं को सीवर शोधन संयन्त्रों की व्यवस्था करनी चाहिये।

(2) घर से निकलने वाले कूड़े-करकट को एक निर्धारित स्थान पर इकट्ठा किया जाना चाहिये

(3) मृतक पशुओं को जलाशय आदि में विसर्जित नहीं किया जाना चाहिये।

(4) कस्बों, नगरों तथा महानगरों में शौचालय की उचित व्यवस्था होनी चाहिये ।

(5) अधजले शव अथवा कार्बनिक पदार्थों को नदी में प्रवाहित नहीं करना चाहिये

(6) विद्युत शव दाह की व्यवस्था करनी चाहिये ।

(7) जल प्रदूषण को रोकने के लिये रेडियो एवं समाचार-पत्रों में व्यापक प्रचार करने चाहिये ।

(8) जल-संरक्षण सम्बन्धी नियम एवं अधिनियमों को कड़ाई से लागू करना चाहिये ।

(9) जल प्रदूषण रोकने के लिये व्यापक कार्यक्रम चलाये जाने चाहिये।

(10) जल का पुनः चक्रण करके उद्योगों में उसका उपयोग करना चाहिये, जो आर्थिक दृष्टि तथा प्रदूषण नियन्त्रण की दृष्टि से बहुत उपयोगी होगा।

(11) औद्योगिक कारखानों के अपशिष्ट पदार्थों को सीधे नदियों में नहीं बहाना चाहिये, अपितु इन पदार्थों को दोष रहित करके ही नदियों में बहाना चाहिये।

कभी-कभी जल की गुणवत्ता में कमी आ जाती है, जिससे वह जल पुनरुपयोग के लायक नहीं होता लेकिन उससे कुछ उपयोगी उप-उत्पाद प्राप्त किये जा सकते हैं। संयन्त्र से बाहर निकलने पर अपशिष्ट जल को भौतिक उपचार द्वारा शुद्ध किया जा सकता है जिसे अलगाव क्रिया भी कहते हैं । इस क्रिया में जल से ठोस पदार्थों को अलग कर दिया जाता है। अपशिष्ट जलधारा को छोटे-छोटे तालाब में रोककर अपशिष्ट पदार्थों को एकत्रित किया जाता है। अतः वह नदी जिसमें अपशिष्ट जल मिलता है, प्रदूषण से बहुत बच जाती है।

जल प्रदूषण के दुष्प्रभाव 

अवांछित अपशिष्ट पदार्थों के जल में मिलने से अनेक भौतिक, रासायनिक एवं जैविक परिवर्तन आ जाते हैं। जल प्रदूषण से जल में रहने वाले पौधे एवं जन्तु तो प्रभावित होते ही हैं, मनुष्य भी अत्यधिक प्रभावित होते हैं। प्रदूषित जल पीने से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ; जैसे- टाइफाइड (मियादी बुखार), पेचिश, क्षयरोग (टी.बी.), पीलिया आदि भयंकर रोग हो जाते हैं। प्रदूषित जल में विभिन्न प्रकार के हानिकारक जीवाणु, विषाणु तथा हानिकारक कृमि एवं उनके अण्डे पाये जाते हैं, जो मनुष्य में रोग उत्पन्न करते हैं।

ध्वनि प्रदूषण क्या है?

वह ध्वनि जो कर्ण-कटु लगे अथवा अवांछित कोलाहल या अन्य प्रकार की अवांछनीय ध्वनि शोर (Noise) कहलाती हैं। Noise शब्द लैटिन भाषा के Nausea से निकला है। दूसरे शब्दों में विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न शोर मानव के लिये अनाराम की दशा को व्यक्त करता हैं।

(1) डेवॉयलर (Devoildor) के अनुसार, “पर्यावरण में ध्वनि इस सीमा तक फैल जाय कि जनसामान्य को क्षुब्ध या चिड़चिड़ा करने लगे तो उसे शोर कहते हैं। “

(2) सिम्मन्स (Sirpons) के मतानुसार, “निरर्थक अथवा अनुपयोगी ध्वनि ही शोर प्रदूषण है।” “Unwanted or useless sound called noise pollution.’

ध्वनि (शोर) प्रदूषण के प्रभाव [Effects of Sound (Noise) Pollution] –

ध्वनि (शोर) प्रदूषण के निम्नलिखित प्रभाव होते हैं-

(1) शोर (ध्वनि) से हमारे कान प्रभावित होते हैं, कानों को यह अप्रिय लगती है।

(2) कार्यक्षमता में कमी आ जाती है तथा मानसिक तनाव बढ़ता है।

(3) इससे कानों के अतिरिक्त मस्तिष्क, केन्द्रीय तन्त्रिका तन्त्र तथा आमाशय पर भी प्रभाव पड़ता है।

(4) इससे सिर दर्द, उच्च रक्त चाप, रक्तदाब, कम स्मरण शक्ति, मिचली, उल्टी, कान दर्द, चमड़ी में जलन, रक्त प्रवाह की समस्याएँ, मानसिक दबाव, निराशा तथा चिड़चिड़ापन आदि बीमारियाँ उत्पन्न हो जाती हैं।

