समाजशास्‍त्र / Sociology

नातेदारी व्यवस्था में ‘परिहास’ सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए। ( Avoidance relations in kinship system)

नातेदारी व्यवस्था में 'परिहास' सम्बन्ध

नातेदारी व्यवस्था में ‘परिहास’ सम्बन्ध

नातेदारी व्यवस्था में ‘परिहास’ सम्बन्ध

नातेदारी व्यवस्था में ‘परिहास’ सम्बन्धों को स्पष्ट कीजिए।

नातेदारी व्यवस्था में ‘परिहास’ सम्बन्ध – शाब्दिक दृष्टि से परिहास का अर्थ ‘मनोविनोद’ या रसिकता है। कुछ विचारक परिहास का अर्थ दूसरे व्यक्तियों से हंसी-मजाक से लेते हैं। कुछ व्यक्ति इसे खिल्ली उड़ाना भी कहते है। वास्तव में परिहास मनोरंजन का वह रूप है जो परिहार अथवा विमुखता के सम्बन्धों के ला विपरीत प्रकार का है और जिसमें ऐसे सम्बन्ध रखने वाले में धनिष्ठना, प्रगाढ़ता एवं सामीप्य अधिक होता है। अधिकतर ऐसे सम्बन्ध विवाह सम्बन्धियों में ही होते हैं और इन सम्बन्धों के अन्तर्गत गाली-गलोच, हँसी-दिल्लगी, यौन सम्बन्धी अश्लील और भद्दे कथन, एक दूसरे की सम्पत्ति की क्षति, खिल्ली-मजाक आदि का समावेश होता है।

परिहास (हँसी-मजाक) मानव के कठोर जीवन में नवीन उत्साह व प्रेरणाओं का संचार कर मानव को प्रभावित करता है। सामाजिक जीवन में परिहास का विशेष स्थान है। इसमें मसखरी, तानेकशी, लोक परिहास, नकल उतारना इत्यादि सभी आते हैं और इन सभी से हमारा व्यवहार नियन्त्रित होता है। परिहास सम्बन्धों की विविध प्रकार से व्याख्या दी गयी है। ये सम्बन्ध पारस्परिक आदान-प्रदान के सूचक हैं। कई बार ये सम्भावित यौन सम्बन्धता के भी हो सकते हैं। जीजा-साली तथा देवर-भाभी परिहास इस श्रेणी में आते हैं। अपापाहो समाज में जीजा-साली में चुम्बन समाज द्वारा स्वीकृत है। भाभी-भान्जा परिहास मामा की सम्पूर्ण सम्पत्ति उत्तराधिकार में प्राप्त करने की प्रथा का परिचायक है। मातृवंशीय ट्रोब्रिअंड द्वीप निवासियों में इस प्रकार का परिहास पाया जाता है। कई जनजातियों (जैसे कि बैगा तथा उराँव) में दादा-दादी और पोते-पोतियों के बीच परिहास सम्बन्ध पाये जाते हैं। उराँव जनजाति में दादा-पोती तथा बैगा जनजाति में पोता-दादी विवाह के उदाहरण इस परिहास सम्बन्धों की सीमा के सूचक हैं। रेडक्लिफ-ब्राउन ने परिहास सम्बन्धों को प्रतीकात्मक बताया है। यह एक ऐसी मित्रता हो सकती है जो शत्रुता प्रदर्शन द्वारा व्यक्त की जाती है। जब परिहास सम्बन्ध पारस्परिक नहीं होते तब यह सामाजिक नियन्त्रण की भूमिका ग्रहण कर लेते हैं। खिल्ली उड़ाने के माध्यम में यह सुधार का परिचायक भी बन सकता है। इसलिये हँसी-मजाक के सम्बन्धों द्वारा हमारे व्यवहार को निम्नांकित प्रकार से नियन्त्रित किया जाता है-

नातेदारी के प्रकार

नातेदारी सम्बन्धों द्वारा हमारे व्यवहार को निम्नांकित प्रकार से नियन्त्रित किया जाता है-

(1) हँसी-मजाक के साथ सामाजिक अभिमति होती है-

हँसी-मजाक द्वारा उस व्यक्ति का उपहास होता है जो समाज या समूह-विरोधी कार्य करता है। इस प्रकार का कार्य समूह के कल्याण के लिये हानिप्रद समझा जाता है। अतः ऐसा व्यवहार करने पर समूह द्वारा उसकी हंसी-उड़ाई जाती है, जिससे वह व्यक्ति गलत कार्य करने से रुक जाता है।

