भूगोल / Geography

एशिया महाद्वीप की भू-वैज्ञानिक संरचना के लक्षण | Characteristics of the geological structure of the continent of Asia in Hindi

एशिया महाद्वीप की भू-वैज्ञानिक संरचना के लक्षण
एशिया महाद्वीप की भू-वैज्ञानिक संरचना के लक्षण

एशिया महाद्वीप की भू-वैज्ञानिक संरचना के मुख्य लक्षणों का वर्णन कीजिए।

किसी महाद्वीप की धरातलीय संरचना पर उस महाद्वीप की भूगर्भीय चट्टानों की रचना का सबसे अधिक प्रभाव पड़ता है। धरातलीय संरचना के अंतर्गत चट्टानों की बनावट का अध्ययन होता है। एशिया महाद्वीप में धरातलीय संरचना के अंतर्गत भी अनेक अतिशयताएँ मिलती हैं। इस महाद्वीप में उपकला (Bozoic Era) की पुरातन चट्टानों से लेकर टरशियरी युग (Tertiary Age) की नवीनतम चट्टानें मिलती हैं। चट्टानों की विभिन्नता के साथ-साथ चट्टानों के धरातलीय रूप में भी अनेक विभिन्नताएँ मिलती हैं। इस महाद्वीप के अनेक स्थल-खंड ऐसे हैं जहाँ भू-गर्भिक हलचलों के कारण अनेक धरातलीय परिवर्तन होते रहते हैं जबकि महाद्वीप पर कुछ स्थल खंड ऐसे भी हैं, जो इन भूगर्भिक हलचलों से अप्रभावित रहे हैं। कुछ स्थानों पर अनावृत्तीकरण के कारण चट्टानों का बाहरी रूप अवस्य परिवर्तित हो गया है लेकिन चट्टानों की आंतरिक बनावट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है।

एशिया महाद्वीप की धरातलीय संरचना के बारे में अनेक मतभेद हैं लेकिन इस बात सभी भू-तत्ववेत्ता सहमत हैं कि एशिया महाद्वीप को भू-गर्भीय संरचना के आधार पर अग्रलिखित भागों में बाँटा गया है-

  1. उत्तर के प्राचीनतम भू-खंड.
  2. दक्षिण के प्राचीनतम भू-खंड.
  3. नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ.
  4. अवशेष भाग

उत्तर के प्राचीनतम भू-खंड

एशिया महाद्वीप के उत्तरी भाग में प्राचीनतम चट्टानों के भूखंड मिलते हैं। इन भू-खंडों में कैम्ब्रियन युग (Cambrian Age) से पूर्व की अत्यंत प्राचीन एवं कठोर चट्टानें मिलती हैं। ये भू खंड वेगनर महोदय (Wegner) के प्राचीन पैंजिया (Pengea) स्थल-खंड के ही टूटे हुए भाग हैं। इन भू-खंडों की चट्टानें बहुत कठोर हैं।

उत्तर के प्राचीनतम भू-खंड

उत्तर के प्राचीनतम भू-खंड

इनमें से कुछ चट्टानों का रूप परिवर्तित भी हो गया है। साधारणतया इन भागों में आग्नेय चट्टानों (Igneous Rocks) की बहुलता है। मुख्य चट्टानें नाइस, शिस्ट, स्लेट तथा ग्रेनाइट हैं। उत्तर के प्राचीनतम भूखंड के अंतर्गत चार प्रमुख खंड आते हैं, जिनमें एक भूखंड जिसका नाम रूसी चबूतरा (Russian Platform) हैं, एशिया महाद्वीप में न होकर यूरोप महाद्वीप में है, लेकिन फिर भी इसका अध्ययन इसलिए आवश्यक हो जाता है क्योंकि इससे एशिया महाद्वीप की संरचना को समझने में सहायता मिलती है। यह एशिया की सीमा से लगा हुआ यूरोप के माल्टिक सागर तक फैला हुआ है इसलिए इसे बाल्टिक शीट (Batlic Sheet) कहते हैं। उत्तर के प्राचीनतम भू-खंडों के अंतर्गत आने वाले प्रमुख भूखंड निम्नलिखित हैं-

