राजनीति विज्ञान / Political Science

कार्य-मूल्यांकन क्या है ? कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य एवं सिद्धान्त

कार्य-मूल्यांकन क्या है ? कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य एवं सिद्धान्त
कार्य-मूल्यांकन क्या है ? कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य एवं सिद्धान्त

कार्य-मूल्यांकन क्या है? 

कार्य-मूल्यांकन या कार्य श्रेणीयन (Job Rating) एवं कार्य के किसी संस्था के अन्दर या उससे बाहर अन्य कार्यों के सम्बन्ध में उसके मूल्यांकन की प्रक्रिया है। डेल योडर के अनुसार, “कार्य मूल्यांकन एक पद्धति है जो एक संगठन के भीतर और मिलते-जुलते संगठनों के बीच कार्यों के तुलनात्मक मूल्य मापने का आधार प्रदान करती है। यह आवश्यक रूप से कार्य श्रेणीयन पद्धति है, जो कर्मचारियों के श्रेणी से भिन्न है।” कार्य-मूल्यांकन अपने सरल रूप में विभिन्न कार्यों का श्रेणीयन है, जिसमें पैमाने को एक सिरे पर उन कार्यों को रखा जाता है, जिनमें कुछ आवश्यकताओं का योग अधिकतम होता है और दूसरे सिरे पर उन कार्यों को रखा जाता हैं जिनकी आवश्यकताओं का योग न्यूनतम हैं, तथा अन्य कार्यों को उनके सापेक्षिक आवश्यकताओं के योग के अनुसार क्रम से व्यवस्थित कर इन दो सीमाओं के बीच में रखा जाता है। कार्य-मूल्यांकन सिर्फ कार्य की आवश्यकताओं से मतलब रखता है। इसका सम्बन्ध इस बात से नहीं है कि एक व्यक्ति में उन आवश्यकताओं की पूर्ति के गुण किस मात्रा में है। एक संगठन में विभिन्न कार्यों की तुलनात्मक आवश्यकताओं का पता लगाने के लिए कार्य-मूल्यांकन कराया जाता है। इससे प्रबंधक विभिन्न ‘कार्यों के लिए किये गये भुगतानों का कार्य-मूल्यांकन के सापेक्ष में उचित मूल्यांकन कर सकते हैं एवं यदि कोई असमानताएं हैं तो उनहें भविष्य में ठीक कर सकते हैं।

कार्य मूल्यांकन के उद्देश्य

कार्य मूल्यांकन के निम्नलिखित उद्देश्य हैं :

(1) भुगतान में असमानताओं का निवारण (Elimination of inequalities in Payments) – कार्य-मूल्यांकन में विभिन्न कार्यों का सापेक्षिक मूल्य निर्धारित किया जाता है, जिससे प्रबन्धक वेतन एवं मजदूरी में असमानताओं का पता लगा सकते हैं और उनका निवारण कर सकते हैं।

(2) मजदूरी सम्बन्धी विवादों का निराकरण (Settling of Controversies Relating to Wages) – मजदूरी एवं वेतन की दरों की तुलना के प्रश्न को लेकर जो वाद-विवाद उठ खड़े होते हैं, उनके निवारण के लिए कार्य-मूल्यांकन एक सापेक्षिक वस्तुनिष्ठ आधार प्रदान करता है।

(3) व्यक्तिगत पक्षपात का निवारण (Elimination of Individual Favouritism) – प्रायः संगठनों में व्यक्तिगत पक्षपात की घटनाएं हो जाती हैं। कार्य-मूल्यांकन एक वस्तुनिष्ठ आधार प्रदान कर, पक्षपात के मामलों का पता लगाने एवं उन्हें दूर करने में सहायक सिद्ध होता है।

(4) सुनिश्चित एवं न्यायसंगत वेतन एवं मजदूरी ढांचे की स्थापना (Establishment of Definite and Equitable Wage and Salary Administration) – कार्य-मूल्यांकन के आधार पर विभिन्न कार्यों के लिए निश्चित, न्यायसंगत एवं तुलनात्मक वेतन एवं मजदूरी क्रमों की स्थान की जा सकती है।

