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अब्दुर्रहीम खानखाना का जीवन परिचय | Biography Of Abdul Rahim Khan-I-Khana in Hindi

अब्दुर्रहीम खानखाना का जीवन परिचय
अब्दुर्रहीम खानखाना का जीवन परिचय

अब्दुर्रहीम खानखाना का जीवन परिचय (Biography Of Abdul Rahim Khan-I-Khana in Hindi)- उसकी गहराई से पड़ताल की जाए।’ यह सारगर्भित कथन सार्वभौमिक है। तथापि अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना पर तो ज्यादा ही प्रभावी ढंग से लागू होता दिखता है, बइतिहास विचित्र और विद्रूप दोनों ही रूपों में मुस्कराता प्रतीत होता है, यदि लेकिन सर्वप्रथमतः यह समझना आवश्यक है कि बादशाह अकबर के साथ क्या संबंध था। रहीम के पिता बैरम खां ने हुमायूं की मृत्यु के पश्चात् नाबालिग अकबर को बादशाह घोषित करके उसकी तरफ से हिंदुस्तान पर शासन किया था, लेकिन कुछ वर्षों पश्चात् अकबर ने बैरम खां को स्वेच्छाचारिता के साथ शासन करने के कारण हजयात्रा पर चले जाने को कह दिया था, लेकिन उसी बैरम खां के पुत्र रहीम को अकबर ने अपने दरबार में उसकी उच्च कोटि की प्रतिभा के कारण स्थान प्रदान किया था।

अकबर के शासनकाल में प्रतिभावान नीतिज्ञ कवि एवं योद्धा के अलावा इन्हें हिंदी साहित्य में रहीम के नाम से ज्यादा आदर प्राप्त हुआ है। पिता का नाम बैरम खां था। 1561 में जब पिता की मृत्यु हुई तो अब्दुल रहीम नाबालिग थे, किंतु अपनी प्रतिभा व योग्यता से इन्होंने पर्याप्त उन्नति की। ‘खानखाना’ की उपाधि भी इन्हें अकबर द्वारा ही प्रदान की गई थी। अकबर ने इन्हें मुल्तान का सूबेदार भी तैनात किया और इन्होंने सिंध पर जीत हासिल की। दक्षिण में अहमदनगर विजय के दौरान भी सम्राट ने इन्हें मुराद के साथ भेजा था। गोलकुंडा और बीजापुर की सेनाएं भी इनके हाथों परास्त हुईं। इसके अलावा भी अकबर के शासन के विस्तार में खानखाना की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी, लेकिन यह उनका पूर्ण परिचय नहीं है। इनका वास्तविक परिचय तो मध्यकालीन हिंदी कवि रहीम के रूप में ही प्रदान किया जा सकता है। ये तुलसीदास के समकालीन रहे थे और हिंदी कविता के विकास में इनका नाम अनूठे दोहाकार के रूप में सामने आया था। रहीम ने अच्छा स्वास्थ्य पाया और जहांगीर के शासनकाल में इनका निधन हुआ।

औरंगजेब ‘उत्थान के साथ ही पतन की कहानी लिखी जाती है।’ मुगल सल्तनत का चरमोत्कर्ष अकबर का शासनकाल था तो उसके पतन की गाथा भी मुगल सल्तनत के भावी शासकों ने लिखनी आरंभ कर दी थी। हिंदुस्तान पर बादशाहत जमाने के लिए जहां आरंभ की तीन पीढ़ियों ने अपनी जिंदगी का बड़ा हिस्सा घोड़ों की पीठ पर बैठे रहकर गुजारा था तो पश्चात्वर्ती बादशाहों ने बुजुर्गों की बनाई हिंदुस्तानी सल्तनत पर काबिज होने के लिए अपने ही भाइयों व खूनी रिश्तों के साथ षड्यंत्र रचे व अमानवीय कारनामे अंजाम दिए। औरंगजेब तक आते-आते अकबरी बादशाहत वाली हुकूमत की सांसें उखड़ने लगी थीं।

दरअसल औरंगजेब शाहजहां की तीसरी औलाद व छठा मुगल बादशाह था। इतिहास में इसके कई व्यक्तित्व दर्ज हैं। शहजादे के रूप में ही यह अनेक महत्वपूर्ण सैन्य व प्रशासनिक पदों पर रह चुका था। अफगानिस्तान में और दक्षिण में उसने बादशाह के प्रतिनिधि रूप में कार्य किया। 1657 में शाहजहां जब रुग्ण हुआ तो उसने दाराशिकोह को अपना वारिस बनाना चाहा, जो तब उसके पास आगरा में था। औरंगजेब उस दौरान दक्षिण में था। एक भाई शुजा बंगाल में और मुराद गुजरात में बादशाह का प्रतिनिधि बनकर मौजूद था। बादशाह की अस्वस्थता का समाचार फैलते ही शुजा व मुराद दोनों ने ही स्वयं को बादशाह घोषित कर दिया। औरंगजेब भला कैसे पीछे रहता ! इसने मुराद को यह कहकर अपनी तरफ मिला लिया कि हुकूमत पर अधिकार होते ही दोनों भाई उसे परस्पर बांट लेंगे।

इन दोनों की साझी सेना ने शाही सेना को पीछे हटने पर विवश किया और आगरा पर अधिकार जमा लिया। वृद्ध बादशाह शाहजहां को ताउम्र के लिए किले में कैद कर दिया गया। औरंगजेब 1659 में गद्दी पर बैठा और 1707 में दक्षिण में बुरहानपुर में निधन होने तक उसकी बादशाहत रही। भाई मुराद को, जिससे उसने सहायता ली थी, फांसी पर चढ़ा दिया। शुजा को राज्य छोड़कर आराकान की तरफ भागकर वहीं जान गंवानी पड़ी। दाराशिकोह को भी धर्म का दुश्मन बताकर मृत्युदंड दे दिया गया।

फिर इसने मुगल साम्राज्य का विस्तार शुरू किया। इसे इसमें कामयाबी भी मिली, किंतु इतिहास विशेषज्ञ यदुनाथ सरकार ने सच ही लिखा, ‘अजगर की तरह मुगल सल्तनत ने इतना ज्यादा क्षेत्र हथिया लिया था कि वह उससे हजम नहीं किया जा सका।’

ग्रन्थ :

• रहीम दोहावली – रहीम के दोहों का विशाल संकलन
• नगर-शोभा / रहीम
• श्रंगार-सोरठा / रहीम
• मदनाष्टक / रहीम
• संस्कृत श्लोक / रहीम
• बरवै नायिका-भेद / रहीम
• बरवै भक्तिपरक / रहीम
• फुटकर पद / रहीम

रचनाएँ :

• अति अनियारे मानौ सान दै सुधारे
• पट चाहे तन, पेट चाहत छदन
• बड़ेन सों जान पहिचान कै रहीम काह
• मोहिबो निछोहिबो सनेह में तो नयो नाहिं
• जाति हुती सखी गोहन में
• जिहि कारन बार न लाये कछू
• दीन चहैं करतार जिन्हें सुख
• पुतरी अतुरीन कहूँ मिलि कै
• कौन धौं सीखि ’रहीम’ इहाँ
• छबि आवन मोहनलाल की
• कमल-दल नैननि की उनमानि
• उत्तम जाति है बाह्मनी

अनुक्रम (Contents)

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