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The Student By Robert Lynd Summary of the Essay In Hindi and English

The Student By Robert Lynd Summary of the Essay In English

The Student By Robert Lynd Summary of the Essay – When the new academic session starts in the college, the students are seen very enthusiastic. They prepare to meet new professors and purchase new books. They start their study with a feeling as if they are setting out on a new journey. They like the smell of the book and feel the touch of the paper. They prefer new books to old ones. They do not purchase old or second hand books. They discard them like sweetmeats which had been in somebody else’s mouth.

In the beginning of the new academic session the student is full of enthusiasm. The turns the page of his new books which for him is a symbol of a new dawn, new spring. He has deep longing in his heart for becoming a scholar. He would like to learn new subjects. Sometimes he has a fancy for music. He dreams of becoming a great musician like Schumann who learnt to play on piano at the age of twenty Encouraged by his example he started his own practice of music but gave it up in just three days. So, for knowledge of music, he had to content himself with Grove’s dictionary.

Anyway, the author, in his own student life, wanted to learn every subject. Every subject was a hill to climb and any hill was better than no hill. He read the university calendar and fancied to pursue several courses including engineering and political economy. It is another matter that he could not do it all. He fancied to become an architect although he could not distinguish between a house and a beehive. The idea is that the student is enthusiastic enough to master every subject which is next to impossible. But we must give credit to the learning zeal of the student.

There are some students who decide their career on leaving the school and when they join the college they pursue their studies with that fixed aim. For example, they may decide to join the church (preaching career), the bar or the civil services. Such students don’t divert their attention to other subjects and devote their maximum time to prepare for final examinations. They study only that much which is relevant to their course and don’t waste their time and energy on literature or general subjects as pastime. Such students are more likely to achieve a successful career than a successful life. Such types of students cannot become inventors, statesmen, poets or leaders. On the other hand, there are some students who squander their wealth, time and energy on trifles on pleasures of life, and neglect their studies. They do so under the pretext of trying to be original. That is also not good. An ideal student must maintain a balance between discipline and pleasure and keep up his originality without neglecting his studies.

An ideal student is advised to have two dreams – the dream of getting
knowledge and the dream of getting character. Further he is advised to mix with other students. Mixing with other students and talking to them on subjects relevant to their studies in an education in itself. It is to come into touch with the ideas of the other serious students. It really contributes to the mental growth of all students.

The Student By Robert Lynd Summary of the Essay In Hindi

हिन्दी साराँश- जब नया शिक्षा सत्र आरम्भ होता है तो विद्यार्थी में बहुत उत्साह रहता है। उन्हें अपने नये प्रोफेसरों से मिलने की उत्सुकता रहती है। वे नई पुस्तकें खरीदते हैं। वे अपने अध्ययन का प्रारम्भ इस भाव से करते हैं कि जैसे वे किसी नई यात्रा पर निकल रहे हैं। उन्हें पुस्तकों की महक अच्छी लगती है और कागज का स्पर्श भी मन को भाता है। ये पुरानी पुस्तकें नहीं खरीदना चाहते। नई पुस्तकें ही खरीदना चाहते हैं। पुरानी पुस्तकें उन्हें किसी दूसरे के मुख से निकली हुई मिठाई के समान असेवनीय मालूम पड़ती है।

नये शिक्षासत्र के प्रारम्भ में विद्यार्थी का मन उत्साह से भरा होता है। वह अपनी नई पुस्तकों के पृष्टों को इस भाव के पलटता है मानों नया प्रभाव हुआ हो अथवा नव बसंत आ गया हो। उसके मन में विद्वान बनने की ललक होती है। वह नये-नये विषयों को पढ़ना चाहता है। कभी-कभी उसके मन में संगीतज्ञ बनने की धुन सवार हो जाती है। वह सुमंत्र की तरह महान संगीतज्ञ बनने का सपना देखने लगता है। जिसके बारे में उसने सुना था कि उसने बीस वर्ष की अवस्था में पियानों बजाना सीखा था। उसके उदाहरण से उत्साहित हो कर यह विद्यार्थी भी अपना संगीत का अभ्यास प्रारम्भ करता है परन्तु अपने को असमर्थ पाता हुआ तीन दिन में ही अभ्यास छोड़ देता है। फिर तो उसक संगीत-ज्ञान शब्द कोश के अर्थ तक ही सीमित रह जाता है। तात्पर्य यह है कि विद्यार्थी प्रारम्भ में अतिउत्साह में कुछ भी सीखने को तैयार रहता है।

