B.Ed. / BTC/ D.EL.ED / M.Ed.

भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ में शैक्षिक अवसरों की समानता

भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ में शैक्षिक अवसरों की समानता
भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ में शैक्षिक अवसरों की समानता

भारतीय शिक्षा व्यवस्था के सन्दर्भ में शैक्षिक अवसरों की समानता

शैक्षिक अवसरों की समानता का तात्पर्य जनमानस द्वारा विभिन्न रूपों में लगाया जाता है। ‘समानता’ (Equality) का तात्पर्य सभी के लिए एक समान शिक्षा नहीं है बल्कि प्रत्येक बालक की शारीरिक, मानसिक, सांवेगिक, नैतिक परिस्थितियों के अनुरूप शिक्षा को प्रासंगिक बनाना है। साथ ही समानता का तात्पर्य राज्य द्वारा व्यक्तियों की शिक्षा के सन्दर्भ में जाति, रूप, रंग, प्रान्तीयता एवं भाषा, धर्म आदि के मध्य भेदभाव न करने से भी है। संक्षेप में ‘समानता’ शब्द से अर्थ उन समान परिस्थितियों से हैं जिनमें सभी व्यक्तियों को विकास के समान अवसर प्राप्त हो सकें और सामाजिक भेदभाव का अन्त हो सके। इसके साथ ही सामाजिक न्याय (Social Justice) के लक्ष्य की प्राप्ति भी सम्भव हो सके। प्रसिद्ध राजनीतिविद् प्रो. लास्की (Laski) ने लिखा है-” समानता का अर्थ यह नहीं है कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाय अथवा सभी को समान वेतन दिया जाय। यदि एक पत्थर ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के समान कर दिया जाय, , तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जायेगा। अतः समानता का अर्थ यह है कि विशेष अधिकार वाला वर्ग न रहे और सबको उन्नति के समान अवसर मिलें।” शिक्षा (Education) के क्षेत्र में इस ‘समानता’ की अवधारणा को स्थापित करने के लिए निम्नलिखित प्रयास किये गये हैं-

(1) एक निश्चित अवधि तक भेदभाव रहित निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था।

(2) माध्यमिक स्तर पर विभिन्नीकृत पाठ्यक्रम व्यवस्था ।

(3) उच्च स्तर पर सभी के लिए अपेक्षित शैक्षिक उन्नति की व्यवस्था करना ताकि वे उचित योगदान देने में सक्षम हो सकें।

भारतीय संविधान में नागरिकों के एक समान अधिकारों एवं कर्त्तव्यों की विशद व्याख्या की गयी है। इनमें से संविधान की धारा 29 (2) के अन्तर्गत स्पष्ट किया गया है-“राज्य द्वारा पोषित य। राज्य नीति से सहायता प्राप्त करने या किसी शिक्षा में किसी नागरिक को धर्म, प्रजाति, जाति, भाषा या उनमें से किसी एक के आधार पर प्रवेश देने से नहीं रोका जायेगा।” इस प्रकार राष्ट्रीय शिक्षा-प्रणाली की परिकल्पना भारतीय संविधान में दिये गये मूलभूत सिद्धान्तों से अनुप्राणित है। इन्हीं सिद्धान्तों पर लोकतन्त्र, धर्म निरपेक्षता तथा समाजवाद की जड़ों को मजबूत किया जा सकता है। शिक्षा आयोग (1964-66) ने अपने विचार निम्नलिखित रूप में अभिव्यक्त किये हैं-“जो भी समाज सामाजिक न्याय को अत्यन्त आदर्श मानता है, जन-साधारण की हालत सुधारने तथा समस्त शिक्षा पाने योग्य व्यक्तियों को शिक्षित करने को उत्सुक है, उसे यह व्यवस्था करनी ही होगी कि जनता के सभी वर्गों को अवसर की अधिकाधिक समता प्राप्त होती जाय। एक समतामूलक तथा मानवतामूलक समाज, जिसमें निर्बल का शोषण कम से कम हो, बनाने का यही एक सुनिश्चित साधन है।”

Important Links…

Disclaimer

Disclaimer:Sarkariguider does not own this book, PDF Materials Images, neither created nor scanned. We just provide the Images and PDF links already available on the internet. If any way it violates the law or has any issues then kindly mail us: guidersarkari@gmail.com

About the author

Sarkari Guider Team

Leave a Comment