जैव विविधता किसे कहते हैं? Biodiversity in Hindi
जैव विविधता का अर्थ-
किसी प्राकृतिक प्रदेश में पायी जाने वाली जीव-जन्तुओं एवं पादपों की प्रजातियों की बहुलता को जैव-विविधता (Bio-diversity) कहते हैं। 1992 में रियो डि जेनेरियो में आयोजित पृथ्वी सम्मेलन में “जैव विविधता” शब्द को परिभाषित किय गया था। जिसके अनुसार, “जैव विविधता समस्त स्रोतों यथा-‘अन्तर्धेत्रीय, स्थलीय, समुद्र अन्य जलीय पारिस्थितिक तंत्रों के जीवों के मध्य अन्तर और साथ ही उन सभी पारिस्थितिक समर जिनके ये भाग है, में पाई जाने वाली विविधतायें हैं। इसमें एक प्रजाति के अन्दर पायी जाने वाली विविधता, विभिन्न जातियों के मध्य विविधता तथा पारिस्थितिकीय विविधता सम्मिलित हैं।”
अतीत के करोड़ों वर्षों के दौरान अनवरत सक्रिय रहने वाली विकास की जैविक प्रक्रिया की देन जैव-विविधता है। जैवविविधता जीवन का आधार है एवं यही पर्यावरण में समय के साथ धीरे एवं तेजी से होने वाले परिवर्तनों के विरुद्ध लड़ने के लिए जैविक पदार्थ उपलब्ध कराने में सक्षम होती है। उष्ण कटिबंधीय वन इस कथन के सच्चे उदाहरण हैं। जैवविविधता को समझने के लिए स्वयं मनुष्य के अपने शरीर में चाहे कार्य विभाजन की दृष्टि से ही क्यों न हो, कोशिका स्तर पर विभिन्नता यथा- मांसपेशी, त्वचा, नाड़ी, धमनियाँ, हृदय, मज्जा, अस्थि आदि देखते ही बनती है। दूसरी ओर पेड़ पौधों में भी पैरनकाइमा, स्केलेरनकाइमा, जाइलम व फ्लोएम में विभिन्न कोशिकाओं का मिलना इस बात को सिद्ध करता है कि जीवन का आधार विविधता है। तभी तो ये न केवल समस्त उपापचयी क्रियाओं का सफल सम्पादन करते हैं। अपितु बदलते पर्यावरण में अपने आप को अनुकूल सिद्ध करने में भी सक्षम है।
‘जीव-विविधता’ (Bio-Diversity) शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 1986 में W.G, रोजेन द्वारा किया गया था। यद्यपि संकल्पनात्मक रूप में इस शब्द का प्रयोग प्रथम बार प्रसिद्ध कीट वैज्ञानिक विल्सन (E.O. Wilsion) ने 1986 में जैविक विविधता पर अमेरिकन फोरम के लिए प्रस्तुत प्रतिवेदन में किया। उन्होंने राष्ट्रीय संसाधन परिषद को जैविक विविधता (Biological Diversity) की जगह जैवविविधता शब्द का सुझाव दिया। तभी से यह शब्द एक संकल्पना के रूप में जैव-वैज्ञानिकों, पर्यावरणविदों, राजनीतिज्ञों आदि द्वारा विस्तृत रूप से अपनाया गया। ज्ञातव्य है कि जैविक विविधता (Biological Diversity) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम 1968 में रेमण्ड एफ0 दशमान (Rayumand F Dasman) द्वारा किया गया था।
जैव-विविधता का संरक्षण (Conservation of Bio-diversity)-
जीव प्रजातियों एवं जातियों के अनवरत नष्ट होने की प्रक्रिया जैव-विविधता क्षरण अथवा आनुवांशिक क्षरण (Genetic Erosion) कहलाती हैं। जैव-विविधता जल, वायु एवं मृदा की भाँति एक मुख्य प्राकृतिक संसाधन है। इसका क्षरण होना पर्यावरण के लिए हानिकारक है। कृषि का वैज्ञानीकरण हो रहा है। उत्पादन अधिक प्राप्त करने के लिए अन्यान्य प्रकार के रासायनिक प्रदूषकों का प्रयोग किया जा रहा है। अनेक जीव-प्रजातियाँ नष्ट हो रही हैं। जल प्रदूषण बढ़ रहा है। फलस्वरूप जल में रहने वाले जीव नष्ट हो रहे हैं। जनसंख्या के अनियंत्रित विकास से भी जीव-विविधता का क्षरण हो रहा है।