(1) रूसी चबूतरा (2) अंगारा भूमि (3) चीनी मैसिफ (4) सारडिनियन मैसिफ ।

दक्षिण के प्राचीनतम भू-खंड

एशिया महाद्वीप के दक्षिण में फैले हुए दक्षिण के प्राचीनतम भू-खंड उत्तर के प्राचीनतम भू-खंडों की भाँति कठोर एवं प्राचीन चट्टानों के बने हुए हैं। ये प्राचीनतम भू-खंड पैंजिया के टूटे हुए प्राचीन स्थल खंड हैं जिन्हें गोंडवाना भूमि के नाम से पुकारते हैं। विद्वानों का मत है कि यह गोंडवाना भूमि प्राचीन समय में दक्षिणी अमरीका, अफ्रीका, दक्षिणी एशिया तथा आस्ट्रेलिया के कुछ भाग में फैली हुई थी। बाद में महाद्वीप की रचना के समय इसके टुकड़े हो गये। एशिया महाद्वीप में भी इस गोंडवाना भूमि के दो प्रमुख भू-खंड मिलते हैं, जो निम्नलिखित हैं-

1. अरब प्रायद्वीप, 2. भारत प्रायद्वीप ।

इन दोनों ही अत्यंत प्राचीन भू-खंडों की रचना कैम्पियन युग से पूर्व की प्राचीन चट्टानों से हुई है। इन भू-खंडों के अंतर्गतमिलने वाली चट्टानें आग्नेय तथा रूपांतरित चट्टानें हैं जिनमें नाइस, शिस्ट तथा बैसाल्ट चट्टानों की प्रधानता है। इन भू-खंडों में मिलने वाली चट्टानें इतनी स्थायी, ठोस एवं कठोर हैं कि इनमें कभी न तो मोड़ पड़े और न इन भू-खंडों का कभी कोई भाग समुद्र में धँसा इन भू-खंडों की चट्टानें इतनी स्थिर हैं कि हिमालय तथा आल्पस जैसी विशाल पर्वत श्रेणियों के निर्माण काल के समय भी इन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इन दोनों भू खंडों की चट्टानें पृथ्वी के जन्म से लेकर आज तक स्थायी और अपने मूल रूप में हैं।

नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियाँ

एशिया के मध्य भाग में नवीन मोड़दार पर्वत श्रेणियों का एक क्रम मिलता है। इन पर्वत श्रेणियों का निर्माण टरशियरी युग (Tertiary Age) में हुई पृथ्वी की हलचलों के कारण हुआ है। यद्यपि इन पर्वत श्रेणियों का निर्माण कार्य मध्य जीवकल्प (Mesozoic Era) के अंतिम समय से ही प्रारंभ हो गया था लेकिन इनका पूर्ण विकास तृतीय युग में ही हुआ था। ये पर्वत श्रेणियाँ अनेक मोड़ों से निर्मित हुई हैं जिनकी चट्टानों में समुद्री मलवा तथा जीव-जंतुओं के अवशेष मिलते हैं। इनकी उत्पत्ति के बारे में विद्वानों का मत है कि अत्यंत प्राचीन काल में उत्तर-पूरब एवं दक्षिण के प्राचीन स्थिर भू-खंडों के बीच एक विशाल भू-अभिनीति (Geosyncline) थी जो जिब्राल्टर से लेकर पूर्वी एशिया तक फैली हुई थी, जिसको विद्वानों ने टैथिज (Tethys) सागर के नाम से पुकारा। इस सागर के बचे हुए भाग आज भी एशिया महाद्वीप के पश्चिमी एवं मध्य भागों में भू-मध्यसागर, कैस्पियन सागर, काला सागर, अरब सागर आदि के रूप में विद्यमान हैं। यह सागर कुछ स्थानों पर अत्यधिक गहरा था। डी टेरा (De Terra) विद्वान ने इसकी अधिकतम गहराई 10,000 मीटर से भी अधिक बताई थी।

इस विस्तृत टैथिज सागर में करोड़ों वर्षों तक उत्तर एवं दक्षिण के प्राचीनतम भूखंडों से अपरदन द्वारा अनेक धरातलीय पदार्थ तथा समुद्री जीवों के अवशेष जमा होते रहे। इस जमा क्रिया से समुद्र के धरातल में अनेक परतें एक के ऊपर एक जमा होती रहीं। मुख्यतया पर मेवान काल (Permian Age) से आदि नूतन काल (Eocene Age) के पदार्थों की एक मोटी तह इस सागर की तली पर जमा हो गई। कालांतर में पृथ्वी की भूगतियों के कारण भू-खंडों में हलचल उत्पन्न हो गयी और उत्तर के प्राचीन भू-खंड दक्षिण की ओर खिसके। दक्षिण का प्राचीन गोंडवाना भू-खंड अपने ही स्थान पर स्थिर रहा। इससे दोनों भू-खंडों के मध्य दैथिज सागर से जमा मलवे में अनेक मोड़ पड़ गये। जिन भागों में मलये की परते अधिक जमा थी और जहाँ भूखंडों का दबाव अधिक पड़ा वहाँ पर ऊँची पर्वत श्रेणियों की उत्पत्ति हुई।

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