इसी प्रकार लेखक भी अपने छात्र जीवन में हर विषय पढ़ना चाहता था। प्रत्येक विषय एक पर्वत-शिखर के समान लगता था और आरोहण के लिए कोई तो पर्वत शिखर होना ही चाहिए। वह विश्वविद्यालय के शैक्षिक पंचांग को पढ़कर अनेक पाठ्यक्रमों में पदार्पण करना चाहता था जिसमें अभियन्त्रिकी एवं राजनीतिक अर्थशास्त्र जैसे विषय भी शामिल थे। यह बात और है कि वह इन विषयों को नहीं पढ़ पाया। उसने वास्तुविद् होने की कल्पना की थी हालांकि वह मकान और मधुमक्खी के छत्ते में फर्क नहीं कर पाता था। तात्पर्य यह है कि प्रारम्भ में विद्यार्थी में प्रत्येक विषय में पारंगत होने की अभिलाषा रहती है जो सम्भव नहीं सकता। परन्तु हमें इस ज्ञान-पिपासा के लिए विद्यार्थी की प्रशंसा करनी होगी।

कुछ विद्यार्थी स्कूली शिक्षा पूर्ण होते ही अपने जीवन का लक्ष्य निश्चित कर लेते हैं और कालेज में पहुंचने पर वे उसी लक्ष्य की पूर्ति में जुट जाते हैं। उनका लक्ष्य चर्च में उपदेशक बनना, वकालत करना या सिविल सर्विस में आकर अधिकारी बनना हो सकता है। ऐसे विद्यार्थी अपने लक्ष्य के अनुरूप ही पढ़ाई करते हैं – तनिक भी इधर-उधर नहीं भटकते। वे अपने निर्धारित पाठ्यक्रम का ही अभ्यास करते हैं, पाठ्येत्तर विषयों में रुचि नहीं लेते। ऐसी विद्यार्थी अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेते हैं। वे श्रेष्ठ आजीविका पाने में तो सफल होते है परन्तु श्रेष्ठ जीवन पाने में नहीं। ऐसे विद्यार्थी अविष्का, राजनीतिज्ञ, कवि अथवा जननायक नहीं बन सकते। दूसरी ओर ऐसे भी विद्यार्थी होते हैं जो अपना धन अथवा अपनी ऊर्जा व्यर्थ के कामों में लगा देते हैं – सैर-सपाटे या मौज-मस्तीअपना कीमती समय गवाँ देते हैं। ऐसा वे मौलिकता की खोज के नाम पर करते हैं और अपने को भुलावे में रखते हैं। यह भी ठीक नहीं है। एक आदर्श विद्यार्थी को अपने जीवन में अनुशासन और स्वतंत्रता के बीच सामंजस्य बना कर चलना चाहिए और अपने अध्ययन की उपेक्षा न करते हुए मौलिकता की प्रवृत्ति को भी बनाये रखना चाहिए।

एक आदर्श विद्यार्थी को चाहिए कि वह दोनों प्रकार के स्वप्न संजोए रहे – ज्ञानार्जन का स्वप्न और चरित्र-निर्माण का स्वप्न। उसे अपने अन्य विद्यार्थी साथियों से मित्रता रखनी चाहिए और मेल-जोल बढ़ाना चाहिए। अपने साथी विद्यार्थियों से मिलना, उनसे विषय पर आधारित विचारों को जानने का अवसर मिलता है और आत्म विकास में सहायता मिलती है।

  1. On Shaking Hands By A.G. Gardiner Summary of the Essay In English
  2. In Defence of Ignorance By A.G. Gardiner Summary of the Essay In English
  3. Tight Corners By E.V. Lucas Summary of the Essay In English
  4. A Disappointed Man By Robert Lynd Summary of the Essay In English

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