विकास-प्रक्रिया प्रथमतः विकृति, तत्वश्चात् विनाश उत्पन्न करती है। पर्यावरण एवं प्राकृतिक संसाधनों के आधार पर समाज का भौतिक विकास हो रहा है। इससे पर्यावरण प्रदूषण में वृद्धि हो रही है तथा जैव-विविधता का क्षरण हो रहा है। वास्तव में भौतिक अथवा पर्यावरण संसाधनों का जितना अधिक प्रयोग किया जायेगा, समाज का भौतिक विकास उतना अधिक होगा। समाज के भौतिक विकास के साथ-साथ जैव-विविधता का विनाश अवश्य होगा।
मानव की विकासशील प्रवृत्ति से प्राकृतिक वास पर संकट उत्पन्न हो गया है। जलवायु परिवर्तन की ओर अग्रसर है। वर्षा पर आधारित वनों पर इसका प्रभाव पड़ रहा है, वन नष्ट हो रहे हैं। इनमें रहने वाले अन्यान्य जीवों का अस्तित्व सदैव के लिए समाप्त हो रहा है। वनों में रहने वाली जन्तु प्रजातियों एवं वनस्पति जातियों की यथार्थ संख्या कितनी है, उनका ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। भू-तल पर जो प्राणि जातियाँ अवशेष हैं उनकी पारिस्थितिकी एवं जैव-विविधता का अध्ययन एवं अनुसंधान तत्काल नितान्त आवश्यक हो गया है। क्षेत्र अथवा देश विशेष पर ही नहीं अपितु अन्तर्राष्ट्रीय-स्तर पर इस दिशा में अग्रसर हेने की आवश्यकता है।
वर्तमान समय में पादप एवं प्राणियों की जातियों के संरक्षण (Conservation) पर विशेष बल दिया जा रहा है। जैव विविधता संरक्षण को दो वर्गों में वर्गीकृत किया जा सकता है- यथा-
(1) स्व-स्थाने संरक्षण (In-Situ Conservation)
(2) बाह्य-स्थाने संरक्षण (Ex-situ conservation)
1. स्व-स्थाने संरक्षण (In-Situ Conservation)-
जब जीव एवं वनस्पति जातियों को उनके वास्य क्षेत्रों में ही संरक्षण प्रदान किया जाता है तब उसे स्व-स्थाने (In-situ) संरक्षण कहा जाता है। इसके अन्तर्गत राष्ट्रीय उद्यान (National Park) वन्य जीव अभयारण्य समुदा एवं संरक्षण आगार (Comminity and Conservation Reserves), पवित्र उपवन (Sacred Groves) समुद्री संरक्षित क्षेत्र (Marine Protected Areas) एवं जैव मण्डलीय रिजर्व (Biosphere Reserve) आते हैं। यहां पादप एवं प्राणियों को उन्हीं के वास्य क्षेत्र में संरक्षित किया जाता है । ध्यातव्य है कि स्वस्थाने पद्धति (In-situ) के अन्तर्गत वानस्पतिक उद्यान को शामिल नहीं किया जाता है।
2. बाह्य स्थाने संरक्षण (Protecting External Places) :-
संकटग्रस्त जातियों के युग्मको को निम्न ताप परीक्षण ( क्रायोप्रिजर्वेशन) तकनीकों द्वारा लंबे समय तक परिरक्षित किया जा सकता है , परिरक्षित अंड युग्मको को नर युग्मको के साथ पात्रे निषेचन करवाया जा सकता है, इसी तरह पौधों के बीजों को बीज बैंक में रखा जा सकता है इस प्रकार के संरक्षण को बाह्य स्थाने संरक्षण कहते हैं |
वर्ष 1992 में जैव विविधता संरक्षण के लिए रियोडीजेनेरियो हमें हुई जैव विविधता पर पृथ्वी सम्मेलन और 2002 में दक्षिण अफ्रीका के दोहान्स वर्ग में हुए विश्व शिखर सम्मेलन में 190 देशों ने हिस्सा लिया जिसमें सन 2010 तक जैव विविधता की क्षति को कम करने की रापत ली गई |
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