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औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभाव | औद्योगीकरण के आर्थिक प्रभाव

औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभाव | औद्योगीकरण के आर्थिक प्रभाव
औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभाव | औद्योगीकरण के आर्थिक प्रभाव

औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभाव तथा  औद्योगीकरण के आर्थिक प्रभाव

औद्योगीकरण के कारण होने वाले सामाजिक आर्थिक परिवर्तनों का हम यहां उल्लेख करेंगे।

1. नगरीकरण- औद्योगीकरण के कारण विशाल नगरों का विकास हुआ। जहां उद्योग स्थापित हो जाते हैं वहां कार्य करने के लिए गांव के अनेक लोग आकर बस जाते हैं और धीरे-धीरे वह स्थान औद्योगिक नगर का रूप ले लेता है।

2. यातायात के साधनों का विकास – उद्योगों का जब यन्त्रीकरण हुआ तो उत्पादन की गति तीव्र हुई। कारखानों में कच्चे माल को तथा निर्मित माल को मण्डियों में पहुँचाने के लिए तीव्रगामी यातायात के साधनों की आवश्यकता महसूस हुई। परिणामस्वरूप रेल, मीटर, ट्रक, वायुयान, जहाज, आदि का आविष्कार हुआ। कच्ची एवं पक्की सड़कें बनी और वातावरण के साधनों का जाल बिछ गया।

3. श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण- ग्रामीण कुटीर व्यवसायों में एक परिवार के व्यक्ति मिलकर ही सम्पूर्ण निर्माण की प्रक्रिया में हाथ बंटाते थे, किन्तु जब उत्पादन मशीनों की सहायता से होने लगा तो सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया को अनेक छोटे-छोटे भागों में बांट दिया गया। आलपिन का निर्माण भी अस्सी से अधिक छोटी-छोटी प्रक्रियाओं से होता है। इसी कारण श्रम विभाजन का उदय हुआ। फिर एक व्यक्ति सम्पूर्ण उत्पादन प्रक्रिया के मात्र एक भाग को ही कर सकता था। उदाहरणार्थ वस्त्र निर्माण में कुछ व्यक्ति धागा बनाने तो कुछ वस्त्र बुनने और कुछ उन्हें रंगने के विशेषज्ञ होते हैं।

4. उत्पादन में वृद्धि – औद्योगीकरण में श्रम विभाजन एवं विशेषीकरण के कारण मशीनों के प्रयोग से उत्पादन बड़े पैमाने पर तीव्र मात्रा में होने लगा। अधिक उत्पादन के कारण माल खपत के क्षेत्र में वृद्धि बेकारी पनपेगी। 1932 में मशीनीकरण के कारण इतना उत्पादन हुआ कि माल बाजारों में भर गया, कारखाने बन्द करने पड़े और उनमें लगे हुए अनेक श्रमिक बेकार हो गए।

5. कुटीर उद्योगों का हास- औद्योगीकरण से पूर्व उत्पादन कुटीर उद्योगों द्वारा होता था, किन्तु जब मशीनों की सहायता से उत्पादन होने लगा जो कि हाथ से बने माल की अपेक्षा सस्त, सुन्दर साफ व टिकाऊ होता था तो उसके सामने गृह उद्योग द्वारा निर्मित माल टिक नहीं सका। धीरे-धीरे कुटीर व्यवस्था समाप्त होने लगे और उनमें काम करने वाले तथा उनके मालिक कारखानों में श्रमिक के रूप में सम्मिलित हुए। कुटीर व्यवसायों में व्यक्ति को काम करने के बाद जो मानसिक आनन्द मिलता था, वह कारखानों से समाप्त हो गया। इसका कारण यह था कि अब यह सम्पूर्ण उत्पादन की मात्रा एक छोटी-सी प्रक्रिया में ही भाग लेता था। इस प्रकार औद्योगीकरण से ग्रामीण एवं गृह कला का ह्यास हुआ।

6. आर्थिक संकट व पराश्रितता- उद्योगों में लाभ तभी होता है जब उत्पादन अधिक मात्रा में और तीव्र गति से हो। इसके अभाव में मिल मालिक कारखाने बन्द कर देते हैं, आर्थिक मन्दियां आती हैं, मजदूर बेकार हो जाते हैं, माल तो सस्ता होता है, लेकिन माल खरीदने के लिए लोगों के पास पैसा नहीं होता है।

