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गुरु नानक का जीवन परिचय | Gurunanak dev biography in hindi

गुरु नानक का जीवन परिचय
गुरु नानक का जीवन परिचय

गुरु नानक का जीवन परिचय (Gurunanak dev biography in hindi)- सिख संप्रदाय के प्रथम गुरु के रूप में उनकी मान्यता रही है। गुरु नानक का जन्म पंद्रहवीं शताब्दी में 1469 में 15 अप्रैल के दिन हुआ था। इनका जन्म पंजाब के तलवंडी में हुआ था। अविभाजित भारत का वह हिस्सा आजादी के पश्चात् बंटवारे में पाकिस्तान को प्राप्त हुआ। लाहौर से 30 कि.मी. की दूरी पर तलवंडी नामक वह स्थान है, जो आज ‘ननकाना साहब’ के पवित्र संबोधन से तीर्थस्थल बन चुका है। इनके पिताजी का नाम कालू था। वे गांव के पटवारी थे और कृषि और व्यापार कार्य भी किया करते थे। गुरु नानक के विषय में कई बातें प्रसिद्ध रही है। कहते हैं कि जन्म के समय ये रोने के बजाय सिद्ध पुरुष की भांति हंस पड़े थे। इनका नामकरण बड़ी बहन के नाम पर रखा गया। वह ननिहाल में पैदा होने की वजह से नानकी कहलाती थी। नानक के व्यक्तित्व में बचपन से ही विलक्षण प्रतिभा प्रकट होने लगी थी। महज सात वर्ष की आयु में जब पिता ने विद्याध्ययन के लिए गुरु के पास भेजा तो गुरुजी ने हिसाब (गणित) पढ़ाने की चर्चा की। इस पर नानक ने कहा, “ऐसी विद्या मेरे किस कार्य की ? यह तो नश्वर संसार में ही रह जाएगी। मैं तो ऐसी विद्या चाहता हूं, जो अंत समय में भी मेरे कार्य आए।” अध्ययन में रुचि न लगती समझकर पिता ने भैंस चराने के कार्य में लगा दिया। वहां भी नानक आध्यात्मिक सोच में निमग्न हो गए और भैंसों ने किसी अन्य का खेत खराब कर दिया। पिता ने सोचा कि बेटे को कोई विकार हो गया है। वैद्य को बुलाया तो उसने कुछ दवाएं बता दीं। इस पर नानक ने सवाल किया, “आप औषधि से मेरा निदान करना चाहते हैं, किंतु क्या आपने अपने भीतर मौजूद काम, क्रोध, लोभ, मद, मोह जैसी व्याधियों का निदान कर लिया है ?” वैद्य के पास प्रत्युत्तर न था। इन्होंने नानक को प्रणाम किया। 18 वर्ष की वय में पिता ने सुलक्षणा देवी के साथ नानक का विवाह कर दिया। इनके श्रीचंद एवं लक्ष्मीदास नाम के दो पुत्र भी हुए, किंतु इनका मन गृहस्थी में नहीं रमा। ये परिवार का दायित्व अपने श्वसुर को सौंपकर तीर्थाटन के लिए निकल पड़े।

मरदाना उनकी इस यात्रा में निरंतर साथ रहा। इन्होंने 1507 से 1521 तक हरिद्वार, प्रयाग, द्वारिका, गया, रामेश्वरम्, जगन्नाथपुरी, पटना, सोमनाथ, अयोध्या, साधु बेला, मक्का, मदीना और बगदाद आदि की यात्राएं कीं। इन यात्राओं में इन्होंने अपने उपदेशों से अनेक लोगों की जीवनधारा बदल दी और इन्हें कर्मकांड के दिखावों से निकालकर सच्ची ईशभक्ति के मार्ग पर लगाया। वे हिंदू और मुसलमान सभी को समान और एक ईश्वर की संतान कहते थे। छुआछूत का इन्होंने सदैव विरोध किया। ऊंच-नीच का भेद-भाव इनके भीतर तनिक भी नहीं था। एबटाबाद में एक बार वे ऊंचे अधिकारी का निमंत्रण ठुकराकर लालो नामक बढ़ई के घर पर रुके थे। ये अपने दौर के एकमात्र संत थे, जिन्होंने स्त्रियों की निंदा न करके इनके प्रति सम्मान प्रदर्शित किया। गुरु नानक के उपदेश सरल भाषा में होते थे। ये पद्य रचना करके इन्हें गाते और इनका शिष्य मरदाना तब बाजा बजाया करता। अपने आखिरी समय में ये करतारपुर में रहने लगे थे। 1538 में अपनी गद्दी का भार गुरु अंगद देव (बाबा लहना) के सुपुर्द कर इन्होंने नश्वर शरीर त्याग दिया।

गुरुनानक देव जी की रचनाएं (gurunanak dev ji ki rachnayen)

गुरुनानक देव जी की प्रसिद्ध रचनाएं (gurunanak dev ji ki prasiddha rachnayen) निम्नलिखित थीं –
• जपु जी
• झूठी देखी प्रीत
• को काहू को भाई
• मुरसिद मेरा मरहमी
• सूरा एक न आँखिए
• राम सुमिर, राम सुमिर
• हाैं कुरबाने जाऊं पियारे
• काहे रे बन खोजन जाई
• अब मैं कौन उपाय करूं
• प्रभु मेरे प्रीतम प्रान पियारे
• या जग मित न देख्यो कोई
• यह मन नेक न कहयो करे
• सब कछु जीवित कौ ब्यौहार
• जो नर दुख में दुख नहिं मानै

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