अर्थशास्त्र / Economics

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्व | Foreign trade in Indian economy- in Hindi

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्व
भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्व

भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्व पर एक नोट लिखिये।

दो पक्षों के मध्य वस्तुओं के ऐच्छिक, पारस्परिक एवं वैधानिक लेन-देन को व्यापार कहते हैं। एक देश के व्यापार को दो भागों में बाँटा गया है-

(i) घरेलू व्यापार, (ii) विदेशी व्यापार।

जब विभिन्न राष्ट्रों के बीच वस्तुओं और सेवाओं का क्रय-विक्रय होता है तो इसे विदेशी व्यापार कहा जाता है। सामान्य अर्थों में विदेशी व्यापार से तात्पर्य अनेक राष्ट्रों के बीच होने वाले व्यापार से है। विदेशी व्यापार को अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार या बाह्य व्यापार भी कहते हैं। उदाहरण के लिए-भारत का अमेरिका के साथ व्यापार। भारतीय अर्थव्यवस्था में विदेशी व्यापार के महत्व को निम्नलिखित प्रकार से प्रकट किया जा सकता है-

1. औद्योगीकरण को प्रोत्साहन-

विदेशी व्यापार के द्वारा देश में उद्योग-धन्धों को उन्नत करने के लिए आवश्यक उपकरण, कच्चा माल व तकनीकी ज्ञान सरलता से प्राप्त हो जाता है। फलस्वरूप देश में औद्योगिक विकास को प्रोत्साहन प्राप्त होता है।

2. प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग-

प्रत्येक देश ऐसे उद्योगों की स्थापना करते हैं जिनसे उसे अधिक से अधिक लाभ प्राप्त हो सके और फिर वह देश उस बाजार में अपनी उत्पादित वस्तुओं को बेचता है, जहाँ उसे अपनी वस्तुओं का सर्वाधिक मूल्य मिलता है। जब उस देश द्वारा उत्पादित वस्तओं की माँग अधिक होने लगती है तो वह उपलब्ध प्राकृतिक संसाधनों का पूर्ण उपयोग करने लगता है।

3. सस्ती वस्तुओं की उपलब्धि-

विदेशी व्यापार के होने से विदेशों से सस्ती एवं अच्छी किस्म की वस्तुएँ आसानी से प्राप्त हो जाती हैं। विदेशी वस्तुओं के जीवन में उपयोग करने से लोगों के जीवन-स्तर में उन्नति होती

4. उत्पादन व तकनीकी क्षमता में सुधार-

देश के उद्योगपतियों को विदेशी व्यापार के कारण सदैव विदेशी प्रतियोगिता का भय बना रहता है। उद्योगपति जानते हैं कि यदि वे उच्चकोटि का उत्पादन कम लागत पर न कर सके तो उसके द्वारा उत्पादित वस्तुओं की माँग कम हो जाएगी। इसी कारण वे अपनी कार्यकुशलता एवं उत्पादन तकनीकी में सुधार करते रहते

5. भौगोलिक श्रम-विभाजन-

विदेशी व्यापार के स्वतन्त्र होने पर प्रत्येक देश ऐसी वस्तुओं का उत्पादन करता है जिनसे उसे अधि क-से-अधिक प्राकृतिक लाभ हो। इस प्रकार विदेशी व्यापार की क्रियाएँ भौगोलिक श्रम-विभाजन को सम्भव बनाती हैं।

6. कच्चे माल की प्राप्ति-

विदेशी व्यापार के कारण विभिन्न देशों को आवश्याकतानुसार कच्चा माल आसानी से प्राप्त हो जाता है, जिससे देश के औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

7.आय की प्राप्ति-

सरकार को विदेशी व्यापार के द्वारा पर्याप्त मात्रा में आयात व निर्यात कर लगाकर आय की प्राप्ति होती है।

8. विदेशी विनिमय की प्राप्ति-

विदेशी व्यापार द्वारा विदेशी विनिमय की प्राप्ति होती है।

9. मूल्य स्तर में समानता की प्रवृत्ति-
विश्व के प्रायः सभी देशों में वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों के समान होने का कारण विदेशी व्यापार ने ही है।

10. उपभोक्ताओं को लाभ-

अनुकूलतम परिस्थितियों में उत्पादन होने के कारण वस्तु की उत्पादन लागत बहुत ही कम हो जाती है, फलस्वरूप उपभोक्ताओं को उत्तम वस्तुएँ कम मूल्य पर देश में ही प्राप्त हो जाती हैं। इससे उनके जीवन-स्तर में भी उन्नति होती है।

11. एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश-

विदेशी प्रतियोगिता के कारण अन्तर्राष्ट्रीय व्यापार के क्षेत्र में एकाधिकारी प्रवृत्ति पर अंकुश लगा रहता है, जिसमें देश के औद्योगीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।

12. अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग एवं सद्भावना में वृद्धि-

विदेशी व्यापार के फलस्वरूप विभिन्न देशों के नागरिक एक-दूसरे के सम्पर्क में आते हैं और आपस में एक-दूसरे के विचारों और रहन-सहन से परिचित होते हैं। एक-दूसरे के सम्पर्क में आने से सांस्कृतिक सहयोग एवं परस्पर विश्वास में वृद्धि होती है।

निष्कर्ष- उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि विदेशी व्यापार के अनेक लाभ तो होते ही हैं, साथ-ही-साथ एक-दूसरे के साथ मित्रता का सम्बन्ध भी गहरा होता है।

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