औद्योगीकरण के कारण गांवों की आत्मनिर्भरता समाप्त हुई। एक गांव की दूसरे गांव पर ही नहीं वरन् एक राष्ट्र की दूसरे राष्ट्र पर निर्भरता बढ़ी। कच्चा माल खरीदने एवं बने हुए माल को बेचने के लिए दो देशों में समझौते हुए एवं पारस्परिक निर्भरता बढ़ी। आज एक देश के आर्थिक विकास में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप में दूसरे देशों का भी योगदान है। यदि अरब राष्ट्र भारत को तेल बन्द कर दें या अमरीका यूरेनियम देना बन्द कर दे तो भारत की अर्थव्यवस्था पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ेगा।

7. मकानों की समस्या- उद्योगों में काम करने के लिए गांव से लोग नगरों में हजारों की संख्या में आते हैं। परिणामस्वरूप उनके निवास की समस्या पैदा होती है। नगरों में हवा व रोशनी वाले मकानों का अभाव रहा है। मकान महंगे होने के कारण कई व्यक्ति मिलकर एक ही कमरे में रहने लगते हैं। औद्योगिक केन्द्रों में मकान भीड़-भाड़युक्त सीलन भरे एवं बीमारियों के घर होते हैं। औद्योगीकरण न गन्दी बस्तियों की समस्या को भी जन्म दिया है।

8. स्वास्थ्य की समस्या – अनेक कारखानों का वातावरण स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होता है। कारखानों की गड़गड़ाहट बहरेपन को जन्म देती है। कपड़े के कारखाने तथा सोप स्टोन के कारखानों में काम करने वालों की आंखों एवं फेफड़ों में रुई के रेशे तथा मिट्टी का प्रवेश होता है। कारखानों का अस्वास्थ्यकर वातावरण क्षय रोग, अपच एवं अन्य बीमारियों को जन्म देता है। मिलों का धुआं वायु प्रदूषण फैलाता है। औद्योगिक नगरों की भीड़-भाड़ व चिल्लपौं स्वास्थ्य के लिए हानिप्रद होती है।

9. दुर्घटनाओं में वृद्धि – उद्योगों में चौबीसों घण्टे काम चलता रहता है। थोड़ी-सी असावधानी या थकान से निद्रा आने पर हाथ-पांव कटने व स्वयं को मृत्यु के मुख से धकेलने के अवसर होते हैं। सामान लाने-ले-जाने वाले ट्रकों, बसों एवं रेलों दुर्घटनाएं आए दिन होती रहती हैं। इस प्रकार औद्योगीकरण ने दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ा दी है।

10. बैंक, बीमा एवं साख व्यवस्था का उदय – उद्योगों को सुविधाएं देने, – उनके लिए पूंजी जुटाने एवं माल की सुरक्षा के लिए बैंक, बीमा एवं साख व्यवस्था का उदय हुआ। आज हजारों लोग बैंकों एवं बीमा कार्यालय में काम करते हैं। उधारी से लेन-देन बढ़ा है। आज व्यक्ति अपने पद, हस्ताक्षर एवं मोहर से जाना जाने लगा है।

11. आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा- औद्योगीकरण ने आर्थिक प्रतिस्पर्द्धा को जन्म दिया। एक कारखाने की दूसरे से व एक पूंजीपति की दूसरे पूंजीपति से गलाकाट प्रतियोगिता (Cut throat Competition) होने लगी है। इस प्रतिस्पर्धा में अधिक पूंजी वाला कम पूंजी वाले के व्यवसाय को नष्ट कर देता है और अपना एकाधिकार स्थापित कर लेता है। एकाधिकार कायम होने पर वह माल को अपनी मनचाही कीमत पर बेचता है। वह बाजार से माल गायब करा देता है और महंगाई बढ़ जाती है।

12. औद्योगीकरण के सामाजिक प्रभाव ( Social Effects of Industrialization ) – औद्योगीकरण ने मानव के सामाजिक जीवन में अनेक परिवर्तन उत्पन्न किए हैं। बार्न्स का मत है कि औद्योगिक क्रान्ति जिसके कारण मानव इतिहास में महान परिवर्तन आये हैं, ने प्राथमिक सामाजिक पद्धतियों की नीवों को ही खोद डाला है।

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