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पाठ्यक्रम हेतु उद्देश्यों का परिवर्तन एवं पुनर्व्यवस्था या पुनर्निर्माण

पाठ्यक्रम हेतु उद्देश्यों का परिवर्तन एवं पुनर्व्यवस्था या पुनर्निर्माण
पाठ्यक्रम हेतु उद्देश्यों का परिवर्तन एवं पुनर्व्यवस्था या पुनर्निर्माण

पाठ्यक्रम हेतु उद्देश्यों का परिवर्तन एवं पुनर्व्यवस्था या पुनर्निर्माण (Modification & Reconstruction of Objectives for Curriculum)

सौंपे गए किसी पाठ्यक्रम की कार्यान्वयन से पूर्व पुनः संरचना बनाने की आवश्यकता होती है। यह पुनः संरचना लघु स्तर और बृहत्त स्तर पर की जा सकती है। (Restructuring of curriculum can be done at macro level and at a micro level.)

(1) लघु स्तर (Micro level)- लघु स्तर पर एक अध्यापक प्रस्तुतीकरण के लिए विषयवस्तु के अनुक्रमण (sequence) को उपयुक्त पा सकता है, परन्तु यदि वह शिक्षण की भागीदारी तकनीकों को रखना चाहता है तो हो सकता है कि वह अनुक्रमण को उपयुक्त न पाए और इस स्थिति में वह अपने प्रस्तुतिकरण के ढंग से अनुरूप विषय के अनुक्रमण को पुनः संगठित कर सकता है। ऐसा लघु स्तर पुनर्गठन प्रायः अध्यापकों द्वारा किया जाता है जो शिक्षा उपागम में नवाचार (Innovative) होते हैं। पाठ्यक्रम के लघु स्तर को पुनर्गठन के उतने ही ढंग हो सकते हैं, जितने अध्यापक हैं।

(2) बृहत स्तर (Macro level)- बृहत स्तर पर अप्रचलित तत्त्वों को हटाया जा सकता है, क्षेत्र में हाल के विकास को जोड़ा जा सकता है और विषयवस्तु को पुनः क्रमबद्ध किया जा सकता है।

पुनर्गठित पाठ्यक्रम का पूर्व परीक्षण (Pre-testing of Restructuring Curriculum)- जब वर्तमान पाठ्यक्रम का बृहत स्तर पर पुनर्गठन किया जाता है तो कार्यान्वयन से पहले उसका पूर्व परीक्षण होना आवश्यक है। इस परीक्षण से पता चलेगा कि क्या विचारित परिवर्तनों से वांछित परिणाम निकला है अथवा पाठ्यक्रम में अब भी संशोधन की आवश्यकता है। बेहतर है कि ऐसा पुनर्गठन वास्तविक शिक्षण-अधिगम परिस्थितियों के अन्तर्गत किया जाए।

पाठ्यक्रम परिशोधन के लिए सकारात्मक प्रतिमानों की खोज (Search for Affirmative Models for Curriculum Revision)- इस इकाई में वर्णित पाठ्यक्रम परिशोधन की तकनीक बहुत समय से प्रयोग में लायी जा रही है। और व्यवसायिकों द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में और अधिक गतिशील प्रतिमान विकसित किए जा रहे हैं। ऐसे प्रतिमानों में कुछ संगत बिन्दु हैं जिन्हें तकनीकी तथा व्यवसायिक शिक्षा, चिकित्सा शिक्षा इत्यादि में विकसित किया गया उन लोगों की रुचि के हो सकते हैं जो स्कूल स्तर पर भी पाठ्यक्रम के परिशोधन से सम्बन्धित है। ऐसे प्रतिमानों की निरन्तर खोज स्कूली स्तर पर शैक्षिक योजनाकारों तथा क्रियान्वयनों द्वारा की जानी चाहिए। कभी भी उसके द्वारा जो माध्यमिक पाठ्यक्रम विकास से सम्बन्धित है, माध्यमिक शिक्षा के लिए उपयुक्त तथा गतिशील प्रतिमान तैयार किया जा सकता है।

