1917 की रूसी क्रान्ति – के कारण, परिणाम, उद्देश्य तथा खूनी क्रान्ति व खूनी रविवार
1917 ई. की रूसी क्रान्ति के कारण
1917 ई. की रूसी क्रान्ति बीसवीं शताब्दी के दूसरे दशक में रूस में एक भयंकर खूनी क्रान्ति हुई, जिसे इतिहास में ‘साम्यवादी क्रान्ति’ के नाम से जाना जाता है । इस क्रान्ति के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे-
1. साम्यवादी विचारधारा का प्रभाव – औद्योगिक विकास के साथ ही रूस में साम्यवादी विचारधारा का प्रचार आरम्भ हो गया । कारखानों के निकट रहने वाले हजारों श्रमिक व मजदूर राजनीतिक मामलों में रुचि लेने लगे और उन्होंने अपने क्लबों की स्थापना कर ली । इन क्लबों में कार्ल मार्क्स के साम्यवादी विचारों के प्रचार करने के लिए क्रान्तिकारी नेताओं का आगमन होने लगा । धीरे-धीरे बहुत-से श्रमिक अपने भविष्य को सुन्दर बनाने के लिए साम्यवादी विचारों को अपनाने लगे और साम्यवादी दल में सम्मिलित होने लगे ।
फिशर ने लिखा है, “इस साम्यवादी प्रचार ने देश के श्रमिकों में जारशाही के विरुद्ध घोर असन्तोष एवं घृणा उत्पन्न कर दी, जिसके कारण लोग जार के शासन का अन्त करने के लिए क्रान्तिकारियों का साथ देने लगे।”
2. 1905 ई. की क्रान्ति के प्रभाव – 1905 ई. में रूस के देशभक्तों ने राष्ट्रीयता की भावना से प्रेरित होकर अपनी स्वाधीनता के लिए जारशाही के विरुद्ध क्रान्ति कर दी थी । यद्यपि उन्हें सफलता न मिल सकी थी, फिर भी रूसी जनता को अपने राजनीतिक अधिकारों का ज्ञान हो गया था । वह मताधिकार तथा लोकतन्त्र के महत्व को भली प्रकार समझने लगी। अब वह जारशाही को मिटाकर रूस में वास्तविक लोकतन्त्र की स्थापना करने की इच्छुक हो गई थी।
3. रूस में बौद्धिक क्रान्ति-जिस प्रकार फ्रांस में 1789 ई. की क्रान्ति से पूर्व एक बौद्धिक क्रान्ति हुई थी, उसी प्रकार रूस में भी 1917 ई. की क्रान्ति से पहले एक बौद्धिक क्रान्ति हुई, जिसके फलस्वरूप रूस में पश्चिमी विचारों का आना प्रारम्भ हो गया था, जिनसे रूस के मध्यम वर्ग के लोग बहुत प्रभावित हो रहे थे । टालस्टाय, तुर्गनेव, दोस्तोवस्की के उपन्यासों ने रूस की शिक्षित जनता को बड़ा प्रभावित किया । इसी प्रकार मार्क्स, मैक्सिस गोर्की तथा बाकुनिन के समाजवादी और अराजकतावादी विचारों ने समाज में एक वैचारिक क्रान्ति उत्पन्न कर दी । निहिलिस्ट तो रूस की तत्कालीन व्यवस्था को समूल नष्ट करने के पक्ष में थे । इन विचारकों तथा लेखकों ने रूस में क्रान्ति की ठोस पृष्ठभूमि तैयार कर दी थी।
4. जार की दमनकारी नीति – 1905 ई. को क्रान्ति के पश्चात् भी जार की सरकार ने अपनी कठोर दमनकारी नीति में कोई सुधार नहीं किया, अतः रूस का शासन निरंकुश बना रहा । सरकार के द्वारा उदार आन्दोलनों को कुचला गया, गुप्तचर विभाग की सहायता से जनता का मुँह बन्द रखा गया तथा किसानों एवं निम्न श्रेणी के लोगों पर निरन्तर अत्याचार होते रहे।
5. क्रान्तिकारियों की तैयारियाँ – सरकार की दमनकारी नीति से क्रान्ति को आग अवश्य दब गई, किन्तु वह अन्दर-ही-अन्दर सुलगती रही । अनेक क्रान्तिकारी मार डाले गए तथा अनेक देश से बाहर निकाल दिये गए । देश से बाहर निकाले गए ये लोग लेनिन के नेतृत्व में अगली क्रान्ति को तैयारी करने में संलग्न हो गए ।
6. मजदूरों में असन्तोष – रूस के औद्योगिक केन्द्रों में मजदूरों में भारी असन्तोष व्याप्त हो गया । उनके संघर्षों को सरकार की दमनकारी नीति के कारण खुले रूप से कार्य करने का अवसर नहीं मिलता था। अतएव उनमें क्रान्तिकारी जोश बढ़ता ही गया ।
7. रूस की निर्धनता – प्रत्येक प्रकार से पिछड़ा हुआ देश होने के कारण रूस की सरकार के पास कोई बड़ा युद्ध लड़ने के लिए साधन नहीं थे । रूस को आवश्यकता थी कि वहाँ शान्ति रहें तथा स्वतन्त्रता का वातावरण उत्पन्न किया जाये, जिससे वहाँ की आर्थिक उन्नति हो सके ।
8. प्रथम विश्व युद्ध में भाग लेना – 1914 ई. में पहला विश्व युद्ध प्रारम्भ हुआ, जिसमें जर्मनी, ऑस्ट्रिया और इटली एक गुट में थे तथा इंग्लैण्ड, फ्रांस और रूस दूसरे गुट में । इसीलिए रूस इस युद्ध में भाग लेने के लिए पहले ही से विवश था । रूस के पास इसके लिए कोई विशेष तैयारी भी न थी, अतः उसका इस युद्ध में कूद पड़ना उसकी बहुत बड़ी भूल थी । रूस की यह भूल उसके लिए अत्यन्त हानिकारक सिद्ध हुई ।
9. पूँजीपतियों द्वारा जनता का शोषण – जब युद्ध में रूस की सेना भेजी गई तो व्यापारियों और पूँजीपतियों ने इस अवसर का लाभ उठाकर अधिक लाभ कमाये और जनता का शोषण किया ।
10. रूसी सेनाओं की पराजय – प्रथम विश्व युद्ध में रूसी सेनापतियों ने अदूरदर्शिता और मूर्खता से काम किया । उन्होंने शेखी में आकर रणक्षेत्रों में विशाल सेनाएँ भेज दी । इन सेनाओं के पास न पूरे हथियार थे, न गोला बारूद और न ही पर्याप्त सैनिक वेशभूषा, परिणाम यह हुआ कि युद्ध में रूस के 6 लाख सैनिक मारे गये और 20 लाख सैनिक बन्दी बनाये गए । इससे मजदूर और किसानों में घोर असन्तोष उत्पन्न हो गया, क्योंकि अधिकांश सैनिक इसी वर्ग से सम्बन्धित थे ।
11. जार निकोलस द्वितीय की अदूरदर्शिता -इस समय रूस का शासक जार निकोलस द्वितीय था । निकोलस द्वितीय और उसकी पत्नी एलिक्स दोनों विलासी और अदूरदर्शी थे । उनके दरबार में पाखण्डी व्यक्तियों का जमघट था । इनमें से रासपुतिन नाम का एक कूटनीतिज्ञ साधु था, जिसका रानी पर गहरा प्रभाव था । रासपुतिन भ्रष्टाचारी था तथा बड़ी-बड़ी रिश्वतें लेता था । इस प्रकार एलिक्स और रासपुतिन के कार्यों ने भी इस क्रान्ति को भड़का दिया ।
12. सरकार और सेना में भ्रष्टाचार –जार के सरकारी कर्मचारी भी प्रायः अयोग्य, भ्रष्टाचारी और विलासी थे और यही स्थिति सैनिकों की थी। सरकार और सेना किसी भी विद्रोह को दबाने में असमर्थ थी ।
13. अकाल – इसी समय रूस में एक भीषण अकाल पड़ा । एक ओर महँगाई और दूसरी ओर अकाल की मार से लोग त्रस्त हो उठे । इन दोनों बातों से क्रान्ति की अग्नि और भी भड़क उठी । अन्ततः भूखे मजदूर रोटी के लिए क्रान्ति करने को विवश हो गए ।
1905 ई. की घटना-‘खूनी रविवार’ व ‘खूनी क्रान्ति’
रूस में जारशाही निरंकुशता का बोलबाला था । जार सम्राट के अधिकारी जन साधारण वर्ग पर भीषण अत्याचार किया करते थे । 1904- 1905 ई. में रूस, जापान जैसे छोटे देश से ही पराजित हो गया था । इन सब बातों से क्षुब्ध होकर 22 जनवरी, 1905 ई. को अनेक श्रमिक अपनी माँगें प्रस्तुत करने के लिए सेण्ट पीटर्स वर्ग के दुर्ग में एकत्रित हुए । उन्होंने जार के सामने अपनी माँगें रखीं, लेकिन जार के आदेश से शाही सैनिकों ने उन पर गोली चला दी, जिसके फलस्वरूप बहुत से निहत्थे श्रमिकों का खून बह गया । हजारो सैनिक मारे गये और 20 हजार से भी अधिक सैनिकोको जेल मे ठूस दिया गया घटना रविवार को घटी थी । अतः इस को दिन रूस के इतिहास में इसे ‘खूनी रविवार’ के नाम से जाना जाता है । जो आगे चलकर 1917 मे एक महान क्रान्ति के रुप मे उभर कर सामने आई। इसलिए 1917 की क्रांति की
रूसी क्रान्ति के परिणाम-
1917 ई. की रूसी क्रान्ति 20वीं शताब्दी के इतिहास की एक अभूतपूर्व घटना थी । इस क्रान्ति ने न केवल रूस वरन् सम्पूर्ण विश्व पर अमिट प्रभाव स्थापित किये । रूसी क्रान्ति के चार परिणाम इस प्रकार थे-
(1) इस क्रान्ति के फलस्वरूप रूस में सदियों से चली आ रही निरंकुश जारशाही शासन का अन्त हुआ ।
(2) इस क्रान्ति के द्वारा रूस में किसानों और श्रमिकों का शोषण समाप्त हो गया ।
(3) देश से पूँजीवादी व्यवस्था समाप्त हो गयी तथा देश की सम्पूर्ण सम्पत्ति एवं उद्योगों पर सरकारी नियंत्रण स्थापित हो गया ।
(4) रूस में लोकतन्त्रात्मक व्यवस्था के आधार पर किसानों एवं श्रमिकों की सरकार बनी।
रूसी क्रान्तिकारियों के प्रमुख उद्देश्य-
रूसी क्रान्तिकारियों के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे –
(i) रूसी क्रान्तिकारी रूसी समाज में शान्ति की स्थापना करना चाहते थे।
(ii) कृषकों की आर्थिक दशा में सुधार करने के लिए, वे कृषकों को भू- स्वामित्व प्रदान करने के पक्षधर थे ।
(iii) पूँजीवादी व्यवस्था को समाप्त करना क्रान्तिकारियों का मुख्य उद्देश्य था ।
(iv) पूँजीपतियों द्वारा मजदूरों का आर्थिक शोषण समाप्त करने के लिए वे उद्योगों पर मजदूरों का नियंत्रण स्थापित करना चाहते थे ।
(v) रूसी क्रान्तिकारी समाजवादी व्यवस्था को स्थापित करना चाहते थे।
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