(2) हंसी-मजाक सार्वभौमिक हैं—

हंसी-मजाक एक सार्वभौमिक तथ्य है समाज के प्रत्येक वर्ग अर्थात् मन्त्रियों, प्रोफेसरों, बैरिस्टरों आदि में तथा विभिन्न प्रकार के रिश्तेदारों में हंसी- मजाक पायी जाती है। देवर-भाभी और जीजा-साली की हंसी-मजाक तो प्रसिद्ध है। हंसी-मजाक सब जगह देखी जाती है। यदि हास-परिहास न होता तो मानव का स्वभाव कुछ और ही होता। समूह से उपेक्षित होकर व्यक्ति नहीं रहना चाहता और न ही वह रह सकता है। हंसी-मजाक के डर से व्यक्ति समूह की परवाह करता है और इससे बचने के लिए वहअपने व्यवहार को नियन्त्रित करता है।

(3) विनोद से हम शिक्षा ग्रहण करते हैं—

हंसी-मजाक हमारे लिए शिक्षाप्रद भी होती है। यदि कोई हमारे कार्य पर हँसता है तो हमें यह समझना चाहिये कि हमारा यह कार्य अनुचित है। हंसी हमें यह शिक्षा देती है कि हमारा कार्य समाज को प्रिय नहीं है। समाज यह चाहता है कि हम उस कार्य को फिर कभी न करें। इस प्रकार हमारा व्यवहार नियन्त्रित होता है। अतः हास-परिहास, विनोद अथवा व्यंग्य हमारे लिए अत्यधिक शिक्षाप्रद है।

(4) समाजीकरण एवं सीख के महत्त्वपूर्ण साधन–

हंसी-मसखरी हमें सिखान का महत्त्वपूर्ण कार्य करती है। बेढब बनारसी व काका हाथरसी की कवितायें हमें न केवल हास्य का आनन्द ही प्रदान करती हैं बल्कि इनसे हम बहुत कुछ सीखते हैं क्योंकि इनमें आज के समा में पाये जाने वाले फैशन, पति-पत्नी सम्बन्ध, गुरु-शिष्य सम्बन्ध, अध्यापकों की समस्यायें तर देश की राजनीतिक परिस्थिति इत्यादि न जाने कितनी बातें भरी रहती हैं। मनोवैज्ञानिक कहते है। कि हमें ऐसे वातावरण का निर्माण कर देना चाहिये कि बच्चा खेल-खेल में ही सब कुछ सीख जाये। विश्व प्रसिद्ध पुस्तक पन्चतन्त्र इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है, जिसमें रुचिकर कथाओं द्वारा राजपुत्रों को जीवन की सम्पूर्ण शिक्षा दी गई थी।

(5) अभद्र व्यवहार प्रदर्शन तथा आत्म-ग्लानि-

हंसी-मजाक का एक रूप नकल उतारना भी है। इसमें हमारे साथियों द्वारा हमारे व्यवहारों की नकल उतारी जाती है। मान लीजिये कोई अध्यापक मेज पर पैर रखकर बैठता है या कोई अफसर गाली बहुत देता है तो लोग जब उसकी नकल उतारेंगे तो उसे झेंप लगेगी और आत्म-ग्लानि होगी। इस प्रकार उसका व्यवहार एक दिशा में प्रवाहित होगा और नियन्त्रित हो जायेगा।

(6) हंसी-मजाक हमें बुरे कार्यों के प्रति सजग बनाकर कार्य परिवर्तन के लिये बाध्य करता है—

हंसी-मजाक द्वारा हमें यह पता चल जाता है कि अमुक कार्य बुरे हैं,समूह उन्हें पसन्द नहीं करता अतः ये कार्य हमें नहीं करने हैं। अमुक कार्य अच्छे हैं, तो हमें करने हैं। लोक परिहास अथवा लोक निन्दा किसी भी व्यक्ति के लिए उचित नहीं है। अतः व्यक्ति नियन्त्रित व्यवहार करता है।

(7) परिहास द्वारा हृदयान्तर निहित की अभिव्यक्ति होती है-

हास-परिहास हमारे ह्रदय के भावों को अभिव्यक्त करता है। कभी-कभी हमारे व्यंगात्मक शब्द हमारे साथी का व्यवहार परिवर्तित कर देते हैं। अच्छी कही बात उनके अनुचित व्यवहार को भी उचित में परिवर्तित कर देती है और गलत ढंग से किया परिहास, शत्रुता का भी जनक हो सकता है। महाभारत क युद्ध द्रोपदी के परिहास स्वरूप ही हुआ था, इसी कारण भीषण नर-संहार ने भारतीय समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन उत्पन्न किये।

अतः स्पष्ट है कि हंसी-मजाक एवं परिहास के द्वारा व्यक्ति के जीवन की धारा अच्छी या बुरी ओर मोड़ी जा सकती है। इनसे व्यक्ति का व्यवहार नियन्त्रित किया जा सकता है। अस्तु सामाजिक अनुकूलन में हंसी-मजाक का महत्त्वपूर्ण स्थान है।

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