अर्थशास्त्र / Economics

आर्थिक सिद्धान्त में मान्यताओं की प्रकृति और महत्व

आर्थिक सिद्धान्त में मान्यताओं की प्रकृति और महत्व

आर्थिक सिद्धान्त में मान्यताओं की प्रकृति और महत्व

आर्थिक सिद्धान्त में मान्यताओं की प्रकृति और महत्व

आर्थिक सिद्धान्त की प्रकृति

आर्थिक सिद्धान्त कुछ मान्यताओं पर आधारित है जिन्हें तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-

1. मनोवैज्ञानिक या व्यवहारवादी मान्यताएं- ये मान्यताएं व्यक्तिगत मानव व्यवहार के बारे में है। वे व्यक्तियों के उपभोक्ताओं और उत्पादकों के रूप में विवेकी व्यवहार से संबद्ध है। यद्यपि कुछ व्यक्ति अविवेकी और अनिश्चित ढंग से व्यवहार करते है, तो भी इकटे लेने पर अधिकतर व्यक्ति सामूहिक विवेकिता प्रदर्शित करते हैं।

2. संस्थानिक मान्यताएं – आर्थिक सिद्धान्त में मान्यताएं सामाजिक, राजनैतिक और आर्थिक संस्थाओं से सम्बद्ध हैं। ये व्यष्टि आर्थिक सिद्धान्तों का आधार है।

3. संरचनात्क मान्यताएं – इन मान्यताओं का सम्बन्ध अर्थव्यवस्था की प्रकति और भौतिक बनावट एवं प्रौद्योगिकी की स्थिति से है। इनका विभिन्न प्रकार के उत्पादन फलनों और वृद्धि सिद्धान्तों में प्रयोग किया जाता है। जैसे अल्पकाल में आर्थिक सिद्धान्त दिये हुए संसाधनों और प्रौद्योगिकी की मान्यताओं पर आधारित हैं।

 मान्यताओं का कार्य और महत्व

क्लासिकी और नवक्लासिकी अर्थशास्त्रियों का विश्वास था कि आर्थिक सिद्धान्तों के यथार्थिक होने के लिए वे उन्हें वास्तविक मान्यताओं पर आधारित होना जरूरी है।

फ्रीडमैन आर्थिक सिद्धान्त निर्माण में मान्यताओं को तीन भिन्न यद्यपि सम्बन्धित निश्चित कार्यों की ओर इंगित करता है:-

(क) एक सिद्धान्त को प्रस्तुत करने का किफायती तरीका है।
(ख) एक परिकल्पना के परोक्ष टेस्ट में उसके निहित अर्थों द्वारा सुविधा प्रदान करना।
(ग) स्थितियों का विशेष रूप से उल्लेख करने का सुविधाजनक माध्यम है, जिससे सिद्धान्त का सत्यापित होना संभावित है।

फ्रीडमैन के अनुसार अयथार्थिक मान्यताएं एक आवश्यक बुराई है। सिद्धान्त निर्माण के लिए मान्यताओं का एक से अधिक सेट होता है जिसके चुनाव में उपर्युक्त बातों का ध्यान रखा जाता है। सैम्युएलसन के अनुसार जितनी अधिक अयथार्थिक मान्यताएं उतना श्रेष्ठ सिद्धान्त। फ्रीडमैन इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि वे सभी जो मान्यताओं के “यर्थाथवाद” के महत्व को अत्यधिक बल देते हैं, उन्होंने भावी घटनाओं की भविष्यवाणी करने और उनको नियंत्रित करने के आर्थिक सिद्धान्त के वास्तविक उद्देश्य को भुला दिया है।

आलोचना – प्रो0 नेगल के अनुसार फ्रीडमैन आर्थिक सिद्धान्त की केवल भविष्यसूचक शक्ति पर बल देता है बल्कि इसका व्याख्यात्मक कार्य भी है। प्रो0 गोर्डन के अनुसार फ्रीडमैन मान्यताओं की परिचालन प्रमाणिकता की उपेक्षा करता है।

सारांश

इस इकाई में आपने अर्थशास्त्र की विभिन्न परिभाषाओं के माध्यम से उसके विषय क्षेत्र के बारे में जानकारी प्राप्त की। क्लासिकल अर्थशास्त्री धन पर, नियोक्लासिकल मानव कल्याण पर रॉबिन्स साधनों की दुर्लभता पर, आधुनिक अर्थशास्त्री विकास पर और जे.के. मेहता आवश्यकताविहीनता पर बल देते हुए अपनी परिभाषा देते हैं। आपने जानने की कोशिश को कि अर्थशास्त्र विज्ञान है या कला, जिससे आप इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि यह एक विज्ञान है जिसके व्यावहारिक पक्ष अथवा कला पक्ष की अवहेलना नहीं की जा सकती। फिर हमने समझा कि अर्थशास्त्र वास्तविक विज्ञान है अथवा आदर्श विज्ञान “क्या है वास्तविक विज्ञान से सम्बन्धित है और आदर्श विज्ञान “क्या होना चाहिए’ से हमने जाना वास्तविक विज्ञान अर्थशास्त्र का सैद्धान्तिक पहलू है जबकि आदर्श विज्ञान उसका व्यवहारिक पहलू है। फिर हमने सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र की प्रकृति, उपयोग और सीमाओं का अध्ययन किया। फिर आप सैद्धान्तिक अर्थशास्त्र की निगमन एवं अगमन विधि से अवगत हुए। निगमन में अध्ययन का क्रम सामान्य से विशिष्ट की ओर और आगमन विधि में विशिष्ट से सामान्य की ओर जाता है। अन्त में हमने उन मान्यताओं की प्रकृति, महत्व एवं सीमाओं की चर्चा की जिन पर आर्थिक सिद्धान्त आधारित है।

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