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उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ | शिक्षा में उद्यमिता विकास की विशेषताएँ

उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ
उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ

उद्यमिता विकास कार्यक्रम का अर्थ (Meaning of Entrepreneurship Development Programme)

उद्यमिता विकास कार्यक्रम से आशय किसी ऐसे कार्यक्रम से है, जिसका उद्देश्य सम्भावित उद्यमियों की खोज करना, उनमें उद्यमिता की भावना विकसित करना, उनमें उद्यमीय गुणों एवं कौशल का विकास करना तथा उन्हें सफलतापूर्वक अपना उपक्रम स्थापित करने में सक्रिय सहयोग प्रदान करना

शिक्षा में उद्यमिता विकास की विशेषताएँ (Features of Entrepreneurship Development in Education)

शिक्षा में उद्यमिता विकास की प्रमुख विशेषताएँ निम्न हैं-

(1) नवाचार उद्यमिता व्यवहार का सबसे प्रमुख लक्षण होता है ।

(2) उद्यमिता व्यवहार कुछ विशेष प्रकार की आवश्यकताओं से प्रेरित होता है। ये आवश्यकताएँ सामाजिक, मानसिक तथा आत्म-विश्वास की हो सकती हैं।

(3) उद्यमिता व्यवहार सन्तुलित एवं मध्यम श्रेणी की जोखिम उठाने वाला होता है।

(4) यह अवसरों की तलाश पर कड़ी नजर रखता है। जैसे ही कोई अच्छा अवसर मिलता है, उससे तुरन्त लाभ उठाने का प्रयास करता है।

(5) उद्यमिता व्यवहार गतिशील प्रकृति का होता है। वह उपक्रम की स्थापना एवं उसका संचालन करने में आधुनिकतम तकनीक का उपयोग करने का प्रयास करता है।

(6) उद्यमिता व्यवहार की एक प्रमुख विशेषता है कि वह सदैव चुनौतीपूर्ण लक्ष्य निर्धारित करता है।

(7) उद्यमिता व्यवहार में पहलपन नजर आता है। उद्यमी उत्तरदायी से भागने की कोशिश नहीं करता है।

(8) उद्यमिता व्यवहार सकारात्मक एवं स्वयं की विचारधारा वाला होता है। वह भूल, गलतियों तथा असफलताओं से सबक लेता है।

(9) उद्यमिता व्यवहार मात्र सैद्धान्तिक न होकर व्यावहारिक होता है।

(10) उद्यमिता व्यवहार मूल्य आधारित होता है। वह सामाजिक, नैतिक सिद्धान्तों तथा आस्थाओं को परिभाषित करता है तथा उन्हीं के अनुरूप कल्पना, आचरण एवं कार्य करता है।

(11) उद्यमिता व्यवहार में पर्याप्त लोच होती है। वह समय, परिस्थितियों एवं पर्यावरण के अनुरूप कार्य करता है।

(12) उद्यमिता व्यवहार में स्वायत्तता होती है। वह अपना ध्यान सदैव लक्ष्य पर केन्द्रित करता है।

(13) उद्यमिता व्यवहार महत्त्वाकांक्षी होता है। महत्त्वाकांक्षा ही उसे निरन्तर आगे बढ़ने तथा कुछ नया करने की प्रेरणा देती है।

(14) उद्यमिता व्यवहार मानव-मुखी होता है। उसका व्यवहार सभी व्यक्तियों के प्रति संवेदनशील होता है।

(15) उद्यमिता व्यवहार प्रतिबद्धता से परिपूर्ण होता है वह बाधाओं और अवरोधों का साहसपूर्ण सामना करता

भारत में उद्यमिता के विकास हेतु उठाये गये सरकारी कदम (Government Steps for the Development of Entrepreneurship in India)

स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत में उद्यमिता के विकास के लिए सुनियोजित कोशिश की गई। देश में प्रगतिशील एवं व्यावहारिक औद्योगिक नीतियों का निर्माण किया गया पंचवर्षीय योजनाओं का सूत्रपात किया गया तथा सरकार ने अपने अलग-अलग संगठनों एवं एजेन्सियों के माध्यम से उद्योगों के लिए विभिन्न सुविधाओं एवं प्रेरणाओं का उपलब्ध करवाना प्रारम्भ किया। उद्यमियों को विकसित करने के लिए विभिन्न कार्यक्रम लागू किये जा रहे हैं। केन्द्रीय एवं राज्य सरकार के संयुक्त प्रयासों से उद्यमियों को प्रशिक्षित एवं अभिप्रेरित किया जा रहा है। तकनीकी व व्यावसायिक शिक्षा का प्रसार किया जा रहा है। फलस्वरूप हमारी संस्कृति में विकास हो रहा है। संक्षेप में स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में उद्यमिता के विकास हेतु किये गये प्रयासों को निम्न श्रेणियों में रखा गया है-

(अ) नीतिगत प्रयास (Policy Steps )

(ब) सुविधाएँ एवं प्रेरणाएँ (Facilities and Incentives)।

(अ) नीतिगत प्रयास (Policy Steps)- सरकार ने उद्यमिता को प्रोत्साहित करने हेतु समय-समय पर नीति प्रस्तावों में विभिन्न घोषणाएँ करके इसके विकास पर जोर दिया है। नीति सम्बन्धी प्रमुख कदम निम्नलिखित हैं-

(1) औद्योगिक नीति प्रस्ताव- स्वतन्त्र भारत की प्रथम औद्योगिक नीति 1948 में घोषित की गयी जिसमें योजनाबद्ध विकास का दायित्व सरकार पर डाला गया किन्तु निजी उद्यमियों के लिए भी कई क्षेत्र सुरक्षित किये गये हैं। 1956 की औद्योगिक नीति में आधारभूत, खनिज, यातायात एवं सम्प्रेषण उद्योगों के साथ-साथ विभिन्न उपभोग उद्योगों पर बल दिया गया है। साथ ही इस नीति में निजी क्षेत्र को पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध कराने, राष्ट्रीयकरण का भय समाप्त कराने, प्राविधिक एवं तकनीकी शिक्षा की सुविधाएँ देने, लघु तथा कुटीर उद्योगों को प्राथमिकता देने पर बल दिया गया है। वर्ष 2001 में किये गये प्रमुख औद्योगिक नीतिगत उपाय इस प्रकार है-

(i) केन्द्रीय मूल्य- वर्धित कर प्रारम्भ करके तथा उत्पाद शुल्क की दरों व संख्या में कमी करके उत्पाद शुल्क संरचना में सुधार किया जायेगा।

(ii) उत्पाद शुल्क की प्रक्रिया को सरल बनाया जायेगा।

(iii) सेवी को उद्यम पूँजी निधि का एकमात्र विनियामक बना दिया गया है।

(iv) विदेशी संस्थागत निवेश की शक्ति सीमा बढ़ाकर 40% प्रतिशत करने की अनुमति दे दी गई है।

(v) ग्रामीण आधारभूत ढाँचा विकास निधि VI की संचित निधि में वृद्धि की गई है।

(2) पंचवर्षीय योजनाएँ- सरकार ने पंचवर्षीय योजनाओं में निजी उद्यमियों के लिए विभिन्न सहायताएँ, सुविधाएँ एवं प्रेरणाएँ उपलब्ध कराई हैं। साथ ही, औद्योगिक विकास पर किये जाने वाले खर्च में निरन्तर वृद्धि की गई है। इसमें व्यावसायिक उद्यमिता के समन्वित एवं सन्तुलित विकास को गति मिली है। योजनावार उद्यमिता के विकास की चर्चा इसी अध्याय में पूर्व में की गई है।

(3) प्रगतिशील व्यावसायिक नीतियाँ- उद्यमियों विकास के लिए हमारे देश में समय-समय पर व्यावसायिक नीतियों की घोषणा भी की जाती है। केन्द्रीय सरकार ने उद्योगों को प्रोत्साहित करने हेतु विनियोग नीति, कर-नीति, मौद्रिक नीति, मूल्य नीति, आयात-निर्यात नीति, वित्त नीति, लाइसेंस नीति आदि का निर्माण किया है। इन नीतियों के द्वारा उद्यमियों के लिए अनुकूल वातावरण निर्मित करने तथा उन्हें अभिप्रेरित करने की कोशिश की जाती है।

(4) पूँजी बाजार नीति- पूँजी बाजार को मजबूत बनाने के लिए 2000-2001 में अनेक राजकोषीय प्रोत्साहनों की घोषणा की गई है। कुछ प्रमुख उपाय ये हैं- (i) स्टॉक एक्सचेंजों की निवेशक संरक्षण निधियों की आय को 100 प्रतिशत की छूट दी गई। (ii) यू० एस० 64 और भारतीय यूनिट ट्रस्ट और अन्य म्युचुअल फण्डों की असीमित समय वाली अन्य इक्विटी उन्मुखी स्कीमों के तहत वितरित आय को छूट दी गई है। (iii) बैंकों तथा वित्तीय संस्थाओं द्वारा अदा की जाने वाली ब्याज कर को खत्म कर दिया गया है।

(5) विदेशी प्रत्यक्ष निवेश नीति- एक छोटी नकारात्मक सूची को छोड़कर सभी उद्योगों के लिए स्वचलित रास्ते विदेशी प्रत्यक्ष निवेशों को अनुमति दी गई है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश के प्रस्तावों पर विचार करने के लिए समय अवधि को 6 सप्ताह से घटाकर 30 दिन कर दिया गया है। ई० कॉमर्स व्यवसाय के लिए 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गई है। विद्युत क्षेत्र में निवेश पर लगी सीमा को घटाया गया। तेलशोधन के क्षेत्र में 100 प्रतिशत विदेशी प्रत्यक्ष निवेश की अनुमति दी गयी।

(6) विभिन्न समितियों का गठन- केन्द्र सरकार ने निजी उद्यमियों की समस्याओं का अध्ययन करके जरूरी सुझाव देने, सम्भावित उद्यमियों की खोज करने तथा विभिन्न क्षेत्रों की औद्योगिक एवं उद्यमी सम्भावनाओं का अध्ययन करने की दृष्टि से समय-समय पर अनेक समितियों का गठन किया है। इन समितियों व दलों के सुझावों में औद्योगिक उद्यमिता के विकास को महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन मिला।

(ब) सुविधाएँ एवं स्वप्रेरणाएँ (Facilities and Incentives)- भारत में औद्योगिक साहस एवं उद्यमिता विकास के लिए निम्नलिखित सुविधाएँ एवं प्रेरणाएँ प्रदान की गई हैं

(1) औद्योगिक क्षेत्रों एवं बस्तियों का निर्माण- औद्योगिक साहस को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार ने कई क्षेत्रों को औद्योगिक क्षेत्र घोषित करके वहाँ औद्योगिक बस्तियों का निर्माण करवाया है। इनमें उद्योगों की स्थापना के लिए विभिन्न आधारभूत सुविधाएँ; जैसे- परिवहन बैंक, बीमा, भण्डार, गृह, विद्युत प्रशिक्षण, अनुसंधान आदि उपलब्ध कराये गये देश के अनेक भागों में केन्द्रीय स्व राज्य सरकारों द्वारा स्थापित संस्थाएँ एवं विभाग आधारभूत सुविधाओं के विकास में संलग्न हैं। पिछड़े हुए क्षेत्रों में जिला उद्योग केन्द्र, छोटे उद्योग, विकास निगम एवं उद्योग निदेशालय इन क्षेत्रों में महत्त्वपूर्ण सुविधाएँ उपलब्ध करवा रहा है।

(2) परियोजन प्रतिवेदनों का शीघ्र अनुमोदन- सरकार ने इस बात पर विशेष ध्यान दिया कि साहसियों द्वारा प्रस्तुत परियोजना का प्रतिवेदनों का शीघ्र अनुमोदन किया गया। साहसियों को सरकारी विभागों में व्याप्त नौकरशाही एवं लालफीताशाही से आजादी दिलवाने के लिए जिला उद्योग केन्द्रों की स्थापना की गई। ऋण के लिए प्रस्तुत आवेदनों को भी शीघ्र निपटाने की व्यवस्था की गयी। सरकारी संस्थाओं के द्वारा परियोजना प्रतिवेदना के निर्माण में भी तकनीकी परामर्श उपलब्ध कराया जाता है।

(3) प्रशिक्षण सुविधाओं का विकास- सरकार अपनी विभिन्न संस्थाओं, प्रबन्ध संस्थाओं एवं तकनीकी स्कूल के माध्यम से उद्यमियों में साहसी योग्यताएँ विकसित करने के लिए समय-समय पर प्रशिक्षण एवं अभिप्रेरणा कार्यक्रम शुरू करती है। उद्यमियों को प्रशिक्षण देने हेतु देश में विभिन्न संगठन, जैसे- लघु उद्योग संगठन (SIDO), लघु उद्योग सेवा संस्थान, राष्ट्रीय साहस एवं लघु व्यवसाय विकास संगठन (Niesbd) जिला उद्योग केन्द्र आदि काम कर हैं। उन प्रशिक्षण कार्यक्रमों में उद्यमियों की परियोजना विकास, उत्पादन, उपक्रम प्रबन्ध आदि के बारे में जानकारी दी जाती है।

(4) परामर्श सहायता- उद्यमियों को विभिन्न सरकारी संगठनों; जैसे- छोटा उद्योग सेवा संस्थान, जिला उद्योग केन्द्र, उद्योग निदेशालय आदि द्वारा विभिन्न तकनीकी, वित्तीय एवं प्रबन्धीय मामलों में विशेषज्ञों की परामर्श सेवा उपलब्ध करवायी जाती है। यह परामर्श उद्यमियों को उद्योग के अनेक पहलुओं; जैसे- परियोजना निर्माण, डिजाइन, उत्पादन की नवीन तकनीकें, कच्चे माल व कल पुर्जों का एकत्रीकरण श्रम आदि के बारे में दिया जाता है। बैंक एवं वित्त संस्थाएँ भी उद्यमियों को विशेष परामर्श प्रदान करती हैं। उदाहरण के लिए भारतीय औद्योगिक वित्त निगम उद्योग विचार से लेकर उद्योग शुरू करने तक की सभी अवस्थाओं में बहुमूल्य परामर्श प्रदान करता है यह परामर्श देश भर में फैले 18 सलाहकार संगठनों के माध्यम से उपलब्ध किया जाता है। इन संगठनों को यह निगम आर्थिक सहायता प्रदान करता है।

(5) तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा का विकास- सरकार ने अच्छे उद्यमियों को तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा प्रदान करने के लिए तकनीकी एवं व्यावसायिक शिक्षा संस्थानों की स्थापना की है इन संस्थानों से शिक्षा ग्रहण करने वाले युवकों के ऋण एवं अन्य सुविधाएँ प्राप्त करने में प्राथमिकता दी जाती है। स्कूलों एवं महाविद्यालयों में भी शिक्षा को साहस अभिमुखी बनाने के कोशिश किए जा रही है।

(6) प्रबन्धी विकास- किसी भी उद्यम की सफलता के लिए प्रबन्ध एक मूल घटक है सरकार ने उद्यमियों की प्रबन्धकीय के दक्षता के विकास के लिए मदद उपलब्ध करवायी है। भारतीय औद्योगिक वित्त निगम द्वारा 15 वर्ष पूर्व प्रबन्ध विकास संस्थान की स्थापना की गई थी जो कि औद्योगिक समस्याओं के समाधान एवं प्रबन्धकीय योग्यता में वृद्धि के लिए कार्यरत हैं। यह निगम उद्यमियों के लिए प्रबन्ध विकास कार्यक्रमों का आयोजन करता है।

(7) प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण व्यवस्था- सरकार ने उद्यमियों को प्रशिक्षण प्रदान करने वाले प्रशिक्षकों के लिए भी प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किया है। भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान प्रशिक्षकों के लिए प्रशिक्षण देने वाली सही प्रशिक्षण पाठ्यक्रम तैयार करने आवश्यक सूचना सामग्री तैयार करने तथा अनुसन्धान करने का कार्य करते हैं। इस संस्थान ने प्रशिक्षक-प्रेरणों के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कार्यक्रम भी आयोजित किये हैं।

(8) साहित्य एवं प्रचार- साहस के विकास हेतु हमारे देश में अनेक प्रकार के साहित्य का सृजन एवं प्रकाशन का काम किया जा रहा है। देश में कार्यरत 18 तकनीकी सलाहकारी संगठनों (Technical Constancy Organisation) में साहित्य सृजन का महत्त्वपूर्ण कार्य किया है। इन्होंने विभिन्न सर्वेक्षण एवं अध्ययन करके इनकी रिपोर्ट व रूपरेखा प्रकाशित की है।

(9) विचारगोष्ठियों एवं कार्यशालाओं का आयोजन – उद्यमिता के विकास एवं उनकी समस्याएँ विचार विमर्श करने हेतु हमारे देश में समय-समय पर विचारगोष्ठियों एवं कार्यशालाओं का आयोजन किया जाता रहा है। भारतीय उद्यमिता विकास संस्थान इस दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

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