परिवर्तन एवं पुनर्निर्माण हेतु निम्न की आवश्यकता होती है-

(1) पाठ्यक्रम कार्यकर्त्ता (Curriculum practitioners)- पाठ्यक्रम कार्यकर्ता वे व्यक्ति होते हैं जो पाठ्यक्रम के साथ प्रत्येक क्षण सक्रियतापूर्वक सम्बन्धित होते हैं। वे शैक्षिक कार्यकर्ता हैं, शिक्षक हैं जो प्रत्येक विषयों, पाठ्यक्रम में सम्मिलित विभिन्न क्रियाओं, विद्यार्थियों अथवा शिक्षार्थियों तथा प्रशासकों के साथ सम्बन्धित होते हैं ये सभी कार्यकर्ता अपने-अपने ढंग से कार्य करते हैं। जैसे कि हम देखते हैं कभी-कभी एक बुरा शिक्षक पाठ्यक्रम को असफल कर सकता है तथा कभी एक बुरा विद्यार्थी अथवा बुरे विद्यार्थियों का समूह पाठ्यक्रम को असफल बनाता है।

(2) पाठ्यक्रम प्रचारकर्त्ता (Curriculum diseminators)- पाठ्यक्रम प्रचारकों का भी प्रमुख स्थान है। ये शिक्षकों या प्रशासकों को पाठ्यक्रम और प्रयोग की जाने वाली, शिक्षण विधियों से परिचित कराते हैं। इस प्रकार सेवा पूर्व शिक्षकों के प्रशिक्षक, सेवाकालीन शिक्षकों के प्रशिक्षक, शिक्षकों के लिए नवीनीकरण कार्यक्रमों (Orientation programmes), रिफ्रैशर कोर्सों के साथ सम्बन्धित प्रशिक्षक तथा अकादमिक महाविद्यालयों का स्टाफ- ये सभी व्यक्ति पाठ्यक्रम में प्रचारक हैं।

(3) पाठ्यक्रम मूल्यांकनकर्त्ता (Curriculum evaluators)- पाठ्यक्रम मूल्यांकनकर्ता, पाठ्यक्रम के साथ सम्बन्धित व्यक्तियों को एक अन्य महत्त्वपूर्ण अंग हैं। वे व्यक्ति पाठ्यक्रम की सफलता अथवा असफलता का निर्णय करते हैं। ये पाठ्यक्रम की प्रभावशीलता के विषय में आँकड़ों का संग्रहण तथा मूल्यांकन करते हैं। इनकी रिपोर्ट पाठ्यक्रम के बारे में अन्तिम निर्णय लेने से महत्त्वपूर्ण कार्य करती है।

(4) पाठ्यक्रम विकासकर्त्ता (Curriculum developers)- ये वे व्यक्ति हैं जो जीवन अनुभवों के आधार पर पाठ्यक्रम के लिए विषय सामग्री तैयार करते हैं वे अनुदेशन देने के लिए प्रयोग की जाने वाली नीतियों का भी प्रस्ताव देते हैं। इस प्रकार पाठ्यक्रम विकासकर्त्ता पाठ्य-पुस्तक, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ आदि भी हो सकते हैं।

(5) पाठ्यक्रम सिद्धान्तकार (Curriculum theoreticians)- ये वे व्यक्ति होते हैं जो पाठ्यक्रम मूल्यांकन के आधार पर कुछ सिद्धान्तों की संरचना करते हैं तथा तब उनका सुझाव कुछ सिद्धान्तों की संरचना करते हैं तथा तब उनको सुझाव देते हैं। जब पाठ्यक्रम का विकास व निर्माण करते समय उसका परीक्षण किया जा रहा है, पाठ्यक्रम मूल्यांकन के क्षेत्र के शोधकर्ता अथवा आलोचक होते हैं।

(6) मनोवैज्ञानिक कारक (Psychological factors)- मनोवैज्ञानिक कारक इस बात पर बल देते हैं कि शिक्षा छात्र के लिए है परन्तु छात्र शिक्षा के लिए नहीं है। मनोवैज्ञानिक भी इस सत्य को अपनाता है कि एक छात्र अनेक अवस्थाओं से पार होकर विकसित होता है अपितु छात्र में व्यक्तिगत भिन्नताएँ, रुचियों, आवश्यकताओं आवेशों योग्यताओं में भी देखी जा सकती हैं। अतः पाठ्यचर्या लचीली होनी चाहिए ताकि हर विद्यार्थी व्यक्तिगत भिन्नताओं से पार पा सके तथा हर विद्यार्थी को अपनी क्षमता के अनुसार प्रकृति रूप से विकसित हो सके। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए पाठ्यचर्या में अनेक खेलकूद एवं रचनात्मक क्रियाओं का संलयन होना चाहिए।

