Francis Bacon Biography
About the Author –
Francis Bacon was born in an upper class family in London. His father’s name was Sir Nicholas Bacon and his mother’s name was Anne Cooke. He studied at the Cambridge University and in 1584 became a member of Parliament. As a member of Parliament he spoke against the government policy which annoyed the Queen. To gain the favour of the Queen and secure diplomatic assignments, he joined the group of Lord Essex. Later when Lord Essex was accused of disloyalty to the Queen, Bacon gave evidence against Lord Essex. During the reign of James I, Bacon sought the patronage of the Duke of Buckingham, which helped him to become Solicitor General, Attorney General, Lord Keeper and Lord Chancellor within a short span of time. As Lord Chancellor he was accused to taking bribe, proved guilty and sent to jail.
Bacon was of the opinion that English language did not have a bright future so he wrote many of his works in Latin. Some of his major works are ‘The Advancement of Learning’ (1605), ‘The New Atlantis’ (1627); “Novum Organum (1620) and ‘De Augmentis’ (1623). Bacon is chiefly remembered as the father of modern discursive essay in English. The 59 essays he wrote were first published in the year 1597 and later the revised edition of the essays was published in 1625. Pope has aptly described Bacon as, “the wisest, brightest, meanest of mankind.”
The First Classic of English Prose
Bacon’s essay have been regarded at the first classic of English prose. Bacon is the father of the impersonal essay. He attached great importance to thought. His essays are full of valuable thoughts on the subjects he deals with. His style is aphoristic and terse. Bacon had the gift of packing his thoughts in the most concise and forceful language. Many of sentences are like proverbs and epigrams; balanced and antithetical. They are full of ripest wisdom of observation and study, e.g. Revenge is a kind wild justice’; Men fear death as children fear to go in dark. “Discretion of speech is better then eloquence.” They are full of allusions and quotations from Greek and Latin works. They are analytical and rational. They are written to advise young men, princes and courtiers. It is difficult of find a book of the same size which contains so much worldly wisdom. No one has equalled Bacon in weightiness of thought and terseness of expression.
Francis Bacon Biography in hindi
लेखक परिचय –
फ्रैंसिस बेकन का जन्म सन् 1561 में लन्दन के एक उच्च वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम निकोलस बेकन और माता का नाम एने कुक था। उन्होने कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में शिक्षा पाई और सन् 1584 में वे पार्लियामेंट के सदस्य हो गये। सांसद के रूप में सरकारी नीतियों की आलोचना की और रानी के वकील के पद पर नियुक्त हुए। पश्चात् रानी का अनुग्रह और तत्परिणामस्वरूप राजनैतिक पद-लाभ प्राप्त करने के उद्देश्य से लार्ड एसेक्स के गुट में शामिल हो गये। बाद में जब लार्ड एसेक्स पर रानी के खिलाफ बगावत का आरोप लगाया गया तब बेकन ने न केवल उनका साथ छोड़ दिया बल्कि उनके खिलाफ गवाही भी दी। जेम्स प्रथम के शासन काल में बेकन ने ड्यूक ऑव बकिंघम के कृपा की डोर पकड़कर अल्प काल में ही सालिसिटर जनरल, अटार्नी जनरल, लार्ड कीपर और लार्ड चान्सलर जैसे महत्वपूर्ण पदों की सीढ़ियाँ चढ़ लीं। लार्ड चान्सलर के रूप में उन पर उत्कोच (घूस) लेने का आरोप लगाया गया। आरोप सिद्ध हुआ और बेकन को जेल की हवा खानी पड़ी। प्रारम्भ में बेकन का विचार था अंग्रेजी भाषा का भविष्य उज्जल नहीं है, इसलिए उन्होने अनेक ग्रन्थ लैटिन भाषा में लिखे। उनकी कुछ महत्वपूर्ण रचनायें इस प्रकार हैं – द एडवान्समेन्ट ऑव लर्निग (1605), द न्यू अटलान्ट्इस (1627), नोवम् आर्गनम् (1620) तथा डि आगमेन्टाइस (1623)|
बेकन को मुख्यतया आधुनिक अंग्रेजी निबंध के जनक के रूप में याद किया जाता है। सन् 1597 में उनके 59 निबंधों का प्रथम संग्रह प्रकाशित हुआ। सन् 1625 में इसका संशोधित एवं परिवर्धित संस्करण छपा। कवि एलेक्जैण्डर पोप ने बेकन के सम्पूर्ण व्यक्तित्व को इन चार शब्दों में परिभाषित किया है। उनके अनुसार बेकन ‘मानव जाति के सबसे अधिक बुद्धिमान, प्रकाशमान और लांछित व्यक्ति हैं।”
अंग्रेजी के लेखक के रूप में बेकन का यश उनके निबंधों पर ही प्रमुखतया आधारित है। ये उनके जीवन-काल में ही लोकप्रिय हो रहे थे, जिसके कारण ये उनकी संख्या में वृद्धि करते रहे और उनकी शैली भी अधिक पठनीय तथा परिमार्जित करते रहे। यद्यपि उनकी मूल सूत्रात्मकता सभी लेखों में बनी है। इन निबंधों की अंग्रेजी गद्य की प्रथम श्रेष्ठ कृति कहा जाता है। बेकन के निबंध विषय-परक हैं। इनमें लेखक के व्यक्तित्व का प्रक्षेपण लगभग नहीं के बराबर है। बेकन विचारक और वैज्ञानिक थे और उनके लेख विचार-प्रधान हैं। कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक विचार भरना उनकी शैली की विशेषता है। इसी कारण उनके अनेक वाक्य मुहावरों की भाँति सबकी जबान पर रहते हैं। बेकन एक गंभीर विद्वान थे, जिन्होंने देश-विदेश के प्राचीन तथा नवीन महानतम ग्रन्थों का अध्ययन किया था। अपनी बात की पुष्टि करने के लिए इतिहास, पुराण, काव्य तथा विविध ग्रन्थों से उद्धरण उन्हें सहज सुलभ थे और उनका वे उचित तथा प्रभावशाली प्रयोग करते थे। ‘प्रतिशोध जंगली न्याय है’,’मनुष्य मृत्यु से वैसे ही डरते हैं जैसे बच्चे अंधेरे से’ आदि उनकी समसोक्तियों के एकाध नमूने हैं। उनके लेख कुलीन तथा दरबारियों के पुत्रों के जीवन की सफलता के संदेश तथा उपदेश के रूप में लिखे गये हैं। बेकन के समान विचार-प्रधान, समासशैली में लिखने वाला दूसरा लेखक नहीं मिलता।
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