(5) वैज्ञानिक शोधों से स्पष्ट है कि 90 डेसीबल से ऊपर की ध्वनि के प्रभाव में लम्बे समय तक रहने वाला बहरा हो जाता है और 130 – 140 डेसीबल का शोर शारीरिक दर्द उत्पन्न करता है।

(6) यदि हमारे कानों में 150 डेसीबल की ध्वनि प्रवेश कर जाये तो हम बहरे हो सकते हैं।

ध्वनि प्रदूषण से बचाव (Protection From Sound Pollution)

ध्वनि प्रदूषण से बचाव के लिये निम्नलिखित उपाय किये जाने चाहिये-

(1) शोर प्रदूषण रोकने के लिये कल-कारखानों को सामान्य नगर तथा कस्बों से दूर स्थापित करना चाहिये।

(2) जिन कमरों में अधिक ध्वनि (शोर) उत्पन्न होती है, उनकी आन्तरिक दीवारों पर ध्वनि अवशोषक पदार्थों का अस्तर लगाना चाहिये, जिससे बाहर शोर बहुत कम जाये।

(3) पौधों में ध्वनि प्रदूषण कम करने की अत्यधिक क्षमता होती है। अतः जिन स्थानों पर शोर अधिक होता है, उनकी परिधि में वृक्ष लगाये जाने चाहिये।

(4) शोर को सीमित रखने का प्रयास करना चाहिये।

(6) जन सामान्य को इस तथ्य के लिये शिक्षित करना चाहिये किशोर हमारे लिये हानिप्रद है।

(7) वाहनों के हॉर्न का प्रयोग कम-से-कम प्रयोग करना चाहिये।

(9) कल-कारखानों में कम ध्वनि के सायरन बजाना चाहिये।

(10) लाउडस्पीकर, बैण्डबाजों पर प्रतिबन्ध लगाया जाना चाहिये कि वे व्यर्थ न बजायें, जो दुकानदार प्रदर्शन हेतु परीक्षण करते हैं, कम करें।

भूमि एवं मृदा प्रदूषण का अर्थ

भूमि एवं मृदा प्रदूषण का अर्थ- पौधों की जड़ें मिट्टी से पोषक तत्त्वों का अवशोषण करती हैं। जड़ों की सक्रियता बनाये रखने के लिये उन्हें आवश्यकतानुसार जल तथा ऑक्सीजनयुक्त वायु प्राप्त होती रहनी चाहिये। प्रदूषित वायु और जल के कारण मृदा भी प्रदूषित हो जाती है। वर्षा इत्यादि के जल के साथ ये प्रदूषक पदार्थ मिट्टी में भी आ जाते हैं; जैसे-वायु में सल्फर डाइऑक्साइड वर्ष के जल के साथ मिलकर सल्फ्यूरिक अम्ल में परिवर्तित हो जाती है। इस प्रकार जनसंख्या की वृद्धि के साथ साथ अधिक कृषि उत्पादन प्राप्त करने के लिये भूमि की उर्वरता बढ़ाने या बनाये रखने के लिये उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग किया जाता है। ये सभी पदार्थ मृदा में हानिकारक प्रभाव डालते हैं। इस प्रकार का प्रदूषण पौधों की वृद्धि को रोकने, कम करने या मानव की मृत्यु का कारण बन सकता है।

भूमि (मृदा ) प्रदूषण को रोकने के उपाय

बढ़ती जनसंख्या भूमि प्रदूषण को और भी बदतर बनाती जा रही है। भूमि प्रदूषण को रोकने का निरन्तर प्रयास किया जा रहा है। भूमि (मृदा) को प्रदूषण रहित रखने के लिये निम्नलिखित उपाय काम में लाने चाहिये

(1) ठोस पदार्थों; जैसे—कागज, रबड़, गत्ते, चीथड़े आदि को जलाकर भूमि (मृदा) प्रदूषण पर पर्याप्त सीमा तक नियन्त्रण पाया जा सकता है। कूड़े को भूमि में दबाकर उससे मुक्ति पायी जा सकती है। दबा हुआ यह कूड़ा कुछ समय में मिट्टी में परिवर्तित हो जाता है ।

(2) मोटर वाहनों के टूटे हुए भागों को पुनः प्रयोग करने की विधि बहुत प्रभावशाली है। हम काँच, एल्यूमिनियम, लोहा, ताँबा आदि को पुनः पिघलाकर प्रयोग कर सकते हैं। उद्योगों को रि-साइकिलिंग के लिये बाध्य करना पड़ेगा। कूड़े-करकट को उच्च तापमान पर भस्म कर दिया जाय तो भूमि-प्रदूषण को अधिकांशत: कम किया जा सकता है।

(3) सदियों से हम घरेलू अपशिष्ट पदार्थों को सागरों के किनारे, खाड़ियों, नदियों के किनारे या जंजर भूमि पर डालते जा रहे हैं। इससे अनेक रोगों और दुर्गन्ध का जन्म होता है। अपशिष्ट पदार्थ को फेंकने के फलस्वरूप जमीन में दबाकर, जलाकर अथवा रि-साइकिलिंग पद्धति द्वारा उपयोगी बनाया जा सकता है।

Important Links

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment