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अन्तर्विषयी अभिगमन | Inter-Disciplinary Approach in Hindi

अन्तर्विषयी अभिगमन
अन्तर्विषयी अभिगमन

अन्तर्विषयी अभिगमन (Inter-Disciplinary Approach)

विभिन्न विषयों में परस्पर सम्बन्ध स्थापित करने को ही अन्तर्विषयी अभिगमन कहा जाता है। शिक्षा के क्षेत्र में यह एक नवीन प्रत्यय है। पहले तो प्रत्येक विषय का पृथक्-पृथक् अध्ययन कराया जाता था किन्तु अब एक तो ज्ञान का विस्तार अत्याधिक हो गया है, दूसरे अब यह जानना भी आवश्यक हो गया है कि इन विभिन्न विषयों के मध्य क्या सम्बन्ध है ? अथवा एक विषय का अन्त विषय पर क्या प्रभाव पड़ता है ? वस्तुतः एक विषय का दूसरे विषय पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन अन्तःविषयक उपागम द्वारा ही किया जा सकता है। वर्तमान समय में तो उच्च शिक्षा के क्षेत्र में यह उपागम इतना अधिक महत्त्वपूर्ण होता जा रहा है कि इसके बिना विविध विषयों का शिक्षण कराया जाना असम्भव प्रतीत होता है।

वर्तमान शिक्षा-प्रणाली के कुछ प्रमुख दोष निम्नलिखित हैं-

(1) प्रचलित शिक्षा प्रणाली का जीवन से कोई सम्बन्ध नहीं है।

(2) व्यक्ति प्राप्त ज्ञान का उपयोग जीवन के अन्य क्षेत्रों में नहीं कर पाता है।

(3) वर्तमान शिक्षा-पद्धति व्यक्ति एवं राष्ट्र की महत्त्वाकांक्षाओं को पूर्ण करने में भी असफल सिद्ध हुई है, क्योंकि-

(i) इसमें कृषि शिक्षा का महत्त्व प्रदान नहीं किया गया है।

(ii) यह शिक्षा प्रणाली राष्ट्र निर्माण के संकल्प को पूरा करने में सफल नहीं हो सकी है।

(iii) यह शिक्षा प्रणाली राष्ट्र के आर्थिक विकास से भी सम्बद्ध नहीं है।

वस्तुतः शिक्षा के उपर्युक्त दोषों को दूर करने के निमित्त कोठारी कमीशन ने सरकार के समक्ष अन्तर्विषयी अभिगमन की योजना रखी। स्वयं कोठारी आयोग के शब्दों में, “शिक्षा के स्वरूप को बदलने का सबसे बड़ा दूसरा कोई साधन नहीं है, इसे जीवन के साथ जोड़ना चाहिए तथा जनता की आकांक्षा व आवश्यकता को पूर्ण करना चाहिए। इसे राष्ट्रीय आदर्शों की प्राप्ति हेतु सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक परिवर्तन का साधन होना चाहिए।” कोठारी आयोग द्वारा बतलाए गये उपर्युक्त कार्य को पूर्ण करने के लिये हमें निम्न तथ्यों पर ध्यान देना होगा-

(1) शिक्षा को उत्पादन के साथ जोड़ा जाये।

(2) आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में योगदान दिया जाये।

(3) सामाजिक व राष्ट्रीय एकता का विकास किया जाये।

(4) इसे राष्ट्र की जीवन पद्धति के रूप में मान्यता दी जाये।

(5) विभिन्न मूल्यों के माध्यम से चरित्र का निर्माण किया जाये।

अन्तर्विषयी अभिगमन का अर्थ एवं व्याख्या

 इस अभिगमन के अनेक रूप हैं, जैसे अनुसन्धान की पद्धति के रूप में, शिक्षण स्तर के रूप में, उच्च शिक्षा के पाठ्यक्रमों के पुनर्गठन के रूप में; लेकिन कुछ विद्वानों के अनुसार एक विषय में अन्य विषयों के अभिगमन को ही अन्तर्विषयी अभिगमन कहते हैं। वैसे भी ज्ञान अखण्ड है। इन ज्ञान के विभिन्न विषय ज्ञान की शाखाएँ हैं। अतः उन समस्त शाखाओं (विषयों) का अध्ययन उनमें समन्वय स्थापित करके ही किया जाना चाहिए। अन्तर्विषयी अभिगमन की कुछ परिभाषाएँ इस प्रकार हैं-

डॉ० चौरसिया- “यह सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जाता है कि अध्यापक शिक्षा की गुणात्मक उन्नति हेतु विषय-सामग्री व विधियों का सामंजस्य अर्थात् अन्तर्विषयी अभिगमन से अधिक उत्तम योजना अन्य कोई नहीं हो सकती है।”

डॉ० मुजीब के अनुसार- “सामान्यतः स्वीकार किये जाने वाले अर्थ में, ‘डिसिप्लिन’ शब्द का आशय है- अध्ययन का एक क्षेत्र, जिसकी मान्यताओं की अनुपम व्यवस्था के साथ-साथ अपनी स्वयं की निश्चित विषय सामग्री तथा रचना-प्रणाली होती है। इस अर्थ में विश्वविद्यालयों एवं कॉलेजों में पढ़ाये जाने वाले विषय ‘डिसिप्लिन’ होते हैं।

अन्तर्विषयी अभिगमन : पाठ्यक्रम- वस्तुतः आज हमारे देश के अधिकांश विश्वविद्यालयों में उपयुक्त पाठ्यक्रमों का अभाव है। श्रीधरनाथ मुकर्जी के अनुसार, “हमारे विश्वविद्यालयों की गहन समस्या संतुलित पाठ्यक्रम के प्रावधान की है। यह इस प्रकार संगठित किया जाना चाहिए कि प्रत्येक शिक्षार्थी को उसकी रुचि एवं अभिरुचि के अनुसार प्रशिक्षण मिल सके। यह असमायोजित (misfits and unfits) को समायोजन का समुचित अवसर प्रदान करे जिससे उसके व्यक्तित्व का सर्वांगीण विकास हो सके।”

वस्तुतः अन्तर्विषयी अभिगमन का मुख्य उद्देश्य अभीष्ट ज्ञान को अधिकाधिक व्यावहारिक बनाना है। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिये कोठारी कमीशन ने निम्नलिखित कार्यक्रम प्रस्तुत किया-

(1) पाठ्य-विषयों का अधिक-से-अधिक प्रसार किया जाये

(2) तुलनात्मक विषयों को बढ़ावा दिया जाये।

(3) एक विषय के छात्र को अन्य विषय में अपने मूल विषय का विकास करने हेतु अवसर प्रदान किया जाये।

(4) विषयों का पुनर्गठन करते समय निम्न बातों को ध्यान में रखा जाये-

(i) आदर्श को व्यवहार में परिवर्तित करना।

(ii) छात्र को उसकी रुचि एवं योग्यतानुसार विषय देना ।

(iii) असमायोजित छात्रों को समायोजित होने के अवसर प्रदान करना ।

(5) विज्ञान, कृषि, तकनीकी, कला, गृहविज्ञान आदि विषयों में समन्वय करना।

वस्तुतः उच्च शिक्षा के क्षेत्र में अन्तर्विषयी अभिगमन नई दिशा में ज्ञान प्रदान है। कोठारी कमीशन के शब्दों में, “जिन विश्वविद्यालयों में परस्पर सम्बन्धित विषयों के विभागों में पर्याप्त अध्यापक हैं, उनमें अन्तर्विषयी अभिगमन को प्रोत्साहित करने हेतु विशिष्ट प्रयास किये जाने की आवश्यकता है। इसके लिये विषयों के ये समायोजनों, विभिन्न संस्थाओं में सहयोग की नई पद्धतियों तथा नये प्रकार के अध्ययन वर्गों की आवश्यकता होगी।”

उपर्युक्त अवधारणा को सफल बनाने के लिये कोठारी कमीशन ने यू० जी० सी० के द्वारा चयनित विश्वविद्यालयों में शिक्षा संकायों की स्थापना पर जोर दिया है। इस शिक्षा संकाय के कार्य इस प्रकार होंगे-

(1) शिक्षा के अन्तर्गत अनुसन्धान कार्य को विकसित करना ।

(2) भिन्न-भिन्न स्तर के शिक्षालयों से सम्पर्क कायम करना ।

(3) पाठ्यक्रम तथा दूसरे क्षेत्रों में अनुसन्धान कार्य की सम्भावनाओं में वृद्धि करना।

(4) समस्त स्तरों पर प्रशिक्षण संस्थाओं में से कतिपय में प्रसार सेवा (Extension Services) का आयोजन करना ।

(5) स्नातक एवं स्नातकोत्तर विषयों के अध्ययन को शिक्षा में आयोजित करना ।

(6) व्यावसायिक शिक्षा के अन्तर्गत भिन्न-भिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण पाठ्यक्रम का संचालन करना ।

(7) भिन्न-भिन्न विषयों में सेवाकालीन पाठ्यक्रमों का आयोजन करना ।

(8) विभिन्न विषयों में ग्रीष्मकालीन संस्थाओं का आयोजन करना ।

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