John Donne | Biography of John Donne
Life and Works
John Donne was born into a devout Catholic family. His father, a prominent member of the London Iron Monger’s Company, died when he was barely for. His mother married a Catholic physician, Dr. John Syringes, six months later. In his early days he was taught by Catholic tutors at home. At 11 he went to Hart Hall, Oxford (now Hartford College). He may later have shifted to Cambridge, but his religion debarred him from taking a degree in either university. In May 1592 he entered Lincoln’s Inn as a law student. He renounced his catholic faith just after the death of his younger brother Henry who died in prison in 1592. In 1601 he was elected M.P. for Brackley. He forfeited his chance of a civil career when he secretly married Ann More, Lady Egerton’s niece and daughter of a Surrey landowner late in 1601. He was dismissed from Egerton’s service and briefly imprisoned. He spent the next 14 years depending upon his friends’ charity and the help of his wife’s relations. Having failed to secure a job, he entered the Church in 1615. James ! made him chaplain-in-ordinary and forced Cambridge to grant him a DD. His wife died in 1617 at the age of 33, after giving birth to their 12th child. He was one of the most celebrated preachers, and the greatest of non-dramatic poets of his age.
He wrote satires, elegies, love lyrics etc. ‘The Progress of the Soul is his unfinished satirical epic which was published in 1601. His Holy Sonnets were written about 1610-11. His ‘Songs and Sonnets’ are difficult to date. His poems were collected by his son John and published in 1633. His prose work Pseudo-Martyr is on attack on Catholics who died for their faith. In this book he encourages the Catholics to take the oath of allegiance to James in order to gain royal favour. Among his creations are also essays in Divinity (1651), Devotions (1624) and different volumes of sermons.
John Donne in Hindi
हिन्दी साराँश-
जॉन डन का जन्म एक धर्मभीरु कैथोलिक परिवार में हुआ था। चार साल की अवस्था में ही उसके पिता का साया उसके सर से उठ गया था। उसके पिता ‘दि लन्दन आइरन मांगर्स कम्पनी’ के एक प्रमुख सदस्य थे। जॉन डन की माँ ने अपने पति की मृत्यु के छः माह बाद कैथोलिक चिकित्सक डॉ. जॉन सिरिंजेस से विवाह कर लिया था। जॉन डन की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही कैथलिक टयूटर के माध्यम से हुई थी। ग्यारह वर्ष की आयु में उसे हार्ट हाल, आक्सफोर्ड भेजा गया जिसे आजकल हार्टफोर्ड कालेज कहते हैं। बाद में सम्भवतः उसे कैम्रिज भेज दिया गया। परन्तु अपने धर्म के कारण उसे इन दोनों में से किसी भी विश्वविद्यालय से उपाधि लेने से वंचित होना पड़ा। सन् 1592 के मई माह में उसने ‘लिंकन्स इन’ में कानून के विद्यार्थी के रूप में प्रवेश लिया। अपने छोटे भाई हेनरी की सन् 1592 में जेल में मृत्यु हो जाने के पश्चात उसने अपने कैथोलिक धर्म का परित्याग कर दिया। सन् 1601 में वह ब्रैकले के लिए एम.पी. चुना गया। उसने गुपचुप तरीके से ऐन मोर से शादी कर ली जिस कारण उसे अपना सिविल सेवा में दाखिल होने का अवसर भी गँवाना पड़ा। यह विवाह उसने 1601 के वर्षान्त में किया। ऐन मोर लेडी इगरटॉन की भतीजी तथा सरे के जमींदार की पुत्री थी। उसे इगरटॉन की सेवा से निकाल दिया गया तथा कुछ काल के लिए कैद भी किया गया। अगले 14 वर्षों तक उसने अपने मित्रों के दान पर तथा अपनी पत्नी के रिश्तेदारों की सहायता पर गुजर-बसर किया। जीविका पाने में असफल रहने के कारण उसने सन्1615 में चर्च की सेवा में प्रवेश किया। जेम्स प्रथम ने उसे चैपलेन (पादरी) नियुक्त किया और कैम्ब्रिज से उसे वृत्ति दिलवायी। उसकी पत्नी 12 वें बच्चे को जन्म देकर 33 वर्ष की आयु में सन् 1617 में परलोक सिधार गई। वह अपने समय का एक अत्यन्त लोकप्रिय धर्म प्रचारक तथा नाटक न लिखने वाला महान कवि था।
उसने व्यंग्य, शोकगीत तथा प्रेमगीत आदि की रचना की। ‘प्रोग्रेस ऑन द सोल’ (आत्मा की प्रगति) शीर्षक से उसका एक अपूर्ण व्यंगात्मक महाकाव्य है जिसका प्रकाशन 1601 में हुआ । वर्ष 1610-1611 के बीच लिखे गये उसके ‘होली सानेट्स प्रसिद्ध है। उसके द्वारा लिखित ‘गीत और सनेट्स’ की तिथि बताना मुश्किल है। उसकी गद्य रचना ‘सूडो मार्टिर’ (नकली शहीद) उन कैथोलिक्स पर चोट करती है जो धर्म के लिए मरे हैं। इस पुस्तक में उसने कैथोलिक्स को सलाह दी है कि उन्हें राज्याश्रम प्राप्त करने के लिए किंग जेम्स प्रथम के साथ प्रतिबद्धता की शपथ लेनी चाहिए। उसकी अन्य रचनाओं में प्रमुख हैं धार्मिक निबन्ध (1651), डितोशन्स (1624) तथा विभिन्न प्रवचन संग्रह।
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