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भारत में शिक्षा व्यवस्था की देखरेख के लिये नियुक्त हण्टर आयोग और उसकी संस्तुतियाँ

भारत में शिक्षा व्यवस्था की देखरेख के लिये नियुक्त हण्टर आयोग और उसकी संस्तुतियाँ
भारत में शिक्षा व्यवस्था की देखरेख के लिये नियुक्त हण्टर आयोग और उसकी संस्तुतियाँ

भारत में शिक्षा व्यवस्था की देखरेख के लिये नियुक्त हण्टर आयोग और उसकी संस्तुतियाँ

हण्टर आयोग ने शिक्षा के विभिन्न पक्षों का विहंगम अवलोकन एवं समीक्षा करने के पश्चात् विशद् संस्तुतियाँ एवं सुझाव प्रस्तुत किये थे। किन्तु अधिकांश शिक्षाविदों का मत है कि ये संस्तुतियाँ तथा सुझाव न्यूनाधिक वुड के घोषणा-पत्र से ही प्रभावित थे। इस आयोग ने 1854 के वुड के घोषणा-पत्र को अपना आदर्श मानकर उसमें आंशिक हेर-फेर करके उसका नवीनीकरण मात्र किया है। शिक्षा के विभिन्न पक्षों के सन्दर्भ में इस आयोग की महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ एवं सुझाव निम्नलिखित प्रकार हैं-

1. प्राथमिक शिक्षा (Primary Education)

हण्टर आयोग का प्राथमिक दायित्व प्राथमिक शिक्षा की विशद् समीक्षा करना था। अतः इस शिक्षा स्तर को आयोग ने सर्वोच्च प्रमुखता प्रदान की तथा सरकार को जन शिक्षा के प्रचार के लिये एवं इसकी प्रगति को तीव्र करने के लिये आवश्यक कदम उठाने के सुझाव प्रस्तुत किये। इस सन्दर्भ में हण्टर आयोग के महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं-

(1) प्राथमिक शिक्षा का उद्देश्य जन शिक्षा का प्रचार करना होना चाहिये। इसे उच्च शिक्षा की सीढ़ी मात्र नहीं माना जाय।

(2) यह शिक्षा देशी (Indian) एवं क्षेत्रीय भाषाओं के माध्यम से प्रदान की जानी चाहिये।

(3) इस शिक्षा के प्रचार के लिये जन सामान्य से सम्बन्धित व्यावहारिक विषयों की शिक्षा देनी चाहिये।

(4) यह शिक्षा पूर्णरूपेण राजकीय दायित्व में प्रदान की जानी चाहिये।

(5) निम्न स्तरीय राजकीय पदों के लिये प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य की जाय।

(6) प्राथमिक शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिये पिछड़े वर्गों, आदिवासियों एवं जन-जातियों को आर्थिक एवं अन्य प्रकार की सहायता प्रदान की जानी चाहिये। हण्टर आयोग ने अपनी टिप्पणी में कहा है- “जनसाधारण की प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था के लिये, उसके प्रसार एवं सुधार के लिये राज्य द्वारा और अधिक सतत् प्रयास केन्द्रीकृत किये जायें।”

2. देशी शिक्षा (Indigenous Education)

देशी शिक्षा के सम्बन्ध में आयोग ने विस्तृत चर्चा की है। देशी शिक्षा का तात्पर्य भारत की प्राच्य शिक्षा पद्धति पर आधारित शिक्षा से था। कमीशन ने इन भारतीय विद्यालयों के महत्त्व को स्वीकारते हुए कहा था- “अति दीर्घकाल से कठिनाइयों का सामना करने पर भी इन विद्यालयों का अस्तित्व इस बात का ज्वलन्त प्रमाण है कि वे सजीव तथा लोकप्रिय हैं। इन संस्थाओं को सरकारी सहायता प्रदान करके राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली में महत्त्वपूर्ण योगदान के लिये तैयार किया जा सकता है।”

देशी शिक्षा पद्धति के उत्थान के सन्दर्भ में हण्टर शिक्षा आयोग की महत्त्वपूर्ण संस्तुतियाँ निम्नलिखित प्रकार हैं-

(i) देशी पाठशालाओं को पर्याप्त सरकारी सहायता प्रदान की जाय।

(ii) इन पाठशालाओं में प्रवेश प्रतिबन्ध को हटाया जाय।

(iii) इन पाठशालाओं में प्रवेश लेने वाले निर्धन छात्रों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान की जायें।