(7) पाठ्यचर्या एवं सह-सम्बन्ध (Curriculum and correlation)- हरबर्ट ने प्रत्येक शिक्षा को दो भागों में बाँटा है-

(1) इतिहास तथा वैज्ञानिक (Historical and scientidfic)- उनके अनुसार इतिहास एवं साहित्य साहित्य प्रबल विषय है जबकि वैज्ञानिक शिक्षा गौण विषय है। उन्होंने इतिहास को प्रबल मानते हुए कहा कि अन्य विषय इससे सहसम्बन्ध स्थापित कर सकते हैं।

(2) सही निर्देश (Proper Instruction)- सर्वप्रथम हरबर्ट ने ही सही हिदायतों पर बल दिया तथा शिक्षण प्रक्रिया को उन्नत किया। सही हिदायतें ना मिलने पर ज्ञान केवल मस्तिष्क में ही केन्द्रित होता है रुचि स्थायी होने के लिए ज्ञान का समावेश होना आवश्यक है तथा यह समावेश केवल हिदायतों से से ही सम्भव है।

(3) हरबर्ट के अनुसार एवं व्यक्ति की वृद्धि केवल एक तरफा न होकर सभी क्षेत्रों में पूर्ण होनी चाहिए। अतः शिक्षा इस प्रकार ही जो मनुष्य को उसकी सम्पूर्ण वृद्धि एवं उसे उसकी समस्याओं से निजात पाने में सहायता कर सके। इसकी पूर्ति के लिए हरबर्ट ने मनुष्य क्रियाओं को पाँच श्रेणियों में बाँट कर उसके अनुरूप विषय निर्धारित किए हैं

(i) स्वयं सरक्षण- शारीरिक, स्वास्थ्य, रसायनिक, भौतिक विज्ञान ।

(ii) स्वयं सुरक्षा- गणित, जीवविज्ञान, समझविज्ञान, भौतिक विज्ञान ।

(iii) मानव सन्तान एवं बचाना- शारीरिक विज्ञान, घरेलू विज्ञान, मनोविज्ञान।

(iv) बचत का सदुपयोग – इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, राजनीति।

(v) सदुपयोग एवं सौंदर्यात्मक वृद्धि- कला, संगीत एवं कविता आदि।

इस प्रकार हम देखते हैं कि एक सही अर्थों में अच्छा पाठ्यक्रम उपरोक्त सभी कारकों को ध्यान में रखता है। यह लक्ष्यों की प्राप्ति को सुनिश्चित करता है।

(8) अनुशासन केन्द्रित पाठ्यक्रम (Discipline Oreinted Curriculum)- पाठ्यचर्या के सन्दर्भ में अनुशासन आम तौर पर एवं सुव्यवस्थित संगठन है जो कि अपने विज्ञान तत्त्व एवं अपनी विषय वस्तु का हवाला देता है। उदाहरणतः भौतिक विज्ञान, इतिहास, सामाजिक अध्ययन, रसायनिक विज्ञान, संगीत एवं अलग विद्या है। हर विद्या से सम्बन्धित एक अलग क्षेत्र, गतिविधि है। दूसरा हर विद्या का अपना एक तरीका ज्ञान, प्राप्त करना एवं प्रमाणित करना इसके माध्यम से ही होता है। उदाहरण के लिए प्रयोग विधि विज्ञान के ज्ञान को उत्पन्न एवं प्रमाणित करने के लिए है जबकि सामाजिक बजाय ज्यादा वरीयता प्राप्त करवाता है। तीसरा विधि के अपने अलग कायदे एवं कानून हैं। विद्या अपने बारे में कहीं अधिक विचारोत्तेजक है यह विद्या का ही ढाँचा है जो यह दर्शाता है कि विषय वस्तु के उपचार में कौन-सी युक्ति अपनानी चाहिए तथा सूचना एवं अनुभव एक-दूसरे से किस प्रकार जुड़े हैं तथा इसके पूर्णतः निष्पादन के लिए कौन-से तरीके एवं उत्तरदान प्रयोग किए जाने चाहिए ?

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