(5) कार्य प्रमापीकरण (Job Standardization) – कार्य-प्रमापीकरण कार्य- मूल्यांकन का उप-उत्पाद है। कार्य-प्रमापीकरण से एक संगठन के विभिन्न विभागों एवं शाखाओं मैं तथा विभिन्न शहरों में एक समान भुगतान किया जा सकता है।

(6) कार्य-विवरण की संरचना (Preparation of Job Descriptions) – कार्य प्रमापीकरण की तरह कार्य-विवरण भी कार्य-मूल्यांकन का एक उप-उत्पाद है, जिससे विभिन्न कार्यों का सही विवरण तैयार किया जा सकता है, तथा जिसे कर्मचारी चयन, प्रशिक्षण एवं पदोन्नति में सहायता मिलती है।

कार्य-मूल्यांकन के सिद्धान्त

कार्य-मूल्यांकन के उपर्युक्त दोषों को ध्यान में रखते हुए, यदि निम्नलिखित सिद्धान्तों का पालन किया जाय, तो कार्य-मूल्यांकन प्रक्रिया सरल, वस्तुनिष्ठ एवं अधिक विश्वसनीय हो सकती है।

(1) मूल्यांकन कार्य का होना चाहिए, व्यक्ति का नहीं- कार्य-मूल्यांकन में कार्यों का सापेक्ष मूल्य या महत्व निर्धारण करना ही उद्देश्य होना चाहिए। तदनुसार जो कार्य अधिक कठिन, दायित्व वाले एवं कौशलपूर्ण हैं, उन्हें अपेक्षाकृत ऊंची श्रेणी में और जो कार्य सरल, कम दायित्व एवं कम जोखिम के एवं अकुशल हैं, उन्हें अपेक्षाकृत नीची श्रेणी में रखा जाना चाहिए। यह सम्भव है कि जो व्यक्ति नीची श्रेणी के कार्य पर नियुक्त हुआ है, उसमें ऊंची श्रेणी के कार्य करने की क्षमता हो। किन्तु यहां भुगतान का आधार कार्य हैं, व्यक्ति नहीं। अतः उनको वही भुगतान होना चाहिए जो उस कार्य में रत अन्य कर्मचारियों को किया जा रहा है।

(2) घटकों की संख्या कम, परिभाषा स्पष्ट एवं चयन वैज्ञानिक होना चाहिए – कार्य-मूल्यांकन के लिए चुने हुए घटकों की संख्या सीमित होनी चाहिए, जिससे पद्धति में अधिक जटिलता उत्पन्न न हो। हर घटक में कौन-कौन से तत्वों पर विशेष ध्यान देना है, वह स्पष्ट एवं एक समान होना चाहिए, जिससे वस्तुनिष्ठ तुलना हो सके एवं जितने घटक चुने जाएं उनका आधार तर्कसंगत होना चाहिए।

(3) कार्य-मूल्यांकन पद्धति में उचित प्रतिनिधित्व एवं परामर्श – कार्य-मूल्यांकन पद्धति में प्रबन्धकों को सभी प्रकार के कर्मचारियों को सम्बद्ध करना चाहिए एवं योजना को बनाने के पूर्व उनका परामर्श लेना चाहिए। इससे योजना में विश्वास एवं सहयोग बढ़ेगा एवं हर दृष्टिकोण का समावेश हो सकेगा।

(4) कार्य-मूल्यांकन पर पुनर्विवचार – कार्य-मूल्यांकन के बाद वेतन या मजदूरी मानों की स्थापना के लिए सभी कार्यों को थोड़े से स्पष्ट वर्गों में विभाजित कर देना चाहिए। अधिक वर्गों की स्थापना व्यवहार में परेशानी का विषय सिद्ध होगी।

(5) कार्य-वर्ग सीमित हों- कार्य-मूल्यांकन कार्य जिन्हें सौंपा जाय वे कर्मचारी कुशल प्रशिक्षित एवं निष्ठावान होने चाहिए।

(6) कार्य-मूल्यांकन के लिए उचित व्यक्तियों की नियुक्ति- कार्य-मूल्यांकन समय-समय पर किया जाना चाहिए, जिससे कि नए तत्वों एवं परिवेशों का समायोजन हो सके।

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