(iv) देशी संस्थाओं को स्थानीय संस्थाओं के नियन्त्रण से मुक्त किया जाय।

(v) देशी संस्थाओं के पाठ्यक्रम में हस्तक्षेप न किया जाय, किन्तु शिक्षकों के प्रशिक्षण की उचित व्यवस्था की जाय ।

3. माध्यमिक शिक्षा (Secondary Education)

 माध्यमिक शिक्षा के विस्तार के सन्दर्भ में आयोग ने कहा था कि सरकार को माध्यमिक शिक्षा सुयोग्य एवं बुद्धिमान भारतीयों के हाथों में सौंपकर स्वयं को उसके उत्तरदायित्व से मुक्त हो जाना चाहिये। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये सरकार सहायता अनुदान प्रणाली का अनुसरण करे। यदि किसी क्षेत्र में अंग्रेजी की शिक्षा के लिये माध्यमिक स्कूलों की स्थापना आवश्यक हो तो उनकी सहायता अनुदान प्रणाली द्वारा स्थापित की जाय। माध्यमिक शिक्षा में उत्पन्न दोषों को दूर करने के उपायों के अन्तर्गत हण्टर आयोग ने हाईस्कूल स्तर की शिक्षा को दो भागों में बाँटने पर बल दिया। इनमें से ‘ए’ कोर्स (A Course) – उन छात्रों के लिये बनाया जाय जो उच्च शिक्षा में रुचि रखते हों, किन्तु ‘बी’ कोर्स (B-Course)—ऐसे छात्रों के लिये हो जो माध्यमिक शिक्षा के बाद कोई व्यवसाय सीखने में रुचि रखते हों। इस प्रकार हण्टर कमीशन ने माध्यमिक शिक्षा को दो धाराओं में विभाजित करके उसके व्यावसायीकरण पर अतिरिक्त बल दिया था, जो कि निम्नलिखित हैं-

(1) शिक्षक-प्रशिक्षण (Teacher’s training)-इस आयोग की नियुक्ति के समय सम्पूर्ण भारत में मात्र दो शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थान कार्यरत थे। इनमें से एक लाहौर में तथा दूसरा मद्रास में था। हण्टर कमीशन ने शिक्षक-प्रशिक्षण को अत्यधिक महत्त्व देते हुए और अधिक शिक्षक-प्रशिक्षण संस्थाओं की स्थापना पर बल दिया। हण्टर आयोग का सुझाव था कि स्नातकों का प्रशिक्षण काल कुछ कम कर दिया जाय तथा शिक्षक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में व्यावहारिकता पर बल प्रदान किया जाय ।

(2) उच्च शिक्षा (Higher education) – उच्च शिक्षा की समीक्षा हण्टर कमीशन के कार्य क्षेत्र में सम्मिलित नहीं थी, किन्तु इस क्षेत्र में कमीशन ने अपने संक्षिप्त विचार प्रस्तुत किये थे। इस क्षेत्र के महत्त्वपूर्ण सुझाव निम्नलिखित हैं-

(1) कॉलेजों को दी जाने वाली सहायता अनुदान प्रणाली का निर्णय शिक्षकों की संख्या, कॉलेजों के व्यय, कार्य क्षमता तथा स्थानीय आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर किया जाय।

(2) कॉलेजों को विभिन्न भौतिक सुविधाओं तथा पुस्तकालय आदि के लिये उचित सहायता-अनुदान दिया जाय।

(3) कॉलेजों में छात्रों की रुचियों के अनुरूप विस्तृत पाठ्यक्रमों के शिक्षण की व्यवस्था की जाय।

(4) कॉलेज के छात्रों के नैतिक विकास के लिये उपयुक्त पाठ्यक्रम लागू किया जाय।

4. स्त्री-शिक्षा (Women’s education)

 स्त्री-शिक्षा की शोचनीय स्थिति से द्रवित होकर हण्टर कमीशन ने लिखा था- “यह बात स्पष्ट है कि स्त्री-शिक्षा अभी तक अत्यधिक पिछड़ी हुई दशा में है। अतः इस बात की आवश्यकता है कि प्रत्येक सम्भव विधि से इसका पोषण किया जाय।”

इसके अतिरिक्त हण्टर आयोग द्वारा शिक्षा सम्बन्धी निम्नलिखित तथ्यों के बारे में भी अनुशंसाएँ की गयी हैं –

(1) सहायता अनुदान प्रणाली।

(2) मिशनरी शिक्षा।

(3) धार्मिक शिक्षा।

(4) मुस्लिम शिक्षा ।

(5) आदिवासी शिक्षा ।

(6) हरिजनों एवं पिछड़े वर्गों की शिक्षा ।

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